हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की दो बीवियाँ थीं। पहली बीबी का नाम सारा और दूसरी बीबी का नाम हाजरा था। सरज़मीने शाम में हज़रत हाजरा के बतन (पेट) पाक से हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम पैदा हुए।
हज़रत सारा के कोई औलाद न थी इस वजह से उन्हें रश्क पैदा हुआ और उन्होंने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से कहा कि आप हाजरा और उनके बेटे को मेरे पास से जुदा कर दीजिए।
हिकमते इलाही ने यह एक वजह पैदा किया था चुनाँचे वही आई कि हज़रत सारा के कहने के मुताबिक आप हाजरा और उनके बेटे इस्माईल को उस सरज़मीन में ले जाएं जहाँ अब मक्का मुकर्रमा आबाद है।Zam Zam ke pani ka Itihaas.
वही के मुताबिक हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम हाजरा और उनके बेटे को बुराक पर सवार करके शाम से सर ज़मीने हराम में ले आए और काबा मुकद्दसा के नज़दीक उतारा।
यहाँ उस वक़्त न कोई आबादी थी। न कोई चश्मा (जहां से पानी निकलता हो) न कोई पानी । काबा मुकद्दसा भी तूफाने नूह के वक़्त आसमान पर उठा लिया गया था। गोया उस वक्त वह जगह बिल्कुल वीरान खुश्क (सूखी ) और गैर आबाद थी।
खाने पीने का पानी दूर दूर तक निशान न था। ऐसे भयानक मुकाम पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हाजरा व इस्माईल को एक तोशा दान में कुछ खुजूरें और एक बर्तन पानी उनको देकर उतारा और आप वहाँ से वापस हुए और मुड़ कर उनकी तरफ न देखा।Zam Zam ke pani ka Itihaas.
हज़रत हाजरा ने यह सूरते हाल देखकर अर्ज़ किया कि आप हमें इस वीरान वादी में तन्हा छोड़ कर कहाँ जाते हैं। आपने कुछ जवाब न दिया। हज़रत हाजरा ने फिर पूछा कि क्या अल्लाह ने आपको इसका हुक्म दिया है? आपने फरमाया हाँ। उस वक्त आपको इत्मीनान हुआ हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम चले गए।
हज़रत हाजरा अपने फरज़न्द (बेटा) इस्माईल को दूध पिलाने लगी। जब वह पानी खत्म हो गया और प्यास की शिद्दत गालिब हुई और साहबजादे शरीफ का हलक भी खुश्क हो गया तो आप पानी की तलाश में सफा मरवा की पहाड़ियों के दरम्यान सात मरतवा इधर उधर दौड़ीं।
यहाँ तक कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के कदमे मुबारक मारने से इस खुश्क ज़मीन से पानी निकल आया जो आज तक ज़मज़म के नाम से मशहूर है। इत्तेफाकन वहाँ से एक कवीला जुरहुम का गुज़र हुआ। उन्हों ने दूर से एक से परिन्दा देखा। वह हैरान हुए कि इस खुश्क वादी में परिन्दा कैसा?
शायद कहीं पानी का चश्मा नमूदार हुआ है चुनांचे वह इस तरफ आए तो देखा एक पानी का चश्मा जारी है और एक नूरानी शक्ल की औरत अपनी गोद में बच्चा लिए तन्हा बैठी है। यह मंजर देखकर वह हैरान रह गए ।Zam Zam ke pani ka Itihaas.
यह देख सुनकर कबीला वालों ने हज़रत हाजरा से वहाँ बसने की इजाज़त चाही। आपने इजाज़त दे दी। वह लोग वहाँ बसे और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जवान हुए तो उन लोगों ने आपके सलाह व तक्वा को देखकर अपने खानदान में उनकी शादी कर दी। यही वह जगह है जहाँ अब काबा शरीफ और मक्का मुकर्रमा का शहर है और अतराफे आलम से लोग खचे खचे वहाँ हाज़िर होते हैं।
खुदा तआला के हर काम में हिकमत छुपी होती है। हज़रत हाजरा के यहाँ फरज़न्द (बेटा) पैदा फरमा कर हज़रत सारा के ज़रिआ मां-बेटे को एक ऐसी जगह पहुँचाया जहाँ खाने पीने का कोई सामान न था और फिर उनकी बरकत से उस वीरान जगह को मरकज़े आलम बना दिया,
मालूम हुआ कि अल्लाह के मकबूल बन्दे किसी वीरान जगह भी तशरीफ़ फरमा हो जाएं तो वह जगह आबाद हो जाती है और लोग हज़ारों तकलीफ भी बर्दाश्त करके वहाँ पहुँचने लग जाते हैं।
चुनांचे मक्का मुकर्रमा का मुकद्दस शहर हज़रत हाजरा और उनके साहबजादे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के कदमाने मुबारक की बरकत से आबाद हुआ ,और यह भी मालूम हुआ कि हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम के कदम बचपन के आलम में भी ऐसे बाबरकत थे कि उन की बदौलत जो चश्मा जारी हुआ। आज तक वह खुश्क नहीं हुआ और करोड़ों अरबों खरबों लोगों की प्यास बुझा चुका है।Zam Zam ke pani ka Itihaas.
