
ज़मानए क़ह़त़ में रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भूक महसूस की तो बिन्ते रसूल हज़रते सय्यिदतुना फातिमा बतूल रजियल्लाहु अन्हा ने सीनी में एक बोटी और दो रोटियां ईषार करते हुए बारगाहे रिसालत में भेज दीं।
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस तोहफ़े के साथ हज़रते फ़ातिमा रजियल्लाहु अन्हा की तरफ तशरीफ़ ले आए और फ़रमाया : ऐ मेरी बेटी ! इधर आओ। हज़रते सय्यिदा फ़ातिमा रजियल्लाहु अन्हा ने जब इस सीनी को खोला तो आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा येह देख कर हैरान रह गईं कि वोह सीनी रोटियों और बोटियों से भरी हुई थी और आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने जान लिया कि येह खाना अल्लाह अज़वजल की तरफ से नाज़िल हुवा है ।
हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप रज़ियल्लाहु अन्हा से इस्तिफ़्सार फ़रमाया : या’नी येह सब तुम्हारे लिये कहां से आया ? तो हज़रते फातिमा रजियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया : यानी वह अल्लाह के पास से है, बेशक अल्लाह जिसे चाहे बे गिनती दे। सरकार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तमाम तारीफें अल्लाह अज़वजल के लिये जिस ने तुझे बनी इस्राईल की सरदार यानी हज़रते मरयम रजियल्लाहु अन्हा के मुशाबेह बनाया।
फिर हुजूरे अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली, हज़राते हसन व हुसैन और दूसरे अहले बैत रजियल्लाहु अन्हुम को जम्अ फ़रमा कर सब के साथ सीनी में से खाना तनावुल फ़रमाया और सब सैर हो गए फिर भी खाना इसी कदर बाक़ी था और उस को हज़रते सय्यिदतुना बीबी फातिमा रजियल्लाहु अन्हा ने अपने पड़ोसियों को खिलाया ।
इस्लामी बहनो ! अल्लाह अज़वजल की प्यारी बन्दी, आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शहज़ादी हज़रते सय्यिदतुना फ़ातिमतुज़्ज़हरा रजियल्लाहु अन्हा की अज़ीमुश्शान करामतें कि आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की दिलजूई के लिये कभी जन्नती खाने हाज़िर हों और कभी आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा की बरकत से थोड़ा सा खाना अहले बैत और पड़ोस के कई अफराद को किफ़ायत करे और जब पूछा जाए कि येह सब कैसे हो गया तो सय्यिदा आबिदा ज़ाहिदा का जवाब कि येह सब कुछ अल्लाह रज़्ज़ाक अज़वजल की तरफ से है,बीमार और मुसाफ़िर की नमाज़ का बयान।Bimar aur Musafir ki Namaz ka bayan.
इस में हमारे लिये तालीम है कि जब भी कोई फ़ज़लो कमाल हासिल हो, दीनी व दुन्यवी इज़्ज़त व अज़मत नसीब हो तो इस को मिन जानिबिल्लाह यानी अल्लाह अज़वजल की तरफ़ से ही तसव्वुर करना चाहिये, अपनी ज़ात की तरफ़ इस की निस्बत नहीं करनी चाहिये और हक़ीक़त भी येही है कि बन्दे को जो भी दीनो दुनिया की नेमत व करामत मिलती है मशिय्यते ईज़दी यानी अल्लाह की मरज़ी, तक़दीरे इलाही और जनाबे इलाही से मिलती है।
अब बन्दे की मरज़ी कि वोह इस हक़ीक़त का मुकिर्र रहे या नफ्स की चालों और शैतान के जालों में उलझ कर अपनी मेहनत व कोशिश का नतीजा तसव्वुर करे । बहर कैफ़ क़ौलो फेल और ज़बान व दिल हर लिहाज़ से अपने आप को आजिज़ तसव्वुर करना और हर कमाल की निस्बत जाते इलाही की तरफ़ करना अल्लाह अज़वजल के बर्गुज़ीदा बन्दों और बन्दियों का शिआर है।
वोह बुलन्द से बुलन्द तर मक़ाम तक रसाई पा कर भी खुद को आजिज़ व मुतवाजेअ या’नी इन्किसारी करने वाले रखते हैं और ब तक़ाज़ए बशरिय्यत यानी इन्सान होने के नाते अगर दिल में अपने बुलन्द मक़ाम का तसव्वुर भी आ जाए तो इस तसव्वुर को भी तकब्बुर जानते और इस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…