दुआ माँगने की फ़ज़ीलत ।Dua mangne ki fazilat.

20240329 054213

Dua magne ki fazilat;-हदीस शरीफ में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “दुआ मांगना भी बिल्कुल इबादत करने की तरह है। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दलील के तौर पर कुरआन करीम की यह आयत तिलावत फ़रमाई, तर्जुमा “और तुम्हारे पर्वरदिगार ने फरमाया है मुझ से दुआ माँगा करो, मैं तुम्हारी दुआ कुबूल करूँगा। बेझिझक, जो लोग तकब्बुर की वजह से मेरी इबादत से मुंह मोड़ते है वह जलील और रुसवा हो कर जरूर ही जहन्नम में दाखिल होगे।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व स्ललम ने फरमायाः “तुम में से जिस शख्स के लिये दुआ का दर्वाजा खोल दिया गया यानी दुआ माँगने की तौफीक दे दी ,उस के लिये रहमत के दर्वाजे खोल दिये गये अल्लाह पाक से जो दुआएँ माँगी जाती हैं उन में अल्लाह पाक को सब से अधिक पसंद यह है कि उस से दुनिया और आखिरत में अम्न और शान्ति की। दुआ माँगी जाये।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “दुआ के अलावा कोई चीज़ तकदीर के फैसले को रद्द नहीं कर सकती, नेक अमल के अलावा कोई चीज उम्र को बढ़ा नहीं सकती।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया तकदीर के फैसले से बचने में कोई उपाय काम नहीं देता हाँ अल्लाह से दुआ माँगना उस आफत और मुसीबत में फायदा पहुँचाता है जो नाजिल हो चुकी है, और उस मुसीबत में भी जो अभी तक नाज़िल नही हुई। और बेशक बला नाजिल होने को होती है कि इतने में दुआ उस से जा मिलती है, इसलिये कयामत तक इन दोनों में खींचा तानी होती रहती है और इस तरह इन्सान दुआ की बदौलत उस बला और मुसीबत से छुटकारा पा जाता है।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया अल्लाह पाक के नज़दीक दुआ से अधिक और किसी चीज की अहमियत नही।

एक और हदीस में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:जो शख्स अल्लाह से कोई सवाल नहीं करता, अल्लाह पाक उस से नाराज़ हो जाते हैं।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा को मुतवज्जह कर के फरमाया “तुम अल्लाह से दुआ माँगने में आजिज़ न बनो (यानी कोताही न करो ) इसलिए कि दुआ करते रहने की सूरत में कोई शख्स हरगिज़ ( अचानक किसी आफत से) हलाक नही होगा। ”

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : जो शख्स यह चाहे कि अल्लाह तआला उस की दुआ मुसीबत और परेशानी के समय कुबूल फरमायें उसे चाहिये कि वह अच्छी हालत में भी अधिक से अधिक दुआ माँगा करे।”

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: दुआ मोमिन का हथियार है, दीन का सुतून है, आसमान और ज़मीन का नूर है।

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक ऐसी कौम के पास से गुजरे जो किसी मुसीबत में गिरिफ्तार देख कर आप ने फरमाया उन की हालत को ऐसा मालूम होता है कि यह लोग अल्लाह पाक से अम्न और शान्ति की दुआ नहीं माँगा करते थे। ”

एक और हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु व सल्लम ने फ़रमाया :”जो भी मुसलमान कुछ माँगने के लिये अल्लाह पाक की ओर अपना मुँह उठाता है ( दुआ माँगता है) तो अल्लाह पाक उस को वह चीज जरूर देते हैं या वही चीज उस को तुरन्त ‘दे देते हैं, या उस के वास्ते ( दुनिया और आखिरत में ) उस को जमा कर देते हैं।

यानी दुआ के कुबूल होने की तीन सूरतें होती हैं।

1- अगर अल्लाह पाक बेहतर समझता है तो उस की माँग पूरी कर देता है।

2- अगर तुरन्त पूरी करना बेहतर नहीं समझता तो देर से सही समय पर माँग पूरी करता है।

3- अगर तुरन्त और देर से भी नहीं पूरी करता है तो उस का कोई अच्छा बदला दुनिया और आखिरत में दे देता है, लेकिन अल्लाह पाक से दुआ माँगने का बदला तो हर हाल में मिल ही जाता है, इसलिये कोई भी दुआ किसी भी हाल में रद्द नहीं की जाती।

अल्लाह पाक हम सब के गुनाहो को मु’आफ फरमाए और ज्यादा से ज़्यादा अपने बारगाह मे हमारी दुआए कुबूल फरमाए आमीन।

दुआ माँगने की फ़ज़ीलत को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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