हज़रत अबु अलहसन खरकानी रहमत उल्लाह अलेह के कशफ व करामात का तज़करह जब सुलतान मेहमूद ग़ज़नवी सुना। तो सुलतान को आपकी ज़ियारत व मुलाकात का शौक़ पैदा हुआ और कई दफा आपको गज़नी आने की दावत दी लेकिन हज़रत ने कुबूल ना फरमाई। आखिर सुलतान मेहमूद ग़ज़नी से रवाना होकर ख़रक़ान पहुँचा। और शहर के बाहर शाही खैमा गाड़ दिया।
और एक कासिद हज़रत की ख़िदमत में रवाना करके उसके हाथ कहला भेजा। के बादशाह वक्त आपकी ज़ियारत के लिए ग़ज़नी से आपके वतन खरकान आया है। आप ज़रा क़दम रंजा फ़रमा कर बादशाह के खैमे तक अगर तशरीफ ले चलें तो बड़ी मेहरबानी होगी।फातिहा पढ़ने की फज़िलत।
साथ ही क़ासिद को समझा दिया के अगर शेख यहाँ आने से मअजूरी का इज़हार करें तो इन्हें ये आयत सुना देना अतीउल्लाहा व अतीऊर्रसूलां व ओलिल अमरी मिनकुम “यानी इताअत करो अल्लाह और उसके रसूल की और ओलिल अमरी यानी बादशाहे वक़्त की । ”Sultan Mehmod aur allah ke Wali ka Waqia.
जिस वक्तं कासिद शेख की खिदमत में हाज़िर हुआ और बादशाह का फरमान सुनाया तो शेख ने बादशाह के खैमे तक जाने से मअजूरी ज़ाहिर की। तो उस पर क़ासिद ने आयात मज़कूरा पढ़कर कहा के उसकी रू से बादशाह की इताअत आप पर फर्ज़ है।
आपने जवाब दिया के बादशाह से कह दो के मैं अभी अतीउल्लाह के फरमान ही से सबुकदोश नहीं हो सका हूँ। और उसके बाद अतीऊर्रसूला के बेशुमार फ़रामीं भी आदा करने बाकी हैं। खुदा जाने ओलिल अमरी की । इताअत की बारी ज़िन्दगी में पेश आएगी या नहीं?
अभी तो अतीउल्लाह से ही लम्हा भर फुरसत नहीं । कासिद ने जब सुलतान के पास हज़रत की तरफ से ये मसकत और माकूल जवाब दिया तो सुलतान ने कहा के हज़रत ने हमें ला जवाब कर दिया।
अब हमें हज़रत के हुजूर चलना चाहिए। चुनाँचे सुलतान मेहमूद ने हज़रत के बातिनी कशफ का इम्तिहान लेने का ये हीला बनाया के अपने गुलाम अयाज़ को शाही लिबास पहना कर शाही ताज उसके सर पर रख दिया और खुद अयाज़ का गुलामाना लिबास पहन लिया ,
और लोंडियों को मर्दों का लिबास पहना कर अपने साथ ले लिया और इस तरह उल्टे रूप में हज़रत की कुटिया की तरफ रवाना हुआ। चुनाँचे जब ये काफला हज़रत की बारगाह मं हाज़िर हुआ।
तो हज़रत ने अयाज़ के शाहाना लिबास की तरफ मतलक तवज्जह ना फरमाई। बल्के सुलतान को जो उस वक्त एक गुलाम के लिबास में पीछे खड़े झाँक रहे थे। मुखातिब होकर फरमाया के इन ना मेहरम औरतों को बाहर निकाल दो। चुनाँचे उन मर्दों के लिबास में लोंडियों को बाहर निकाला गया।
बअदहू हज़रत ने सुलतान से फ़रमाया के बड़ा दाम फ़रैब उठा कर लाए हो। उस पर सुलतान ने अर्ज़ किया। के आप जैसे अनका के लिए हमारा दाम ना कारा व हैच साबित हुआ ।
सुलतान ने उस वक्त हज़रत से कुछ तबरूक तलब किया। हज़रत ने जौ की रोटी का एक सूखा टुकड़ा पेश किया। सुलतान ने बड़े एहत्राम के साथ वो टुकड़ा लेकर अशर्फियों की चन्द थेलियों बतौर नज़राना हज़रत की ख़िदमत में पेश कीं और हज़रत का दिया हो तबरूक मुंह में डाल कर खाने लगा।बिस्मिल्लाह की बरकतें,
इत्तिफाकन बादशाह के नाजुक गले में जौ का रूखा सूखा टुकड़ा अटक गया और बादशाह खाँसने लगा। जिस पर हज़रत इन अशर्फियों की तरफ इशारा करके फ़रमाने लगे। के ऐ मेहमूद पैग़म्बरों की ग़िज़ा आपके गले से नीचे नहीं उतरती।
और ये अशर्फियाँ जो फिरौना की मीरास हैं। इस फकीर के गले से क्योंकर उतरेंगी? चुनाँचे सुलतान के बे शुमार इसरार, और मिन्नत व समाजत के बावजूद भी हज़रत ने अशर्फियाँ लेने से इंकार कर दिया। और फ़रमाया मुझे उनकी ज़रूरत नहीं और ना ही मैं उनके लेने का हक़दार हूँ।
जिनका ये माल है वही उसके हकदार हैं। उस पर सुलतान मेहमूद और भी ज्यादा गरवीदा हो गया। और सच्चे दिल से आपका मौतकिद हो गया।
अल्लाह वालों को अल्लाह ने ऐसा इल्म व कशफ अता फ़रमाया है। के उनकी निगाह बातिनी से कोई चीज़ पनेहाँ नहीं रहती ।
और ये भी मालूम हुआ के पहले बादशाहों के दिलों में अल्लाह वालों की बड़ी अकीदत व मोहब्बत होती थी। और वो लोग उन अल्लाह वालों के पास हाज़िर होते और उनके फयूज़ बर्कात से मुसतफीद हुआ करते थे।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…