
मुर्दा जब आलमे क़ब्र में दाखिल हो जाता है तो क़ब्र दोनों एतराफ से उसे दबाती है यानी तंग हो जाती है इसे ज़गता क़ब्र कहा जाता है हुजूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इरशादात के मुताबिक़ क़ब्र के दबाव या भींचने से मैय्यत के दोनों कंधे सीना और पस्लियां अपने असली मुक़ाम से क़द्रे हट जाते हैं।
अंबिया अलैहिस्सलाम और अल्लाह जिन्हें चाहे जगता क़ब्र से महफूज़ रहते हैं क़ब्र का दबाना काफिर के लिये तो लाज़िम है नेक मुसलमानों के लिये सिर्फ क़ब्र में दाखिल होने के वक़्त पेश आता है इसके बाद इसकी क़ब्र को कुशादा कर दिया जाता है क़ब्र का दबाना मोमिन पर इस तरह होता है जैसे कि एक बच्चा अपनी माँ से अगर सर दर्द की शिकायत करे तो माँ उसके सर को हाथ से पकड़कर नर्मी से दबाने लगे इसी तरह क़ब्र भी अक्सर मोमिनीन को दबाती है मगर इसके दबाने में वह शिद्दत नहीं होती जिस शिद्दत के साथ क़ब्र गैर मुस्लिमों को दबाती है और उनके जिस्म को बेहद अज़ियत पहुंचती है।
जब तक क़ब्र आलमे बरज़ख़ में पेश आता है क़ब्र का दबाव रूह और जिस्म दोनों पर पड़ता है अहले नज़र का क़ौल है कि ज़बतक क़ब्र सवाल व जवाब के बाद पेश आता है इसके बाद नज़ात याफ्ता मोमिन की क़ब्र को कुशादह कर दिया जाता है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने हज़रत सआद ईब्न मआज़ अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु के मोताअलिक़ इरशाद फरमाया कि यह वह हस्ती है जिनके वफात से अर्श हिल गया आसमान के दरवाज़े खुल गये और सत्तर हज़ार फरिश्ते उनके जनाज़ह में शामिल हुए अलबत्ता उसे क़ब्र में एक मर्तबा दबाया गया और बाद अज़आं वह अज़ाब जाता रहा।(निसाई)
उमर बिन अबी शैबह ने किताब अलमदीना में हज़रत अनस रजिअल्लाहो अन्हो से रिवायत किया कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया की क़ब्र के दबाने से किसी ने नजात न पाई मगर फातिमा बिनते असद रज़ियल्लाहु अन्हु ने, तो अर्ज़ किया कि या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ! और ना आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बेटे क़ासिम रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया है और न इब्राहीम रज़ियल्लाहु अन्हु ने।
हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़रत ज़ैनब बिन्ते रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का इन्तक़ाल हो गया तो हम उनके जनाज़ा में आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के हमराह गये आप बहुत ही गमगीन थे तो आप थोड़ी देर क़ब्र पर बैठ कर आसमान की जानिब देखने लगे फिर क़ब्र से उतर आये और ग़म और ज़्यादा हो गया फिर थोड़ी देर बाद ग़म ख़तम हो गया और तबस्सुम फरमाने लगे।
दरियाफ़्त करने पर फरमाया कि मैं क़ब्र के दबाने को याद कर रहा था और जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा की कमज़ोरी को। यह बात मुझ पे दुशवार गुज़री तो पहले बारगाह खुदा बन्दी में दुआ की कि क़ब्र के दबाने में कमी कर दी जाय तो दुआ क़बूल हुई लेकिन फिर भी क़ब्र ने जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को इतना दबा दिया कि उसके दबाने की आवाज़ को जिन्न व इन्स के अलावा हर चीज़ ने सुना। (तिबरानी)
हज़रत तमीमी रजियल्लाहु अन्हु का इरशाद है कि क़ब्र के दबाने की असल वजह यह है कि लोग इसी से पैदा हुए और एक अरसा दराज़ तक गायब होने के बाद इससे फिर मिले हैं तो वह उनको उसी तरह दबायगी जैसे माँ अपने मुददत से छुटे हुए बच्चा को दबाती है। तो जो अताअते इलाही बजा लाता है उसको बतौर मुहब्बत दबाती है और जो नाफरमान होता है उसे बतौर नाराज़गी दबाती है।(इब्नेअबी अददुनिया)
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अगर कोई ज़गतह क़ब्र से महफूज़ रह सकता था तो वह सआद बिन मआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु थे लेकिन क़ब्र ने उनको भी दबााय और फिर छोड़ दिया। इश्के इलाही के तीन इम्तिहान।
नेहाद बिन सरी ने ज़हद में इब्ने अबी मल्किया से रिवायत किया कि क़ब्र के दबाने से कोई ना बचा हत्ता कि सआद बिन मआज़ भी कि जिसका एक रूमाल भी दुनिया व माफिहा से बेहतर है। सियूती ने हज़रत सआद बिन मआज़ रज़िअल्लाहो अन्हो का वाक़िया लिखकर कहा कि अंबिया अलैहिस्सलाम को क़ब्र दबाया नहीं करती।
हज़रत अबू अयूब रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक बच्चा दफन किया गया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अगर क़ब्र के दबाने से कोई बच सकता है तो यह बच्चा बच जाता ।(तिबरानी)
अली बिन मोईद ने किताबुत्ताअतुलआसियान में एक शख़्स से रिवायत किया। उन्होंने कहा कि मैं आईशा रजिअल्लाहो अन्हा के पास था तो एक बच्चा का जनाज़ा गुज़रा आप रोने लगी मैंने कहा आप क्यों रोती हैं? फरमाया कि इस बच्चे पर क़ब्र के दबाने से शफ़क़त करते हुए।
सुब्की ने बहरूल कलाम में फरमाया कि अताअत गुज़ार मोमिन के लिय अज़ाबे क़ब्र ना होगा लेकिन क़ब्र का दबाना होगा चुनांचे वह इसकी हौलनाकी को पायेगा क्योंकि इसने अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा ना किया।
अबुल क़ासिम सआदी ने किताबुर्रूह में कहा कि क़ब्र के दबाने से ना अच्छे महफूज़ रहेंगे ना बुरे लेकिन फर्क यह है कि काफिर पर यह हालत हमेशा रहेगी और मुसलमान को इब्तदा में क़ब्र दबायेगी और फिर कुशादह हो जायगी और क़ब्र के दबाने से मुराद यह है कि इसके दोनों किनारे आपस में मिल जायेंगे।
इब्ने असाकर और इब्ने अबी अदुनिया ने अब्दुल मजीद बिन अब्दुल मजीद बिन अब्दुल अज़ीज़ से रिवायत किया कि अब्दुल अज़ीज़ ने कहा हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िल्लाहु अन्हु के गुलाम नाफे की वफात का वक़्त जब करीब हुआ तो वह रोने लगे तो उनसे इसका सबब पूछा गया तो वह कहने लगे कि मैं सआद और क़ब्र के दबाने को याद करके रोता हूँ।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…