एक हिन्दू घराने के इस्लाम लाने का एक अजीब वाकिआ है। एक जवान का ताल्लुक हिन्दू घराने से था। उसे कैंसर का मर्ज़ हो गया था। डाक्टरों ने लाइलाज करार देकर हास्पिटल से घर भेज दिया। उसकी उम्र चालीस बयालिस साल थी। वह घर आकर बड़ा उदास व परेशान रहने लगा । उसे रह रह कर यह ख़्याल आता कि मैं तो बस चंद दिनों के बाद मर जाऊँगा ।
एक दिन उसकी बीवी उसके पास बैठी थी। वह उसके साथ मुहब्बत भरी बातें कर रहा था। इस दौरान वह कहने लगा, अब तो मैं और आप जुदा हो जाएंगे क्योंकि अब मेरी सेहत बहाल होने का कोई चान्स नहीं है।
बीवी ने कहा, अगर आप मेरे साथ एक वादा करें कि मैं जो भी कहूँगी आप मेरी बात मानेंगे तो इस शर्त पर मैं आपको एक चीज़ पिलाती हूँ, आप बिल्कुल सेहतमंद हो जाएंगे।
उसने जवाब दिया, जब हास्पिटल में मेरे ईलाज के लिए दवाईयाँ नहीं हैं तो आपके पास कौन सी चीज़ आ गई?
वह कहने लगी, क्या आपको मुझसे मुहब्बत है? उसने कहा, जी हाँ, बहुत मुहब्बत है। बीवी ने कहा, अगर आपको मुझसे वाकई मुहब्बत हैं तो फिर वादा करो। आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। फिर हम इकट्ठे लंबी जिंदगी गुज़ारेंगे। बस आप वादा करें कि जो बात में कहूंगी आप ज़रूर मानेंगे।Ek Ajeeb Waqia Quraan Shareef ka Asar
उसने कहा मैं तो आपकी बातें वैसे ही मानता हूँ। पहले ज़माने में तो जानवर को रस्सी डालकर पीछे लेकर चलते थे लेकिन आजकल के नौजवान ऐसे सधाए हुए हैं कि वैसे ही पीछे चल रहे होते हैं।
ख़ैर मियाँ ने वादा कर लिया कि आप जो भी बात कहेंगी मैं मानूंगा। उसके बाद उसकी बीवी उसके पास कुर्सी डालकर बैठ गई । उसने अपने पास एक जग में पानी भी रख लिया। वह कुछ पढ़ पढ़ कर उस पर फूंकती रही। जब वह फारिग हुई तो उसने मियाँ को उसमें से कुछ पानी दिया। फिर जब भी उसको प्यास महसूस होती तो वह उस जग में से पानी पिला देती।
अल्लाह की शान देखिए कि उसने अभी कुछ दिन ही वह पानी पिया था कि वह अपने आपको सेहतमंद महसूस करने लगा। उसने जाकर लैब्रोट्री टैस्ट कराया तो पता चला कि उसके अंदर का ब्लड कैंसर ख़त्म हो चुका था। उसको यकीन नही आया। जब उसने सारी सूरतेहाल अपनी बीवी को बताई तो उसने कहा कि किसी दूसरी लैब्रोट्री से चैक करवा लें।अल्लाह की अपने बन्दो पर रहमत।
लिहाज़ा दूसरी लैब्रोट्री में चला गया।वहां से भी यही रिपोर्ट मिली कि ब्लड कैंसर ख़त्म हो चुका है। वह बड़ा हैरान हुआ। वह जब दूसरी रिपोर्ट लेकर घर आया तो बीवी से कहने लगा, मेरी बीमारी तो वाकई ख़त्म हो चुकी है और अब मैं अपने आपको बेहतर महसूस कर रहा हूँ मगर सच सच बताएं कि आखिर यह है क्या ?
