जिन बुजुर्गों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुलिया मुबारक बयान किया उन्होंने हुजूर-ए-अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सिफत की सिर्फ एक झलक का एदराक किया है और हकीकत वस्फ पेश कर सके है न हकीकत वस्फ को।
क्योंकि हकीकत वस्फे हुजूर को खालिक के सिवा किसी ने नहीं पहचाना। चुनान्दे इमाम कर्तबी अपनी किताब “अस्सलात में कये आरिफ का क्या ही अच्छा कौल नकल फरमाया है। कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम का कामिल हुस्न हमारे लिए ज़ाहिर न हुआ। क्योंकि अगर ज़ाहिर हो जाता तो हमारी आँखें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार की ताब न ला सकतीं।
आजाए शरीफ में तवस्सुत व एअतदाल जो हुस्न व जमाल का मदार और फज्ल व कमाल का मबना है बतौर कुल्लिया हर जगह मलहूज़ है।
रूये मुबारक
जो जमाले इलाहिया का आइना और अनवारे तजल्ली का मज़हर था। पुर गोश्त और किसी कद्र गोल था।
आँखें मुबारक
बड़ी और कुदरते इलाही से सुरमगीं और पलकें दराज थीं। आँखों की सफेदी में बारीक सुर्ख डोरे थे।
अबरूए मुबारक
दराज और बारीक थीं और दरम्यान में दोनों इस कदर मुत्तसिल थीं कि दूर से मिली मालूम होती थीं। इन दोनों के दरम्यान एक रग थी जो गुस्सा के वक्त हरकत में आजाती और खून से भर जाती।Hamaare Nabee-e-Paak ka Huliya Mubaarak.
बीनीए अक़दस
आपकी नाक मुबारक खूबसूरत और दराज़ थी और दरम्यान में उभराव नुमायाँ था। पेशानी कुशादा और चराग की मानिन्द चमकती थी।
गोश मुबारक
हर गोश मुबारक कामिल व ताम थे। कूव्वते बसीर की तरह कूव्वते सेमाअ भी आपको बतरीके खर्क आदत गायत दरजा की अता की थी। आसमान के दरवाजे के खुलने की आवाज़ को भी सुन लेते थे। हमारे नबी (स.व)का निकाह।
दहान मुबारक
फाख रूख़्सार मुबारक हमवार दन्दानहाए पतीसीं से कुशादह और रोशन व ताबाँ। जब आप कलाम फरमाते दन्दानहाए पतीसीं से नूर निकलता दिखाई देता। जब आप ज़ेहक फरमाते तो दर व दीवार रौशन हो जाते। आपको कभी जमाई न आयी।
लोआब-ए-दहन
जख्मी और बीमारों के लिए शिफा था।
ज़बाने मुबारक
आप अफ्सहुल खल्क थे। और फसाहत में खरिक आदत हद तक पहुँचे हुए थे। आप के जवामेउल कलिम बदाए हुक्म अमसाले सायरा व मकातीब व मवाइज़ मशहूर आफाक मे कलाम शीरीं हक व बातिल में फर्क करने वाला न हद से कम न हद से ज्यादा गोया आप के कलाम लड़ी के मोती हैं जो गिर रहे हैं।
आवाज़ मुबारक
तमाम अम्बियाए किराम खूबरू और खुश आवाज़ थे मगर आँहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम उन सब से ज्यादा खूबरू और खुश आवाज़ थे।Hamaare Nabee-e-Paak ka Huliya Mubaarak.
खन्दा व गिरयह मुबारक
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अमूमन तबस्सुम फरमाया करते थे। शाज व नादिर ज़ेहक की हद तक पहुँचे और कहकहा कभी न मारते। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गिरयए शरीफ में आवाज़ बलन्द न होती मगर आँसू मुबारक आँखों से गिर पड़ते थे।
सिर मुबारक
बड़ा था। यह वही सर मुबारक है जिसपर कब्ल बअस्त बतरीके अरहास गरमा में बादल साया किये रहता था।
गरदन मुबारक
चाँद की मानिन्द साफ।
दस्त मुबारक
कफ दस्त व बाजू मुबारक पुर गोश्त थे हज़रत अनस रजिअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने किसी रेशम या देबा को आपके कफे मुबारक से ज़्यादा नरम न पाया। जिस शख्स से आप मुसाफह फरमाते वह दिन भर अपने हाथ में खुशबू पाता। और जिस बच्चे के सर पर आप हाथ फेर देते वह खुशबू में और बच्चों से मुमताज़ हो जाता।
सीना मुबारक
कुशादह था और कल्ब शरीफ पहला जिस्मे असरारे इलाहिया व मआरिफे रब्बानिया वदीअत रखे गयें।
शिकम मुबारक
सवाउल बतन वस्सदर थे आपका शिकम व सीना मुबारक हमवार व बराबर थे। न शिकम सीना से न सीना शिकम से बुलन्द था। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बोल बराज पाक थे। नीज तमाम फुजलात भी।Hamaare Nabee-e-Paak ka Huliya Mubaarak.
