मोमिन की कब्र और असल ज़िन्दगी। Momin ki kabr aur asal zindagi

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हदीसों को पढ़ने से साफ़ मालूम होता है कि मरने वाले को देखने में हम भले ही मुर्दा समझते हैं लेकिन सच तो यह है कि वह ज़िंदा होता है। यह दूसरी बात है कि उसकी जिंदगी हमारी इस ज़िंदगी से बिल्कुल अलग होती है।

प्यारे नबी(स.व)ने फ़रमाया है कि मुर्दे की हड्डी तोड़ना ऐसा ही है जैसे ज़िंदगी में उसकी हड्डी तोड़ी जाए। एक बार प्यारे नबी (स.व) हज़रत उम्रू बिन हज़म (र.अ)को एक क़ब्र से तकिया लगाये हुए बैठे देखा तो फ़रमाया कि इस क़ब्र वाले को तकलीफ़ न दो।’

जब इंसान मर जाता है तो इस दुनिया से निकल कर बर्ज़ख की दुनिया में चला जाता है चाहे अभी उसे कब्र में भी न रखा जाए उसमें समझ होती है। अल्लाह के रसूल (स.व)ने फ़रमाया कि जब मुर्दा चारपाई वगैरह पर रख दिया जाता है

और उसके बाद कब्रिस्तान ले जाने के लिए लोग उसे उठाते हैं तो अगर वह नेक था तो कहता है कि मुझे जल्द ले चलो और अगर वह नेक नहीं था तो घर वालों से कहता है कि हाय मेरी बर्बादी! मुझे कहां ले जाते हो? फिर फ़रमाया कि इंसान के सिवा हर चीज़ उसकी आवाज़ सुनती है। अगर इंसान उसकी आवाज़ सुन ले तो ज़रुर बेहोश हो जाये।’

मौत के बाद से कियामत कायम होने तक हर आदमी पर जो ज़माना गुज़रता है उसको बर्जख कहा जाता है। बर्जुख का मतलब है पर्दा और आड़। चूंकि यह ज़माना दुनिया और आख़िरत के दर्मियान एक आड़ होता है इसलिए उसे बर्जख कहते हैं।

चूंकि इंसान खुद अपने मुर्दों को दफन किया करते हैं इसलिए हदीसों में बर्ज़ख के आराम या अज़ाब के बारे में कब्र ही के लफ़्ज़ आते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि जिन इंसानों को आग में जला दिया जाता है या पानी में बहा दिया जाता है, वह बर्ज़ख में जिंदा नहीं रहते।

सच तो यह है कि अज़ाब व सवाब का तअल्लुक रूह से है और यह बात भी याद रहे कि अल्लाह तआला जले हुए ज़रों को भी जमा करके अज़ाब व सवाब देने की ताकत रखता है। हदीस शरीफ में आया है कि पहले ज़माने में एक आदमी ने बहुत ज़्यादा गुनाह किये।

जब वह मरने लगा तो उसने अपने बेटों को वसीयत की कि जब मैं मर जाऊं तो मुझे जला देना और मेरी राख को आधी धरती में बिखेर देना और आधी समुद्र में बहा देना। यह वसीयत करके उसने कहा कि अगर खुदा मुझ पर कादिर हो गया और उसने इसके बावजूद भी मुझे ज़िंदा कर लिया तो मुझे ज़रूर ही ज़बरदस्त अज़ाब देगा जो मेरे अलावा सारी दुनिया में और किसी को न देगा।

जब वह मर गया तो उसके बेटों ने ऐसा ही किया जैसा कि उसने वसीयत की थी। फिर अल्लाह तआला ने समुद्र को हुक्म दिया कि इस आदमी के जिस्म के ज़र्रो को जमा कर दो। समुद्र ने अपने अंदर के सारे ज़रों को जमा कर दिया और इसी तरह धरती को भी हुक्म दिया।

उसने भी उस आदमी के जिस्म के सारे ज़र्रो को जमा कर दिया। सारे ज़र्रे जमा फरमाकर अल्लाह तआला ने उसे जिंदा फ़रमा दिया। फिर उस से फ़रमाया कि तूने ऐसी वसीयत क्यों की? उसने अर्ज़ किया, ऐ मेरे पालनहार! तेरे डर से मैंने ऐसा किया और आप खूब जानते हैं। इस पर अल्लाह तआला ने उसे बख़्श दिया।’

हदीस शरीफ की रिवायत से यह भी मालूम होता है कि मोमिन बंदे बर्ज़ख में एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं और इस दुनिया से जाने वाले से यह भी पूछते हैं कि फ़्लां का क्या हाल है और किस हालत में है।

हज़रत सईद बिन जुबैर(र.अ)फ़रमाते हैं कि जब मरने वाला मर जाता है तो बर्ज़ख़ में उसकी औलाद उसका इस तरह स्वागत करती है जैसे दुनिया में किसी बाहर से आने वाले का स्वागत किया जाता है। और हज़रत साबित बिनानी (रह०) फ़रमाते थे कि जब मरने वाला मर जाता है तो बर्ज़ख की दुनिया में उसके रिश्तेदार-नातेदार जो पहले मर चुके हैं, उसे घेर लेते हैं और वे आपस में मिलकर उस खुशी से भी ज़्यादा खुश होते हैं जो दुनिया में किसी बाहर से आने वाले से मिलकर होती है।”

हज़रत कैस बिन बीसा(र.अ)फरमाते हैं कि अल्लाह के रसूल(स.व)ने फ़रमाया कि जो आदमी ईमान वाला नहीं होता, उसे मुर्दों से बात-चीत करने की इजाज़त नहीं दी जाती। किसी ने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के रसूल(स.व)! क्या मुर्दे बात-चीत भी करते हैं? फ़रमाया, हां। और एक दूसरे से मुलाकात भी करते हैं।’

हज़रत आइशा (रजि०) फरमाती हैं कि अल्लाह के रसूल (स.व)ने फ़रमाया कि जो आदमी अपने मुसलमान भाई की कब्र की ज़ियारत करता है और उससे परिचित होता है, यहां तक कि ज़ियारत करने वाला उठकर चला जाता है।’

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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