19/05/2025
In the light of Fazail Ahadith of Roza.

रोज़ा के फज़ाईल अहादीष की रोशनी में । In the light of Fazail Ahadith of Roza.

Spread the love
In the light of Fazail Ahadith of Roza.
In the light of Fazail Ahadith of Roza.

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कसम है उस जात की जिसके कब्ज़-ए-कुदरत में मेरी जान है, रोज़ादार के मुंह की बू अल्लाह के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा बेहतर है।(बुखारी शरीफ)

मैं ही इसका बदला दूँगा :-

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है रोज़े मेरे लिए है और मैं ही इनका बदला दूंगा और दूसरी नेकियों का अजर दस गुना कर दूंगा।

नमाज़, हज व जकात यह इबादतें भी बंदा अल्लाह ही के लिए करता है लेकिन इन आमाल की जज़ा हुसूले रज़ाए इलाही का ज़रिया तो है लेकिन मौला का हुसूल सिर्फ़ रोज़े की जज़ा में है, आखिर ऐसा क्यों?

इसकी चंद वजहें हैं:-

बंदा जब नमाज़ पढ़ता है तो उसकी अदायगीए सलात को लोग देखते हैं, हज करता है तो उसके अरकान की अदायगी को लोग देखते हैं, जकात देता है तो उससे भी लोग बाखबर होते हैं लेकिन रोज़ा एक ऐसी इबादत है कि उसका इल्म रोज़ादार और परवरदिगार के अलावा किसी और को नहीं होता। बंदा वक़्ते सेहर घर वालों के साथ सहरी कर भी ले लेकिन लोगों की नज़रों से ओझल होकर दिन के उजाले में अगर खा ले तो किसी को उसकी क्या खबर ?

लेकिन बंदा अपने मौला की खुशी की खातिर और उसके खौफ से न छुप कर खाता है और न अपनी प्यास को बुझाने की कोशिश करता है बल्कि दामने सब्र को थाम कर अपने मौला की रज़ा की खातिर ख्वाहिशाते नफ़्स को पूरी नहीं करता तो अल्लाह को बंदे का यह अमल इतना पसंद आता है कि रब जज़ा और सिला में खुद अपनी जात को पेश फरमा देता है। इसलिए कि रोज़ा में राई के दोने के बराबर भी रिया का दखल नहीं होता और अल्लाह की बारगाह में वही इबादत काबिले कुबूल है जो रिया से पाक हो।

इस्तगना अल्लाह तआला की सिफ्त है और बंदा रोजा रख कर इस्तगुना की सिफ्त को अपनाता है तो वह एक गुनां सिफ्ते खुदाबंदी का मज़हर हो जाता है।

बातिल खुदाओं की इबादत क्याम, रुकू, सुजूद, तवाफ, नज़र व नियाज़ और उनकी खातिर लड़ाई भी की गई लेकिन किसी बातिल खुदा के लिए कभी रोजा नहीं रखा गया इसलिए अल्लाह तआला ने फरमाया कि “रोज़ा खुसूसन मेरे लिए है।

कियामत के दिन दीगर इबादात लोगों के हक़ में हकदारों को दे दी जायंगे लेकिन रोजा किसी को नहीं दिया जाएगा जैसा कि एक हदीस कुदसी में है कि अल्लाह तआला फरमाता है “अमल उसके गुनाहों का कफ्फारा बन जाता है सिवाए रोज़ा के, रोज़ा मेरे लिए है और मैं उसका बदला दूंगा।

गमख्वारे उम्मत नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जब फरिश्ता रोज़ा लेकर बारगाहे इलाही में हाज़िर होता है तो अल्लाह तआला रोजे से मुखातिब होकर फरमाता है, क्या मेरे बंदे ने तेरी तकरीम व ताज़ीम की? रोज़ा अर्ज़ करता है, इलाही। इसने मुझे अपने नफ्स के निहायत ही आला मुकाम में रखा, मुझे नमाज़ व तरावीह से राहत बहम पहुंचाई और मेरी खिदमत के लिए तमाम दिन कमर बस्ता रहा, अपनी निगाह को हराम से बचाया, कान को बातिल की आवाज़ से वाज़ रखा। तो अल्लाह तआला फरमाता है, हम उसे मक्अदे सिदक में उतार कर उसकी इज़्ज़त व कद्र अफज़ाई करेंगे।

बेहसाब व किताब जन्नत में दाखिल होना :-

हजरत काब रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि जो शख़्स रमजान शरीफ़ के रोजे पूरे करे और उसकी नियत यह भी हो कि रमज़ान के बाद ‘भी गुनाहों से बचता रहूँगा वह बगैर हिसाब व किताब और बगैर सवाल व जवाब के जन्नत में दाखिल होगा।

रोज़ादार कहाँ हैं?

हज़रत सहल रजियल्लाहु अन्हु ने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से रिवायत की है कि आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जन्नत का एक दरवाज़ा जिसे “रय्यान” कहा जाता है, उससे सिर्फ रोजेदार दाखिल होंगे, इनके सिवा कोई और दाखिल न होगा। कियामत के दिन निदा दी जाएगी कि रोजेदार कहाँ हैं?! तो वह आऐंगे और जब दाखिल हो जाऐंगे तो दरवाज़ा बंद हो जाएगा और फिर इससे कोई दूसरा दाखिल न हो सकेगा। (बुखारी शरीफ जि.1, स.254) माहे रमज़ान का इस्तकबाल किस तरह करें? 

पूरे साल रोज़े की तमन्ना :-

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, अगर अल्लाह तआला के बन्दे रमज़ान की फजीलत जान लें तो मेरी उम्मत तमाम साल रोज़ा से रहने की ख्वाहिशमंद होती। (वैहकी)

रोज़े ढाल हैं :-

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि आकाए कौनैन व मकां सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया यानी रोजे ढाल हैं। (मुस्लिमः स.363)

मुहद्दिषीन किराम ने इस हदीस की वजाहत करते हुए फरमाया हैः रोज़ेदार के सामने जब किसी गुनाह का मुहर्रिक आता है तो रोज़ा उसके लिए ढाल बन जाता है और वह इस गुनाह से रुक जाता है।
जहन्नम की आग के लिए रोज़ा ढाल बन जाएगा और रोज़ादार की मगफिरत करा देगा।

रोज़ा के सबब से इंसान अपने नफ्स के शर से महफूज़ रहता है और अपने नफ्स और बदन को गुनाहों से बचाता है इसलिए फरमाया गया रोज़ा ढाल है।

सत्तर साल की मुसाफ़त पर :-

हज़रत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है वह कहते हैं कि रसूलुल्लह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जो शख्स एक दिन भी अल्लाह तआला की राह में रोज़ा रखेगा अल्लाह तआला जहन्नम की आग को उसके चेहरे से सत्तर साल की मुसाफत तक दूर रखेगा। (मुस्लिमः स.364)

सेहतमंद होने का नुसखा :-

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने माले गनीमत पाओगे और रोजा रखो सेहतमंद हो जाओगे और सफर करो मालदार हो जाओगे।

रोज़ादार के लिए दो खुशियाँ :-

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, “रोज़ादार के लिए दो खुशियों हैः
(1) जब वह इफ्तार करता है तो खुश होता है।
(2) जब वह अपने रब से मुलाकात करता है तो खुश होता है। (बुखारी शरीफ, स.255)

अल्लाह का दुश्मन :-

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि जिसने तीन चीजों की हिफाज़त की वह यकीनन अल्लाह का दोस्त है और जो इन तीनों को जाएए कर देता हैः यकीन जानो कि वह अल्लाह का दुश्मन है। वह तीन चीजें ये हैंः रोज़ा, नमाज़ और गुस्ले जनाबत। (रुहुल बयानः 2,107)

