18/05/2025
Gause pak aur Gyarvi shareef

गौसे पाक और ग्यारहवीं शरीफ।Gaus Pak aur gyarahavin Shareef.

Spread the love

Gause pak aur Gyarvi shareef

हिजरी सन का चौथा महीना रबीउल आख़िर कहलाता है। इस महीने की ग्यारह(11) तारीख को मुसलमानाने आलम का बड़ा तब्क़ा गौसे आज़म हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी अलैहिररहमह की याद मनाता है।

आप के विसाल की मुनासबत से इस दिन आप का उर्स मनाया जाता है। नज्र व नियाज़ का एहतेमाम होता है। ईसाले सवाब की महफ़िलें मुनअक़िद की जाती हैं। और इस दिन को ग्यारहवीं शरीफ के नाम से मौसूम किया जाता है। हजरते गौसे आज़म को लोग गौसे पाक और बड़े पीर साहब से भी जानते और पहचानते हैं। यहाँ आप की हयात व ख़िदमात पर मुखतसरन रोशनी डाली जा रही है।

इस्मे मुबारकः

आप का प्यारा नाम हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी है।

वालिदे माजिदः- आपके वालिद माजिद का नाम हज़रत अबु सालिह मूसा है।
वालिदा माजिदाः- आप की वालिदा माजिदा का नाम उम्मुल खैर फ़ातिमा है।
जद्दे करीमः- आप के दादा जान का नाम अब्दुल्लाह जीली है।
नाना मोहतरमः- आप के नाना जान का नाम अब्दुल्लाह सौमई है।
विलादत बासआदतः- आपकी विलादत बासआदत 1 रमज़ान 470 हि० को जीलान (ईरान) में हुई।
तालीम व तरबियतः- शुरुआती तालीम आपने जीलान में रहकर हासिल की। फिर ऊँची तालीम के लिए बगदाद (इराक) का सफर किया।
बैअत व ख़िलाफ़तः- आप को बैअत व ख़िलाफत हज़रत अबू सईद मख़ज़ूमी अलैहिररहमह से हासिल है।Gaus Pak aur gyarahavin Shareef.

विसाले पुर मलालः

आप का विसाले मुबारक 11 रबीउस्सानी 561 हिजरी को बगदाद (इराक) में हुआ और वहीं आप का मज़ारे मुबारक है।

गौसे पाक का बचपनः

ऊँची तालीम के लिए जब आप ने बग़दाद जाने का इरादा किया तो चलते वक़्त आपकी माँ ने चालीस अशरफियाँ आप के जुब्बे की जेब रख कर सिल दीं और हर हाल में आप से सच बोलने का आप से वादा लिया।

आप क़ाफ़िले के साथ जब पहाड़ी इलाक़े में पहुँचे तो डाकुओं ने सारा सामान लूट लिया । एक डाकू आप के पास भी आया और पूछाः कुछ है? आप ने फरमायाः चालीस अशरफियाँ हैं। पूछाः कहाँ है? कहाः जुब्बे की जेब में सिली हैं। उस ने सोचा बच्चा मज़ाक़ कर रहा है।

यूँ ही कुछ और डाकू आए उन्हें भी आप ने सच सच बता दिया। अखीर में आप को डाकुओं के सरदार के पास ले जाया गया। उस ने सिलाई खुलवा कर देखा तो सच मुच चालीस अशरफियाँ मौजूद थीं। सरदार को बहुत तअज्जुब हुआ। उस ने पूछाः लोग मुसीबत के वक़त जान व माल बचाने की फिक्र करते हैं आप ने छुपाने की बजाय सच सच क्यों बता दिया?Gaus Pak aur gyarahavin Shareef.

आप ने फरमायाः चलते वक़्त मेरी माँ ने हर हाल में सच बोलने का मुझ से वादा लिया था। लिहाज़ा मुझ से गवारा ना हो सका कि मैं अपनी माँ का वादा तोड़ दूँ। ये सुन कर सरदार ने कहाः ऐसे मुशकिल वक़त में आप ने अपनी माँ का वादा नहीं तोड़ा और हम हैं कि सालहा साल से अपने पैदा करने वाले रब का वादा तोड़ रहे हैं।

फिर वो गौसे पाक के हाथ पर तौबा कर के नेक बन गया। सारा सामान भी वापस कर दिया और उस के सारे चेले भी नेक बन गए। (मुलख्खसन क़लाइदुल जवाहिर व बहजतुल असरार वगैरह)

करामाते गौसे आज़मः

इंसानी अक़ल के ख़िलाफ़ कोई बात किसी वली से पेश आए तो उसे करामत कहते हैं दूसरे बुजुर्गों की तरह हज़रते गौसे पाक से भी बिइज़्ने रब्बी बेशुमार करामतें जुहूर पज़ीर हुई। आप के तज़किरा निगारों ने सिक़ह रावियों के हवाले से आप के बेशुमार ख़वारिके आदात वाक़ेआत अपनी अपनी किताबों में दर्ज किए हैं। यहाँ उनमें से चन्द की झलकियाँ पेश की जा रही हैं

(1) आप ने बचपन में भी रमज़ान के दिनों में माँ का दूध नहीं पिया ।
(2) चालीस साल तक इशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ते रहे।
(3) पैदाइशी अंधों, बर्स (सफेद दाग़) और कोढ़ी (कोढ़पन) की बीमारी वालों को अच्छा कर दिया।
(4) मुर्दों को ज़िंदा कर दिया।

(5) चोर को कुतुब और नसरानी को अबदाल बना दिया।
(6) एक ही वक़त में सत्तर जगह रोज़ा इफ़्तार किया।
(7) आप के दरबारी कुत्ते ने शेर को पछाड़ दिया।
(8) एक बूढ़ी औरत के कहने पर उस के इकलौते बेटे की बारह बरस की डूबी हुई बारात वापस ला दी।Gaus Pak aur gyarahavin Shareef.

(9) अपने वाज़ व नसीहत से बहुत सारे लोगों को हैं रास्ते पर लाए।
(10) अपने अखलाक व किरदार से बेशुमार लोगों को कलमा पढ़ाया।  हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पैदाइश।

तालीमाते गौसे पाकः

आप चूँकि अल्लाह के बर्गुज़ीदा वली थे और आप को अल्लाह ने लोगों को सीधी राह बताने के लिए भेजा था इस लिए आप लोगों को अच्छी अच्छी बातें सिखाते थे। आप की उन्ही तालीमात में से चन्द ये हैः

(1) अल्लाह से,
(2) उस के रसूल से,
(3) और नेक लोगों से मोहब्बत रखें।
(4) हर हाल में अल्लाह का शुक्र करें।
(5) उस की रहमत से कभी मायूस ना हों।
(6) उस पर भरोसा रखें।
(7) उस से डरें।

(8) उसी की इबादत करें।
(9 )नमाज़ें पढ़ा करें।

(10) रोज़े रखा करें।
(11) साहिबे निसाब हों तो ज़कात दिया करें।
(12) इस्तिताअत हो तो हज ज़रूर करें।
(13) इल्म हासिल करें।
(14) उस पर अमल भी करें।

(15) दीन की ख़िदमत किया करें।
(16) उलमा की इज़्ज़त किया करें।
(17) हमेशा सच बोलें।
(18) झूट कभी ना बोलें|
(19) बड़ों की इज़्ज़त करें।
(20) छोटों पर शफ़क़त करें।

(21) ग़रीबों, फ़क़ीरों, यतीमों और बेवाओं की मदद किया करें।
(22) सब के साथ अच्छा बरताव करें।
(23) किसी पर गुस्सा ना करें।
(24) किसी पर जुल्म ना करें।
(25) सब के साथ भलाई करें।
(26) किसी के साथ बुराई ना करें।
(27) बुराई से बचें।

(28) गुनाहों से सच्ची तौबा करें।
(29) मुसीबतों पर सब्र किया करें।
(30) परेशानियों से घबराया ना करें।
(31) बड़ों की बातें मानें।
(32) छोटों को समझाया करें।
(33) दूसरों की ग़लतयों को माफ़ करें।
(34) बेहयाई व बेवफ़ाई से बचें।

(35) किसी पर हसद ना करें।
(36) रियाकारी और दिखावे से से बचें।
(37) तकब्बुर और घमंड ना करें।
(38) दिल में बुज़ व कीना ना रखें।
(39) लालच ना करें।
(40) कन्जूसी से बचें।
(41) ना शुक्री ना करें।

(42) किसी को नीचा ना समझें।
(43) किसी के बारे में बुरा ना सोचें।
(44) किसी की चुगली ना करें।
(45) किसी पर झूटा इल्ज़ाम व तोहमत ना लगाएँ।
(46) लड़ाई झगड़े से बचें।
(47) गाली गलोज ना करें।
(48) किसी को धोका ना दें।
(49) मुखालफत से बचें।
(50) मौत और क़ब्र को याद रखा करें।  इस्लाम के वाजिबात व फराइज़।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

इस फराइज को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *