निकाह का बयान।Nikah ka Bayan-1

Nikah ka bayan

हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि तीन आदमी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पाक बीवियों के घर पर आये, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इबादत के मुताल्लिक मालूम किया, जब उन्हें बताया गया तो उन्होंने आपकी इबादत को बहुत कम ख़्याल किया, फिर कहने लगे हम आपकी कब बराबरी कर सकते हैं क्योंकि आपके तो अगले पिछले सब गुनाह माफ कर दिये गये हैं,

चुनाँचे उनमें से एक कहने लगा मैं तो उम्र भर पूरी-पूरी रात नमाज़ पढ़ता रहूँगा, दूसरे ने कहा कि मैं हमेशा रोज़ेदार रहूँगा और कभी नागा नहीं करूँगा, और तीसरे ने कहा मैं तमाम उम्र औरतों से अलग रहूँगा और कभी शादी नहीं करूँगा ।

इस गुफ़्तगू की इत्तिला जब आप (स.व)को मिली तो आप(स.व)उनके पास तशरीफ लाये और फ़रमाया- तुम लोगों ने ऐसी-ऐसी बातें की हैं। अल्लाह की कसम ! मैं तुम्हारे मुकाबले में अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला और तकवा इख़्तियार करने वाला हूँ, निकाह से पहले लड़की देखना।

लेकिन मैं रोज़े रखता भी हूँ और नहीं भी रखता। रात को नमाज भी पढ़ता हूँ और सोता भी हूँ और औरतों से निकाह भी करता हूँ। आगाह रहो जो शख्स मेरे तरीके से मुँह मोड़ेगा वह मुझसे नहीं ।

वज़ाहतः – इस हदीस में सुन्नत से मुराद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीका है जो उससे मुँह मोड़ता है वह इस्लाम के दायरे से ख़ारिज है।

मतलब यह है कि जो इनसान निकाह के मुताल्लिक नबी पाक (स.व)के तरीके को नज़र अन्दाज़ करके बिना निकाह की ज़िन्दगी बसर करता है और संन्यास लेना चाहता है वह हम में से नहीं है ।

हज़रत सअद बिन अबी वक्कास रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत उस्मान बिन मज़ऊन रज़ियल्लाहु अन्हु को निकाह न करने ( अकेले ज़िन्दगी गुज़ारने) से मना फरमाया था, अगर आप उसे निकाह के बगैर रहने की इजाज़त दे देते तो हम (शायद) खस्सी होना पसन्द करते।
वज़ाहत :खस्सी होना इनसानों के लिये हराम है। (फहुल-बारी)

Nikah ka Bayan

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि मैंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! अगर आप किसी जंगल में तशरीफ ले जायें और वहाँ एक दरख्त ऐसा हो कि उससे किसी जानवर ने कुछ खा लिया हो और एक ऐसा दरख्त हो जिसको किसी ने छेड़ा तक न हो तो आप अपना ऊँट किस दरख्त से चरायेंगे।  वलीमें का दावत कभी इन्कार मत करना।

आपने फ़रमाया उस दरख़्त से जिसमें से कुछ न खाया गया हो। हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का मकसद यह था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मेरे अलावा किसी कुंवारी औरत से निकाह नहीं किया।

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने शादी की तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझसे पूछा कि किससे शादी की है? मैंने अर्ज़ किया एक बेवा औरत से तो आपने फरमाया- कुंवारी से शादी क्यों नही की तुम उसके साथ खेलखुद करते और वह तुम्हारे साथ खेलती ।

Nikah ka Bayan, एक दूसरी रिवायत में है कि हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! मेरे वालिद उहुद की लड़ाई में शहीद हो गये थे और नौ बेटियाँ छोड़ीं पस मेरी नौ बहनें मौजूद हैं,Nikah ka Bayan