बीवी ने कहा, पहले तो आप वादा पूरा करें जो आपने वादा किया था, फिर बताऊँगी। उसने कहा ठीक है, आप जो बात भी कहेंगी मैं पूरी करूंगा। वह कहने लगी, “आप मेरे साथ कलिमा पढ़कर मुसलमान बन जाएं।” जब उसकी बीवी ने यह कहा तो वह हिन्दू जवान हैरान रह गया। वह उसके चेहरे की तरफ गौर से देखकर बोला, आप क्या कह रही हैं ?Ek Ajeeb Waqia Quraan Shareef ka Asar
बीवी ने कहा, मैं आपकी बीवी हूँ, अब आपको सेहत मिल चुकी है, आपने मुझसे वादा किया हुआ है, लिहाजा अब आप अपना वादा निभाएं और कलिमा पढ़कर मुसलमान हो जाएं। उसने कहा, मैं तो यह तसव्वुर भी नहीं कर सकता था कि आप मुझसे यह कहेंगी।
बीवी ने कहा, जी आपकी बात बिल्कुल ठीक है, लेकिन अब जो कह दिया है वह पूरा करें। उसने पूछा, क्या आप मुसलमान हैं? बीवी कहने लगी, हाँ मैं मुसलमान हूँ। उसने कहा कि तुम्हारा बाप तो इतना पक्का हिंदू है कि वह तो औरों को भी हिन्दू बनाता है। अगर उसे आपके बारे में पता चल गया तो वह आपका गला काट देगा। तुम ऐसे घर की लड़की हो फिर तुम कैसे मुसलमान बन गयीं? बीवी ने कहा, यह लंबी कहानी है, फिर सुनाऊँगी।
आप पहले कलिमा पढ़ें और मुसलमान हो जाए। मियाँ अब अच्छी तरह क़ाबू में आ चुका था इसलिए उसे कलिमा पढ़ना ही पड़ा। अल्हम्दुलिल्लाह वह मुसलमान बन गया। उसके बाद उसने बीवी से कहा अब बताओ कि असल में मामला क्या हुआ था ? अब उसने उसे यह कहानी सुनाई ।
बीवी ने कहा कि जब मैं छोटी उम्र में स्कूल में पढ़ती थी उस वक्त मेरी क्लास में एक मुलमान लड़की भी थी। वह मेरी सहेली बन गई। वह हमारे पड़ौस में ही रहती थी। मैं शाम के वक्त उसके घर खेलने के लिए जाती थी।
उसकी वालिदा मुसलमान बच्चों को क़ुरआन मजीद पढ़ाती थीं। मेरी सहेली भी अपनी वालिदा से क़ुरआन मजीद पढ़ती थी। क्योंकि वह मेरी सहेली थी इसलिए जब वह अपना सबक याद करती तो मैं भी उसके पास बैठ जाती थी। मैं भी ज़हीन थी। उसे भी सबक याद हो जाता और मुझे भी उसका सबक याद हो जाता।
जब वह अम्मी को सुनाती तो मैं भी उनसे कहती कि खाला ! मैं भी सुनाती हूँ । इस तरह वह मुझसे भी सबक़ सुन लेती थीं।जब ख़ाला ने कुछ दिनों में मेरा शौक देखा तो उन्होंने मुझे मश्वरा दिया कि बेटी ! तुम रोज़ाना ही तो आती हो, तुम भी इसके साथ साथ रोज़ाना याद करती रहो।Ek Ajeeb Waqia Quraan Shareef ka Asar
क्योंकि मेरी क्लास फैलो थी इसलिए मैंने कहा, जी ठीक है। जब मैंने यह कहा तो ख़ाला कहने लगी, बेटी! यह किसी को न बताना। मैंने कहा, जी मैं किसी को नहीं बताऊँगी। इस तरह मैं दो साल तक उनके घर जाती रही और सबक पढ़ती रही। जिस तरह उनकी बेटी ने नाज़रा कुरआन पाक मुकम्मल किया उसी तरह मैंने भी उसके साथ क़ुरआन पाक मुकम्मल कर लिया।
मैंने जब कुरआन पाक मुकम्मल पढ़ लिया तो मैंने ख़ाला से कहा, बाकी बच्चे तो घर में पढ़ते हैं लेकिन मैं तो घर में नहीं पढ़ सकती । उन्होंने कहा कि क़ुरआन मजीद में अलम-नश्रह एक सूरत है। यह सूरत पढ़कर अगर किसी मरीज़ पर दम कर दें या पानी पर दम करके उसे पिला दें तो उसको सेहत मिल जाती है।
