इस्लाम के वाजिबात व फराइज़। Obligations and Faraaz of Islam.

Islam ke wajibaat v faraiz

ईमान, नमाज़, ज़कात, सदकए फित्र, रोज़ा, एतकाफ, हज और उमरा

ईमान

जो शख़्स इस्लाम कबूल करना चाहे उस पर सबसे पहले वाजिब है कि वह कलमए शहादत पढ़े यानी ला इलाहा इल्ललाह मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह का ज़बान से इक़रार करे और इस्लाम के सिवा तमाम मज़ाहिब से बे ताल्लुक हो जाए और उन से बे जारी का इज़हार करे और अल्लाह तआला की वहदानियत का दिल में यकीने कामिल रखे, इस एतकाद और यकीने कामिल की तशरीह आईन्दा मजकूर होगी।

दीने इस्लाम

अल्लाह तआला के नज़दीक सच्चा दीन इस्लाम है चुनांचे अल्लाह तआला ने फरमा दिया कि यानी बिला शुबा सच्चा दीन अल्लाह के नजदीक इस्लाम ही है। फिर फ़रमायाः और जिस ने इस्लाम के सिवा कोई और दीन पसन्द किया उसे कबूल नहीं किया जाएगा।

नौ मुस्लिम के हुकूक

जिस शख्स ने सच्चे दिल से कलमए शहादत पढ़ लिया और इस्लाम में दाखिल हो गया, उसको कत्ल करना, उसकी औलाद को कैद करना, उसके माल व मता को लूटना तमाम मुसलमानों पर हराम हो गया। इस्लाम लाने से कब्ल उससे जो गुनाह सरज़द हुए थे अल्लाह तआला उन सब को माफ फरमा देगा।

अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया हैः ऐ नबी आप उन काफिरों से फरमा दें कि अगर यह कुफ्र से बाज़ आ गए तो उनके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाएंगे। नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है किः मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं लोगों से उस वक़्त तक जिहाद करूं जब तक वह ला इलाहा इल्ललाह न कह दें, जब उन्होंने कलमए तौहीद पढ़ लिया तो उन्होंने अपनी जानों और अपने मालों को मुझ से बचा लिया बजुज़ इस के कि उन का कोई हक वाजिब हो सो उस का हिसाब अल्लाह तआला फ़रमाएगा।Obligations and Faraaz of Islam.

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने यह भी इरशाद फ़रमाया है किः इस्लाम मा कब्ल के गुनाहों को फना कर देता है।

नौ मुस्लिम का गुस्ल

इस्लाम में दाखिल होने वाले शख़्स के लिए गुस्ले इस्लाम वाजिब हो जाता है। एक रिवायत के मुताबिक रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने शमामा बिन आसाल और कैस बिन अस्सम को जब वह इस्लाम लाए तो हुक्म दिया कि गुस्ल करो एक रिवायत में है कि आप ने फरमाया कि “अपने जिस्म से कुफ्र के बालों को दूर करके गुस्ल करो”।

नमाज़

इस्लाम में दाखिल होने वाले पर नमाज़ फर्ज़ हो जाती है इस लिए कि इस्लाम कौल व अमल दोनों का नाम है, जबानी दावा कौल है और अमल उस दावा का सबूत है। ब अलफाजे दीगर कौल सूरत है और अमल उसकी रुह है।

शराइते नमाज़

नमाज के लिए कुछ शराइत हैं जिन का नमाज़ से कब्ल पूरा करना जरुरी है और वह यह हैं।
(1) पाक पानी से जिस्म को पाक करना इस से मुराद वुजू है पानी न मिले तो तयम्मुम करना।
(2) पाक कपड़े से सतर पोशी करना।
(3) पाक जगह खड़ा होना यानी पाक जगह पर नमाज पढ़ना।
(4) किब्ला की तरफ मुंह होना ।
(5) नमाज़ का वक़्त होना।
(6) नमाज़ के लिए नीयत करना।

तहारत

जिस्म की तहारत के लिए कुछ फर्ज और कुछ सुन्नतें हैं, इस्लाम में दस फर्ज़ यह हैं ज़कात।

1:- नीयत करना, यानी नापाकी को दूर करने के लिए नीयत करे और अगर तयम्मुम करना हो तो नमाज़ के मबाह होने का कसद करे कि तयम्मुम से हदस दूर नहीं होता। पस जबानी नीयत के साथ साथ दिल में भी उसकी गवाही दे तो यह अफ़ज़ल है वरना सिर्फ ज़बानी नीयत भी काफी है।islam ke vajibaat va faraiz.