इसी लिये मैंने मुनासिब नहीं समझा कि उन्हीं जैसी नातजुर्बेकार लड़की उनके पास लाकर बैठा दूँ बल्कि एक ऐसी औरत लाऊँ जो उनकी देख-भाल कर सके और उनकी सफाई- सुथराई का ख्याल रखे। आपने फ़रमाया तुमने अच्छा किया है। हमबिस्तरी के दौरान किसी और का ख़्याल ।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को उनके बारे में निकाह का पैगाम दिया तो अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया – या रसूलल्लाह ! मैं तो आपका भाई हूँ।

आपने जवाब दिया कि आप तो मेरे भाई अल्लाह के दीन और उसकी किताब की रू से हैं, लिहाज़ा आयशा मेरे लिये हलाल है।

वजाहत:- हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के ख्याल के मुताबिक दीनी भाईचारा शायद निकाह के लिये रुकावट हो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वजाहत फ़रमाई कि खूनी और नसबी भाई होना तो निकाह के लिये रुकावट बन सकता है लेकिन इस्लामी भाई होना रुकावट का सबब नहीं है। (फत्हुल- बारी)Nikah ka Bayan

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि हज़रत हुज़ैफ़ा बिन उतबा बिन रबीआ बिन अब्दुश्शम्स रज़ियल्लाहु अन्हु जो जंगे-बदर में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ शरीक थे,

उन्होंने हज़रत सालिम रज़ियल्लाहु अन्हु को अपना मुँह बोला बेटा बनाया था और उससे अपनी भतीजी हिन्दा दुख़्तर वलीद बिन उतबा बिन रबीआ का निकाह कर दिया था जबकि हज़रत सालिम रज़ियल्लाहु अन्हु एक अन्सारी औरत के गुलाम थे । हमबिस्तरी के चन्द आदाब।

जैसे हज़रत जैद को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना मुँह बोला बेटा बना लिया था। जाहिलीयत | (इस्लम से पहले के ज़माने का यह दस्तूर था कि अगर कोई किसी को अपना बेटा बनाता तो लोग उसकी तरफ मन्सूब करके पुकारते और उसके मरने के बाद वारिस भी वही होता था,
यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी-
(सूरः अहज़ाब 33, की आयत 5 )

तर्जुमा:- हर शख्स को उसके असल बाप के नाम से पुकारो और । अल्लाह के नज़दीक यही बेहतर है अगर तुम्हें किसी की असली बाप का इल्म न हो तो वह तुम्हारे दीनी भाई और मौला (दोस्त) हैं।Nikah ka Bayan

उसके बाद तमाम लेपालक (मुँह बोले बेटे) अपने असली बापों के नाम से पुकारे जाने लगे, अगर किसी का बाप मालूम न होता तो उसे मौला और दीनी भाई कहा जाता था।

वजाहत:- हज़रत अबू हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी हज़रत सहला रज़ियल्लाहु अन्हा ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सवाल किया कि क्या अब हम सालिम से पर्दा करें?

आपने फरमाया उसे पाँच मर्तबा दूध पिला दो फिर वह तुम्हारे बेटे की तरह होगा, जिससे पर्दा नहीं। यह हुक्म उन्हीं के साथ ख़ास था, अब दूध पिलाना वही मोतबर है जिसमें ग़िज़ा के तौर पर दूध पिया जाये (यानी दो साल की उम्र के दौरान)। (फत्हुल्-बारी) हमबिस्तरी के दौरान शर्मगाह देखना।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत जुबाआ बिन्ते जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हा के पास गये और पूछा- तुम्हारा हज को जाने का इरादा है?

उन्होंने कहा- जी हाँ लेकिन मैं अपने आपको बीमार महसूस करती हूँ । आपने फ़रमाया कि हज का एहराम बाँध लो और एहराम के वक़्त यह शर्त कर लो कि अल्लाह मुझे जहाँ रोक देंगे मैं वही एहराम खोल दूँगी। यह कुरैशी औरत हज़रत मिकदाद बिन अस्वद के निकाह में थीं।

हज़रत सहल रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि एक मालदार शख़्स रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास से गुज़रा तो आपने पूछा- तुम लोग उसे कैसा जानते हो? उन्होंने कहा अगर यह किसी से रिश्ता माँगे तो निकाह हो जाये,

अगर किसी की सिफारिश करे तो फौरन मन्जूर हो जाये, अगर बात करे तो गौर से सुनी जाये। आप ख़ामोश हो गये। इतने में मुसलमानों में से एक फ़क़ीर और गरीब वहाँ से गुज़रा तो आपने पूछा कि इसके बारे में तुम्हारी क्या राय है?

Nikah ka Bayan

उन्होंने कहा यह अगर रिश्ता माँगे तो इनकार हो, सिफारिश करे तो मन्जूर न हो और अगर बात कहे तो कोई कान न धरे । उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया तमाम रू-ए-ज़मीन के ऐसे अमीरों से यह फकीर बेहतर है।

वजाहत: –एक दूसरी हदीस में है कि मुसलमानों में ग़रीब लोग मालदारों से पाँच सौ बरस पहले जन्नत में जायेंगे।

हज़रत सहल बिन सअद साजिदी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- अगर (नहूसत) किसी चीज़ में होती तो घोड़े, औरत और घर में होती

वजाहत:- यानी नहूसत न घोड़े में होती है न ही औरत में और न ही घर में होती है। सही हदीस में आ चुका है कि बुरा शगुन लेना शिर्क है।  हमबिस्तरी करने से पहले ख़ुशबू का इस्तेमाल।

मसलन बाहर जाते वक्त कोई काना आदमी सामने आ गया या औरत या बिल्ली गुज़र गई या छींक आ गई तो यह समझना कि अब काम न होगा, यह एक जाहिलाना ख्याल है जिसकी दलील अक्ल या शरीअत से बिल्कुल नहीं मिलती है।

हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक दफा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा गया आप हज़रत हमज़ा की बेटी से शादी क्यों नहीं कर लेते? आपने फ़रमाया वह दूध के रिश्ते में मेरी भजीती है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि हम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में नौजवान थे और हमें कोई चीज़ मयस्सर नहीं थी, आपने हमसे फरमाया- ऐ नौजवानों की जमाअत!

तुम में से जिसे भी निकाह करने के लिये माली गुंजाईश हो उसे निकाह कर लेना चाहिये, क्योंकि यह नज़र को नीची रखने वाला और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करने वाला अमल है, और जो कोई ग़रीब होने की वजह से निकाह की ताकत न रखता हो उसे चाहिए की रोज़ा रखे क्योंकि रोज़ा उसकी नफ़्सानी इच्छाओं को तोड़ देगा।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने एक शख्स की आवाज़ सुनी जो हज़रत हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर में आने की इजाज़त माँग रहा था, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा या रसूलल्लाह ! यह शख़्स आपके घर में आने की इजाज़त माँग रहा है।

Nikah ka Bayan

आपने कहा मैं जानता हूँ कि यह फला शख्स है जो हफ्सा का दूध के रिश्ते का चचा है। हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने पूछा कि फला शख़्स ज़िन्दा होता जो दूध के रिश्ते में मेरा चचा है तो क्या वह मेरे पास यूँ आ सकता था? आपने फरमाया हाँ, जो रिश्ते नसब से हराम हैं वो दूध पीने से भी हराम हो जाते हैं।

वजाहत :- रज़ाअत (दूध पीने) के बारे में कायदा यह है कि दूध पिलाने वाली के तमाम रिश्तेदार दूध पीने वाले के भी मेहरम हो जाते हैं। शादी में लड़की की रज़ामन्दी जरूरी।

हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात से मना फ़रमाया कि किसी औरत को उसकी फूफी या खाला के साथ निकाह में जमा किया जाये ।

वजाहत :- दो बहनों या फूफी-भतीजी और खाला भानजी का निकाह में जमा करना मना है। (फत्हुल्-बारी)

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि आप (स.व)ने फरमाया- औरत से मालदार, खानदानी बड़ाई, हुस्न व खूबसूरती और दीनदारी के सबब निकाह किया जाता है, तेरे दोनों हाथ मिट्टी से भर जायें तुझे कोई दीनदार औरत हासिल करनी चाहिये ।

वज़ाहत :- औरत से सिर्फ हुस्न (सुन्दरता) की बिना पर निकाह नहीं करना चाहिये, मुम्किन है हुस्न उसके लिये तबाही का ज़रिया हो, और न ही सिर्फ मालदार देखकर किसी औरत से शादी की जाये क्योंकि माल व दौलत से दिमाग खराब भी हो जाता है, दीनदारी को बुनियाद बनाकर निकाह किया जाये। (फत्हुल बारी)

हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निकाहे शिगार ( बट्टा सट्टा ) से मना फ़रमाया है। ‘निकाहे शिगार’ यह है कि एक शख्स अपनी बेटी (या बहन) का निकाह इस शर्त पर दूसरे से करे कि वह भी अपनी बेटी (या बहन) का निकाह उससे कर दे, और दरमियान में मेहर के हक के तौर पर न हो ।

हज़रत अली रज़ि. ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निकाहे मुता और पालतू गधे के गोश्त से जंगे ख़ैबर के ज़माने में मना फ़रमा दिया था ।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- बेवा का निकाह उसकी इजाज़त के बगैर न किया जाये, इसी तरह कुंवारी का निकाह भी उसकी इजाज़त के बगैर न किया जाये।Nikah ka Bayan

सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया- या रसूलल्लाह ! कुंवारी इजाजत कैसे देगी? आपने फ़रमाया उसकी इजाज़त बस यही है कि वह सुनकर खामोश हो जाये।

वजाहत :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बेवा या तलाक पाई हुई औरत के लिये ‘अमूर’ और कुंवारी के लिये ‘इज्न’ का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया है। ‘अमूर’ से मुराद यह है कि वह ज़बान से खुली तौर पर अपनी रजामन्दी का इज़हार करे, जबकि ‘इज़्न’ में ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं बल्कि उसकी ख़ामोशी को ही रज़ा के बराबर करार दिया गया है।(फत्हुल् बारी) महेर क्या है और कितने तरह का होता है।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अर्ज किया या रसूलल्लाह ! कुंवारी लड़की तो शर्म करती है, आपने फ़रमाया उसका ख़ामोश हो जाना ही रजामन्दी है ।

वजाहत:- कुंवारा अगर मालूम करने पर खामोश न रहे बल्कि खुले तौर पर इनकार कर दे तो निकाह जायज़ न होगा। कुछ हज़रात ने यह भी कहा कि कुंवारी को इल्म होना चाहिये कि उसकी ख़ामोशी ही उसकी इजाज़त है। (फत्हुल बारी)

हज़रत ख़नसा बिन्ते खिदाम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि उनके बाप ने उनका निकाह कर दिया और वह बेवा थीं और यह दूसरा निकाह उसे नापसन्द था, आखिरकार वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आयीं तो आपने उनके बाप का किया हुआ निकाह ख़त्म करने का उसे इख़्तियार दे दिया।

वजाहत:- अगरचे हदीस में बेवा औरत का ज़िक्र है फिर भी हुक्म आम है कि औरत की मर्जी के ख़िलाफ़ निकाह जायज़ नहीं है।(फत्हुल् बारी)

हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात से मना फ़रमाया है कि कोई शख़्स किसी दूसरे शख़्स के सौदे पर सौदा करे,

इसी तरह कोई शख़्स अपने मुसलमान भाई के निकाह के पैग़ाम पर अपने लिये निकाह का पैग़ाम दे, यहाँ तक कि पहला शख़्स निकाह का इरादा छोड़ दे या उसे पैग़ाम देने की इजाज़त दे ।हालते हैज़ में औरत अछूत क्यों?

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- बदगुमानी से बचते रहो क्योंकि बदगुमानी सबसे झूठी बात है,

और लोगों के राज़ों की कुरेद न किया करो और न लोगों की निजी गुफ़्तगू को कान लगाकर सुनो, आपस में दुश्मनी पैदा न करो बल्कि भाई-भाई बनकर रहो।Nikah ka Bayan

वजाहत :- सामाजिक ‘सुधार और एक स्वस्थ समाज बनाने के लिये इन अच्छे गुणों और खूबियों का होना ज़रूरी है। बदगुमानी, ऐब ढूँढना, चुगली न करना सब इसमें दाखिल हैं। इस्लाम का मंशा सारे इनसानों को बहुत ही मुलिस भाईयों की तरह ज़िन्दगी गुज़ारने का पैग़ाम देना है।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- किसी औरत के लिये जायज़ नहीं कि वह अपनी बहन के लिये तलाक का सवाल करे ताकि उसके हिस्से का प्याला भी खुद उंडेल ले, क्योंकि उसकी तकदीर में जो होगा वही मिलेगा।

वजाहत:- निकाह के वक़्त गैर-शरई शर्तें (मसलन पहली बीवी को तलाक दो तब निकाह होगा वगैरह-वगैरह ) लगाना दुरुस्त नहीं।(फत्हुल् बारी)

हज़रत अनस रजिय अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी किसी बीवी का ऐसा वलीमा नहीं किया जैसा उम्मुल – मोमिनीन हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का किया था, उनकी दावते वलीमा में एक बकरी ज़िबह की थी। शरीयत में निरोध (Condom)का इस्तेमाल।

वजाहत:- यही सबसे उम्दा वलीमा था। इसके अलावा दूसरे वलीमे आपने बहुत ही सादगी और मामूली खाने पर किये। मालूम हुआ कि शादी पर कम से कम खर्च करना सुन्नत है।

हज़रत सफिया बिन्ते शैबा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कुछ बीवियों का वलीमा दो मुद जौ से किया था।

वजाहत:- हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी बड़ी सादगी से वलीमा किया था। (फत्हुल बारी)

हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- अगर किसी को वलीमे की दावत पर बुलाया जाये तो उसमें जरूर शरीक होना चाहिये ।

वजाहत: मुख्तलिफ दोस्त व अहबाब को मुख्तलिफ दिनों में वलीमे का खाना खिलाया जा सकता है। (फत्हुल बारी)

हज़रत अबू मूसा अश्अरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- कैदी को छुड़ाओ, दावत करने वाले की दावत कुबूल करो और बीमार की बीमारी का हाल पूछो।

वजाहत:- कोई मुसलमान नाहक कैद व बन्द में फंस जाये तो उसकी रिहाई के लिये ज़कात के माल से भी खर्च किया जा सकता है। आजकल ऐसे वाकआत बहुत ज्यादा होते हैं मगर मुसलमानों की कोई तवज्जोह नहीं है “इल्ला मा शाअल्लाह”। दावत कुबूल करना, बीमार की इयादत करना भी मस्नून काम हैं।

Nikah ka Bayan

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि वलीमे का वह खाना बहुत बुरा है जिसमें सिर्फ मालदारों को दावत दी जाये और मोहताजों (ग़रीबों और ज़रूरत मन्दों) को न बुलाया जाये, और जिसने वलीमे की दावत कुबूल करने से इनकार किया उसने अल्लाह तआला और उसके रसूल की नाफरमानी की। ग़ुस्ल कब फर्ज़ होता है।

वजाहत:- हदिये और दावत से मेलजोल पैदा होता है और दीन व दुनिया की भलाईयाँ मेलजोल और इत्तिफाक में निहित हैं। जिन लोगों ने तक़वा इसे समझा कि लोगों से दूर रहा जाये और किसी की भी दावत क़ुबूल न की जाये यह तक़वा नहीं है बल्कि खिलाफे सुन्नत है।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- अगर मुझे बकरी के खुर (पाये ) की दावत दी जाये तो मैं उसे भी कुबूल करूँगा, और अगर मुझे खुर ( पाये ) हदिये में दिये जायें तो मैं उसे भी कुबूल करूँगा।

