हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि हदीस की सनद व दलील के साथ बयान फरमाते हैं कि एक औरत हज़रत गौसे आज़म अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में अपना एक लड़का ले कर हाज़िर हुई और अर्ज किया कि मेरे इस बच्चे को आप से दिली लगाव है इस लिए मैं उसके हक से आज़ाद हो कर उस को अल्लाह तआला की और फिर आपकी सुपुर्दगी में देती हूं।
हज़रत गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने उसकी अर्ज़ कुबूल फरमाली और उस बच्चे को बुजुर्गों के तरीके पर मुजाहदात और रियाज़तें (सख़्त इवादत) करने का हुक्म फरमाया, कुछ दिनों बाद उस की माँ अपने बच्चे से मिलने के लिए आई देखा कि उसका बच्चा बहुत कमज़ोर और ज़र्द (पीला) हो गया है।
और देखा कि जौ की रोटी का टुकड़ा खा रहा है फिर जब वह हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुई तो देखा कि आपके सामने बर्तन में पूरी मुर्गी की हड्डियाँ रखी हुई हैं जिसको आप खा चुके हैं। उस ने कहा ऐ मेरे सरदार ! आप खुद तो मुर्गी खाते हैं और मेरे बेटे को जौ की रोटी खिलाते हैं उस वक्त हज़रत ने उन हड्डियों पर अपना मुबारक हाथ रखा और-फरमाया “यानी उस अल्लाह के हुक्म से खड़ी हो जा जो कमज़ोर हड्डियों को जिन्दा फरमाएगा।”
आपके इस हुक्म पर फौरन वह मुर्गी ज़िन्दा हो कर खड़ी हो गई और चिल्लाई, फिर आपने उस औरत से मुखातब हो कर फरमाया। “यानी जब तेरा बेटा इस दर्जा को पहुंच जाएगा तो फिर जो जी चाहेगा खाएगा।” (बहजतुलअसरार स०ः 65)Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
इस वाकेए से हज़रत गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि अल्लाह तआला ने मुझे खाई हुई मुर्गी को दोबारा ज़िन्दा कर देने का इख़्तियार अता फरमाया है।
हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और बयान फरमाते हैं कई मुअतवर हज़रात का बयान है कि एक मरतबा हम लोग हज़रत गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास बैठे हुए थे कि आप की मज्लिस के ऊपर से एक चील चीखती चिल्लाती उड़ती हुई गुज़री, जिस से मज्लिस के लोगों को उलझन हुई आपने फ़रमाया। “यानी ऐ हवा इस चील का सर काट ले। यह कहते ही चील मुर्दा हो कर ज़मीन पर गिर पड़ी। एक तरफ उस का सर और दूसरी तरफ उस का धड़ गिरा। आपने कुर्सी से उतर कर उस को एक हाथ से उठा कर दूसरा हाथ उस पर फेरा और “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” पढ़ा और अल्लाह के हुक्म से ज़िन्दा हो कर उड़ गई और सब लोग देखते रहे।” (बहजतुलअसरार पृ०: 65)
इस वाकेए से मालूम हुआ कि हज़रत गौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का यह अकीदा था कि खुदा-ए-तआला ने उनको हवा पर हुकूमत बख़्शी है इसी लिए उन्हों ने हवा को हुक्म दे कर चील का सर कटवा दिया।
हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और ज़िक्र फरमाते हैं कि अबुल हसन अली विन अबू बक्र अबहरी ने हम से बयान किया कि मैंने काज़ीयुल कोज़ात (प्रधान काज़ी) अबू सालिह नस्र से सुना, उन्होंने कहा कि मैं ने अपने बाप अब्दुल रज्ज़ाक से सुना। वह कहते थे कि मेरे वालिदे गिरामी यानी हज़रत शैख मुहय्युद्ददीन अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु एक दिन जुमे की नमाज़ के लिए निकले। गौसे पाक और ग्यारहवीं शरीफ।
मैं और मेरे दो भाई अब्दुल वहाब और ईसा आपके साथ थे। रास्ते में हम को शराब के तीन मटके मिले जो बादशाह के थे और जिन की वू बहुत तेज़ थी। उनके साथ कोतवाल और कचहरी के कुछ दूसरे लोग थे। हज़रत ने उन लोगों से फरमाय कि ठहर जाओ। वह नहीं ठहरे। और जानवरों को चलाने में उन्होंने जल्दी की। तो हज़रत ने जानवरों से फरमाया। “ठहर जाओ तो वह ऐसे ठहर गए गोया कि वह जमादात हैं” यानी बेजान चीजें पत्थर और पहाड़ वगैरा की तरह अपनी जगह पर ठहर गए। वह लोग जानवरों को बहुतेरा मारते थे मगर वह अपनी जगह से नहीं हिलते थे। और उन लोगों को कौलन्ज यानी पसली का दर्द शुरू हो गया। और सख्त दर्द की वजह से सब के सब दाएं बाएं ज़मीन पर लोटने लगे। फिर वह लोग खुदा-ए-तआला को याद करने लगे और एलानिया तौबा व इस्तिग़फार करने लगे तो उनका दर्द जाता रहा। और शराब की वू सिर्को मे बदल गई। उन्हों ने बर्तनों को खोला तो देखा वह सब सिर्का हो गया था।Hazrat Gaus Pak ka Aqida.(बहजतुलअसरार पे०ः 41)
हज़रत गौसे आज़ाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा अच्छी तरह ज़ाहिर कर दिया कि चलते हुए जानवरों को सिर्फ ज़बान से हुक्म दे कर बेजान चीज़ों की तरह ठहरा देने, लोगें को दर्द कौलन्ज में मुबतला कर देने और बयक निगाह शराब को सिर्का बना देने की कुदरत अल्लाह तआला ने अता फरमाई।
हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और ज़िक्र फ्रमाते हैं कि अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन शैख अबुलअब्बास खिज़्र बिन अब्दुल्लाह बिन यहया मूसली ने मुझ से काहिरा में बयान किया कि। 623 हि0 में मुझ को मेरे बाप ने शहरे मूसल में ख़बर दी कि हम एक रात अपने शैख हज़रत मुहय्युद्दीन अब्दुल कादिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मदर्सा बगदाद में थे कि आप की खिदमत में बादशाह मुसतनजिद बिल्लाह अबुल मुज़फ़्फ़र यूसुफ हाज़िर हुआ।
उस ने आप से सलाम अर्ज़ किया और नसीहत तलब करते हुए आपके सामने दस थैलियां रख दीं जिन्हें दस गुलाम उठा कर लाए थे। आप ने फरमाया कि मुझे इनकी हाजत नहीं। और कुबूल करने से इनकार कर दिया। बादशाह ने बड़ी आजिज़ी की तो आपने एक थैली अपने हाथ में ली और दूसरी बाएं हाथ में। और दोनों को हाथ में दबाया तो वह खून हो कर वह गई।
आप ने फरमाया ऐ अबुल मुज़फ़्फ़र ! क्या तुम खुदा-ए-तआला से नहीं डरते कि लोगों का खून चूसते हो और मेरे सामने लाते हो। बादशाह बेहोश हो गया। आप ने फरमाया। “यानी अल्लाह की इज़्ज़त की कसम। अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से इस के रिशते का लिहाज़ न होता तो मैं खून को . ज़रूर छोड़ता कि वह उस के मकान तक बहता।”(बहजतुलअसरार पे०ः 61)
हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने हमें इख़्तियार की यह कुव्वत अता फरमाई है कि मैं चाँदी और सोने के सिक्के दिरहमो दीनार को खून बना कर उसे दूर तक बहा सकता हूँ।
हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि इरशाद फरमाते हैं कि मुझ से अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन शैख अबुल अब्बास ख़िज़्र बिन अब्दुल्लाह यहया मूसली ने बयान किया कि मुझे मेरे बाप ने खबर दी कि मैंने खलीफा मुसतनजिद बिल्लाह अबुल मुज़फ़्फ़र यूसुफ को हज़रत शैख सय्यिदिना अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में देखा उस ने अर्ज किया मैं आप की कोई करामत देखना चाहता हूँ ताकि मुझे तसल्ली हो जाए।
आपने फरमाया तुम क्या चाहते हो? उसने कहा में गैब से सेब चाहत हूँ और पूरे मुल्के इराक में वह ज़माना सेब का नहीं था।Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
हज़रत ने हवा में हाथ बढ़ाया तो दो सेब आपके हाथ में आ गए। तो एक सेब आप ने खलीफा को दिया। हज़रत ने अपने हाथ के सेब को काटा तो निहायत सफेद खुश्बूदार था, जिस से मुश्क की खुशबू आ रही थी और खलीफा मुसतनजिद ने अपने हाथ का सेब काटा तो उसमें कीड़े थे।
उस ने तअज्जुब से कहा यह क्या बात है कि आपके हाथ का सेब तो मैं बहुत अच्छा और उमदा देख रहा हूँ। आपने फ़रमाया ऐ अबुल मुज़फ़्फ़र ! यानी तुम्हारे सेब को जुल्म के हाथ लगे तो उस में कीड़े पड़ गए। (बहजतुलअसरार स०ः 61)
हज़रत गौस आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा ज़ाहिर फरमा दिया कि अल्लाह तआला ने मुझे वह कुदरत अता फरमाई है कि मैं जिस मौसम में भी चाहूँ बगैर ज़ाहिरी असबाब के सिर्फ हाथ बढ़ा कर सेब हासिल कर सकता हूँ।
हज़रत अल्लामा शतनौफी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और बयान फरमाते हैं कि 671 हि0 में अबु मुहम्मद रजब बिन अबू मन्सूर दारी और अबू ज़ैद अब्दुर्रहमान बिन सालिम करशी और अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन उवादा अन्सारी ने काहिरा में हम से बयान किया कि उन लोगों से बरगुज़ीदा शैख हज़रत अबुल हसन करशी रहमतुल्लाहि तआला अलैह. ने कासियून पहाड़ पर 618 हि० में बयान किया ।
कि मैं और हज़रत शैख अबुल हसन अली बिन हैती अलैहिर्रहमतु वर्रिज़वान 549 हि0 में हज़रत शैख मुहय्युद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में उन के मदर्से में मौजूद थे कि इज़ज के दर्वाज़ा में था मौजूद थे कि हज़रत के पास सौदागर अबू ग़ालिब फज़लुल्लाह बिन इसमाईल बगदादी अज़जी हाज़िर हुआ और अर्ज किया “ऐ हज़रत !
आप के मुहतरम व मुकर्रम नाना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि जिस शख़्स की दावत की तो उस को चाहिए कि वह उस को कुबूल करे और मैं आप को अपने मकान पर दावत की ज़हमत देने के लिए हाज़िर हुआ हूँ” आप ने फरमाया अगर मुझे इजाज़त मिली तो आऊंगा आपने कुछ देर मुराक़बा फरमाया और फरमाया कि अच्छा मैं आऊंगा। ज़कात।
मुकर्ररह वक़्त पर आप सवार हुए शैख हैती ने आपकी दाई रकाब पकड़ी और मैं ने बाई थामी इस तरह उस शख्स के मकान पर पहुंचे, वहाँ देखा तो बगदाद के बहुत से उलमा व मशाइख (बुजुर्ग) और बहुत से वज़ीर मौजूद हैं।
आप के पहुंचने के बाद दस्तरख़्वान लगाया गया और बहुत किस्म के खाने दस्तरख़्वान पर रखे गए उसके बाद दो शख़्स एक बहुत बड़ा टोकरा उठा कर लाए जिसका सर ढका हुआ था यह टोकरा दस्तरख़्वान के एक तरफ ला कर रख दिया गया। मेजबान ने शैख से अर्ज किया कि इजाज़त है, खाना शुरू किया जाए?
