
बगैर दावत किसी के घर जाना आजकल आमतौर पर देखा जा रहा है बल्कि रिवाज सा बन गया है कि लोग शादी ब्याह या वलीमे की दावत में बिन बुलाए चले जाते हैं।
खुद भी जाते हैं और अपने दो चार बच्चों को भी साथ लेकर जाते हैं। अगर खुद न भी गए तो दो चार बच्चों को शादी वालों के घर मुफ़्त खाने के लिए भेज देते हैं। ताकि एक दो टाईम का खाना ही बच जाए और कभी ऐसा भी होता है कि शादी वाला घर के एक फर्द की दावत करता है तो उसके यहाँ एक के बजाए पूरा घर पहुंच जाता है।
यह कितनी शर्म व गैरत की बात है? न ही अपनी इज़्ज़त का ख्याल और न ही अल्लाह व रसूल का डर। मुसलमानो! अल्लाह और उसके रसूल का खौफ खाओ, बगैर बुलाए किसी के घर दावत में हरगिज़ न जाओ। बिला दावत किसी के घर खाने के लिए जाना सख्त नाजाइज़ है।
हदीस शरीफ में है कि जो बगैर बुलाए दावत में गया वह चोर बनकर गया और लुटेरा हो कर निकला।(अबू दाऊद पेज 525)
इस हदीस से मुसलमान भाईयों को इबरत पकड़नी चाहिए जो बिन बुलाए दावत में चले जाते हैं या अपने बच्चों को भेज देते हैं। हाँ, अगर कोई वलीमे की दावत करे तो दावत कुबूल करना सुन्नत है बलिक बअज़ उलमा के नज़दीक वाजिब है। इस सिलसिले में दोनों ही कौल हैं। बज़ाहिर यही मालूम होता है कि इजाबत सुन्नते मोअक्कदा है। वलीमे के सिवा दूसरी दावतों में भी जाना अफज़ल है। (बहारे शरीअत हिस्सा 16, पेज 30)
हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः “जिसको दावत दी गई और उसने कबूल न की तो उसने अल्लाह और उसके रसूल की नाफरमानी की।”
(मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 463)मुसलमान से बात-चीत छोड़ देना और ताल्लुक़ात ख़त्म कर लेना।
हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “जब तुम में से किसी को वलीमा के खाने के लिए बुलाया जाए तो ज़रूर जाए।” (मुस्लिम शरीफ जिल्द 2, पेज 462)
इन हदीसों से मालूम हुआ कि दावत कबूल करना और दावत में जाना नबी-ए-करीम करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। लिहाज़ा दावत मिलने पर दावत में जाना चाहिए। इसमें अपने मोमिन भाई की दिलजोई है और आपस में मेल मिलाप और मोहब्बत का ज़रिया है।
मसअला :- दावते वलीमा कबूल करना उसी वक़्त सुन्नत है जबकि दावत में कोई मुनकिराते शरीअह ढोल, तमाशे, गाने, बजाने, लहव व लअब वगैरह न पाया जाता हो। बाकी आम दावतों का कबूल करना अफज़ल है, जबकि न कोई माने हो और न उससे ज़्यादा अहम काम हो।(फतावा रज़बिया जिल्द 9, पेज 385)
मसअला :- जिस शादी की बारात में बाजे, खैल, तमाशे वगैरह हों तो आलिमे दीन को बारात के साथ जाना मुतलक्न मना है। हरगिज़ शिरकत न करे, बाकी आम आदमी कि वह बाजे वगैरह की तरफ बिल्कुल तवज्जेह न करे बल्कि महज़ सुले रहमी या दोस्ती की रिआयत के सबब बारात में शरीक हो कर जाय तो जा सकता है।(फतावा रज़बिया जिल्द 9, पेज 434)
मसअला :- दावत में बारात के घर जाना अगर बाजे वगैरह दूसरे मकान में हों तो हरज नहीं। आलिम मुकतदा के लिए तीन सूरतें हैं। अगर आलिम जानता है कि मेरे जाने से मुनकिरात बन्द हो जायेंगे और मेरे सामने न करेंगे तो जाना ज़रूरी है और अगर जानता है कि मेरी खातिर उन लोगों को इतनी अज़ीज़ है कि मैं शिरकत से इन्कार करूंगा तो वे मजबूरन ममनूआत से बाज़ रहेंगे और मेरा शरीक न होना गवारा न करेंगे तो इस पर वाजिब है कि बेतर्के मुनकिरात शिरकत से इनकार कर दे।
अगर वे लोग इसके इन्कार पर मुनकिरात से बाज़ हैं तो दावत में जाना ज़रूरी है और अगर इनके इन्कार पर बाज़ न रहेंगे तो हरगिज़ न जाए और अगर ढोल, बाजे वगैरह उसी बारात के मकान में हों तो हरगिज़ न जाएं और अगर जाने के बाद शुरू हो तो फौरन उठ जाएं।(फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 435+हादीउन्नास पेज 43)
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
2 thoughts on “बगैर दावत किसी के घर जाना। Bagair dawat kisi ke Ghar Jana.”