वजाहत:- जितना भी मामूली तोहफा हो मैं ले लूँगा, किसी मुसलमान का दिल न तोडूंगा। यही वो उम्दा और अच्छे अखलाक थे जिनकी बिना पर अल्लाह तआला ने आपको (सूरः कलम 68, आयत 4 ) से नवाज़ा ग़रीबों की दावत में न जाना, ग़रीबों से नफरत करना यह तकब्बुर है, घमण्डी लोग अल्लाह तआला के नज़दीक मच्छर से भी ज़्यादा ज़लील हैं।

हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने औरतों और बच्चों को किसी शादी से आते हुए देखा तो आप खुशी के मारे जल्दी से खड़े हो गये और फरमाया- या अल्लाह ! (आप गवाह रहिये) तुम लोग सब लोगों से ज्यादा मुझे महबूब हो। कुंवारी लड़की की वफात।

वजाहत:- इस हदीस से मालूम हुआ कि औरतें और बच्चे भी अगर वलीमे की दावतों में बुलाये जायें तो उनको भी जाना चाहिये, शर्त यह है कि किसी फ़ितने का डर न हो, लेकिन औरतों का दावत में अपने शौहर की इजाज़त के बगैर जाना ठीक नहीं है।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया जो शख्स अल्लाह और कियामत पर ईमान रखता है उसे चाहिये कि अपने पड़ोसी को तकलीफ न दे,

तथा औरतों से अच्छा सुलूक करते रहो क्योंकि औरतों की पैदाईश पस्ली से हुई है और पस्ली का सबसे टेढ़ा हिस्सा ऊपर होता है। अगर तुम उसे सीधा करना चाहोगे तो उसे तोड़ डालोगे, और अगर ऐसे ही रहने दोगे तो वैसी ही टेढ़ी रहेगी, इसलिये औरतों की हमदर्दी और भला चाहने के सिलसिले में (मेरी) वसीयत मानो ।

वजाहत:- यहाँ टेढ़ी पस्ली को तोड़ने से मुराद उसे तलाक देना है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वक्त में हम अपनी बीवियों के साथ गुफ्तगू और बहुत ज़्यादा बेतकल्लुफ़ी से इस डर की वजह से परहेज़ करते थे कि कहीं कोई बे-एतिदाली (बेउसूली) न हो जाये और हमारी बुराई में कोई हुक्म न नाज़िल हो जाये।

Nikah ka Bayan

फिर जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वफात हो गई तो हमने उनसे खूब खुलकर गुफ्तगू की और खूब बेतकल्लुफी करने लगे।बेटियों के लिए ज़रूरी हिदायात।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- औरतों के लिये जायज़ नहीं कि अपने शौहर की मौजूदगी में उसकी इजाज़त के बगैर (नफ्ली) रोज़ा रखें और न ही उसकी मर्जी के बगैर किसी (अजनबी) को घर में आने दें,

और जो औरत अपने शौहर की इजाज़त के बगैर शौहर के माल में से ख़र्च करती है तो उसका आधा सवाब शौहर को भी मिलता है।

वजाहत:- रमज़ान के रोज़ों के लिये शौहर की इजाज़त की ज़रूरत नहीं। (फत्हुल्-बारी)

हज़रत उसामा बिन जैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- मैंने (आसमानों की सैर के मौके पर ) जन्नत के दरवाज़े पर खड़े होकर देखा कि उसमें ज़्यादातर मोहताज और ग़रीब लोग थे

और मालदारों को दरवाज़े पर रोक दिया गया है, लेकिन दोज़खी मालदारों को तो पहले ही जहन्नम में भेजने का हुक्म दे दिया गया था, फिर मैंने दोज़ख के दरवाज़े पर खड़े होकर देखा तो उसमें ज़्यादा औरतें थीं।

वजाहत:- अहकामात की खिलाफवर्ज़ी की वजह से कियामत के दिन यह सज़ा औरतों को दी जायेगी। (फत्हुल्-बारी)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़मआ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- तुम में कोई शख्स अपनी बीवी को गुलामों की तरह न मारे कि फिर दूसरे दिन उससे हमबिस्तर होगा।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि अन्सार की एक औरत ने अपनी बेटी की शादी की। उसके बाद लड़की के सर के बाल बीमारी की वजह से झड़ गये।इस्लाम में बीवी के हुकूक।

वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुईं और आप से इसका ज़िक्र किया और कहा कि उसके शौहर ने उससे कहा है कि अपने बालों के साथ (दूसरे नकली बाल) जोड़ ले। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- ऐसा तू हरगिज़ न कर क्योंकि नकली बाल जोड़ने वालों पर लानत की गई है।

वजाहत:- मालूम हुआ कि अगर शौहर शरीअत के हुक्म के खिलाफ कोई बात कहे और बीवी उसका हुक्म न माने तो उस पर गुनाह न होगा । नकली बाल मर्दों को लगाना भी बड़ा गुनाह और लानत का सबब है।

हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि सुन्नत यह है अगर कोई शख्स पहली बीवी की मौजूदगी में कुंवारी से शादी करे तो उसके पास सात दिन लगातार ठहरे, और अगर कुंवारी की मौजूदगी में बेवा से शादी करे तो उसके पास तीन दिन लगातार ठहरे।

वजाहत:- बुखारी की एक दूसरी हदीस में है कि उसके बाद दिनों की बंटवारे की बराबर तौर पर शुरूआत करे।

हज़रत असमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि एक औरत ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! मेरी एक सौतन है, अगर मैं उसके सामने किसी चीज़ के मिलने का इज़हार करूँ जो मुझे मेरे शौहर ने न दी हो तो क्या मुझ पर गुनाह है ?

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया न दी हुई चीज़ को ज़ाहिर करने वाला ऐसा ही है जैसे किसी ने धोखा देने का जोड़ा पहना हुआ हो।

वजाहत:- धोखा देने का जोड़ा पहनने का मतलब है कि झूठा और धोकेबाज़ है। (फत्हुल् बारी)

हज़रत उकुबा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- औरतों के पास तन्हाई में जाने से परहेज़ करो। एक अन्सारी मर्द ने कहा- देवर के मुताल्लिक बतलायें क्या हुक्म है? आपने फ़रमाया- देवर तो मौत है।

वजाहत:- देवर से मुराद शौहर के वे रिश्तेदार हैं जिनका उसकी औरत से निकाह हो सकता है, मसलन शौहर का भाई, भतीजा, चचा और मामूँ वगैरह से तन्हाई में न मिलना चाहिये, लेकिन वह रिश्तेदार जो मेहरम हैं जैसे शौहर का बाप और बेटा वगैरह उनसे मिलने में कोई हर्ज नहीं ।हज़रत आइशा रजि० पर तोहमत। 

हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- कोई औरत दूसरी औरत से मिलने के बाद उसकी तारीफ अपने शौहर से इस तरह न करे गोया वह उस औरत को ( उसकी खूबसूरती वगैरह को) सामने देख रहा है।

वजाहत:- ऐसा करने से शौहर फ़ितने में पड़ सकता है, इसलिये मना फरमा दिया।

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जब तुम्हें घर से गायब रहते लम्बा समय गुज़र जाये तो रात को घर न आया करो।

वजाहत :- सफर के बाद अचानक घर आने से इसलिये मना फरमाया कि हो सकता है (अल्लाह न करे) घर वालों में कोई ऐब या कमी देखने का मौका पैदा हो जाये, इसलिये बताकर या दिन में आना बेहतर है।

हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- अगर तुम रात के वक्त (सफ़र से) घर वापस आओ तो घर में उस वक़्त तक दाखिल न हो जब तक कि वह औरत जिसका शौहर गायब था नाफ के नीचे के बालों की सफाई कर सके, और जिसके करके उन्हें संवार सके,और जिस के बाल बिखरे हुए हैं वह कंघी कर सके।

वजाहत: – बेहतर है कि आने से पहले आने का दिन और वक़्त बता दिया जाये ।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

Sharing Is Caring:

Leave a Comment