शैख ने कुछ नहीं फरमाया अपना सर झुकाए रहे। न खुद खाना शुरू किया और खाने की इजाज़त भी मरहमत नहीं फ़रमाई, चुनाँचे किसी ने भी खाना शुरू नहीं किया, अहले मज्लिस पर आप की हैबत इस तरह तारी थी गोया उनके सरों पर परिन्दे बैठे हैं।
यानी बेहिस व वे हरकत तमाम हाज़िरीने मजलिस बैठे हुए थे फिर आपने मुझे और शेख अली हैती को इशारा किया कि इस टोकरे को उठा कर यहाँ लाओ चुनाँचे वह टोकरा हमने उठा कर शैख के सामने रख दिया, टोकरा बहुत वज़नी था शैख ने हम को हुक्म दिया कि इस टोकरे को खोलो जब हमने उसको खोला तो उसमें उस अमीर का फरज़न्द था जो लुन्जा, मादरज़ाद (जनम से) अंधा और मफलूज (अपाहिज) था, जुज़ामी (कोढ़ी) भी था।Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
शैख ने उस को देख कर फरमाया “अल्लाह के हुक्म से तन्दुरूस्त हो कर खड़ा हो जा।” शैख के यह फरमाते ही वह लड़का तनदुरूस्त शख़्स की तरह खड़ा हो गया और कोई बीमारी उस में मौजूद नहीं थी। हाज़िरीने मज्लिस में एक जोश पैदा हुआ और नारे लगाने लगे। हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बगैर कुछ खाए पिए उस हुजूम में से उठ कर बाहर आऐ।
कुछ वक़्त के बाद हम शैख अबु सईद कैलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की खिदमत में गए और उनको यह किस्सा सुनाया उन्होंने फरमाया, “हाँ शैख अब्दुल कादिर अल्लाह तआला के हुक्म से मादरज़ाद अंधों और कोढ़ वालों को अच्छा करते और मुर्दों को जिलाते हैं।” (बहजतुलअसरार पृ०: 63)
हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि एक शख्स जो लुन्जा, मादरज़ाद अंधा, फालिजज़दा और जुज़ामी (कोढ़ी) हो उसे भी बयक ज़बान तन्दुरूस्त करने का खुदा-ए-तआला ने मुझे इख़्तियार अता फरमाया है।
हज़रत अबू सईद कैलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि (इन्तिकाल 557 हि0) के तआरूफ (परिचय) में हज़रत अल्लामा तादनी कुद्दिस सिर्रुहू बयान फरमाते हैं कि आप बड़े साहिबे हाल व करामत बुजुर्ग हुए हैं। आपका शुमार उन चार हस्तियों में होता है जिन की दुआएं हमेशा कुबूल हुई हैं। अगर किसी मरीज़ के लिए दुआ करते तो वह तन्दुरूस्त हो जाता।
आप मुअतबर फुक़हा व मुफ्तियाने शरीअत में से थे। आपकी सुहबत से अकाबिरे औलिया व उलमा फैज़याब हुए। एक मर्तबा आपने कैलबिया की बस्ती में एक चट्टान पर खड़े हो कर आज़ान पढ़ी तो वह फट कर पांच हिस्सों में तकसीम हो गई और ज़मीन भी हैबते तकबीर से फट गई और एक मर्तबा किसी मुरीद ने कज़ा-ए-हाजत के लिए आपके हाथ से लोटा लिया लेकिन वह इत्तिफाक से गिर कर टूट गया और जब आपने उस लोटे को हाथ लगाया तो वह सही व सालिम हो गया और उस में पहले की तरह पानी भरा हुआ था।(कलाइदुलजवाहिर पृ०ः 371)
ऐसे बुलन्दपाया बुजुर्ग का अकीदा भी तसर्रूफ के बारे में मालूम हो गया कि वह हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मुतअल्लिक फ़रमाते हैं कि शैख अब्दुल कादिर अल्लाह तआला के हुक्म से मादरज़ाद अंधों और कोढ़ वालों को अच्छा करते और मुर्दों को ज़िन्दा करते हैं।
और हज़रत अल्लामा अब्दुर्रहमान जामी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि बयान फरमाते हैं कि एक रोज़ अबुलमआली नामी दुर्वेश हज़रत गौसे आज़म शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मज्लिस में हाज़िर हुए। मज्लिस के दौरान उन को पाखाने की हाजत हुई जिस ने इस कद्र तेज़ी इख़्तियार करली कि यह अपनी जगह से जुम्बिश (हिल) नहीं कर सकते थे।Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
