18/05/2025
मुबाशिरत के औकात। 20250503 222026 0000

मुबाशिरत के औकात। Mubashirat ke aukat.

Spread the love
Mubashirat ke aukat.
Mubashirat ke aukat.

शरीअत ने जिमाअ के लिये कोई खास वक़्त मुकर्रर नहीं किया है। हाँ, बअज़ शरई अवारिज़ की मौजूदगी में जिमाअ करना मना है।

जैसेः रोज़ा, नमाज़, एहराम, एतिकाफ, हैज़ो निफास के वक़्त, इनके अलावा दिनो रात के हर हिस्से में सोहबत करना जाइज़ है लेकिन बुजुरगाने दीन या हकीमों ने कुछ ऐसे औकात बताए हैं जिनमें सोहबत करना सेहत के लिये फायदेमन्द होने के साथ सवाब का काम भी है।

जुमा या शबे जुमा को मुबाशिरत मुस्तहब है। शब में ज़्यादा फज़ीलत है। हदीस शरीफ में है कि जुमे की शब में जिमाअ करने वाले को दो सवाब मिलते हैं। एक अपने गुस्ल और दूसरे अपनी औरत के गुस्ल का। (तफ्सीरे नईमी पारा 2, पेज 431 अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 52)

जिमाअ के लिये सबसे बेहतर वक़्त रात का आखिरी हिस्सा है, क्योंकि रात के पहले हिस्से में मेअदा ग़िज़ा से पुर होता है और भरे पेट में मुबाशिरत करना सेहत के लिये नुक्सानदह है।

जबकि रात के आखिरी हिस्से में सोहबत करना सेहत के लिये फायदेमन्द है। वजह यह है कि रात के आखिरी हिस्से तक खाना अच्छी तरह हज़्म हो जाता है और दिन भर की थकावट नींद से दूर भी हो जाती है। (बुस्तान पेज 138)

दोपहर को कैलूला के बाद या शब को इशा की नमाज़ के बाद कुछ देर सोकर हमबिस्तरी करना बेहतर है।

उन वक़्तों का बयान जिनमें मुबाशिरत करना मना है :-

अगर किसी शख़्स को एहतिलाम हुआ हो तो बगैर हाथ मुंह और शर्मगाह धोए जिमाअ न करे, वरना होने वाले बच्चे पर बीमारी का अन्देशा है। हो सकता है कि बच्चा दीवाना और बेकार पैदा हो।जिमाअ करने का तरीक़ा। Jima karne ka Tarika.

तबीबों (हकीमों) की तहकीक के मुताबिक (कुव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489 बुस्तानुल आरिफीन पेज 137)

(1) पेट भरा होने की हालत में मुबाशिरत नहीं करना चाहिये कि इससे औलाद कुन्द ज़ेहन पैदा होगी।

(2) ज़्यादा बूढ़ी औरत से भी जिमाअ नहीं करना चाहिये कि इससे बदन कमज़ोर और आदमी जल्द बूढ़ा हो जाता है।

(3) खड़े होकर जिमाअ करने से बदन कमज़ोरो ज़ईफ हो जाता है।

(4) थोड़ी-थोड़ी देर बाद जिमाअ करना सेहत के लिये नुक्सानदह है। बल्कि दो मर्तबा की हमबिस्तरी में इतना वक़्का (ठहरना) होना चाहिये कि जिससे बदन हल्का मालूम हो और तबीअत में अच्छी तरह ख्वाहिश पैदा हो।

(5) पेट भरा होने की हालत में अगर मुबाशिरत की जाय तो सुरते इन्ज़ाल का मर्ज लाहिक हो जाता है, मेअदा कमज़ोर और हाज़्मे की कुव्वत भी कमज़ोर हो जाती है।

(6) सफर में जाने के इरादे के वक़्त हमबिस्तरी नहीं करनी चाहिये कि इससे इरादा कमज़ोर हो जाता है।

(7) बुखार, नज़्ला, जुकाम, खांसी और दूसरी तक्लीफों की मौजूदगी में जिमाअ नहीं करना चाहिये।

(8) सफर से आने के फौरन बाद जिमाअ नहीं करना चाहिये, जब तक कि सफर की थकावट, रंजो फिक्र दूर न हो जाय।

(9) नशे की हालत में जिमाअ नहीं करना चाहिये, वरना इससे बीवी को नफ़रत हो जायगी और औलाद भी लंगड़ी, लूली पैदा होगी।

(10) एक बार सोहबत करने के बाद अगर उसी रात में दोबारा सोहबत करने का इरादा हो तो दोनों को चाहिये कि वुजू कर लें, अगर वुजू न कर सकें तो अपनी-अपनी शर्मगाह को धोलें। ऐन नमाज़ के वक़्त सोहबत नहीं करनी चाहिये। बुजुर्गाने दीन फरमाते हैं “अगर इन वक़्तों में हमबिस्तरी करने से हम्ल ठहर जाय तो औलाद नाफरमान पैदा होगी।” (बुस्तानुल आरिफीन पेज137-139) (इशरतुल प्रश्शाक पेज 46, अहयाउल उलूम जिल्द 2, पेज 52)

उन रातों का बयान जिनमे मुबाशिरत करना मना है :-

हर महीने की पहली रात और चाँद की पन्द्रहवीं रात और महीने की आखिरी रात में जिमाअ न किया जाए कि इन रातों में शैतान जिमाअ के वक़्त हाज़िर होते हैं और कुछ यह कहते हैं कि इन रातों में शैतान जिमाअ करते हैं।(कीमिया ए सआदत पेज 266 कुव्वतुल कुलूब जिल्द 2 पेज 489)

हफ़्ता और इतवार, मंगल और बुध की दरमियानी शब में हमबिस्तरी करने से बचना चाहिये कि इन रातों में हमबिस्तरी करने से अगर हम्ल ठहर जाए तो बच्चा बेहया, बदनसीव और मुफ़्लिसो हरीस पैदा होने के इमकानात हैं। (सुन्नी बहिश्ती जेवर पेज 449)

इनाम गजाली फरमाते हैं : रात के पहले हिस्से में सोहबत करना मकरूह है कि सोहबत के बाद पूरी रात नापाकी की हालत में सोना पड़ेगा।”(अहवाउल उलूम जिल्द 2 पेज 52)

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *