
जंगे बद्र का सबबः “अम्र बिन अल हज़रमी” के कत्ल से कुफ्फारे कुरैश में फैला हुआ जबर्दस्त इशतेआल था जिस से हर काफिर की जुबान पर यही एक नारा था कि “खून का बदला खून” लेकर रहेंगे।
मगर बिल्कुल नागहानी यह सूरते हाल पेश आ गई कि कुरैश का वह काफिला जिस की तलाश में हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम मकामे “ज़िल अशीरा” तक तशरीफ ले गये थे मगर वह काफिला हाथ नहीं आया था। बिल्कुल अचानक मदीना में खबर मिली कि अब वही काफिला मुल्के शाम से लौट कर मक्का जाने वाला है।
और यह भी पता चल गया कि उस काफिले में अबू सुफयान बिन हरब व मख़रमा बिन नौफल व अम्र बिन अल-आस वगैरा कुल 30 या 40 आदमी हैं और कुफ्फारे कुरैश का माले तिजारत जो उस काफिले में है वह बहुत ज़्यादा है।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने अस्हब से फरमाया कि कुफ्फारे कुरेश की टोलियां लूट मार की नियत से मदीना के अतराफ में बराबर गश्त लगाती रहती हैं और “करज़ विन जाफर फहरी” मदीना की चरागाहों तक आ कर गारत गरी और डाका ज़नी कर गया है।
लिहाजा क्यों न हम भी कुफ्फारे कुरैश के उस काफिले पर हमला करके उसको लूट लें। ताकि कुफ्फारे कुरैश की शामी तिजारत बन्द हो जाए और वह मजबूर हो कर हम से सुलह कर लें। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह इरशादे गिरामी सुन कर अंसार व मुहाजिरीन इस के लिये तैयार हो गए। (सीरतुल मुस्तफाः 162-163)
12 रमज़ान 2 हिजरी को बड़ी उज्लत के साथ लोग चल पड़े, जो जिस हाल में था उसी हाल में रवाना हो गया। इस लश्कर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ न ज़्यादा हथियार थे न फौजी, न राशन की कोई बड़ी मिक्दार थी, क्योंकि किसी को गुमान न था कि इस सफर में कोई बड़ी जंग होगी।
मगर जब मक्का में यह खबर फैली कि मुसलमान मुसल्लह हो कर कुरैश का काफिला लूटने के लिये मदीना से चल पड़े है तो मक्का में एक जोश फैल गया और एक दम कुफ्फारे कुरैश की फौज का दल बादल मुसलमानों पर हमला के लिये तैयार हो गया।
जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की इत्तिला हुई तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम को जमा फरमा कर सूरते हाल से आगाह किया और साफ साफ फरमा दिया कि मुमकिन है कि इस सफर में कुफ्फारे कुरैश के काफिले से मुलाकात हो जाए और यह भी हो सकता है कि कुफ्फारे मक्का के लश्कर से जंग की नौबत आ जाये।
इरशादे गिरामी सुन कर हज़रत अबू बकर सिद्दीक व हज़रत उमर फारूक थे और दूसरे मुहाजिरीन ने बड़े जोश व खरोश का इज़हार किया, मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अंसार का मुंह देख रहे थे क्यों कि अंसार ने आप के दस्ते मुबारक पर बैत करते वक्त इस बात का अहद किया था कि वह उस वक्त तलवार उठायेंगे जब कुफ्फार, मदीना पर चढ़ आयेंगे और यहां मदीना से बाहर निकल कर जंग करने का मामला था।
अंसार में से कबीलए खज़रज के सरदार हज़रत सअद बिन उबादा रजियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा मुबारक देख कर बोल उठे कि या रसूलल्लाह! क्या आप का इशारा हमारी तरफ है? खुदा की कसम। हम वह जांनिसार हैं कि अगर आप का हुक्म हो तो हम समन्दर में कूद पड़ें। इसी तरह अंसार के एक और मोअज़्ज़ सरदार हज़रत मिक्दाद बिन अस्वद रजियल्लाहु अन्हु जोश में भर कर अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह। हम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कौम की तरह यह न कहेंगे कि आप और आप का खुदा जा कर लड़ें, बल्कि हम लोग आप के दायें से, बायें से, आगे से, पीछे से लड़ेंगे। अंसार के इन दोनों सरदारों की तक़रीर सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का चेहरा खुशी से चमक उठा।
17 रमजान 2 हिजरी जुमा की रात थी, तमाम फौज तो आराम व चैन की नींद सो रही थी मगर एक सरवरे काइनात की जात थी जो सारी रात खुदावंदे आलम से लौ लगाए दुआ में मसूरूफ थी, सुबह नमूदार हुई तो आप ने लोगों को नमाज़ के लिये बेदार फरमाया, फिर नमाज के बाद कुरआन की आयाते जिहाद सुना कर ऐसा लर्जा खेज़ और वलवला अंगेज वअज़ फरमाया कि मुजाहिदीने इस्लाम की रगों के खून का कतरा कतरा जोश व खरोश का समन्दर बन कर तूफानी मौजें मारने लगा और लोग मैदाने जंग के लिये तैयार होने लगे।
17 रमजान 2 हिजरी के दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुजाहिदीने इस्लाम को सफबंदी का हुक्म दिया। अब वह वक़्त है कि मैदाने बद्र में हक़ व बातिल की दोनों सफें एक दूसरे के सामने खड़ी हैं। हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस नाजुक घड़ी में जनाबे बारी से लौ लगाए गिरया व जारी के साथ खड़े हो कर हाथ फैलाए हुए दुआ मांग रहे थे। किन चीजों से रोज़ा टूट जाता है ?
