
हदीसः- हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है कि उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “जिसने तीन बेटियों या उनकी मिस्ल बहनों की परवरिश का इन्तिज़ाम किया, फिर उनको इल्म व अदब से आरास्ता किया और उन पर मेहरबानी करता रहा, यहाँ तक कि अल्लाह तआला उनको बेनियाज़ कर दे यानी शादी कर दे तो अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत वाजिब कर देता है। एक शख्स ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! दो हों तो? हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया दो हों तब भी, यहां तक कि लोगों ने अर्ज़ की अगर एक ही हो, फरमाया” अगरचे एक ही हो।” (मिशकात शरीफ पेज 423)
इस दौर में हर आदमी अपने आपको तरक्की याफ्ता और मार्डन कहलवाना ज़्यादा पसंद करता है और अपने इसी जुअमे फासिद में ऐसी हरकतें कर बैठता है जो आज से तकरीबन साढ़े चौदह सौ (1450) साल पहले अरब के दरिन्दा सिफ्त इंसान किया करते थे बल्कि ये तो कुछ मआमलों में इनसे भी गये गुज़रे नज़र आते हैं।
अरब में अगर किसी के घर लड़की पैदा होती तो लड़कियों का पैदा होना बाइसे नंग व आर और कबीह तसव्वुर करते थे और अपनी गैरियत व हमिय्यत की खातिर उसे ज़िन्दा दरगोर कर देते थे और अगर किसी के घर लड़का पैदा होता तो लाडो प्यार से उसकी परवरिश करते थे। बस वही काम इस दौर में कुछ पढ़े लिखे मार्डन कहलाने वाले जाहिल कर रहे हैं लेकिन तरीक़ा थोड़ा बदला हुआ है।
होता यह है कि तिब्बी जाँच (डॉक्टरी चेकअप) के ज़रिये मालूम कर लेते हैं कि औरत के पेट में लड़का है या लड़की? अगर लड़की मालूम होती है तो उसे ख़त्म कर देते हैं यानी हम्ल गिरा देते हैं और अगर मालूम हुआ कि लड़का है तो उसकी निगाहदाश्त रखते हैं ताकि पैदाईश के बाद अच्छी तरह उसकी परवरिश कर सकें।
किस कदर ज़ालिम हैं वे मर्द व औरत जो एक नन्ही सी जान को दुनिया में आँखें खोलने से पहले ही मौत की नींद सुला देते हैं। क्या ये ज़मान-ए-जाहिलियत के जाहिलों की पैरवी नहीं? क्या ये साफ खुला हुआ कत्ल नहीं? ऐसी औरतें यकीनन माँ के रिश्ते पर एक बदनुमा दाग़ हैं, समाज के लिए एक नासूर हैं जो अपने शिकम (पेट) में परवान चढ़ रही औलाद को सिर्फ इसलिए सज़ा देती हैं कि वह एक लड़की है।
क्या ये औरतें यह सोचने के लिए तैयार नहीं कि वे भी तो पहले अपनी माओं के पेट में थीं। अगर इनकी माएं इन्हें न जनतीं और पेट में ही ख़त्म कर देतीं तो क्या आज वे दुनिया में मौजूद होतीं ?
कुरानः- अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैः “तहकीक कि तबाह हुए वे जो अपनी औलाद को कत्ल करते हैं अहमकाना जिहालत से।” (सूरह इनआम)
इसी तरह आज के दौर में बर्थ कन्ट्रोल (Birth Control) का तरीका उरूज पर है। यानी एक दो बच्चे पैदा होने के बाद या तो मर्द नसबन्दी करा लेता है या फिर औरत का आपरेशन करा देता है ताकि तवालुद व तनासुल का सिलसिला हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए। ऐसा करना इस्लाम में सख्त नाजाइज़ व हराम और अशद दर्जा गुनाह है।।
इसी तरह बगैर उज़रे शरई के ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करना भी हराम है जिनसे बच्चों की पैदाईश हमेशा के लिए बन्द हो जाए। आजकल आम तौर पर लोगों में यह ख्याल पाया जा रहा है कि ज़्यादा बच्चे होंगे तो खाने-पीने की किल्लत होगी, खर्च बढ़ जाएगा, रहने-सहने के लिए जगह और मकान की तंगी होगी, शादी ब्याह करने में परेशानी आएगी वगैरह वगैरह। यह ख़्याल सिर्फ गैर मुस्लिमों का नहीं बल्कि आज के मार्डन मुसलमानों का भी है।
यकीनन इस किस्म के बुरे ख्यालात शरीअते इस्लामी के बिल्कुल खिलाफ हैं। मुसलमानों को ऐसा अकीदा रखना नाजाइज़ व हराम है। इंसान की क्या ताकत कि वह किसी को खिलाए और किसी की परवरिश करे बल्कि हक़ीक़त में खिलाने, पिलाने वाला अल्लाह तआला है, वही सबको रोज़ी देता है।
कुरानः- अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैः “और ज़मीन पर चलने वाला कोई ऐसा नहीं जिसका रिज़्क अल्लाह के ज़िम्म-ए-करम पर न हो।” (सूरह हूद)
कुरानः- दूसरी जगह रब्बे कायनात इरशाद फरमाता हैः “और अपनी औलाद को कत्ल न करो मुफलिसी के डर से, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी, बेशक कत्ल बड़ी ख़ता है।” (सूरह बनी इस्राईल) इस्लाम में औरत और पर्दे का हुक्म।
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है, उन्होने कहा कि मैंने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछाः “या रसूलल्लाह! कौन सा गुनाह सबसे बड़ा है?” फरमाया “तू अल्लाह का किसी को शरीक ठहराये हालांकि उसने तुझे पैदा किया है,” फिर पूछा इसके बाद कौन सा? फरमाया “तू अपनी औलाद को इस डर से कत्ल करे कि वह तेरे साथ खायेगी” (बुखारी शरीफ जिल्द 2 पेज 887)
