
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः यानी जब रमज़ान ” का महीना आता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।(बुखारी शरीफः ज.1, स. 255)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः अल्लाह तआला रमज़ान की हर शब को बावक्ते इफ्तार एक लाख दोज़खियों को दोजख से आज़ाद फरमाता है और वह दोज़खी ऐसे होते हैं कि उन पर अज़ाब वाजिब हो चुका होता है, जब रमज़ान की आखरी शब होती है तो उसमें इतनी तादाद में आज़ाद फरमाता है जितनी तादाद में रमज़ान की पहली शब से लेकर आखरी तक आज़ाद कर चुका होता है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जिसने मक्का में रमज़ान पाया और रोज़ा रखा और रात में जितना हो सका क्याम किया (नवाफिल पढ़े) तो अल्लाह उसके लिए दूसरी जगह की बनिस्बत एक लाख रमज़ान का सवाब लिखेगा और हर दिन एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब और हर रोज़ जिहाद में घोड़े पर सवार कर देने का सवाब और हर दिन में हसना और हर रात में हसना लिखेगा। (बहारें शरीअत)
मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! अगर अल्लाह तआला ने आपको इस्तिताअत बख़्शी है तो मक्का मुअज़्ज़्मा और मदीना मुनव्वरा में माहे रमज़ानुल मुबारक गुज़ारने की कोशिश करो। अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है कि हमें इसकी तौफीक अता फरमाए। आमीन
माहे रमज़ान में शैतान कैद :-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम रऊफ व रहीम ने इर्शाद फरमायाः जब माहे रमज़ान आता है तो आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को कैद कर दिया जाता है। (बुखारी शरीफ : 255.1)
मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! इस हदीस में इस बात का भी बयान है कि शैतानों को रमज़ान के महीना में कैद कर दिया जाता है, इस पर सवाल पैदा होता है कि जब शैतानों को कैद कर दिया जाता है तो फिर क्यों लोग रमज़ान के महीने में गुनाह करते हैं? इस सवाल के मुतअद्दिद जवाबात दिये गए हैं।
अव्वल :- यह कि बड़े-बड़े शयातीन को कैद कर दिया जाता है और छोटे छोटे शैतान खुले फिरते हैं, जिनकी वजह से लोग गुनाह करते हैं। जैसा कि दूसरी हदीस में इरशाद हुआ ” यानी सरकश और बड़े बड़े शयातीन कैद कर दिए जाते हैं।
दौम :- यह कि गुमराह करने वाला एक खारजी शैतान और एक दाखली शैतान है जिसको उर्दू में हमजाद कहते हैं, खारजी शयातीन को कैद कर दिया जाता है, दाखली शैतान को कैद नहीं किया जाता है जिसकी वजह से लोग गुनाह में मुबतिला रहते हैं।
सौम :- यह कि शैतान के ग्यारह माह बहकाने और वसाविस का असर इस कद्र रासिख हो जाता है कि उसकी एक माह की गैर हाज़ी से कोई फर्क नहीं पड़ता और लोग बदस्तूर बुराई और गुनाह में मुबतिला रहते हैं ।
चहारुम :- बुराई में मशगूल लोगों को कम अज़ कम इस माह में तो यह तस्लीम कर लेना चाहिए कि उनकी गलतकारियों और वे राह रवियों में शैतान के वसवसे से ज़्यादा खुद उनकी ज़ात और बुरे इरादों का दखल है क्योंकि इस माह में जब शयातीन मुकय्यद कर दिए जाते हैं और वह लोग फिर भी बुराइयों और बुरे कामों से बाज़ नहीं आते, हद तो यह है कि बाज़ जगहों पर रात भर जुआ और लहवो-लइब का बाज़ार गर्म होता है (जैसे कि रमज़ान इसी लिए आया हो!) और सहरी के फौरन बाद लोग ख़्वाबे गफलत का शिकार होकर नमाज़े फजर को भी तर्क कर देते हैं लिहाजा उनकी बुराई और बुरे कामों के वह खूद ज़िम्मेदार हैं।
रहमत, मग़फिरत और आग से आज़ादी :-
