
आईये अब जायज़ा लें कि औरत के शौहर पर क्या हुकूक हैं। उनमें से पहला हक़ है औरत का ‘नान नफ़्का’ यानी औरत के ख़र्चों को पूरा करना।
एक बात ज़ेहन में रख लेना कि अल्लाह तआला ने औरत के ज़िम्मे अपना नान नफ्का कमाने का बोझ नहीं रखा। औरत को अपने ख़र्चों के लिए कमाने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं।
अगर बेटी है तो बाप का फ़र्ज़ है कि वह अपनी बेटी का ख़र्चा पूरा करे। अगर बहन है तो भाई के ज़िम्मे है कि वह अपनी बहन का ख़र्चा पूरे करे। अगर बीवी है तो शौहर की ज़िम्मेदारी है कि वह बीवी का ख़र्चा पूरा करे ।
और अगर माँ है तो औलाद का फर्ज़ है कि वह अपनी माँ का ख़र्चा पूरा करे। बेटी से लेकर माँ बनने तक अल्लाह ने औरत पर अपनी रोज़ी कमाना कभी भी फर्ज़ नहीं किया ।
तो यह शौहर की ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपनी बीवी का ख़र्चा पूरा करे। उसके ख़र्चे के मुताल्लिक उलेमा ने मसला लिखा है कि शौहर को चाहिए कि अपनी हैसियत के मुताबिक़ बीवी का जाती ख़र्चा मुकर्रर करे।
मुम्किन है कि कोई आदमी सौ डॉलर दे सकता हो, कोई आदमी दो सौ डॉलर दे सकता हो, और कोई आदमी सिर्फ दस डॉलर दे सकता हो ।
मात्रा और तायदाद की बात नहीं। घर की सब्ज़ी वगैरह के लिए ख़र्चा देना और बात है, शरीअत कहती है कि वह तुम्हारी बीवी है, अपने घर को छोड़कर तुम्हारा घर बसाने यहाँ आयी है, अब तुम उसको अपनी जाती ज़रूरतों के लिए कुछ पैसे दे दो और देने के बाद तुम्हें पूछने की ज़रूरत नहीं कि वे पैसे कहाँ ख़र्च करती है।
इसमें भी हिक्मत है, हो सकता है कि औरत महसूस करे कि मेरी बहन गरीब है मैं उसको दे दूँ। मैं अपने भाई की कुछ मदद करूँ। उसे तब खुशी हो जब वह किसी गरीब औरत का दुख बाँटे।
लिहाज़ा जब जाती ख़र्चा दे दिया तो अब पूछने की ज़रूरत नहीं, वह जहाँ चाहे ख़र्च कर सकती है। बीवी के हुकूक से मुताल्लिक दूसरी बात सुनें। दीन के आलिमों ने मसला लिखा है कि जब मर्द किसी औरत से निकाह करे तो उसकी ज़िम्मेदारी है कि उस औरत को सर छुपाने के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक जगह बना दे। हुक़ूक़े वालिदैन
कहावत मशहूर है कि अपना घौंसला अपना, कच्चा हो या पक्का औरत को कोई ऐसी जगह मुहैया कराना जहाँ वह सर छुपायें, यह शौहर की ज़िम्मेदारी है। अगर मजबूरी हो, घर के सब अफराद इकट्ठे रहते हों तो उसे कोई एक कमरा ही दे दिया जाये,
जहाँ वह अपनी ज़रूरतों का सामान रख सके। यह न हो कि बीवी का भी कमरा वही है और उसी में माँ-बाप का सामान भी पड़ा हुआ है। किसी और का सामान भी पड़ा हुआ है। यह बात ठीक है कि हर आदमी मकान नहीं बना सकता, लेकिन जो बना सकते हैं वे बनाकर दें।
यह शौहर के फ़राईज़ में से एक फर्ज़ है। वह अच्छे दोस्त का तसव्वुर है। कुरआन पाक में जहाँ जहाँ मियाँ- बीवी के हुकूक का तज़किरा है वहाँ जगह-जगह फरमायाः और तुम अल्लाह से डरते रहना’। यह इसलिए कि ‘और तुम जान लेना कि तुमको अल्लाह से मुलाकात करनी है।
इसलिए कि बाज़ मामलात ऐसे होते हैं कि न बीवी शर्म से किसी को बता सकती है और न शौहर शर्म से किसी को बता सकता है। मगर अन्दर अन्दर दोनों एक दूसरे का दिल दुखा रहे होते हैं।
फ़रमाया कि तुम इस तरह एक दूसरे का दिल जलाया करोगे तो याद रखना कि तुमको अल्लाह तआला से मुलाकात करनी है। अगर एक दूसरे को सुकून नहीं पहुँचाओगे तो कियामत के दिन उसको कैसे जवाब दे सकोगे।
एक बेहतरीन उसूल यह है कि अगर कोई ग़लती या कोताही बीवी से हो जाये तो वह माफ़ी माँग ले, और अगर शौहर से हो जाये तो वह माज़िरत कर ले। अपनी गलती पर माज़िरत कर लेने से इनसान की इज्ज़त बढ़ती है।
मुझे इस मौके पर अपने पीर व मुर्शिद की एक बात याद आई ये हज़रात कितने मुख़िलस होते हैं अपनी ज़िन्दगी के वाक़िआत नमूने बनाकर पेश करते हैं।
फ़रमाने लगे कि एक दिन मैं वुजू कर रहा था (उम्र काफी ज़्यादा थी) बीवी साहिबा वुजू कराते वक्त पानी ठीक से नहीं डाल रही थी जिस पर मैंने उन्हें ज़रा सख़्ती से बात कह दी कि तुम क्यों ठीक तरह से वुजू नहीं करवा रही हो मगर मेरे इस तरह गुस्सा करने पर वह ख़ामोश रहीं और जिस तरह मैं चाहता था वैसे कर दिया।
खैर मैं वजू करके घर से चला, रास्ते में ख़्याल आया कि अभी तो मैं अल्लाह की मख़्लूक के साथ यह बर्ताव कर रहा था, अभी मुसल्ले पर जाकर नमाज़ पढ़ाऊँगा। मेरी नमाज़ कैसे कबूल होगी।
कहने लगे कि मैं आधे रास्ते से वापस आया और बीवी से माज़िरत की,अपने रवैये पर शर्मिन्दगी का इज़हार किया उसने मुझे माफ कर दिया। फिर मैंने जाकर मस्जिद में नमाज़ पढ़ायी ।
तीसरी बात यह है कि चूँकि शौहर अपने घर के लिए अमीर और सरदार है लिहाज़ा उसे चाहिए कि अपनी रिआया यानी अपने घर वालों के साथ नर्मी करे, अल्लाह तआला कियामत के दिन उससे नरमीं फ़रमायेंगे।
जो दूसरों को जल्दी माफ करने वाला होगा अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उसको जल्दी माफ फरमायेंगे। जो दूसरों के ऐबों को छुपाने वाला होगा अल्लाह तआला कियामत के दिन उसके ऐबों को छुपायेंगे।
इस्लाम में बीवी का तसव्वुर जीवन-साथी का तसव्वुर है, हमदम व हमराज़ का तसव्वुर है, वह कोई बाँदी का तसव्वुर नहीं है।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…