06/11/2025
image 36

ऐ बहन ! दो दहेजों की तैयारी कर|Aye behan do dahejon ki taiyari kar.

Share now
Aye behan do dahejon ki taiyari kar.
Aye behan do dahejon ki taiyari kar.

Support Our Work

Choose your app or scan the QR code below

Donate QR

ऐ बहन ! तू अपना दहेज तो पहले तैयार कर ले, हर औरत को दो दहेज तैयार करने पड़ते हैं- एक माल का दहेज शौहर के लिए और एक नेकियों का दहेज परवर्दिगार के लिए। तू शौहर के सामने थोड़ा दहेज भी लेकर पहुँची, चलो कोई बात नहीं, लेकिन अगर परवर्दिगार के सामने ख़ाली हाथ पहुँची और नेकियों का दहेज न हुआ तो कितनी शर्मिन्दगी होगी।

उस दिन परेशान खड़ी होगी, अकेली होगी, न माँ साथ देगी न बाप साथ देगा, न शौहर होगा न बेटा होगा और न भाई होगा, अकेली खड़ी उस वक़्त परेशानी की हालत में पुकार रही होगी:
ऐ अल्लाह मुझे मोहलत दे दे। मैं वापस जाऊँगी और वापस जाकर नेकी वाली ज़िन्दगी गुज़ारूंगी। अल्लाह फरमायेंगेः हरगिज़ नहीं! हरगिज़ नहीं!

तुझे मोहलत दी थी तूने दुनिया के खेल-तमाशे में उस वक़्त को गुज़ार दिया, रस्म व रिवाज में गुज़ार दिया। आज तू मेरे पास खाली हाथ आयी। आज देख हम तेरा क्या बन्दोबस्त करते हैं। उस दिन इनसान परेशान होगा।

Support Our Work

Choose your app or scan the QR code below

Donate QR

लिहाज़ा ज़रूरत है कि हम बच्चियों को नेकी सिखायें, दीन की तालीम दिलवायें ताकि ये बच्चियाँ दीनदार बन जायें। हमने इसके असरात देखे, बड़ी-बड़ी फैशन करनी वाली बच्चियाँ जब दीनी मदरसों में आती है, दीनी माहौल में आती हैं तो उनकी ज़िन्दगी की तरतीब बदल जाती है। तहज्जुद-गुज़ार बन-बनकर वापस जाती हैं।

अल्हम्दु लिल्लाह हिन्दुस्तान में इस आजिज़ के एक दर्जन के करीब बच्चियों के मदरसे हैं। हम देखते हैं कि एम. ए. पास बच्चियाँ आती हैं और अल्लाह की रहमत से बिल्कुल बाकायदा दीनदार बनकर जाती हैं। बल्कि एक डबल एम. ए. बच्ची पिछले साल या उससे पिछले साल दाखिल हुई। वह कहने लगी जब अल्लाह ने मुझे इतनी समझ दी कि मैं डबल एम. ए. कर सकती हूँ।

एम. ए. भूगोल उसने किया एम. ए. केलीग्राफी उसने किया था, तो कहने लगी मैं अल्लाह का कुरआन क्यों नहीं पढ़ सकती? उसने फिर दाखिला लिया। सात महीने में कुरआन सीने में सजा कर चली गयी।

सुब्हानल्लाह ! ऐसी-ऐसी हमारे सामने मिसालें मौजूद हैं। हमने दारुल-हिसान वाशिंगटन के अन्दर अल्हम्दु लिल्लाह औरतों की एक क्लास शुरू की है। बड़ी उम्र की औरतें और बच्चों वाली औरतें हैं। उनके शौहर हैरान होते हैं, आकर बताते हैं कल टेस्ट था मेरी बीवी एक हाथ से सालन पका रही थी दूसरे हाथ में किताब लेकर सर्फ की गर्दानें याद कर रही थी।

खूबसूरत वाक़िआ:-नेक औलाद बेहतरीन सदका-ए-जारिया।

‘नह्व’ में तालीलात पढ़ रही थी। हैरान होते हैं, बच्चों वाली औरतें जिनसे कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता, जब उनको दीन की तरफ रग़बत (तवज्जोह) दिलाई जाती है तो बच्चे भी पालती हैं, खाने भी पकाती हैं, शौहरों के हुक़ूक़ भी पूरे करती हैं, मगर उसके साथ-साथ दीन की तालीम भी पढ़ती हैं और माशा-अल्लाह साथ-साथ दीनदार भी बन जाती हैं। अल्हम्दु लिल्लाह हमने इसके कई जगहों पर नमूने देखे। इसलिए ज़रूरी है कि बच्चियों को दीन की तालीम दें।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *