18/05/2025
Shadi me ladki ki razamandi zaroori

शादी में लड़की की रज़ामन्दी जरूरी।Shadi me Ladki ki Razamandi Zarori.

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Shadi me ladki ki razamandi zaroori

आप ने अक्सर देखा और सुना होंगा बहुत से गैर मुस्लिम, मुसलमानों को ताना देते हैं कि इस्लाम ने औरतों के साथ ना इन्साफी की है।

हालांकि इन बेवकूफों को येह नहीं दिखता के उनके धर्म ने औरतों के कितने ही हुकूक का किस बे दर्दी से गला घोटा है। येह कम अक्ल औरतों को सड़कों, बाजारों, अपनी झूटी ईबादत गाहों में आधा नंगी हालत में खुले आम घुमने फीरने को ही उन की आज़ादी और जाइज़ हक समझते हैं ।

यही वजह है के उनके अपने खुद साख़्ता धर्म में मर्द और औरतें ही नहीं बल्कि उनके देवी देवता और भगवान भी आशिक मिज़ाज नज़र आते हैं।

बेशक मज़हबे इस्लाम एैसी बेहूदा चीजों की हरगिज़ इजाजत नहीं देता । वोह औरतों को बाज़ारों और सड़कों पर खुले आम हुस्न का मुज़ाहेरा पेश करने से रोकता है!

लेकिन वहीं औरतों को उन के जाइज़ हुकूक देने में कोई कमी नहीं करता और न ही औरतों के साथ बुरा सुलूक करने, उन के साथ जबरदस्ती करने या ना इन्साफी करने की हरगिज़ इजाजत नहीं देता,

वोह हर मामले में औरतों से बराबरी और इन्सानी सुलूक करने का मर्दों को हुक्म देता है । चुनानचे शरीअते इस्लामी में जहाँ कई मामलों में औरत की रजामन्दी ज़रूरी समझी जाती है वही शादी के लिए लड़की या औरत से उस की रजामन्दी जरूरी है ।Shadi me Ladki ki Razamandi Zarori.

हज़रत अबूहुरैरा व हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाहो तआला अन्हुमा से रिवायत है की हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- कुँवारी का निकाह न किया जाए जब तक उस की रजामन्दी न हासिल कर ली जाए और उस का चुप रहना उसकी रजामन्दी है, और न निकाह किया जाए बेवाह का जब तक उस से इजाजत न ली जाऐ” । (तिर्मिजी शरीफ, बिल्दा आज नं. 214)

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास (र.अ)से रिवायत है की एक औरत का शौहर मर गया। उसके देवर ने उसे निकाह का पैगाम भेजा मगर औरत का बाप देवर से निकाह करने पर राज़ी न हुआ उस ने किसी दूसरे मर्द से औरत का निकाह कर दिया ।

वोह औरत नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुई और आप से पूरा किस्सा बयान किया । हुज़ूर (स.व)ने उसके बाप को बुलवाया उससे आप ने फरमाया येह औरत क्या कहती है ?Shadi me Ladki ki Razamandi Zarori.

उस ने जवाब दिया- सच कहती है मगर मैं ने इस का निकाह ऐसे मर्द से किया जो इस के देवर से बेहतर है । इस पर हुजूर(स.व)ने उस मर्द और औरत में जुदाई करवा दी और औरत का निकाह उसी देवर से कर दिया जिस से वोह निकाह करना चाहती थी । (मुस्तदे इमामे आजम, बाब नं. 124, सफा नं. 215)

हज़रत मुल्ला अली कारी रहमतुल्लाह तआला अलैह. इस हदीस के बारे में लिखते है कि- इब्ने कतान रजि अल्लाह अन्हो ने कहा है कि इब्ने अब्बास की येह हदीस सही है और यह औरत हज़रत ख़नसा विन्ते ख़ेजाम रजि अल्लाहो तआला अन्हुमा थी जिस की हदीस इमाम मालिक व इमाम बुखारी लाए है की उन का निकाह ऑ-हज़रत सल्लल्लाहो तआला अलैहि व ने रद फरमा दिया था।

इमाम बुख़ारी ने बुखारी शरीफ में यही हदीस इन अल्फाज के साथ नकल की है-हज़रत ख़नसा बिन्ते खेज़ाम रजि अल्लाहो तआला अन्हा इरशाद फरमाती है की “इन के वालिद ने उन का निकाह कर दिया जबकी वोह बेवाह थी और इस निकाह को ना पसंद करती थी । वोह रसूलुल्लाह की बारगाह में हाज़िर हो गई आप ने फरमाया के वोह निकाह नही हुआ। Shadi me Ladki ki Razamandi Zarori.

इन तमाम अहादीसे मुबारका से पता चला के शादी से पहले कुँवारी लड़की और बेवाह से इजाजत लेना ज़रूरी है और हमारे प्यारे आका सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम की बहुत ही प्यारी सुन्नत भी है।

चुनानचे हदीसे पाक में हैं की-  हज़रत अबूहुरैरा रजि अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत हैं- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम अपनी किसी साहबज़ादी को किसी के निकाह में देना चाहते तो उन के पर्दे के पास तशरीफ लाते और फ़रमाते- “फ़ुला शख्स (यहाँ उन का नाम लेते) तुम्हारा ज़िक्र करता है” फिर रजामन्दी मजलूम हो जाने पर निकाह पढ़ा दिया करते । (इमामे आज़म, बाब नं. 123, सफा नं. 214)

हदीस :- हज़रत इब्ने अब्बास अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है के ‘सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने जब अपनी साहबजादी हज़रत फातिमा रजि अल्लाहो तआला अन्हा का हज़रत अली रजिअल्लाहो तआला अन्हु से निकाह करने का इरादा फरमाया तो आप हज़रत फातिमा (र.अ)के पास तशरीफ लाए और इरशाद फ़रमाया- “अली तुम्हारा ज़िक्र करते हैं”। तुम्हे निकाह का पैगाम भेजा है) ( इमामे आजम, बाब नं. 122, सफा नं. 213 )Shadi me Ladki ki Razamandi Zarori.

लेकिन आज देखा येह जा रहा है कि माँ बाप, लड़की की मरज़ी को कोई एहमियत नहीं देते और अपनी मरज़ी के मुताबिक ही ब्याह देते हैं अब अगर लड़की को लड़का पसंद आ गया तो ठीक, और अगर पसंद न आया तो फिर झगड़ों और ना इत्तेफाकीयों का एक सैलाब उमड़ पड़ता है और नौबत फिर तलाक तक आ पहुँचती हैं ।

अपनी लड़की के लिए अच्छे लड़के की तलाश करना और फिर शादी कर देना यकीनन यह माँ बाप की ही जिम्मेदारी है लेकिन यहाँ इतनी उठा पटक करते हैं वही अगर लड़की से उस की रजामन्दी मालूम कर ली जाए तो इस में भला क्या हर्ज है।

लड़की से उस की मरजी मअलूम भी करना चाहिये क्योंकि उसे ही सारी ज़िन्दगी गुज़ारना है। हाँ अगर खुल कर कहने में झिझक या शर्म महसूस हो तो दबे अलफाज़ों में इज़हार करे येह सुन्नत भी है ।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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