2 :- तस्मीया (बिस्मिल्लाह पढ़ना) यानी तहारत के लिए पानी लेते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़े

3 :- कुल्ली करना यानी मुंह में पानी भर कर और उसे मुंह में फिरा कर मुंह से पानी निकाल देना।

4 :- नाक में पानी डालना, नाक के दोनों नथनों में पानी चढ़ा कर उन्हें साफ करना।

5 :- मुंह धोना, यानी पेशानी से लेकर कंपटियों के अर्ज़ में ठोड़ी के नीचे तक इस तरह कि दाढ़ी के बालों की जड़ों तक पानी पहुंच जाए।

6 :- हाथ धोना, दोनों हाथों को कोहनियों तक धोना।Obligations and Faraaz of Islam.

7 :- सर का मसह, मसह करने का तरीका यह है कि दोनों हाथ पानी में डाले और फिर ख़ाली निकाल कर उन्हें सर की अगली जानिब से सर की पिछली जानिब गर्दन तक ले जाए और फिर इसी तरह वहां तक वापस लाए जहां से मसह शुरु किया लेकिन इस तरह कि दोनों अंगूठे कानों के सुराख़ों में रहें इससे फारिग होकर कान के दोनों करों और सुराख़ों का उन अंगूठों से मसाह करे।

8 :- पांव धोना, दोनों पांव टखनों तक धोए जायें। मजकूरा बाला तमाम फ़राइज़ यके बाद दीगरे एक साथ बजा लाना फर्ज़ है।

9 :- इन तमाम आज़ा को धोते वक़्त उन की तरतीब का ख्याल रखना। खुदावन्द तआला का इरशाद है। यानी ऐ ईमान वालो! जब तुम नमाज अदा करने के लिए उठो तो अपने मुंह को और अपने हाथों को कोहनियों तक धो लो, सर का मसह करो और दोनों पांव को टखनों तक धो लो।

10 :- मवालात यानी हर दूसरे उज्य को पहले उज्च का पानी खुश्क होने से पहले धोना।

वजू में दस सुन्नतें हैं

(1) वुजू के पानी में हाथ डालने से पहले दोनों हाथों को धो लेना।
(2) मिसवाक करना
(3) कुल्ली (गरगरा) करना।
(4) नाक के दोनों सूराखों में पानी डाल कर उनको साफ करना, रोज़ा रखा हो तो कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने में एहतियात बरते कि पानी हल्क से नीचे न उतर जाए ।
(5) दाढ़ी का खिलाल करना।
(6) दोनों आँखों के अन्दर पानी डाल कर उनको धोना दायें जानिब से आंखों का धोना शुरु करना।
(7) दोनों कानों के मसह के लिए ताज़ा पानी लेना।
(8) गर्दन का मसह करना।
(9) दोनों हाथ और दोनों पांव की उंगलियों में खिलाल करना यानी उंगलियों को दूसरी उंगलियों के दर्मियान डालना ।
(10) वुजू के हर उज्य को तीन दफा धोना।

तयम्मुम

तयम्मुम का तरीका यह है कि दोनों हाथ ऐसी पाक मिट्टी पर मारें कि गर्द मामूली तरीका पर दोनों हाथों पर चिमट जाए। उस वक़्त फर्ज नमाज़ के मंबाह होने की नीयत करें, तस्मीया पढ़ें, अपनी उंगलियों को फैलाकर मिट्टी पर एक दफा मारें, फिर हाथों के अन्दर की तरफ से चेहरे को, मसह करें, फिर दोनों हाथों की पुस्त का मसह करें।

सतरे औरत

किसी पाकीज़ा कपड़े से नाफ से लेकर जानू तक और कन्धों तक छुपाना सतरे औरत है, सतरे औरत के लिए कपड़ा रेशमी न हो क्योंकि रेशमी कपड़े में नमाज़ नहीं होती, किसी से छीने हुए या चुराए हुए कपड़े में नमाज़ नहीं होती।Obligations and Faraaz of Islam.

नमाज़ की जगह

नमाज़ पढ़ने के लिए ऐसी जगह होना चाहिए जो नजासत और पलीदी से पाक हो और अगर कोई ऐसी जगह हो जिस पर नजासत हो मगर वह नजासत हवा और आफताब की गर्मी (धूप) से खुश्क हो गई हो तो ऐसी जगह को साफ करके उस पर कपड़ा बिछा कर उस पर नमाज़ पढ़ी जा सकती है।

नमाज़ की सम्त

मक्का मुकर्रमा और उसके क़रीबी इलाके में अगर कोई हो तो वह ऐन काबा की तरफ रुख़ कर ले और अगर मक्का से दूर किसी और जगह पर हो तो भी काबा की तरफ रुख मालूम करने के लिए अपने इजतेहाद, सितारों आफ‌ताब और हवाओं के रुख के ज़रिये से सम्ते काबा की तहकीक करके उस तरफ रुख करे।