पुश्त मुबारक
साफ व सफेद थे। कि गोया पिघलाई हुयी चाँदी है। हर दोशाना के दरम्यान एक नूरानी गोश्त का टुकड़ा था जो बदन शरीफ के बाकी अजज़ा से उभरा हुआ था। उसे मोहरे नबूवत या खातिमे नबूवत कहते हैं। हज़रते जुवैरिया(र.अ)का निकाह।
हर दो पायए अकदस
पुर गोश्त और ऐसे कि किसी इन्सान के न थे। और नरम साफ ऐसे कि उन पर पानी जरा भी न ठहरता। बल्कि फौरन गिर जाता।
एड़ियाँ
कम गोश्त हर दोसाक मुबारक बारीक सफेद व लतीफ गोया खजूर का गाफा हैं। जब आप चलते तो कदम मुबारक को कूवत और वकार व तवाज़ोह से उठाते। जैसा कि अहले हिम्मत व शुजाअत का कायदा है।
कद मुबारक
न बहुत दराज थे न कोताह कद, बल्कि म्याना कद। माइल बदराज़ी थे। मगर जब लोगों के साथ होते तो सब से बलन्द व सर्फराज़ होते। आपकी कामते ज़ेबा का साया न था।
रंग मुबारक
रंग मुबारक गोरा रोशन व ताबां मगर उसमे किसी कदर सुर्खी मिली हुयी।
जिल्द मुबारक
आपकी जिल्द मुबारक नरम थी। एक वस्फ हुजूर में यह था कि खुशबू लगाये बगैर आप से ऐसी खुशबू आती थी कि कोई खुशबू उसको पहुँच न सकती थी।Hamaare Nabee-e-Paak ka Huliya Mubaarak.
मूये मुबारक
न तो बहुत घुंघराले थे न बिल्कुल सीधे बल्कि बैन बैन थे। इन बालों की दराज़ी में मुख्तलिफ रवायात आयी हैं। कानों तक कानों के निस्फ तक कानों के लौ तक शाने मुबारक के नज़दीक तक इन सब रवायतों में ततबीक् यूं है कि उनको मुख्तलिफ् औकात व उसूल पर महमूल किया जाये। यानी जब आप कटवा देते तो कान तक रह जाते।
फिर बढ़कर निस्फ गोश या नरमए गोश, या शाना तक पहुँच जाते। दाढ़ी मुबारक घनी थी उसमें कंधी करते. आइना देखते सोने से पहले आँख में तीन तीन बार सुर्मा डालते। मूँछ मुबारक को कटवाया करते। उम्र शरीफ के अखीर में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रेश मुबारक और सर मुबारक में तकरीबन बीस बाल सफेद थे। गले और नाक के दरम्यान बालों का एक बारीक ख़त था। दीने इस्लाम की कुछ खास नसीहत ।
लिबास
सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम का आम लिबास चादर कमीज़ और तहबन्द था। यमनी चादरें बेहद पसन्द फरमाते थे। बाज़ अवकात ऊनी जुब्बा शामिया इस्तेमाल फरमाया जिसकी आसतीन इस कदर तंग थी कि वजू के वक्त हाथ आस्तीनों से निकालने पड़ते थे। सफेद लिबास पसन्द फरमाया और सुर्ख लिबास ना पसन्द फरमाते थे।
अमामा
अमामा का शिमला छोड़ा करते और कभी न छोड़ते। अमामा अकसर सियाहं रंग का होता था। नालैन शरीफ चप्पल की शक्ल की थी।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…