हज़रत बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमको सात बातों का हुक्म दिया और सात बातों से मना फरमाया। आपने हुक्म दिया,
(1) जनाज़ों के साथ जाना।
(2) मरीज़ की मिज़ाज-पुर्सी करना।
(3) दावत कुबूल करना।
(4) मज़लूम की मदद करना।
(5) कसम पूरी करना।
(6) सलाम का जवाब देना।
(7) छींक (के जवाब) पर ‘यर्हमुकल्लाह’ कहने का।
और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मना फरमाया- चाँदी के बर्तन, (मर्दों के लिये) सोने की अँगूठी (सोने का ज़ेवर) खालिस रेशमी कपड़े और दीबाज और कसी और इस्तबरक़ से।
वजाहत :- ये तीनों रेशम की किस्मों में से हैं, रेशमी गद्दी जो घोड़े की ज़ीन पर रखी जाती है उसका भी इस्तेमाल मना है।हज़रत अली रज़ि० का एक क़ब्र पर गुज़र।
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: मुसलमान के मुसलमान पर पाँच हक़ है ।
(1) सलाम का जवाब देना ।
(2) मरीज़ की इयादत करना (बीमारी का हाल पूछना)
(3) जनाजे के साथ जाना ।
(4) दावत कुबूल करना।
(5) छींक का जवाब देना।
हदीस :- हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि औरतों ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज किया एक दिन हमको भी वअज़ सुनाने के लिये मुकर्रर फरमा दीजिये, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (मुकर्रर कर दिया) उनको वअज़ फरमाया जिस औरत के तीन बच्चे मर जायें वह कियामत के दिन दोज़ख से उसकी ढाल होंगे। एक औरत (उम्मे सलीम रज़ियल्लाहु अन्हा) ने अर्ज किया अगर दो मर जायें? आपने फरमाया कि दो भी।
वज़ाहत :- एक हदीस में एक बच्चे के लिये भी यही वायदा है। यह उस सूरत में होगा जब वह रोने-पीटने की बजाय सब्र करे।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
हदीस :- हज़रत उम्मे अतीया रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बेटी हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का इन्तिकाल हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास तशरीफ़ लाये और फरमाने लगे- इसको तीन बार या अगर मुनासिब समझो तो पाँच बार या इससे भी ज़्यादा पानी और बेरी के पत्तों से नहला सकती हो, और आखिर में काफूर का इस्तेमाल कर लेना, और गुस्ल से फारिग होने पर मुझे इत्तिला देना। हज़रत उम्मे अतीया ने कहा- जब हम नहला चुकीं और आपको खबर दी तो आपने हमें एक चादर दी और फरमाया यह इसके बदन पर लपेट दो।
हदीस :- रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी साहिबज़ादी (बेटी) के (जनाज़े के) गुस्ल में फरमाया- इसकी दाहिनी तरफ से और बुज़ू के अंगों से शुरू करो। हज़रत उम्मे अतीया रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि हमने कंघी करके उनके बालों के तीन हिस्से कर दिये थे।
वजाहत :- मैय्यत को कुल्ली कराना और उसके नाक में पानी डालना मुस्तहब है।
हदीस :- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यमन के तीन सफेद सूती धुले कपड़ों में कफन दिया गया था, न उनमें कमीज़ थी न अमामा (पगड़ी)।
वज़ाहतः- एक इज़ार (तहबन्द) एक चादर और एक लिफ़ाफ़ा , बस यही तीन कपड़े थे।सदक़ा करने की फज़ीलत।
हदीस :- हज़रत उम्मे अतीया रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि हमें जनाज़ों के साथ जाने से मना किया गया मगर ताकीद से मना नहीं किया गया था।
हदीस :- उम्मुल-मोमिनीन हज़रत उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- जो औरत अल्लाह तआला और आखिरत के दिन पर ईमान रखती है उसको किसी मुर्दे पर तीन दिन से ज़्यादा सोग करना दुरुस्त नहीं है, मगर शौहर पर चार महीने दस दिन सोग करे।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
फिर मैं उम्मुल-मोमिनीन हज़रत जैनब बिन्ते जहश के पास चौथे दिन गई जब उनके भाई मर गये थे, उन्होंने खुशबू मंगवाई और लगाई, फिर फ़रमाने लगीं- मुझे खुशबू की कोई ज़रूरत न थी, बात यह है कि मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुना है कि जो औरत अल्लाह तआला और आखिरत के दिन पर ईमान रखती है उसको किसी मैय्यत पर तीन दिन से ज़्यादा सोग करना दुरुस्त नहीं, मगर शौहर पर चार महीने दस दिन (इद्दत) करे।
वज़ाहत :- हामिला (गर्भवती) औरत के सोग की मुद्दत उसके हमल की पैदाईश है, चाहे चार माह दस दिन से पहले हो या बाद में।
हदीस :- हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक औरत के पास से गुज़रे जो एक कब्र के पास बैठी रो रही थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला से डर और सब्र कर। वह कहने लगी जाओ भी, यह मुसीबत तुम पर पड़ी होती तो पता चलता।
