
हज के अरकान :-
हज के चार अरकान है।
(1) एहराम
(2) वकूफे अरफात
(3) तवाफे ज़ियारत
(4) सई (बैन सफा व मरवा) अगर किसी ने इन अरकान में से किसी एक रूक्न को तर्क कर दिया तो उसका हज न होगा और न किसी किस्म की कुरबानी देने से उसकी तलाफी होगी और उसी साल या अगले साल दोबारा एहराम बांध कर हज करना वाजिब हो जाता है।
वाजिबाते हज :-
हज के वाजिबात पांच हैं
(1) मुज़दलफा में निस्फ शब तक ठहरना
(2) एक रात मिना में क़याम करना
(3) संगरेजे फेंकना
(4) सर मुंडना
(5) तवाफे विदाअ, अगर इन में से कोई वाजिब छूट जाए, तो इस के एवज़ बकरी ज़िबह करे इससे तरके वाजिब की तलाफी उसी तरह हो जाएगी जिस तरह नमाज़ में तरके वाजिब पर सजदए सहू से तलाफी हो जाती है
हज की सुन्नतें :-
हज में सुन्नते पन्द्रह हैं
(1) एहराम बांढने के लिए, मक्का में दाखिल होने के लिए, अरफात में कयाम करने के लिए, तवाफे जियारत और तवाफे विदाअ के लिए गुस्ल करना।
(2) तवाफे कुदूम
(3) सफा और मरवा के दर्मियान दौड़ना
(4) तवाफ में अकड़ कर चलना
(5) तवाफ और सई के वक्त चादर का इसतबाअ करना
(6) दोनों रूक्नों को हाथ से छूना
(7) संगे असवद को चूमना
(8) सफा और मरवा पर चढ़ना
(9) मिना में तीन रातें गुज़ारना
(10) मशअरे हराम के पास खड़ा होना
(11) तीनों जमरों के पास खड़ा होना
(12) खुत्तबात के वक़्त ठहरना और खड़ा होना
(13) दौड़ने के मकामात पर दौड़ना
(14) आहिस्ता चलनें के मकाम पर आहिस्ता चलना
(15) तवाफ के बाद दो रिकअतें पढ़ना अगर यह तमाम अफ्आल या इनमें से कोई एक सुन्नत तर्क हो गई तो इसका एवज (कुरबानी) लाज़िम नहीं आता, फजीलत तर्क हो जाएगी।
उमरा के अरकान :-
उमरा के अरकान तीन हैं।
(1) एहराम बांधना।
(2) खाना काबा का तवाफ करना।
(3) सफा और मरवा के दर्मियान सई करना।
उमरा के वाजिबात :- उमरा में सिर्फ एक वाजिब है यानी सर मुंडवाना।
उमरा की सुन्नतें :-
उमरा की सुन्नतें यह हैं, एहराम के वक्त गुस्ल करना, तवाफ और सई में मशरूआ दुआओं और अज़कार का पढ़ना सुन्नतों के तर्क पर वही हुक्म है जो हज में तर्क सुन्नत के बारे में आया है।
मदीना (मुनव्वरा) की ज़ियारत :-
जब अल्लाह तआला के फज़्ल व करम से तन्दुरुस्ती और आफियत के साथ मदीना मुनव्वरा की हाज़िरी नसीब हो तो मुस्तहब है कि मस्जिदे नबवी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम में यह दरूद पढ़ता हुआ दाखिल हो।
तर्जुमा :- इलाही, हमारे आका मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और हमारे आका की आल पर रहमतें नाज़िल फरमा और मेरे लिए अपने रहमत के दरवाजे खोल दे और अपने अज़ाब के दरवाज़े बंद कर दे, तमाम तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं जो जहानों का पालने वाला है।
फिर रौज़ए मुबारक पर हाज़िर हो मिम्बर शरीफ के करीब इस तरह खड़ा हो कि मिम्बर (शरीफ) बायें हाथ पर हो, मज़ारे मुबारक सामने हो और किब्ला वाली दीवार पुश्त के पीछे, इस तरह जियारत शरीफ जायेर और किब्ला के दर्मियान हो जाएगी फिर इस तरह अर्ज़ करे, हज के मसाइल।
तर्जमा :- ऐ अल्लाह के नबी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत और बरकत इलाही हजरत मोहम्मद और आले मोहम्मद पर रहमत नाजिल फरमा, जिस तरह तूने इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर रहमत नाज़िल फरमाई हक़ीक़त यह है कि तू ही हम्द और बुजुर्गी वाला है इलाही हमारे आका और सरदार मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को हमारे लिए वसीला बना और दुनिया और आख़िरत में उनको बलंद दर्जा और बुजुर्गी अता फ़रमा उन्हें मकामे महमूद इनायत कर जिस का तूने वादा किया है, ऐ अल्लाह (आलम) अरवाह में मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की रूह पर (आलम) अजसाम में आप के जिस्मे अतहर पर ऐसी ही रहमत नाजिल फरमा जैसा उन्होंने तेरा पैग़ाम पहुंचाया और तेरी आयात की तिलावत की और तेरे हुक्म का बलंद आहंगी से ऐलान किया, तेरी राह में जिहाद किया, तेरी फ़रमा बरदारी का हुक्म दिया और नाफरमानी से रोका, तेरे दुशमन से दुशमनी और तेरे दोस्त से दोस्ती फरमाई, वफात के वक़्त तक तेरी इबादत की बेशक इलाही!
तूने अपने पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से फरमाया कि अगर लोग अपनी जानों पर भी जुल्म करके तेरे पास आयें और अल्लाह से बख़्शिश चाहें और रसूल उनके लिए बख़्शिश की दरख्वास्त करें तो वह अल्लाह को बख्शने वाला और मेहरबान पायेंगें और इसमें कोई शुबा नहीं कि मैं तेरे पैग़म्बर के पास अपने गुनाहों से तौबा करता हुआ माफी का तलबगार होकर हाज़िर हुआ हूं और तुझ से दरख्वास्त करता हूं कि तू मेरे लिए मग्फिरत को उसी तरह वाजिब कर दे जिस तरह तूने उन लोगों के लिए वाजिब कर दी थी जो तेरे नबी की हयात में जो उनकी खिदमत में हाज़िर हो कर माफी के तलबगार हुए और नबी ने भी उनके लिए मगफिरत तलब फरमाई इलाही मैं तेरे नबी के वसीले से जो नबीए रहमत थे तेरी तरफ रूजूअ करता हूं,
या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मैं आप के वसीले से अपने रब की तरफ रूजूअ करता हूं कि वह मेरे गुनाह माफ फरमा दे और मुझ पर रहम फरमा, इलाही मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को शफाअत करने वालों में सबसे अव्वल दर्जा वाला और सब दुआ करने वालों से ज्यादा कामयाब अव्वलीन व आखिरीन में सबसे ज्यादा इज़्ज़त वाला बना इलाही जिस तरह हम बगैर देखे उन पर इमान लाए और बगैर मिले हमने उनकी तसदीक कर दी तू सभी को उस जगह दाखिल करना जहां तुने उनको दाखिल फरमाया और हमारा हश्र उन्हीं के गरोह में फरमा और हम को उनके हौज पर उतार और उनके प्याले से हम को ऐसा पानी हम को पिला कर सैराब कर जो प्यास को दूर करने वाला,
लज़ीज़ और खुशगवार हो जिस के बाद हम कभी प्यासे न हों, और हम को रूसवा अहद शिकन, इताअत से ख़ारिज, और दीन की सदाकत में शक करने वाला न बना हम को उनमें से न बना जिन पर तेरा गज़ब हुआ न हम को गुम करदा राह बना और हम को अपने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफाअत के मुस्तहकीन में से कर दे।
यह दुआ पढ़ कर दायें तरफ से होकर आगे बढ़े और यह दुआ पढ़े।
ऐ अल्लाह के रसूल के दोनों दोस्तों आप पर सलाम हो, अल्लाह की रहमत और बरकत हो ऐ हज़रत अबू बकर सिद्दीक रजियल्लाहु अन्हु आप पर सलाम हो ऐ हज़रत उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह तू इन दोनों हजरात को इनके नबी और दीने इस्लाम की तरफ से नेकी और जजा दे मैं और हमारे भाईयों को जो हमसे कब्ल ईमान के साथ इस दुनिया से रूख़सत हो गये उन्हें बख़्श दे और हमारे दिलों में ईमान लाने वालों के हक़ में कीना न डाल, ऐ हमारे पालने वाले बेशक तू बख़्शने वाला और रहम करने वाला है।
इस के बाद दो रिकअतें पढ़ कर बैठ जाये, रौज़ए मुतहहरा के अंदर ही मज़ारे अक्दस और मिम्बर शरीफ के दर्मीयान अगर नमाज अदा करे तो मुस्तहब है हुसूले बरकत के लिए मिम्बर शरीफ को छू ले।
मस्जिदे कुबा में भी नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है अगर शोहदा के मज़ारात की जियारत का ख्वास्तगार हो तो जियारत कर सकता है, खूब दुआयें मांगे जब मदीना मुनव्वरा से रूख़सत होने का इरादा करे तो मस्जिदे नब्वी में हाजिरी दे, रौज़ए मुबारक की तरफ बढ़ कर उसी तरह सलाम पेश करे जिस तरह पहले पेश किया था, सलात व सलाम के बाद इजाज़त तलब करे, दोनों सहाबा पर सलाम पेश करे और फिर यह दुआ पढ़े।
इलाही अपने नबी के मज़ार की इस ज़ियारत को मेरे लिए आख़िरी ज़ियारत न बना देना और मरते वक़्त मुझे आप की मोहब्बत और सुन्नत पर काइम रखना, आमीन या अर्रहमर्राहमीन
उमरा की सूरत :-
उमरा की सूरत यह है कि गुस्ल करके खुशबू लगाये और शरई मीकात से एहराम बांधे, फिर मक्का पहुंच कर बैतुल्लाह शरीफ का सात मर्तबा तवाफ करे और सफा मरवा के दर्मियान सई करे, सई के बाद सर मुंडवाए या बाल छोटे करवाए अगर कुरबानी का जानवर साथ न लाया हो तो एहराम खोल दे। अगर उमरा करने वाला मक्का मुकर्रमा में मौजूद हो तो मकामे तनईम में जाकर वहां से एहराम बांध कर आये और मजकूरा बाला आमाला व अफ्आल बजा लाये।
मुबाशिरत के एहकाम :-
हज मे औरत के साथ जिमा करना या किसी दूसरे तरीक़े से ऐसी बात करना जिससे इन्ज़ाल हो जाये तो हज बातिल हो जाता है।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…