चार आदमियों की मुश्ताक :-

अल्लाह की तमाम बहिश्तें चार आदमियों की मुश्ताक रहती हैं, वह चार किस्म के लोग यह हैं।
रमजान के रोज़े रखने वाले ।
कुरआन पाक की तिलावत करने वाले ।
जबान की हिफाज़त करने वाले ।
भूखे हमसायों को खाना खिलाने वाले ।(रुहुल बयान 107,2)

रोज़ादार का इस्तकबाल :-

जब कियामत में अल्लाह तआला एहले कुवूर को कब्रों से उठने का हुक्म देगा तो मलाइका को फरमाएगाः ऐ रिज़वानः मेरे रोज़दारों से आगे चल कर मिलो क्योंकि वह मेरी खातिर भूखे, प्यासे रहे। अब तुम बहिश्त की ख्वाहिशात की तमाम अश्या लेकर उनके पास पहुंच जाओ।

उसके बाद वह रिजवान ज़ोर से पुकार कर कहेगा, ऐ जन्नत के गिलमान व वलदान! नूर के बड़े बड़े थाल लाओ, उसमें दुनिया की रेत के कतरात, बारिश की बूंदों, आसमान के सितारों और दरख्तों के पत्तों के बराबर मेवाजात और खाने पीने की लज़ीज़ अश्या जमा करके रोज़दारों के सामने रख दी जाएंगी और उनसे कहा जाएगा जितनी मर्जी हो खाओ पियो, यह उन रोज़ों की जज़ा है जो तुम ने दुनिया में रखे। (रूहुल बयानः 108.2)

एक अजीबुल खिल्कत फरिश्ता :-

हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः मैंने शबे मेराज में सिदरतुल मुंतहा पर एक फरिश्ता देखा जिसे मैंने इससे कब्ल नहीं देखा था, इसके तूल व अर्ज़ की मुसाफ्त लाख साल के बराबर थी, उसके सत्तर हज़ार सर थे और हर सर में सत्तर हज़ार मुंह और हर मुंह में सत्तर हजार ज़बानें और हर सर पर सत्तर हज़ार नूरानी चोटियां थीं और हर चोटी के सर पर बाल में लाख लाख मोती लटके हुए थे, हर एक मोती के पेट के अंदर बहुत बड़ा दरिया है और हर दरिया के अंदर बहुत बड़ी मछलियां हैं और हर मछली का तूल दो साल की मुसाफ्त के बराबर और हर मछली के पेट में लिखा है ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह और इस फरीशते ने अपना सर एक हाथ रखा है और दूसरा हाथ उसकी पीठ पर है और वह ” यानी बहिश्त में है।

जब वह अल्लाह की तसबीह पढ़ता है तो उसकी प्यारी आवाज़ से अर्शे इलाही खुशी में झूम उठता है। मैंने जिब्रइल अलैहिस्सलाम से उसके मुतअल्लिक पूछा तो उन्होंने अर्ज़ किया कि यह वह फरिश्ता है जिसे अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम से दो हज़ार साल पहले पैदा किया था। फिर मैंने कहा, उसकी लम्बाई और चोडाई कहाँ से कहाँ तक है, जिब्रइल अलैहिस्सलाम ने अर्ज किया, अल्लाह तआला ने बहिश्त में एक चरागाह बनाई है और यह इसी में रहता है उस फरिशते को अल्लाह तआला ने हुक्म फरमाया है कि वह आपके और आपकी उम्मत के हर उस शख्स के लिए तस्बीह पढ़े जो रोज़ा रखते हैं।

मैंने उस रिश्ते के आगे दो संदूक देखे और दोनों पर हज़ार नूरानी ताले थे। शैतान और नेक काम।

मैंने पूछा जिब्रइल। वह क्या है? उन्होंने कहा, इस फरिश्ते से पूछिए? मैंने उस अजीब व गरीब फरिश्ते से पूछा कि यह संदूकें कैसी हैं? उसने जवाब दिया कि उसमें आपकी रोजा रखने वाली उम्मत के बरात (छुटकारा) का ज़िक्र है। आपको और आपकी उम्मत के रोज़ा रखने वालों को मुबारक हो। (रूहुल बयानः 108.3)

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *