
कुरान :- अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: “तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिये खेतियां हैं तो आओ अपनी खेतियों में जिस तरह चाहो।”
जिमाअ के तरीक़े बहुत से हैं बल्कि हवस परस्तों ने कुछ बेहूदा और तकलीफ़ दह तरीके भी ईजाद कर लिये हैं। उन तरीकों से बचना चाहिये बल्कि ऐसा तरीक़ा अपनाना चाहिये जिससे दोनों खुशो खुर्रम और हशाश बशास हो जाऐं।
बेहतर तरीक़ा यह है कि औरत चित लेट जाए और मर्द उसके ऊपर आए। फिर उसके साथ छेड़-छाड़ और बोसो किनार करे, यहाँ तक कि शहवत भड़क उठे, फिर जल्दी से औरत की अन्दामे निहानी में ज़कर को दाखिल कर दे और हरकत करे।
फिर जब मनी गिर जाये तो कुछ देर तक औरत की गर्दन से चिम्टा रहे और ज़कर बाहर न निकाले। जब जिस्म में सुकूनो कार आजाए तो दायें जानिब होकर ज़कर को बाहर निकाले। इसमें एक खूबी यह भी है कि अगर इस किस्म के जिमाअ से नुत्फा ठहर जाए तो लड़का पैदा होगा।(मुजर्रबाते सुयूती पेज 41)
जिमाअ के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं, जब चाहो दिन में या रात में इसी तरह जैसे चाहो खड़े होकर, बैठ कर, लेट कर, चित से, पट से, हर तरह तुम्हारे लिये मुबाह है लेकिन फिरती तरीक़ा तो यह ही है कि औरत नीचे और मर्द ऊपर रहे। जैसा कि सारे हैवानात इसी फित्री तरीक़े पर अमल करते हैं।
कुरआने पाक की इस आयत में भी इसी तरीक़े की तरफ लतीफ इशारा किया गया है।”जब मर्द ने औरत को ढाँप लिया तो उसको हल्का सा हम्ल रह गया। (कुरआने पाक)
इस तरीक़े में ज्यादा राहतो आसानी भी है। औरत को मशक्क नहीं उठानी पड़ती, नीज औरत पर थोड़ा वजन आयेगा जिसकी वजह से उसकी लज़्ज़त में इज़ाफा होगा।
इमामे अहले सुन्नत, सरकारे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़िले बरेलवी फरमाते हैं: “जिमाअ के वक़्त यह नियत हो (1) तलबे वलदे स्वालेह (2) बीवी का अदाए हक़ (3) यादे इलाही और आमाले स्वालेहा के लिये अपने दिल को फारिग़ करना। न बिल्कुल बरहना हो खुद, न औरत, न रू किब्ला, न पुश्त क़िब्ला, औरत चित हो और यह उक्डूं बैठे। बोसो किनार, छेड़-छाड़ से शुरू करे। जब औरत को भी मुतवज्जह पाए तो ये दुआ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम जन्निबनश्शैताना व जन्निबिश्शैताना मा रज़कतना ।जिमाअ के आदाब। Jima ke Aadab.
कह कर आगाज़ करे, उस वक़्त कलाम न करे और न औरत की शर्मगाह पर नज़र करे, फिर जब इन्ज़ाल की नौबत पहुँचे तो दिल ही दिल में यह दुआ पढ़ेः “अल्लाहुम्मा ला तजअल लिश्शेतानि फीमा रज़कतनी नसीबन” अगर कोई इस दुआ को पढ़ लेता है और उसके मुकद्दर में बच्चे की विलादत है तो शैतान उस बच्चे को कभी ज़रर (नुक्सान) न दे सकेगा।(फ़तावा रजविया जिल्द 9, पेज 425 हिस्ने हसीन पेज 252)
औरत के बैठी हुई हालत में मुकारबत (संगत) न करे, इसी तरह पहलू की तरफ से भी न करे कि इससे कमर दर्द पैदा होता है। औरत को अपने ऊपर भी न चढ़ाये कि इससे औरत बाँझ हो जाती है बल्कि औरत को चित लिटाए और उसकी टाँगो को ऊपर उठाए। (मुजर्रबाते सुयूती पेज 41)
शैख बू अली सीना के नज़्दीक जिमाअ की तमाम शक्लों में बुरी शक्ल यह है कि औरत मर्द के ऊपर हो और मर्द नीचे चित लेटा हो क्योंकि इस सूरत में मनी मर्द के उज्व में बाकी रह कर मुतअफ़्फ़न हो जाती है जो तकलीफ़ का बाइस होती है।
इन्ज़ाल के बाद फौरन जुदा न हो बल्कि इन्तिज़ार करे कि औरत की भी हाजत पूरी हो जाए। इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि फरमाते हैं कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “मर्द में यह कमज़ोरी की निशानी है कि जब मुबाशरत का इरादा करे तो बोसो किनार से पहले जिमाअ करने लगे और जब इन्ज़ाल हो जाय तो सब्र न कर सके और फौरन अलग हो जाय कि औरत की हाजत अभी पूरी नहीं हो पाई है।”(कीमिया ए सआदत पेज 266)
फरागत के बाद मर्द औरत दोनों अलग-अलग कपड़े से अपनी अपनी शर्मगाह को साफ कर लें। दोनों का एक ही कपड़े से साफ करना नफरतो जुदाई का सबब है।
अगर किसी शख्स को एहतिलाम हुआ हो तो बगैर वुजू किये यानी हाथ, मुंह, शर्मगाह धोए बिना जिमाअ न करे वर्ना होने वाले बच्चे पर बीमारी का अंदेशा है। हो सकता है कि बच्चा दीवाना और बेकार पैदा हो।(कुव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489 बुस्तानुल आरिफीन पेज 137)
ज़्यादा बूढ़ी औरत से जिमाअ नहीं करना चाहिए कि इससे बदन कमज़ोर और आदमी जल्द बूढ़ा हो जाता है। खड़े होकर भी जिमाअ नहीं करना चाहिये कि इससे बदन कमज़ोर और ज़ीफ हो जाता है और भरे पेट भी मुजामअत (संगत) नहीं करना चाहिये कि इससे औलाद कुन्द ज़ेहन पैदा होगी।
बअज़ लोगों ने यह भी लिखा है कि फरागत के बाद मर्दो औरत और दोनों को पेशाब कर लेना चाहिये, नहीं तो किसी ला-इलाज मर्ज़ में मुब्तिला होगा।(बुस्तानुल आरिफीन पेज 139)
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
One thought on “जिमाअ करने का तरीक़ा। Jima karne ka Tarika.”