हदीस शरीफ में है कि हुज़ूर ताजदारे मदीना राहते क्ल्व व सीना सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया रमज़ान ऐसा महीना है जिसका अव्वल रहमत है,उसके दर्मियान में बख्शिश है और उसके आखिर में आग से आज़ादी है। इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! मजकूरा हदीस शरीफ में रमजानुल मुबारक की बरकत और बुजुर्गी का जिक्र किया गया है, जिससे रमज़ानुल मुबारक की एहमियत और फज़ीलत ज़ाहिर होती है, माहे रमजान में रोज़ा रखना, इफ्तारी करना और करवाना, क्यामुल्लैल करना और दिन के वक़्त भूक और प्यास से सब्र व ज़ब्त और हर बुरी चीज़ से परहेज़ करना, यह तमाम अफआल वह हैं जो हम गुनाहगार मुसलमानों की बख्शिश और नजात का वसीला हैं।
हयाते इंसानी के तीन अदवार और रमज़ानुल मुबारक के तीन अशरे :-
मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! अगर्चे इंसान की हयात बेशुमार मराहिल से गुज़र कर इर्तिकाए मराहिल तय करती हुई अपनी इंतिहा को पहुंचती है लेकिन हयात के तीन दौर काबिले ज़िक्र हैं।
पहला दौर दुनिया की जिंदगी है जिसका तअल्लुक रूह और जिस्म से वाबस्ता है और जिंदगी का यह दौर पैदाइश से लेकर मौत तक है, इस दौर में हर इंसान अपनी रूह और जिस्म दोनों को पुरसुकून तरीके से माद्दी आसाइश पहुंचाना चाहता है और मसाइव व आलाम से नजात चाहता है।
हयात का दूसरा मरहला मौत से लेकर क्यामत तक का है जिसे आलमे बर्जख कहा जाता है, जिंदगी के इस मरहले की हक़ीक़त अल्लाह तआला ही को मालूम है, सिवाए उसके कि जितना इल्म अल्लाह तआला ने इंसान को दिया है, सिर्फ इसी हद तक इंसान इस मरहले के बारे में जानता है।
तीसरा मरहला क्यामत के बाद न खत्म होने वाली जिंदगी है, यह जिंदगी हिसाब व किताब के बाद जज़ा के तौर पर जन्नत की सूरत में या सज़ा के तौर पर दोजख की सूरत में होगी।
रोज़ा ऐसी इबादत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इर्शाद के मुताबिक जिंदगी के उन तमाम मराहिल में कारआमद साबित होता है। रमज़ान का पहला अशरा रहमत का है जो जिंदगी के खुसूसन् पहले मरहले में अशद ज़रूरी है।
दूसरा अशरा मगफिरत का है जो ज़िंदगी के दूसरे मरहले के लिए कारआमद है कि उसकी वजह से कब्र में राहत मिलेगी और तीसरा अशरा जहन्नम से आज़ादी का है जो जिंदगी के तीसरे मरहले में कारआमद है। तो गोया जिसने रमज़ान के पूरे माह के रोज़े रखे उसे जिंदगी के तमाम मराहिल में राहत व सुकून मयस्सर आएगा। रब्बे कदीर हमें तौफीक अता फरमाए
आँखों की तकलीफ दूर :-
जो शख्स माहे रमज़ानुल मुबारक का चाँद देख कर हम्द व सना बजा लाए और सात मर्तबा सूरए फातिहा पढ़ ले तो उसे महीना भर आंखों में किसी भी किस्म की शिकायत नहीं होगी। (नुजहतुल मजालिसः ज.1, स. 575)
फरिश्तों में फख्र :-
हज़रत अली मुर्तुज़ा रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम इर्शाद फरमाते हैं कि जब तुम महीने के आगाज़ पर चाँद देखो तो अल्लाह तआला फरिश्तों में इज़हारे फख्र फरमाएगा और कहेगा मेरे फरिश्तों! गवाह रहो मैं ने अपने बंदे को दोजख से आज़ाद कर दिया। (नुजहतुल मजालिसः ज.1, स.375)
नूर का शहर :-
नबी-ए-करीम नूरे मुजस्सम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जो शख़्स माहे रमज़ानुल मुबारक में इबादत पर इस्तिकामत इख़्तियार करता है अल्लाह तआला उसे हर रकअत पर नूर का एक शहर इनाम देगा।
बख़्शिश का ज़िम्मा :-
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः जो शख्स माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने वालिदैन की खिदमत अपनी इस्तिताअत के मुताबिक सर अंजाम देता है अल्लाह तआला उस पर खुसूसी नज़रे रहमत फरमाता है और उसकी बख्शिश का मैं जिम्मा लेता हूँ। और जो औरत माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने खाविंद की रज़ा जोई में मसरूफ रहती है अल्लाह तआला उसे जन्नत में हज़रत मरयम व हज़रत आसिया रज़ियल्लाहो अन्हा की मईयत (साथ) अता फरमाएगा। (नुज़हतुल मजालिसः 1.577)
साल का दिल :-
हुज़ूर नबी अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः माहे रमज़ानुल मुबारक साल का दिल है, जब यह दुरुस्त रहा तो पूरा साल दुरुस्त रहेगा।
