
फ़ज़ाइले नमाज़ :-
कुरआनो हदीस में नमाज़ की बहुत ज़्यादा फ़ज़ीलत बयान की गई है, चुनाँचे खुदाए तआला इरशाद फ़रमाता है, बेशक नमाज़ बे हयाई और बुरी बातों से रोकती है। (पारा नं. 21, रुकू नं. 1)
हदीस :- हजरत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत है, उनका बयान है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि बताओ अगर तुम लोगों में किसी के दरवाज़े पर नहर हो और वह उनमें रोज़ाना पांच मरतबा गुस्ल करता हो तो क्या उसके बदन पर कुछ मैल बाक़ी रह जाएगा ?
सहाबए किराम ने अर्ज़ किया ऐसी हालत में उसके बदन पर कुछ भी मैल बाक़ी नहीं रहेगा। हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया बस यही कैफियत पांच नमाज़ों की है अल्लाह तआला उनके सब गुनाहों को मिटा देता है।
एक जगह हज़रते अबू ज़र रज़ियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम एक रोज़ सर्दी के मौसम में जब कि दरख्तों के पत्ते गिर रहे थे (यानी पतझड़ का ज़माना था) बाहर तशरीफ़ ले गए तो आपने एक दरख़्त की दो शाखें पकड़ीं और उन्हें हिलाया तो उन टहनियों से पत्ते गिरने लगे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, ऐ अबू जर ! हजरते अबू ज़र ने अर्ज किया हाज़िर हूँ या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैका वसल्लम, आपने फ़रमाया, जब मुसलमान बन्दा खालिस अल्लाह तआला के लिये नमाज़ पढ़ता है तो उसके गुनाह इस तरह झड़ जाते हैं, जैसे कि ये पत्ते दरख्त से झड़ रहे हैं।
हज़रते अबू हुरैरह रज़ियल्लाहो तआला अन्हो से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, जो शख़्स अपने घर में तहारत (वुजू, गुस्ल) करके फ़र्ज़ अदा करने के लिये मस्जिद को जाता है, तो एक क़दम पर एक गुनाह मिट जाता है, दूसरे पर एक दर्जा बलन्द होता है। (बुखारी, मुस्लिम)
हज़रत उबादह इब्ने सामित रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने बन्दों पर पांच नमाजें फ़र्ज़ कीं, जिसने अच्छी तरह वुज़ू किया और वक़्त में अदा किया व रुकूओ सुजूद को पूरी तरह अदा किया तो उसके लिये अल्लाह तआला ने अपने ज़िम्मए करम पर यह अहद कर लिया है कि उसे बख्श दे और जिसने ऐसा नहीं किया तो उसके लिये कोई अहद नहीं चाहे बख़्श दे चाहे अज़ाब दे। (अबू दाऊद)
एक और हदीस में उम्मुल मोमिनीन हज़रते आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहो तआला अन्हा से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल फ़रमाता है अगर वक़्त में नमाज़ क़ाइम रखे तो मेरे बन्दे को मेरे ज़िम्मए करम पर अहद है कि उसे अज़ाब न दूं और बेहिसाब जन्नत में दाखिल करूँ। (हाकिम)
फ़र्जियते नमाज़ :-
ईमान और अक़ीदा दुरुस्त करने के बाद तमाम फ़राइज़ से अहम फ़र्ज़ और तमाम इबादात से अफ़ज़लो आला इबादत नमाज़ है।
कुरआनो अहादीस में इसकी बहुत ताक़ीद आई है, जा बजा इसकी अहमियतो फ़ज़ीलत बयान की गई है, खुदाए तआला कुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है, नमाज़ क़ाइम करो और ज़कात अदा करो (पारा नं. 1, रुकू नं. 5) और फ़रमाता है यह किताब (कुरआन) परहेज़गारों के लिये हिदायत है, जो गैब पर ईमान लाए और नमाज़ क़ाइम रखते हैं और हमने जो दिया है, उनमें से हमारी राह में ख़र्च करते हैं। (पारानं. 1, रुकूनं. 1)एक ईमान अफ़रोज़ मुकालमा। Ek Imaan Afroz Mukalma.
एक जगह इरशाद फ़रमाता है निगेहबानी करो सब नमाज़ों की और बीच की नमाज़ की और खड़े हो अल्लाह के हुज़ूर अदब से।
इसी तरह शारिए इस्लाम नबिय्ये आखिरुज़्ज़मां सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं, इस्लाम की बुनियाद पांच चीज़ों पर है,
(1) इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मोहम्मद सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम उसके ख़ास बन्दे और रसूल हैं।
(2) नमाज़ क़ाइम करना ।
(3) ज़कात देना ।
(4) हज करना ।
(5) रमज़ान के रोजे रखना ।
दूसरी हदीस में है हज़रते मआज रज़ियल्लाहो तआला अन्हो कहते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से पूछा कि मुझे ऐसा अमल बताएं जो मुझे जन्नत में ले जाए और जहन्नम से बचाए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अल्लाह तआला की इबादत कर और उसके साथ किसी को शरीक न कर और नमाज़ क़ाइम रख, और जकात दे और रमज़ान का रोज़ा रख और बैतुल्लाह (खानए काबा) का हज कर।
एक और हदीसे पाक में है कि नमाज़ दीन का सुतून है, जिसने इसको क़ाइम रखा उसने दीन को क़ाइम रखा और जिसने इसको तर्क किया गोया उसने दीन को ढा दिया। एक मक़ाम पर रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि हर चीज़ की एक पहचान है और ईमान की पहचान नमाज़ है।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…