“खुदावंद! तू ने मुझ से जो वादा फरमाया है आज उसे पूरा फरमा दे।”
आप पर इस कदर रिक़्कत और महविव्यत तारी थी कि जोशे गिरया में चादर मुबारक दोशे अनवर से गिर पड़ी थी मगर आप को खबर नहीं हुई थी। कभी आप सजदे में सर रख कर इस तरह दुआ मांगते किः “इलाही! अगर वह चंद नुफूस हलाक हो गए तो फिर कियामत तक रूए ज़मीन पर तेरी इबादत करने वाले न रहेंगे।”
जंगे बद्र में अल्लाह तआला ने मुसलमानों की मदद के लिये आसमान से फरिश्तों का लश्कर उतार दिया था, पहले एक हज़ार फरिश्ते आए फिर तीन हजार हो गए इसके बाद पांच हज़ार हो गए।(सूरए आले इमरान व अंफाल)
जब खूब घमासान का रन पड़ा तो फरिश्ते किसी को नज़र न आते थे मगर उनकी हर्ब व जर्ब के असरात साफ नज़र आते थे, बाज़ काफिरों की नाक और मुंह पर कोड़ों की मार का निशान पाया जाता था, कहीं बगैर तलवार मारे सर कट कर गिरता नज़र आता था, यह आसमान से आने वाले फरिश्तों की फौज के कारनामे थे।
उतबा, शैबा, अबू जहल वगैरा कुफ्फारे कुरैश के सरदारों की हलाकत से कुफ्फारे मक्का की कमर टूट गई और उनके पावं उखड़ गये और वह हथियार डाल कर भाग खड़े हुए और मुसलमानों ने उन लोगों को गिरिफ्तार करना शुरू कर दिया। इस जंग में कुफ्फार के 70 आदमी कत्लेआम और 70 गिरिफ्तार हुए, बाकी अपना समान छोड़ कर फरार हो गए।
जंगे बद्र में कुल 14 मुसलमान शहादत से सरफराज़ हुए जिन में से 6 मुहाजिर और 8 अंसार थे।
शुहदाए मुहाजिरीन के नाम यह हैं:
1- हजरत उबैदा बिन अल-हारिस रजियल्लाहु अन्हु,
2– हजरत उमैर बिन अबी वक्कास रजियल्लाहु अन्हु,
3- हज़रत जुश्शमालैन उमैर विन अब्द रजियल्लाहु अन्हु,
4- हज़रत आक्लि बिन अबी बुकैर रज़ियल्लाहो अन्हो,
5- हज़रत मेहजअ रज़ियल्लाहो अन्हु,
6- हज़रत सफवान विन बैज़ा रज़ियल्लाहो अन्हु,
शुहदाए अंसार के नामों की फेहरिस्त यह है :-
1- हज़रत सअद बिन खैसमा रज़ियल्लाहो अन्हु,
2- हज़रत मुबश्शिर बिन अब्दुल मुन्जिर रजियल्लाहु अन्हु,
3- हज़रत हारिसा बिन सुराका रजियल्लाहु अन्हु,
4- हज़रत मुअव्वज़ बिन अफ्रा रजियल्लाहु अन्हु,
5- हज़रत उमैर बिन हुमाम रज़ियल्लाहो अन्हु,
6- हज़रत राफेअ बिन मुअल्ला रजियल्लाहु अन्हु,
7- हज़रत औफ बिन अफ्रा रजियल्लाहु अन्हु,
8- हज़रत यजीद बिन हारिस रजियल्लाहु अन्हु,
जो सहाबए किराम जंगे बद्र में शरीक हुए वह तमाम सहाबा में एक खुसूसी शर्फ के साथ मुमताज़ हैं और उन खुशनसीबों की फज़ीलत में एक बहुत ही अजीमुश्शान फज़ीलत यह है कि उन सआदतमंदों के बारे में हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाया किः “बेशक अल्लाह तआला अहले बद्र से वाक़िफ है और उसने यह फरमा दिया है कि तुम अब जो अमल चाहो करो बिला शुब्हा तुम्हारे लिये जन्नत वाजिब हो चुकी है। या यह फरमाया कि मैं ने तुम्हें बख्श दिया है।” (बुखारी शरीफः जिल्द, बहवाला सीरतुल मुस्तफा मुलख्खसन)
कारेईन किराम! इस्लाम जैसी अज़ीम नेमत हमें जो मिली है इन्हीं नुफूसे कुदसिया की जांनिसारी का सदका है, लिहाजा 17 रमजानुल मुबारक को दीगर इबादात व मामूलात के साथ साथ शुहदाए बद्र की बारगाह में भी खिराजे अकीदत पेश करें। इसी तरह 20 रमज़ानुल मुबारक को फत्हे मक्का हुआ, इस तारीख में उन सहाबा को याद करें जिन्हों ने इस्लाम की हक्कानियत व सियानत की खातिर अपनी जान जाने आफरीं के सुपुर्द कर दी और जामे शहादत नोश फरमा कर चमने इस्लाम को सब्ज़ व शादाब कर दिया। रब्बे तआला हम सब को तौफीक बख्शे।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…