नमाज़ की नीयत

नीयत का मकामे असली दिल है यानी दिल के इरादे का नाम नीयत है चूंकि नमाज़ अल्लाह तआला की तरफ से फर्ज़ की गई है इस पर दिल से यकीन रखना और अल्लाह तबारक व तआला का हुक्म जानते हुये उसको अदा करना वाजिब है।  पानी पीने की फज़िलत।

दिखावे और दूसरों को सुनाने के लिये न हों, नमाज़ के दौरान दिल को खुदावंद तआला के हुजूर में उस वक़्त तक पूरे तौर पर हाज़िर रखा जाए जब तक नमाज़ से फरागत हासिल न हो जाए। हदीस शरीफ में आया है की रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हज़रत आएशा रजी अल्लाहो अन्हा से फरमाया जिस नमाज़ में तेरा दिल हाज़िर न हो वह नमाज़ ही नहीं।

औकाते नमाज़

नमाज़ के वक़्त का अन्दाज़ा अपने यकीन से कर लिया जाए (जब कि रौशन और साफ हो और अगर अब्र या आंधी (गुबार) वगैरह हो और वक़्त का तऐयुन (अन्दाजे से) न हो सके तो फिर गुमान गालिब ही से उसका अन्दाज़ा कर लिया जाए।

अजान

वक़्त का तऐयुन या गुमाने गालिब से अन्दाज़ा कर लेने के बाद अज़ान इस तरह कही जाए अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर अश्हदु अंल्लाइलाहा इल्लल्लाह, अश्हदु अल्लाइलाहा इल्लल्लाह अश्हदु अन्ना मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह, अश्हदु अन्ना मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह हय्या अलस्सलाह, हय्या अलस्सलाह हय्या अलल फलाह, हय्या अलल फ्लाह अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह।

एकामत

अज़ान के बाद जब नमाज़ के लिए खड़े हों तो इस तरह एकामत कही जाएंः अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर अश्हदु अल्लाइलाहा इल्लल्लाह अश्हदु अन्ना मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह हय्या अलस्सलाह हय्या अलल फ्लाह कदका मतिस्सलाह, कदका मतिस्सलाह अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर लाइलाहा इल्लल्लाह।

हंबली और शाफई हज़रात के यहां एकामत के अलफाज़ हय्या अलल फ्लाह तक एकहरे हैं जबकि अहनाफ के यहां दोहरे हैं।Obligations and Faraaz of Islam.

एकामत कहकर नमाज़ के लिए खड़े हो जाओ, अल्लाहो अकबर के अलावा दूसरे ताज़ीमी अल्फाज़ का इस्तेमाल नमाज़ शुरु करने के लिए जाइज़ नहीं है।

नमाज़ के अरकान

नमाज़ के पन्द्रह रुक्न हैं
(1) खड़ा होना ।
(2) तक्बीरे तहरीमा पढ़ना।
(3) सूरह फातिहा पढ़ना
(4) रुकू करना।
(5) रुकू में ठहरना ।
(6) रुकू से खड़ा होना
(7) थोड़ा ठहरना।
(8) सजदा करना ।
(9) सजदे में कदरे ठहरना ।
(10) दोनों सजदों के दर्मियान बैठना ।
(11) इस बैठक में कदरे तवक्कुफ करना।
(12) कञ्दा अख़ीरा (आख़िरी मरतबा बैठना)
(13) आख़िरी कञ्दा में तशहहुद पढ़ना ।
(14) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर दुरुद पढ़ना
(15) सलाम फेरकर नमाज़ ख़त्म करना।

नमाज़ के वाजिबात

नमाज़ के वाजिबात नौ हैं।

(1) तक्बीर कहना तक्बीरे तहरीमा के सिवा।
(2) रुकू से उठते वक़्त समेअल्लाहुलिमन हमिदह कहना और
(3) रब्बना लकल हम्द कहना ।
(4) रुकू में सुब्हाना रब्बियल अज़ीम पढ़ना
(5) दोनों बार सजदों में सुब्हाना रब्बियल आला कहना (तीन तीन बार)
(6) दोनों सजदों के दर्मियान बैठते वक़्त एक बार रब्बिग फिरली कहना
(7) पहला अत्तहियात पढ़ना
(8) पहले तशहहुद के लिए बैठना
(9) सलाम इस नीयत से फेरना की मैं नमाज़ से फारिग हुआ।

