16/07/2025
Image Prompt Horizontal An emotional scene on a narrow stone bridge over 20250707 211049 0000

जब एक बुढ़िया ने बादशाह को झुका दिया। Jab ek budhiya Ne Badshah ko jhuka Diya.

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Jab ek budhiya Ne Badshah ko jhuka Diya.
Jab ek budhiya Ne Badshah ko jhuka Diya.

मुहम्मद शाह मकरान एक बादशाह गुज़रा है। एक बार वह सिपाहियों के साथ शिकार को निकला। बादशाह सलामत शिकार खेल रहे थे। सिपाहियों के हाथ एक बूढ़ी औरत की गाय आ गई। उन्होंने उसे ज़िव्ह करके उसका गोश्त भूनकर खा लिया। बुढ़िया ने कहा कि मुझे पैसे दे दो ताकि मैं कोई और गाय ख़रीद लूं।

उन्होंने पैसे देने से इंकार कर दिया। अब वह बड़ी परेशान हुई। उसने किसी आलिम को बताया कि मेरी तो रोज़ी का सहारा इसी गाय पर था। यह सिपाही उसको भी खा गए हैं और अब पैसे भी नहीं देते। अब मैं क्या करूं? उन्होंने कहा कि बादशाह नेक आदमी है। लिहाज़ा तुम सीधे बादशाह से बात करो। उसने कहा कि मुझे ये सिपाही आगे जाने नहीं देते।

उन्होंने कहा कि मैं तुझे एक तरीक़ा बता देता हूँ कि बादशाह को परसों अपने घर जाना है। उसके घर के रास्ते में एक दरिया है और उसका एक ही पुल है। वह इस पर से ज़रूर गुज़रेगा। तुम उस पुल पर पहुँच जाना और जब बादशाह की सवारी वहाँ से गुज़रने लगे तो उसकी सवारी को ठहराकर तुम अपनी बात बयान कर देना। चुनाँचे तीसरे दिन बुढ़िया वहाँ पहुँच गई।

बादशाह की सवारी पुल पर पहुँची, बुढ़िया तो पहले ही इंतिज़ार में थी। उसने खड़े होकर बादशाह की सवारी रोक ली। बादशाह ने कहा, अम्मा! आपने मेरी सवारी को क्यों रोका है? बुढ़िया कहने लगी, मुहम्मद शाह! मेरा और तेरा एक मामला है। इतना पूछती हूँ कि तू वह मामला इस पुल पर हल करना चाहता है या क़यामत के दिन पुलसिरात पर हल करना चाहता है?

पुलसिरात का नाम सुनते ही बादशाह की आँखों में आँसू आ गए। वह नीचे उतरा और कहने लगा, “अम्मा मैं अपनी पगड़ी आपके पाँव प रखने को तैयार हूँ। आप बताए कि आपको क्या तकलीफ़ पहुँची है? मुझे माफी दे दो। मैं कयामत के दिन पुलसिरात पर किसी झगड़े का सामना करने के काबिल नहीं हूँ। चुनाँचे उस बुढ़िया ने अपनी बात बता दी।

खूबसूरत वाक़िआ:-सादगी का असल मानी।

बादशाह ने उसे सत्तर गायों के बराबर कीमत दे दी और माफी मांगकर बुढ़िया को राज़ी किया ताकि क़यामत के दिन पुलसिरात पर उसका दामन न पकड़े।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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