देखा अपने औलाद को कत्ल करना कितना बड़ा गुनाह है। काश मुसलमान इस हदीस से इबरत हासिल करें और अपने बच्चों को माओं के पेट ही में कत्ल करने से बचें।
पुराने ज़माने में लड़कियों का पैदा होना बाइसे नंग व आर समझा जाता था, समाज व मुआशिरे में बुरा तसव्वुर किया जाता था। अरब के लोग अपनी जिहालत व दरिंदगी का मुज़ाहिरा करते हुए कभी इसे भेंट चढ़ाते और कभी ज़िन्दा कब्र में दफन कर देते थे। सदियों से यही पुरानी रस्म चली आ रही थी लेकिन मोहसिने इंसानियत के दुनिया में तशरीफ लाते ही इन बुरी रस्मों का खात्मा हो गया और आपने उन दरिन्दा सिफ्त इंसानों को इस्लाम के सांचे में ढाल दिया।
ज़िन्दगी का सलीका सिखाया और सही मानों में इस्लाम का शैदाई बना दिया और आपने बबांगे दुहल दुनिया वालों को पैग़ाम सुना दिया कि लड़कियों का पैदा होना बाइसे ज़हमत नहीं बल्कि बाइसे रहमत है। उनकी पैदाईश वबाले जान नहीं बल्कि जहन्नम से बचाने के लिए एक वसीला है। इनकी परवरिश अल्लाह व रसूल की खुशनूदी और जन्नत में जाने का एक ज़रिया है।
हदीसः- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से मरवी है, उन्होंने कहा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “जिस शख्स के लड़की पैदा हुई और उसने न उसको ज़िन्दा दफन किया, न उसे बेवक्अत समझा, न अपने बेटे को उस पर तरजीह दी तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में दाखिल फरमाएगा।” (अबू दाऊद पेज 700)
हदीसः- हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है, की, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जिसकी परवरिश में दो लड़कियां बुलूग तक रहीं तो कयामत के दिन इस तरह आयगा कि मैं और वह बिल्कुल पास-पास होंगे। यह कहते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने उंगलियां मिला कर फरमाया कि इस तरह।” (मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 330)
हदीसः- हज़रत सुराका बिन मालिक रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है। कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “क्या मैं तुमको यह न बता दूं कि अफज़ल सदका क्या है? तुम्हारी बेटी जो तुम्हारे पास लौट कर आयी है (मुतल्लका या बेवा होने के सबब) उसका तुम्हारे सिवा कोई कफील न हो। “(इब्ने माजा पेज 261)
हदीसः- हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “जो शख्स बेटियों के ज़रिये आज़माइश में डाला जाए और फिर वह उनके साथ अच्छा सुलूक करे तो ये बेटियां उसके लिए जहन्नम की आग से परदा बन जायेंगी। “(मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 330)
हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः “जिस घर में लड़कियां होती हैं उस पर रोज़ाना आसमान से बारह रहमतें नाज़िल होती हैं और उस घर की फरिश्ते ज़्यारत करते रहते हैं। नीज़ उनके वालिदेन के हक में हर एक शबो रोज़ के बदले साल भर की इबादत लिखी जाती है।”(नुज़हतुल मजालिस जिल्द 2, पेज 83)
इन हदीसों से लड़कियों की फ़ज़ीलत और उनके बारे में हुस्ने सुलूक की ताकीद मालूम होती है। नीज़ इन अहादीस से पता चलता है कि लड़कियों की परवरिश करना और उनके साथ हुस्ने सुलूक करना जन्नत में जाने का सबब है।
ये लड़कियां गोया खुदा की तरफ से आज़माइश का सबब हैं। लिहाज़ा लड़कियों को नापसंद करना या उनसे नफरत करना खुदा के ग़ज़ब को दावत देना है। कुराने करीम में लड़कियों से नाखुश होने को अहदे जाहिलियत की अलामत करार दिया गया है।
इरशादे बारी हैः “और जब उनमें किसी को बेटी होने की खुशखबरी दी जाती है तो दिन भर उसका मुंह काला रहता है और वह गुस्सा खाता है।”(सूरह नहल)
इस आयत से पता चला कि लडकियों के पैदा होने पर रंज व गम करना काफिरों का तरीक़ा है। लेकिल आज यह देखा जा रहा है कि अगर किसी घर में लड़की पैदा हो गई तो उस घर में सफे मातम छा जाती है और घर का घर रंजो अलम में डूब जाता है और खुशी बजाए ग़म का बादल छा जाता है। लड़कियों को अपने ऊपर बोझ और वबाले जान समझने लगता है। कभी-कभी बेचारी माँ डर की वजह मौत के घाट उतार दी जाती है। वरना ज़िन्दगी भर के लिए अपने ससुराल वालों के लअन व तअन से दो चार रहती है। अल्लाह तआल उम्मते मुसलिमा को राहे हक़ की तौफीक अता फरमाए। आमीन ! बेटियों के लिए ज़रूरी हिदायात।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
One thought on “लड़कियों का पैदा होना बाइसे रहमत है। Ladkiyon ka Paida hona Baise Rahamat hai.”