उस औरत ने आपको पहचाना नहीं था। फिर लोगों ने उसे बताया कि यह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम थे। वह (घबराकर) नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दरवाज़े पर आई, दरबान वगैरह कोई भी न था और अर्ज़ करने लगी मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नहीं पहचाना (माफ फरमाईये)। आपने फ़रमाया सब्र तो जब सदमा शुरू हो उस वक़्त करना चाहिये।मोमिन की कब्र और असल ज़िन्दगी।
वज़ाहत :- रो-पीटकर तो सब को सब्र आ ही जाता है, मगर ऐसा करने से सवाब ज़ाया हो जाता है। वे औरतें जो शरीअत के खिलाफ काम न करें कब्रों पर जा सकती हैं, इसलिये कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने औरतों को कब्रों पर जाने से ताकीद से नहीं रोका बल्कि वहाँ जाकर रोने से रोका है।
हदीस :- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक यहूदी औरत के घर के पास से गुज़रे, उसके घर वाले उस पर रो रहे थे क्योंकि वह मर गई थी, उस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- यह तो यहाँ रो रहे हैं और वहाँ इसको अपनी कब्र में अज़ाब हो रहा है।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
वज़ाहत :- यह मैय्यत यहूदी की थी, आपकी एक दूसरी हदीस में यह है कि रोने (नोहा करने) से मैय्यत को अज़ाब होता है। मरने वाला अगर पीटने (यानी नोहा करने और बदन को पीटकर सोग मनाने) को अपनी ज़िन्दगी में पसन्द करता था और पीटने से मना भी नहीं करता था तो उस सूरत में मरने वाले और नोहा करने वालों को अज़ाब होगा। अगर पीटने को नापसन्द करता था और मना भी करता था तो उस सूरत में मैय्यत को अज़ाब नहीं होगा, सिर्फ पीटने वाले गुनाहगार होंगे। (फत्हुल-बारी)
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया मैय्यत को कब्र में अज़ाब होता है उस पर नोहा करने की वजह से भी।
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जो कोई रुख़्सार पीटे (गालों पर थप्पड़ मारे) और गिरेबान फाड़े और कुफ्र की बातें करे वह हम मुसलमानों में से नहीं है।
वजाहत :- हर इन्सान (मर्द व औरत) अपने वारिस को यह वसीयत और नसीहत करता रहे कि उसके मरने के बाद खिलाफे शरीअत काम (नोहा व मातम, तीजा, दसवाँ व चालीसवाँ वगैरह) नहीं किये जायें,
इसलिये कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने किसी रिश्तेदार या सहाबी के मरने के बाद यह आमाल नहीं किये हैं, और न ही खुलफा-ए-राशिदीन और सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने ये काम किये, और आज भी तमाम मुहकिक्क उलेमा-ए-दीन इन आमाल को खिलाफे शरीअत मानते हैं।
हदीस :- हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब कारी लोग (बीरे मऊना पर) कत्ल हुए तो आपने एक महीने तक नमाज़ में कुनूत (नाज़िला) पढ़ी, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उन दिनों से ज़्यादा गमज़दा कभी नहीं देखा।मोमिन का रुत्बा मौत के वक़्त और मौत के बाद।
हदीस :- हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जब मैय्यत चारपाई पर रखी जाती है और मर्द उसे कंधों पर उठाते हैं तो अगर वह नेक हो तो कहता है कि मुझे आगे ले चलो, लेकिन अगर नेक नहीं होता तो कहता है कि हाय बरबादी मुझे कहाँ लेजा रहे हो। इस आवाज़ को इन्सान के सिवा अल्लाह तआला की सारी मख़्लूक सुनती है, अगर इनसान सुन ले तो बेहोश हो जाये।
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जनाज़ा लेकर जल्दी चला करो, अगर वह नेक है तो तुम उसको भलाई के नज़दीक करते हो, और अगर नेक नहीं है तो बुरे को अपनी गर्दनों पर से उतारते हो।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
वजाहत :- मरने के फौरन बाद मैय्यत के तमाम काम जल्द से जल्द पूरे करने चाहियें।
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा को नजाशी (हब्शा का बादशाह जो मुसलमान हो गया था) के मरने की खबर सुनाई, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आगे बढ़े, लोगों ने आपके पीछे सफें बाँधीं और आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चार मर्तबा तकबीरें कहीं।
वजाहत :- आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने हज़रत नजाशी रज़ियल्लाहु अन्हु की गायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई, इसके अलावा हज़रत मुआविया बिन मुआविया मुज़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की भी गायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई थी। (फत्हुल-बारी)
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जो शख़्स जनाज़े में नमाज़े जनाज़ा होने तक शरीक रहा उसको एक कीरात सवाब मिलता है, और जो दफन तक साथ रहा तो उसे दो कीरात का सवाब मिलता है। आप से पूछा गया दो कीरात कितने होंगे? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया दो बड़े पहाड़ों के बराबर ।
