दुआ-ए-मासूरा पढ़ने की फज़िलत।Dua-e-Masoora Padhne ki Fazilat.

Duae masoora padhne ki fazilat

नमाज़ के दरमियान पढ़ी जाने वाली दुआ जिसे दुआ मासूरा या दुआ ए मासूरा भी कहा जाता है।

दुआ मासूरा कब पढ़ा जाता है?

नमाज़ के दरमियाँन पढ़ी जाने वाली दुआ जिसे हर मुसलमान को ये दुआ लाज़मी आनी चाहिए। दुआ ए मासूरा बड़े अज़र-ओ-सवाब कमाने का बाइस है।

दुआ ए मासूरा क्या है?

दुआ ए मासूरा नमाज़ मुकम्मल होने से बिल्कुल पहले पढ़ी जाती है। यानि जब हम अत्तहियात पढ़ लेते है फिर दुरूद शरीफ पढ़ते है। उसके बाद जो दुआ पढ़ी जाती है उसे दुआ ए मासूरा कहा जाता है। मासूरा की दुआ पढ़ने के बाद सलाम फेरते है। आयतुल कुर्सी की फ़ज़ीलत और तफ़्सीर।

दुआ ए मासूरा का तर्जुमा याद करना भी बेहतरीन अमल माना जायेगा। क्योंकि जब आप किसी भी दुआ या क़ुरान की आयत के मतलब को समझ कर पढ़ते है, तो आपको ज़्यादा सवाब मिलता है।

हमारा दिल भी दुआ के मतलब को जान कर मुतमइन हो जाता है।Dua-e-Masoora Padhne ki Fazilat.

ए खुदा हमने अपने पर बहुत जुल्म किया है, और हमारे गुनाहों को तेरे सिवा कोई माफ नहीं कर सकता, हमारी यह ख्वाहिश है,

की तू हमे माफ कर दे। हम पर तु अपना रहम फरमा, तू बड़ा माफ करने वाला और सब पर रहम करने वाला है। अपना रहम- ओ-करम हम पर भी अदा कर।

मासूरा की दुआ अपनी की गलतियों को अल्लाह तआला के सामने इज़हार कर के माफी मांगने के लिए पढ़ी जाती है।

दुआ ए मासूरा को अगर सच्चे दिल से पढ़ते है तो रब्बुल ‘आलमीन अपने करम से आपके अगले पिछले तमाम गुनाहो को मु’आफ फरमा देगा। आमीन

आप भी इस दुआ को हर नमाज़ में पढ़ने का म’अमूल यानी आदत बना लीजिए। ताकी सवाब कमाने का एक भी मौका आपसे छूट ना जाए।Dua-e-Masoora Padhne ki Fazilat.

इस दुआ को पढ़ने से घर में बरकत आती है। जाहिर सी बात है क्योंकि अल्लाह पाक से मुआफी की दुआ करने से अल्लाह पाक खुश होता है।

और जब अल्लाह अज्जवजल अपने बंदों से राज़ी होता है, तो अपने फज़ल-ओ-करम से नवाज़ देता है। और तमाम बिगड़े काम बनने लग जाते है। इंशा अल्लाह

आपकी भी जिंदगी में बहुत से काम रुके हैं? दुरूद शरीफ़ की फ़ज़ीलत ,23 रूहानी इलाज । 

तो इस दुआ को नमाज़ में सलाम फेरने से पहले और नमाज़ के बाद तस्बीह और अल्लाह से मुआफी मांगने के तौर पर भी पढ़ सकते है।

ऐसे आपको ये दुआ भी याद हो जायेगी।जी हाँ, दुआ-ए-मासूरा याद ना हो तो भी आपकी नमाज़ हो जायेगी। ऐसा किसी हदीस में नही लिखा के इस दुआ के बग़ैर नमाज़ नही होगी।

लेकिन इसको पढ़ने की तलकीन खुद नबी-ए-करीम ने अपने साहाबा को की थी। तो नमाज़ में सलाम फेरने से पहले इस दुआ को पढ़ना बेशक़ अल्लाह को राज़ी करने का आसान तरीका है।Dua-e-Masoora Padhne ki Fazilat.

दुआ ए मासुरा पढ़ना भूल जाए तो क्या नमाज़ हो जायेगी?

जी हाँ, अगर किसी ज़रूरी काम की वजह से आपको दुआ मासूरा छोड़ना पड़ जाए या आप अंजाने में पढ़ना भूल जाए तो भी आपकी नमाज़ ही जायेगी।

मासुरा की दुआ याद ना हो तो क्या करें?

दुआ-ए-मासूरा हर मुसलमान को याद होना बहुत ज़रूरी है। लेकिन अगर आपको ये दुआ याद नहीं हो, तो इसकी जगह आप कोई भी दूसरी दुआ पढ़ कर सलाम फेर सकते है।

वक़्त मिलने पर दुआ ए मासुरा याद कर लीजिये ताकि आपकी नमाज़ मुकम्मल हो जाए।
मुकम्मल नमाज़ अदा कीजिये! इस्लाम की खूबसूरत बातें।

अबू बकर सिद्दीक र. अ. ने बयान किया, मैंने रसूल अल्लाह से दरख्वास्त की के मुझे कोई ऐसी दुआ सिखाईये जो मैं अपने नमाज़ में पढ़ सकूँ। इसके बाद आप ने फरमाया, ये दुआ पढ़ोDua-e-Masoora Padhne ki Fazilat.

“अल्लाहुम्मा इन्नी जलमतू नफ़्सी जुलमन कसीरा, वला यगफिरुज़ जुनूबा इल्ला अनता, फग़फिरली मग फि-र-तम्मिन इनदिका, वर ‘हमनी इन्नका अनतल गफूर्र रहीम।
तर्जुमा: “तेरे सिवा कोई गुनाहों को बख्शने वाला नही, तु मुझे मुआफ करदे और मुझ पर रहम फरमा, तु बड़ा बख्शने वाला, निहायत रहम करने वाला है।

अल्लाह पाक हम सब को दुआए माशूरा पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

दुआ-ए-मासूरा की फ़ज़ीलत को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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