इस ज़माने में मुसलमानों में मैय्यत को सवाब पहुंचाने का नया तरीका निकला हुआ है जिससे मुर्दों को तो कभी सवाब नहीं मिलता और करने वाले को नुक्सान यह है कि अल्लाह और रसूल के विरोधी बनते हैं
पैसा बर्बाद होता है और शैतान खुश होता है विधवाओं व यतीमों के हक़ खत्म होते है। हक़दार के हकों का हनन होता है मैय्यत यदि कर्ज़दार मरी है तो आखिरत के अज़ाब का शिकार हो जाती है।
इस ज़माने के जाहिल मुसलमानों को जहां देखिए प्राय: इस बला का शिकार हैं जहां उनके यहां कोई मरा और उन्होंने बाप-दादा की पैरवी की।Mayyat ko Sawab pahuchana.
मुर्दे के साथ अनाज आदि कब्रों पर बांटते हैं पैसे बांटते हैं तीसरे दिन तीजा, दसवां, बीसवां, चालीसवां, छ: माही बरसी करते हैं फिर अच्छे खाने, पुलाव, जर्दा, बिरयानी, मिठाई और बिरादरी को खाना खिलाते हैं और आपस के बदले उतारे जाते हैं।
कितना ही गरीब हो खाना अवश्य देगा। खाना न दे तीजा न करे या कोई बिरादरी वाला न बुलाया जाए ऐसा हो ही नहीं सकता। ऐसे मौत के खानों में शादी की तरह बिरादरी के अमीर व गरीब सब शरीक होते हैं. यदि सदका व खैरात का नाम लेकर बुलाया जाए तो कोई न आए !
यदि इनसे पूछिए आप किस धर्म व दीन के हैं तो जवाब में इर्शाद होता है एहले सुन्नत वल जमाअत पक्के हनफ़ी। यदि पूछा जाए कि हनफी मसलक की किस फ़िक्हा की किताब में या चारों मसलकों में से किसी मसलक की किताब में इन रस्मों को लिखा हुआ बता सकते हो?
तो जवाब नहीं दे सकते यदि इनके पास कोई जवाब है तो केवल इतना कि हमने तो अपने बाप दादा- को ऐसे ही करते देखा है। कुछ कहते हैं हम तो जाहिल हैं कितने ही पढ़े लिखे जो रस्मे करते हैं क्या वे कुरआन व हदीस नहीं समझते? और जो थोड़े बहुत पढ़े लिखे भी हैं वे फ़रमाते हैं मियां इसमें नुकसान क्या है बुराई तो सदका खैरात में है और कर्ज लेकर खैरात करना भी अच्छा ही है इसमें बुराई कौन सी है।Mayyat ko Sawab pahuchana.
इस जवाब को काफी समझकर असल मतलब को छोड़ देते हैं और वह नहीं जानते कि अल्लाह व रसूल ने हक़दारों के हक़ अदा करने का क्या तरीका फरमाया है यतीमों के माल की हिफाजत को कुरआन मजीद क्या कहता है अल्लाह मुसलमानों को समझ दे ।
मय्यत को सवाब पहुंचाने का ठीक और सही तरीका यह है कि अल्लाह के वास्ते अपने खास माल से जिसमें किसी यतीम व विधवा और दूसरे रिश्तेदार का कुछ हक न हो। उससे गरीब मिसकीन और रिश्तेदारों की सेवा करें उन्हें खाना खिला दे कपड़े बना दें, नकद रक़म से मदद करें।
यदि ताकत हो तो मय्यत के सवाब की नीयत से कुवां खुदवा दें, मदरसा बनवा दें, यतीम व गरीब बच्चों को मदरसा भिजवा दें। यदि मय्यत कर्ज़दार मरी हो तो पहले उसका कर्जा चुका दें फिर कहीं खैरात का नाम लें। (अबूदाऊद, नसई मिश्कात 161)Mayyat ko Sawab pahuchana.
मैय्यत की ओर से खाना काबा का हज करें रमज़ान के रोज़े रखें जो उस पर वाजिब हों। जो रोज़े मय्यत छोड़ मरी है उनकी क़ज़ा करा दें या नज़र के रोज़े हों तो उनको पूरा करा दें।( तिर्मिज़ी, अबूदाऊद, नसई मिश्कात)
यदि माल अधिक है और कोई हक़दार नहीं है तो मोहताजों का वज़ीफा मुकर्रर कर दें और किसी काम में दिखावा न हो न दिखावे व नाम की नीयत हो। यदि इस प्रकार सवाब पहुंचाएंगे तो कुरआन के अनुसार मुर्दे को अल्लाह सवाब देगा।
नबी सल्ल. ने फ़रमाया है कि जब इन्सान मर जाता है तो उसके सारे अमल खत्म हो जाते हैं। मगर तीन चीजें मौत के बाद भी लाभ देती हैं।
1-सदका व खैरात उसका लाभ जारी रहता है
2-दीन का इल्म जिससे लोग लाभ उठाएं
3-नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करती रहे।
यदि सदका खैरात करने की ताकत न हो तो कर्ज़ लेकर यह काम नही करना चाहिए।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…