नमाज़ की चौदह सुन्नतें

नमाज़ की चौदह सुन्नतें हैं-
(1) शुरु करते वक्त इन्नी वज्जहतो वज हेया लिल्लज़ी फतरस्समावाते वल अर्जा वमा अना मिनल मुशरेकीन पढ़ना ।
(2) अऊजूबिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम पढ़ना ।
(3) बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़ना।
(4) सूरह फातिहा के ख़त्म पर आमीन कहना ।
(5) सूरह फातिहा के बाद कोई सूरत पढ़ना ।
(6) रब्बना लकल हम्द के बाद मिलाअस्समावाति वलअर्ज कहना ।
(7) रुकू और सजदे में तस्बीहात को एक मरतबा से ज़्यादा पढ़ना ।
(8) दोनों सजदों के दर्मियान जुलूस की हालत में रब्बिग फिरली पढ़ना
(9) एक रिवायत के मुताबिक नाक पर सजदा करे (सजदे में नाक ज़मीन पर लगाये)
(10) दोनों सजदों के दर्मियान कदरे आराम के लिए बैठना (जलसए इस्तराहत करना)
(11) चार चीज़ों से पनाह मांगना यानी अऊज़ूबिल्लाहि मिन् अज़ाबे जहन्नमा व मिन अज़ाबिल कब्र व मिन फित्नतिल मसीहिददज्जला व मिन फित्नतिल महया वल ममाते पढ़ना ।

मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं जहन्नम की अज़ाब से, कब्र की अज़ाब से, मसीहिद्दज्जाल के फित्ने से और ज़िन्दगी व मौत के फित्ने से ।
(12) आखिरी कञ्दा में दुरुद शरीफ पढ़ने के बाद वह दुआ पढ़ना जो हदीसों में आई है।
(13) वित्रों में दुआए कुनूत पढ़ना ।
(14) दूसरा सलाम फेरना इसका सबूत जईफ रिवायत से है।  खाना खाने की फज़िलत। 

हैयाते नमाज़

नमाज़ की हैयात पच्चीस हैं:- नमाज़ की हैयत से इन पच्चीस उमूर का ताल्लुक है।
(1) नमाज़ शुरु करते वक्त, रुकूअ में जाते वक्त, रुकूअ से सर उठाने के बाद दोनों हाथों का उठाना दोनों हाथ इस तरह उठाए जायें कि दोनों हथेलीयां दोनों कंधों के बराबर हों और दोनों अंगूठे कानों के पास और उंगलियों के पोरे कानों की नरमा तक पहुंच जायें) हाथ इस तरह उठाकर फिर छोड़ दिए जायें
(2) नाफ के ऊपर बायां हाथ हो और उस हाथ के ऊपर दायां हाथ रखा जाए
(3) सजदे के मकाम पर नज़र रखी जाए
(4) जिन नमाज़ों में किरात बलन्द आवाज़ से पढ़ी जाती है-उन में बलन्द आवाज़ से किरात पढ़ना और आमीन भी बलन्द आवाज से कहना और जिन नमाज़ों में किरात आहिस्ता पढ़ी जाती है उनमें आहिस्ता पढ़ना और आमीन भी आहिस्ता कहना।Obligations and Faraaz of Islam.

रुकूअ में दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखना, रुकूअ के बाद पीठ सीधी करना, सजदे में दोनों बाजुओं को दोनों पहलुओं से अलग रखना, सजदे में जाते वक़्त घुटनों को ज़मीन पर पहले रखना, फिर हाथों का रखना, सजदे में दोनों रानों को पेट और पसलियों से अलग रखना, सजदे में दोनों घुटनों को अलग फासला से रखना।

दोनों हाथों का दोनों मोंढ़ों के मुकाबिल रखना। दोनों सजदों के दर्मियान बैठते वक़्त कदे ऊला में एक पांव बिछा कर उस पर बैठना और कदे अखीर में सुरीन के बल बैठना, दायें रान पर दायां हाथ और बायें रान पर बायां हाथ रखना। दायें हाथ की उंगलियों को बन्द रखना। बन्द हाथ की अंगुश्ते शहादत से इशरा करना। इस तरह कि अंगूठे से दर्मियानी उंगली के साथ हलका किया हो।

बायें हाथ की उंगलियां खुली हुई रान पर रखी हों। इन शर्तों में से कोई शर्त भी किसी उज़रे शरई के सिवा अगर तर्क कर दी जाएगी तो नमाज बातिल हो जाएगी। अगर किसी रुक्न को सदन तर्क कर दिया या गलती से किसी रुक्न को छोड़ दिया गया तो नमाज़ न होगी।

अगर वाजिब को गलती से तर्क कर दे तो सजदा सहू से नमाज़ हो जाएगी और अगर वाजिब को जान बूझ कर छोड़ दिया जाए तो नमाज़ बातिल हो जाएगी। किसी सुन्नत या नमाज़ की हैयात के तरक से न नमाज़ बातिल होती है और न सजदा सहू लाज़िम आएगा।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

इस फराइज को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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