यह अमल मुझे किसी बुजुर्ग ने बताया था। अब यही अमल मैं आपको बता रही हूँ, इसे याद रखना यह कभी न कभी तेरे काम आएगा। वह मुझे इस किस्म की बातें सुनाती रहती थीं।
जब मैं जवान हुई और मेरी शादी होने लगी तो चंद दिन पहले मैं उनके पास गई और उनके पास बैठकर बहुत रोई। मैंने कहा, ख़ाला ! आपकी बेटी मेरी सहेली थी। उसकी वजह से मैं आपके घर आया करती थी। इसी बहाने से मैंने कुरआन पाक भी पढ़ लिया था और आपने मुझे कलिमा भी पढ़ा दिया था। अंदर से तो मैं मुसलमान हो चुकी हूँ लेकिन अब जहाँ मेरी शादी हो रही है,
वहाँ तो मैं न अपने ईमान का इज़हार कर सकती हूँ और न ही मेरे पास कुरआन मजीद होगा, वहाँ मेरा क्या बनेगा? ख़ाला ने कहा, बेटी! तुम परेशान न हो। मैं किसी न किसी तरह तुम्हारे साथ जहेज़ में क़ुरआन मजीद भेज दूंगी। मैंने कहा, यह तो बहुत ही अजीब बात है । चुनाँचे ख़ाला ने मेरी वालिदा को पैगाम भिजवाया कि आपकी बेटी मेरी बेटी की सहेली है,
मेरी बेटी उसे हदिए के तौर पर जहेज़ में कुछ कपड़े देना चाहती है। अगर इजाज़त हो तो मैं भी कपड़े बनवा दूँ। मेरे माँ-बाप के वहम व गुमान में भी यह बात नहीं आ सकती थी। उन्होंने सोचा कि यह दोनों प्राइमरी से लेकर कालेज तक क्लास फैलो हैं और आपस में मुहब्बत भी रखती हैं। इसलिए उन्होंने इजाज़त दे दी कि ठीक है।हज़रते खदीजा (र.अ)से हज़रत आइशा (र.अ)का गैरत।
आप भी कुछ जोड़े बनवा दें। लिहाज़ा उन्होंने जवाब भेजा कि हम उसको जहेज़ में सात जोड़े बनवाकर देंगे। उस ख़ाला ने मेरे लिए बहुत कीमती जोड़े बनवाए। उन्होंने कपड़ों को बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से गिफ्ट पैक करवाया और उनके बीच में कुरआन मजीद भी गिफ्ट पैक करके हमारे घर पहुँचा दिया।
और साथ ही यह कि कहा कि हमने इसके कपड़े गिफ्ट पैक किए हैं, आप उसे यहाँ अपने घर न खोलना बल्कि आपकी बेटी अपने नए घर जाकर खोलेगी ताकि उसका ख़ाविन्द भी देखकर खुश हो।
मेरे माँ-बाप को उनकी यह बात बहुत अच्छी लगी। लिहाज़ा उन्होंने कहा कि यह गिफ्ट पैक वाकई बहुत ख़ूबसूरत है। बेहतर यही होगा कि दुल्हन उसे अपने घर में जाकर ही खोले। मैं जब आपके घर में आई तो मैंने सबसे पहला काम यह किया कि जिस कमरे में मेरी रिहाइश थी, मैंने कलाम पाक निकालकर कहीं छिपा दिया।
जब आप रोज़ाना दफ़्तर चले जाते तो मैं पीछे क़ुरआन पाक खोलकर पढ़ लेती और जब आपके वापस आने का वक़्त क़रीब होता तो मैं उसे अच्छी तरह छिपा कर रख देती ताकि आप इसको देख न लें। जिंदगी के इतने साल मैंने अपना ईमान छिपाए रखा। आखिर आप बीमार हो गए और दवाईयों ने काम न किया। मेरे दिल में पक्का यकीन था कि जहाँ दवाईयाँ काम नहीं आतीं वहाँ अल्लाह का कलाम काम आ जाता है।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…