हदीस :- हज़रत समुरा बिन जुन्दुब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे एक औरत की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जिसका ज़चगी (बच्चे की पैदाईश होने के बाद) की हालत में इन्तिकाल हो गया था। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिये) उसके दरमियान में खड़े हुए।
हदीस :- हज़रत तल्हा बिन अब्दुल्लाह बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु के पीछे एक जनाज़े पर नमाज़ पढ़ी, उन्होंने सूरः फातिहा (ज़रा बुलन्द आवाज़ से) पढ़ी और कहा मैंने यह इसलिये किया है ताकि तुम जान लो कि यह अमल सुन्नत है।
वज़ाहत :- मालूम हुआ कि नमाज़े जनाज़ा में ऊँची आवाज़ से क्रिाअत और सूरः फातिहा का पढ़ना सुन्नत और हक है। (फत्तुल-बारी 3, पेज 262)
हदीस :- हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक शख़्स की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जिसका इन्तिकाल रात में हो गया था और उसे रात ही में दफन कर दिया गया।मैय्यत को सवाब पहुंचाना।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने सहाबा किराम के साथ खड़े हुए और आपने उस (शख़्स) के मुताल्लिक पूछा कि यह किसकी कब्र है। लोगों (सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने कहा कि यह फलाँ शख़्स की है जिसे कल रात ही दफन किया गया है, फिर सब ने उसकी कब्र पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ी।
वज़ाहत :- रात को दफन करने में कोई बुराई नहीं है बल्कि बेहतर यही है कि रात हो या दिन मरने वाले के कफन दफन में देर न की जाये। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु भी रात को दफन किये गये थे।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
अगर किसी ने नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी हो तो वह उसकी कब्र पर जाकर भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ सकता है जैसा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिद की खादिमा की नमाज़े जनाज़ा उसकी कब्र पर पढ़ी थी। (फत्हुल-बारी)
हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अज़ाबे कब्र से पनाह के लिये यह दुआ माँगते थे- अल्लाहुम्-म इन्नी अऊजु बि-क मिन् अज़ाबिल् कबरि व मिन् अज़ाबिन्नारि व मिन् फित्नतिल् मह्या वल्-ममाति व मिन् फित्नतिल् – मसीहिद्दज्जालि ।
तर्जुमा :- या अल्लाह ! मैं आपकी पनाह चाहता हूँ कब्र के अज़ाब से और दोज़ख के अज़ाब से और ज़िन्दगी और मौत की आज़माईशों से और मसीह दज्जाल के फितनों से।
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- तुम में से जब कोई मर जाता है तो हर सुबह व शाम उसे उसका ठिकाना दिखाया जाता है, अगर वह जन्नती है तो जन्नत और अगर दोज़खी है तो जहन्नम, और उससे कहा जाता है कि यही तेरा मकाम है जब कियामत के दिन अल्लाह तआला तुझे उठायेगा।
वज़ाहत :- इस हदीस से भी अज़ाबे कब्र साबित हुआ, और यह भी मालूम हुआ कि जिस्म के फना होने से रूह फना नहीं होती है, अज़ाबे कब्र रूह को भी होता है। (पढ़िये तफ्सीर सूरः मोमिन 40, आयत 46 )
तर्जुमा :- वे लोग सुबह व शाम जहन्नम की आग के सामने पेश किये जाते हैं। यह आयत अज़ाबे कब्र पर सबसे बड़ी दलील है। (फत्हुल-बारी)
हदीस :- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि एक आदमी ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज किया- मेरी माँ का अचानक इन्तिकाल हो गया है और मैं समझता हूँ अगर वह बात कर पाती तो कुछ खैरात करती, अब अगर मैं उनकी तरफ से खैरात करूँ तो क्या उनको कुछ सवाब मिलेगा? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- हाँ मिलेगा।फातिहा पढ़ने की फज़िलत।
वज़ाहत :- बेहतर है कि खैरात वगैरह की वसीयत लिखकर ज़िन्दगी में जैसे ही अल्लाह रब्बुल-इज़्ज़त माल व दौलत दें किसी मोतबर इन्सान के पास रखवा दी जाये। इसलियें कि अचानक मौत की सूरत में वसीयत करने की मोहलत नहीं मिलती। अधिक तफसील के लिये पढ़िये ।Janazo ke kuch khas Ahkaam.
हदीस :- हज़रत सुफियान तमार रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कब्र देखी वह ऊँट के कोहान की तरह थी।
हदीस :- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जो लोग मर गये उनको बुरा न कहो, क्योंकि उन्होंने जैसे अमल किये थे वैसा बदला पा चुके ।
वज़ाहत :- मुसलमान मैय्यत को बुरा नहीं कहना चाहिये इसलिये कि जो कुछ उसने किया उसके सामने कब्र में आ चुका है, और बाद में कियामत के दिन भी आयेगा।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…