आफात से महफूज़ :-
किताबुल बरकत में हज़रत मसऊदी रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि जो माहे रमज़ानुल मुबारक की पहली शब सूरए फतह पढ़ता है वह साल भर हर किस्म की आफात व बलय्यात से महफूज़ रहता है।
अज़ाब से छुटकारा का ज़रिया :-
शेरे खुदा मुश्किल कुशा हज़रत अली मुरतजा रज़ियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं कि अगर अल्लाह तआला को उम्मते मुहम्मदिया को अज़ाब से दोचार करना होता तो उसे माहे रमज़ान और सूरए इख्लास कभी अता न फरमाता । बाज़ बुजुर्गाने दीन से मंकूल है कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमान वालों के लिए अमान हैं और सैयदे आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम जमीन वालों के लिए और माहे रमज़ानुल मुबारक नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उम्मत के लिये अमान हैं।
माहे रमज़ान के एहतिराम का इनाम :-
बुखारा के शहर में एक मजूसी यानी आग की पूजा करने वाले का लड़का मुसलमानों के बाज़ार में रमज़ान के महीने में खाना खा रहा था, यह देख कर उसके बाप ने अपने लड़के के मुंह पर तमांचा मारा और सख्त नाराज़ हुआ, लड़के ने कहाः अब्बा जान! तुम भी तो रमज़ान में हर रोज़ दिन के वक़्त खाते रहते हो! बाप ने कहा, वाकई मैं रोज़ा नहीं रखता और खाना भी खाता हूँ मगर खुफिया तौर पर घर बैठ कर खाता हूँ, मुसलमानों के सामने नहीं खाता हूँ! इस माहे मुबारक का एहतिराम करता हूँ।
कुछ अरसे के बाद उस मजूसी का इंतिकाल हो गया तो बुखारा के किसी नेक आदमी ने उसे ख्वाब में देखा कि वह जन्नत में टहल रहा है, उन्होंने मजूसी से पूछा तू जन्नत में कैसे दाखिल हो गया? तू तो मजूसी था! उसने कहा, वाकई मैं मजूसी था मगर मौत का वक़्त करीब आया तो माहे रमज़ान के एहतेराम की बरकत से अल्लाह तआला ने मुझे इस्लाम लाने की तौफीक दी और मैं मुसलमान होकर मरा और यह जन्नत रमज़ान के एहतिराम में इस्लाम मिलने पर अल्लाह तआला ने अता फरमाई। (नुजहतुल मजालिसः स.580 बतगैयुर)
मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! गौर करो कि एक आतिश परस्त ने माहे रमज़ान का एहतिराम किया तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उसके एवज़ उसे ईमान की दौलते बेबहा से नवाज़ कर जन्नत अता फरमा दी तो हम तो मुसलमान हैं अगर हम अय्यामे रमज़ान की कद्र करेंगे, उसकी हुर्मत को पामाल न करेंगे तो ज़रूर रब्बे कदीर के फज़्ल व करम के मुस्तहिक करार पाऐंगे। रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है कि हम सब को माहे रमज़ान की कद्र करने की तौफीक अता फरमाए।
माहे रमज़ान की बेहुर्मती की सज़ा :-
कियामत के दिन एक शख्स को ऐसी हालत में लाया जाएगा कि फरिश्ते उसको खूब मार पीट रहे होंगे, रहमते आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम से वह सहारा तलाश करेगा, आप उनसे दर्याफ्त फरमाऐंगे, उसका क्या गुनाह है कि इतना मार रहे हो? वह कहेंगे उसने माहे रमज़ानुल मुबारक को पाया मगर फिर भी अल्लाह तआला की नाफरमानी पर डटा रहा। हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम सिफारिश करना चाहेंगे तो हुक्म होगा, मेरे हबीब इसका दावा तो माहे रमज़ान ने किया है, आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम फरमाऐंगे जिसका दावेदार माहे रमज़ान है मैं उससे बेज़ार हूँ। (नुजहतुल मजालिसः स.580) ईमान की फज़िलत।
ऐ खालिके अर्ज व समा! अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके माहे रमजान का एहतिराम करने की तौफीक अता फरमा और हर उस फेअल से बचा जो माहे रमज़ान की बेहुर्मती का सबब बने। आमीन
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…