
बीमार की नमाज़ का बयान:
अगर बीमारी के सबब खड़े होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता कि मर्ज़ बढ़ जाएगा या देर में अच्छा होगा या चक्कर आते हैं या शदीद दर्द है, जो बरदाश्त के क़ाबिल न हो वगैरह वगैरह।
इन सब सूरतों में बैठ कर नमाज़ पढ़े, अगर किसी चीज़ की टेक, लगाकर खड़ा हो सकता है तो फ़र्ज़ हैं कि खड़ा होकर पढ़े इस सूरत में बैठ कर नमाज़ पढ़ेगा तो नहीं होगी।
अगर कुछ देर खड़ा हो सकता है अगरचेह इतना ही कि खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कह ले तो फ़र्ज़ है कि खड़ा होकर इतना कहे फिर बैठे वरना नमाज़ न होगी (बहारे शरीअत)
बीमारी के सबब अगर रुकू सज्दा भी न कर सकता हो तो इशारे से करे मगर रुकू के इशारे से सज्दे के इशारे में सर को ज़्यादा झुकाएं अगर बैठ कर भी नमाज़ न पढ़ सकता हो तो लेट कर नमाज़ पढ़े, इस तरह कि चित लेटकर क़िब्ले की तरफ़ पांव करे,
मगर पांव न फैलाएं बल्कि घुटने खड़े रखे और सर के नीचे तकिया वगैरह रखकर जरा ऊँचा कर ले और रुकू व सज्दा सर झुका कर इशारे से करें यह सूरत अफ़ज़ल है और यह भी जाइज़ है कि दाहने या बाएं करवट लेटकर मुंह क़िब्ले की तरफ़ करे।
इससे उन लोगों को सबक लेना चाहिये कि जो ज़रा सी तकलीफ़ में बैठ कर नमाज पढ़ना शुरू कर देते हैं, हालांकि घर से चल कर मस्जिद आते हैं और अगर घर में हैं तो अपनी ज़रूरियात के लिये तो चल फिर लेते हैं लेकिन नमाज़ बैठ कर पढ़ते हैं, खुदा अपने बन्दों को समझ अता फरमाए। आमीन।
मुसाफ़िर की नमाज़ का बयान :-
शरीअत में मुसाफ़िर वह शख़्स है जो तीन रोज़ की राह तक जाने के इरादे से बस्ती से बाहर हो जाए।
मील के हिसाब से तीन रोज़ के रास्ते की मिक़दार 57
3/8 मील नए हिसाब से तक़रीबन 92 कि.मी. है।
अगर कोई शख़्स तीन रोज़ की राह के इरादे से निकला मगर यह भी इरादा किया कि दरमियान में एक दिन ठहरूँगा तो अगर ठहरना जिमनी तौर पर है तो मुसाफ़िर रहेगा और इस इरादे से निकला दो दिन की राह पर जाता हूँ फिर वहाँ से एक दिन की राह पर जाऊँगा तो मुसाफ़िर न होगा।
मुसाफ़िर पर वाजिब है कि क़स्र करे यानी जोहर, अस्र और इशा की चार रकअत वाली फ़र्ज़ नमाज़ को दो पढ़े कि. इसके हक़ में दो ही रकअत पूरी नमाज़ है,
अगर कोई की तरफ़ पांव करे, मगर पांव न फैलाएं बल्कि घुटने खड़े रखे और सर के नीचे तकिया वगैरह रखकर ज़रा ऊँचा कर ले और रुकू व सज्दा सर झुका कर इशारे से करें यह सूरत अफ़ज़ल है और यह भी जाइज़ है कि दाहने या बाएं करवट लेटकर मुंह क़िब्ले की तरफ़ करे।
क़स्दन (जानबूझ) कर चार पढ़ेगा तो गुनाहगार होगा तौबह करे। अगर चार पढ़ी और दोनों क़अदे क़ये तो फ़र्ज़ अदा हो गया और आखरी दो रकअतें नफ़्ल हो गईं फ़ज्र, मग़रिब, और वित्र में क़स्र नहीं। सुन्नतों में क़स्र नहीं है अगर मौक़ा है तो पूरी पढ़े वरना मुआफ़ है।
मुसाफ़िर जब बस्ती की आबादी से बाहर हो जाए तो उस वक़्त से नमाज़ में क़स्त्र शुरू करे बस स्टेण्ड और रेल्वे स्टेशन अगर आबादी से बाहर हो और तीन दिन की राह तक सफ़र का इरादा भी हो तो बस स्टेण्ड व रेल्वे स्टेशन पर क़स्र करेगा वरना नहीं।क़ज़ा नमाज़ और क़ज़ाए उमरी का बयान।Qaza Namaz aur Qaza-e-Umri ka bayan.
मुसाफ़िर जब तक किसी जगह पन्द्रह दिन या इससे ज़्यादा ठहरने की नियत न करे या अपनी बस्ती में न पहुँच जाए क़स्र करता रहे, मुसाफ़िर अगर मुक़ीम के पीछे नमाज़ पढ़े तो पूरी पढ़े। क़स्र न करे और अगर मुक़ीम, मुसाफ़िर के पीछे नमाज़ पढ़े तो इमाम के सलाम फेरने के बाद अपनी बाक़ी दो रकअत पढ़े और इन रकअतों में क़िारत बिल्कुल न करे बल्कि सूरए फ़ातिहा पढ़ने की मिक़दार ख़ामोश खड़ा रहे।
इससे उन लोगों को सबक़ लेना चाहिये कि जो ज़रा सी तकलीफ़ में बैठ कर नमाज़ पढ़ना शुरू कर देते हैं, हालांकि घर से चल कर मस्जिद आते हैं और अगर घर में हैं तो अपनी जरूरियात के लिये तो चल फिर लेते हैं लेकिन नमाज़ बैठ कर पढ़ते हैं, खुदा सबको नेक समझ अता फरमाए। आमीन।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
One thought on “बीमार और मुसाफ़िर की नमाज़ का बयान।Bimar aur Musafir ki Namaz ka bayan.”