बुझा रहा है और बुझाता रहेगा। हमारे खुदे हुए कुएँ दिन रात मुसलसल इस्तेमाल होने पर खुश्क हो जाते हैं मगर एक नबी के कदमे मुबारक की बरकत देखिए कि यह चश्मा हज़ारों साल से बदस्तूर जारी है। अब भी हर साल लाखों की तादाद में हुज्जाज वहाँ पहुँचते हैं। उसी ज़मज़म के कुएं से नहाते भी हैं। वज़ू भी करते हैं। कफन भी भिगो कर लाते हैं और फिर डरमों में भर भर कर उसका पानी अपने वतन में भी लाते हैं।
यह कुआं चौबीस घन्टे दिन रात चलता रहता है ट्यूब वेल से और डोलों से हर वक्त उससे पानी निकाला जाता रहता है। लेकिन अल्लाह रे बरकते कदमे नबी कि आज तक इस कुएं से पानी ख़त्म नहीं हुआ और न होगा और क्यामत तक ऐसा ही रहेगा यह कदमे नबी ही का सदका है कि दुनिया भर की ज़मीन के सारे पानियों से ज़मज़म का पानी अफजल है।
सिर्फ एक पानी ज़मज़म के पानी से भी अफ़्ज़ल है और वह पानी है जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उंगलियों से जारी हुआ था।
यह भी मालूम हुआ है कि आज भी जो हाजी सफा मरवा की पहाड़ियों के दरम्यान सात चक्कर लगाते हैं। यह हज़रत हाजरा की सुन्नत पर अमल और उनकी नकल करना है।
इसी तरह हज के दौरान में काबा शरीफ़ का तवाफ और हजरे असवद को चूमना हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अदा-ए-मुबारक की नकल है। मिना में शैतानों को पत्थर मारने हज़रत इब्राहीम व इस्माईल अलैहिस्सलाम की नकल है।
गोया सारा हज ही अल्लाह के मक्बूलों की अदाओं की नकल करना है। मालूम हुआ कि अल्लाह के मक्बूलों की नकल करना ही अल्लाह की इबादत है। बाज़ लोग जो गैरुल्लाह! गैरुल्लाह की रट लगाए फिरते हैं वह बताएं कि यह क्या बात हैं?
कि हज में नकल हो अल्लाह के मक्बूलों की और इबादत हो अल्लाह की देखिए यह पाँच नमाजें जो हम पर फर्ज है यह भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अदाहा-ए-मुबारक की नकल है वरना अगर नमाज की रकात और रुकू व सुजूद ही असल मक्सूद होते तो कोई शख्स फज्र की दो रकात के बजाए चार रकात और मग्रिब की तीन रकात की बजाए छे: रकात पढ़ता तो खुदा को खुश होना चाहिए थाZam Zam ke pani ka Itihaas.
कि उसने मेरे लिए रकात और रुकू व सुजूद ज्यादा कर दिए मगर नहीं ऐसे शख्स पर खुदा खुश नहीं होगा बल्कि उसकी नमाज़ ही अदा न होगी इसलिए कि उसने अल्लाह के महबूब की सही नकल नहीं उतारी अल्लाह के महबूब नफ्ल की दो रकात पढ़ी हैं
तो खुदा को भी दो ही रकात मंजूर हैं। हुजूर ने मग्रिब की तीन रकात पढ़ी हैं तो ख़ुदा को भी तीन ही रकात महबूब है इसलिए कि अल्लाह रकात को नहीं देखता बल्कि अपने महबूब की अदाओं को देखता है। इसी वासते हुज़ूर ने भी फरमा दिया कि नमाज़ ऐसी पढ़ो जैसे मुझे पढ़ते हुए देखते हो।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…