यह बिलकुल बे ताकत हो गए। उन्होंने शैख की तरफ मदद के तौर पर देखा। हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मिम्बर से एक ज़ीना नीचे उतर आए। उस वक्त पहले ज़ीने पर आदमी के सर की तरह एक सर ज़ाहिर हुआ। जब दूसरी सीढ़ी पर हज़रत उतरे तो उस सर के दूसरे आज़ा (अंग) कंधा और सीना ज़ाहिर हुए। इस तरह हज़रत ज़ीना व-ज़ीना उतरते थे और वह शक्ले इन्सानी मुकम्मल होती जाती थी।
यहाँ तक कि वह हज़रत की शक्ल में तब्दील हो गई और आवाज़ भी बिलकुल हज़रत जैसी शक्ल से आती थी। कलाम भी बिलकुल हज़रत के कलाम की तरह था। इस शक्ल को सिवाए उस हाजतमन्द के और कोई नहीं देख सकता था। उस वक्त हज़रत उस शख्स के करीब आकर खड़े हो गए और अपनी आस्तीन उस शख्स के सर पर डाल दी।
आस्तीन का पड़ना था कि अबुलमआली ने अपने को एक वीरान मैदान में पाया जहाँ एक नहर जारी थी और नहर के किनारे एक घना दरख़्त था अबुलमआली ने अपनी कुन्जियों का गुच्छा उस दरख़्त की शाख से लटका दिया और कज़ा-ए-हाजत (पेट खाली करने) में मशगूल हो गए। फरागत के बाद नहर से वुजू किया और दो रकअत नमाज़ अदा की। सलाम फेरने के बाद हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने वह आस्तीन उस के सर से उठाई तो उन्होंने अपने आपको फिर उसी मज्लिस में मौजूद पाया। पानी पीने की फज़िलत।
अबुलमआली के आज़ाए (अंग) वुजू अभी तक पानी से तर थे। और पाखाना की हाजत दूर हो चुकी थी और हज़रत इसी तरह मेम्बर पर नसीहत में मसरूफ थे गोया नीचे तशरीफ ही नहीं लाए थे। अबुलमआली भी खामोश बैठे रहे और किसी से कुछ न कहा लेकिन जब कुन्जियों का गुच्छा अपने पास मौजूद नहीं पाया तो सख़्त परेशान हुए।
एक मुद्दते दराज़ के बाद अबुलमआली को सफर करने का इत्तिफाक हुआ बगदाद शरीफ से चौदह दिन का रास्ता था। सफर के दौरान एक मैदान से गुजरे जहाँ नहर जारी थी। अबुलमआली वुजू करने के लिए नहर पर गए तो यह वही नहर थी जहाँ कज़ा-ए-हाजत (पेशाब-पाखाने) के बाद उस रोज़ वुजू किया था। वहाँ उन्होंने उस दरख़्त को भी पहचान लिया। उन की कुन्जियों का गुच्छा उसी तरह दरख़्त की शाख से लटका हुआ था।
अबुलमआली कहते हैं कि जब मैं बगदाद शरीफ वापस आया तो हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ख़िदमत में हाजिर हो कर यह किस्सा बयान किया। शैख ने मेरा कान पकड़ कर फरमाया ऐ अबुलमआली! जब तक हम ज़िन्दा हैं यह बात किसी से न कहना। (नफख्तुल उन्स पे०: 767)
हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा ज़ाहिर तौर पर साबित कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने मुझे तसरूफ व इख़्तियार की वह कुदरत अता फरमाई है कि जिन्हें सुन कर इन्सानी अक़्ल हैरान हो जाए।
और हज़रत अल्लामा मुहम्मद यहया तादनी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि बयान फरमाते हैं कि एक मर्तबा दरिया-ए-दजला में ऐसा सैलाब आया कि पानी बगदाद शरीफ की आबादी तक पहुंच गया और तमाम लोगों को अपने डूब जाने का यकीन हो गया तो वह लोग हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और दुआ के लिए दरख्वास्त की।
आप अपना असा-ए-मुबारक ले कर दरिया-ए-दजला पर पहुंच गए और असा को दरिया की अरल हद पर गाड़ कर फरमाया। “इसी जगह ठहर जाओ” चुनाँचे फौरन ही पानी घटना शुरू हुआ और अपनी अस्ली हद पर आ गया। (कलाइदुलजवाहिर पृ०: 92).
इस वाक़िए से हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपना यह अक़ीदा ज़ाहिर कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने दरिया के पानी पर भी हुकूमत अता फरमाई है।Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
हज़रत अल्लामा तादनी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि बयान फरमाते हैं कि हज़रत शैख अबू सालिह अब्बास बयान करते हैं। एक मरतबा हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मन्सूरा की जामा मस्जिद में तशरीफ लाए और वहाँ से अपने मदर्से की तरफ वापस हुए तो अपने चेहरे पर से रूमाल हटाया और एक विच्छू पेशानी पर से हाथ में पकड़ कर ज़मीन पर फेंक दिया और जब वह भागने लगा तो फरमाया कि “खुदा के हुक्म से मर जा” चुनाँचे उसी वक़्त वह मर गया। फिर आपने फरमाया कि इस ने जामा मस्जिद से ले कर यहाँ तक मुझे साठ मरतबा डंक मारा है। (कलाइदुलजवाहिर पे0: 111)
हज़रत अल्लामा तादनी रहमतुल्लाहि तआला अलैह और ज़िक्र फरमाते हैं कि शैख मुअम्मर जर्रादा बयान करते हैं किं एक मरतबा मैं हज़रत शैख अब्दुल कादिरं जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के मकान पर हाज़िर हुआ तो आप कुछ लिख रहे थे। अचानक छत में से तीन मरतवा मिट्टी गिरी और आपने उसको झाड़ दिया। लेकिन चौथी मरतबा ऐसा हुआ तो आपने नज़र उठा कर देखा तो वहां एक चूहा मिट्टी गिरा रहा था।
आपने फरमाया “तेरा सर उड़ जाए” यह कहते ही उसका जिस्म एक जानिव गिरा और सर दूसरी जानिव। यह देख कर हज़रत शैख लिखना छोड़ कर रोने लगे और जब मैं ने रोने का सबब पूछा तो फरमाया। “मुझे यह ख़तरा है कि कहीं मेरे दिल को तकलीफ पहुंचाने के सबब से किसी मुसलमान को इसी तरह की तकलीफ न पहुंच जाए जैसी की चूहे को पहुंची है।”
और शैख उमर बिन मसऊद बज़्ज़ाज़ बयान करते हैं कि एक दिन हज़रत शैख अब्दुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु मदर्से में वुजू फरमा रहे थे कि अचानक एक चिड़िया ने आप के कपड़ों पर बीट करदी और जब आपने ऊपर नज़र उठा कर देखा तो चिड़िया मुर्दा हो कर नीचे गिर पड़ी।(क्लाइदुलजवाहिर पे०: 128) हमारे नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुलिया मुबारक।
ऊपर ज़िक्र किए गए वाकिआत और अपने कलिमात से हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपना यह अकीदा साफ तौर पर ज़ाहिर कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने मुझे तसर्रूफ की वह कुव्वत अता फरमाई है कि जो मेरी ज़बान से निकल जाएगा या जो मैं दिल से चाहूँगा वही हो जाएगा।
हज़रत तादनी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि और फरमाते हैं कि हज़रत शैख अबुल हसन अली बिन मलाइदुलकवास (जिनकी सच्चाई मशहूरे ज़माना है।) फरमाते हैं कि मैं एक जमाअत के हमराह हज़रत शैख अबदुल कादिर जीलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की ज़ियारत के लिए हाज़िर हुआ।
उस जमाअत ने अपने हालात के मुताबिक दुआ कराने का इरादा किया। लेकिन हमारी इस बड़ी जमाअत में एक बेगैर दाढ़ी मूंछ का नई उमर का लड़का भी शामिल था जिसके बारे में हम सब लोगों को मालूम था कि उस की आदतें बहुत बुरी हैं। क्यों वह न तो पेशाब पाखाना करके इस्तिन्जा करता था और न गुस्ले जनाबत (नापाकी) करता था।
चुनाँचे लोगों ने अपनी हाजतें बयान करने के बाद हज़रत शैख से दुआ के लिए दरख्वास्त की। और जब मैं ने आगे बढ़ कर आप के हाथ को बोसा दिया तो पूरी जमाअत बोसा देने के लिए टूट पड़ी मगर जब वह नौ उम्र लड़का बढ़ा तो आपने अपना हाथ मुबारक खींच कर आस्तीन में छुपा लिया और उस लड़के पर ऐसी नज़र डाली कि वह बेहोश हो गया। जब उसे होश आया तो उसकी दाढ़ी और मूंछें निकल आई थीं। उसके बाद उस ने तौबा की और फिर आपने उस से मुसाफा किया।(बहजतुलअसरार पृ०ः 118)
हुजूर सय्यिदिना गौसे आज़म रजियल्लाहु तआला अन्हु ने इस वाक़िए से अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि खुदा-ए-तआला ने तसर्रूफ पर मुझे ऐसी कुदरत अता की है कि मैं बयक निगाह नौ उम्र लड़के को दाढ़ी मूंछ वाला बना सकता हूँ।
और आप खुद बयान फरमाते हैं कि “और यही फना की हालत है जो औलिया व अबदाल के हालतों की इन्तिहा है। फिर उनको तकवीन (यानी कुन (हो जा) कहना) अता किया जाता है तो फिर उनको जिस चीज़ की भी हाजत होती है वह सब कुछ अल्लाह तआला के हुक्म से हो जाता है। चुनाँचे हक सुबहानहू का इरशाद इसकी बाज़ किताबों में है कि ऐ औलादे आदम !Hazrat Gaus Pak ka Aqida.
मैं अल्लाह हूँ मेरे सिवा कोई माबूद नहीं है। मैं वह हूँ किं किसी चीज़ को कहता हूँ हो जा तो वह हो जाती है। तू भी मेरी इताअत कर मैं तुझे भी ऐसा करदूँगा कि तू भी किसी चीज़ को कहेगा कि हो जा तो वह हो जाएगी।” (फुतूहलगैब मअ बहजतुलअसरार पे०ः 109)
इसी इबारत से हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने तसर्रूफ इख़्तियार के बारे में अपना अकीदा खुद ही ज़ाहिरी लफ्ज़ों में बयान फरमा दिया कि खुदा-ए-तआला अपने फ़रमाँबरदार बन्दों को मरतब-ए-तकवीन (होजा) अता फरमा देता है कि वह किसी चीज़ को कहते हैं कि हो जा तो वह हो जाती है।
और हुज़ूर सय्यिदिना शैख अब्दुल कादिर जिलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कसीद-ए-गौसिया में खुद अपनी ज़बान मुबारक से इरशाद फरमाया है कि “मुझे अल्लाह तआला ने तमाम कुतुवों पर वाली व हाकिम बना दिया तो मेरा हुक्म हर हाल में जारी है तो अगर मैं अपनी मुहब्बत का भेद दरियाओं पर ज़ाहिर करदूँ तो उनका कुल पानी ज़मीन की तह में धंस जाए यानी सारे दरिया खुश्क हो जाएँ और अगर मैं अपनी मुहब्बत का राज़ पहाड़ों पर ज़ाहिर करदूँ तो वह रेज़ा रेज़ा हो कर रेत में छुप जाएँ। और अगर मैं अपनी मुहब्बत की हकीकत आग पर जाहिर कर दूँ तो वह बुझ जाए और अपनी रौशनी से महरूम हो जाएं। और अगर मैं अपनी मुहब्बत का राज़ किसी मुर्दो पर जाहिर करदूँ तो वह अल्लाह तआला की कुदरत से जिन्दा हो कर खड़ा हो जाए।
अल्लाह तआला के शहर मेरा मुल्क और मेरे हुक्म के तख़्त हैं और मेरा वक्त मेरी जान से पहले मेरे लिए साफ हो चुका है।”इन अशआर से भी हज़रत गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का अकीदा खुल्लम खुल्ला ज़ाहिर है।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…