03/05/2025
Maut aur mayyat ke bare me kuch zaroori bate

मौत और मैयत के बारे में कुछ ज़रूरी बाते।Maut aur Mayyat ke bare me kuch Zaroori bate.

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Maut aur mayyat ke bare me kuch zaroori bate

Maut aur Mayyat ke bare me kuch Zaroori bate.

मोमिन का एहतराम बेहद ज़रूरी हैं। यहाँ तक की फ़र्ज़ हैं उसकी तौहीन करीब करीब कुफ्र हैं। इस्लाम इंसानियत की सारी खूबियां मोमिन में मौजूद होने की ताकीद करता हैं।

जिस तरह ज़िन्दगी में मोमिन का अदब व एहतराम ज़रूरी हैं उसी तरह उसके इंतेक़ाल के बाद भी ज़रूरी हैं।

इसलिए अल्लाह के रसूल ने बड़े ही अदब व एहतराम के साथ मुर्दो को दफ़नाने का हुक्म दिया हैं और कब्रों के ऊपर चलने से मना फ़रमाया हैं।

हदीस शरीफ में हैं जो किसी के जनाज़ा को 40 कदम लेकर चले उसके 40 गुनाहे कबीरा माफ़ हो जाते हैं। जनाज़ा देखने उसे उठाने और लेकर चलने से आदमी को अपनी भी मौत की याद आती हैं। मैय्यत को सवाब पहुंचाना।

कुछ देर के लिए वह सोचता हैं की एक दिन हमारा भी यही हाल होने वाला हैं। मुझे भी अपने रब के दरबार में पेश होना पड़ेगा अपने किये का हिसाब व जवाब देना पड़ेगा।Maut aur Mayyat ke bare me kuch Zaroori bate.

मौत की याद से इंसान अगर गम्भीरता से सोचे तो उसकी काया पलट सकती हैं।

इसी लिए तो ताजदारे अम्बियां पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कब्रों की ज़ियारत किया करो इससे तुम्हे अपनी मौत की याद आएगी।

मौत की याद से इंसान अपने गुनाहो से तौबा कर सकता हैं और फिर उसकी ज़िन्दगी एक नए रास्ते पर चलने लगेगी जो आख़िरत में उसकी काफी मदद करेगी।

जनाज़े को कन्धा देना इबादत हैं इस में कोताही नहीं करनी चाहिए। हमारे आका ने हज़रत सअद बिन जुरारा रदियल्लाहो अन्हो का जनाज़ा उठाया।

सुन्नत यह है की 4 आदमी मिलकर जनाज़ा उठाये एक एक पाया एक एक कंधे पर रहे। यह भी सुन्नत हैं की पहले दाहिने सिरहाने फिर दाहिने पैर की तरफ फिर बाएं सिरहाने और फिर बाएं पैर की तरफ कन्धा दे।

छोटा बच्चा जो उठाये जाने के काबिल हो उसे हाथ पर उठा कर भी ले जा सकते हैं। मोमिन की कब्र और असल ज़िन्दगी। 

जनाज़ा इस रफ़्तार से लेकर चले की मुर्दे को झटका न लगे।साथ चलने वाले लोग जनाज़े के पीछे चले। औरतो को जनाज़े के साथ जाना नाजायज़ हैं।Maut aur Mayyat ke bare me kuch Zaroori bate.

जनाज़े के साथ अगरबत्ती या लोबान सुलगा कर ले जाना मना हैं। जनाज़ा जब तक रखा न जाये तब तक बैठना मकरूह हैं।

पडोसी रिश्तेदार या किसी नेक मर्द, औरत के जनाज़े में शरीक होना नफ़्ल नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल हैं। जनाज़े में शरीक होने वाले को बिना नमाज़े जनाज़ा पढ़े वापिस नहीं जाना चाहिए।

नमाज़े जनाज़ा फर्ज़े किफ़ाया हैं। अगर कुछ लोगो ने पढ़ ली तो सब बरी हो गए और अगर किसी ने नहीं पढ़ी तो जिन जिन लोगो की मौत की खबर मिली वह सब गुनहगार होंगे।

जो आदमी नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ न माने वह काफिर हैं। इसके लिए जमाअत शर्त नहीं एक आदमी भी पढ़ लेगा तो फ़र्ज़ अदा हो जायेगा।

आजकल देखा जाता हैं की लोग जूता पहन कर और कुछ लोग जूते चप्पल पर खड़े होकर जनाज़ा की नमाज़ पढ़ लिया करते हैं।

ऐसी सूरत में जूता और वह ज़मीन जिस पर खड़े होकर नमाज़ अदा की जाये उन दोनों का पाक होना ज़रूरी हैं वरना नमाज़ नहीं होगी।

हर मुस्लमान की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी अगरचे वह कितना बड़ा गुनहगार क्यों न हो फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जाएगी जो इस तरह हैं:-मोमिन का रुत्बा मौत के वक़्त और मौत के बाद।

बागी (गद्दार )

डाकू जो डाका डालते मारा जाये उसे न तो ग़ुस्ल दिया जायेगा और न ही उसकी नमाज़े जनाज़ा पढाई जाएगी
जो नाहक की तरफदारी करते हुए मारा जाये

जिसने किसी का गला घोंट कर मार दिया हो
शहर में रात को हथियार लेकर लूटमार करने वाले भी डाकू की गिनती में आते है अगर इस हालत में मारे जाये तो उनकी नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ी जाएगी

माँ बाप का क़त्ल करने वाले लोग
किसी का माल छीनने के दौरान मारे जाने वाले की भी नमाज़ नहीं पढ़ाई जाएगी।

खुदखुशी माना की हराम हैं, लेकिन खुदखुशी करने वाले की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी आम रास्ते और दुसरो की ज़मीन पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ना मना हैं हाँ अगर उसके मालिक से इसकी इजाज़त ली हो तो पढ़ सकते हैं।

मैय्यत को दफ़्न करना फर्ज़े किफ़ाया हैं। जहाँ इन्तेकाल हुआ वहीं दफ़्न न करे बल्कि कब्रिस्तान में दफ़्न करना चाहिए।Maut aur Mayyat ke bare me kuch Zaroori bate.

कब्र के अंदर चटाई वगैरह बिछाना नाजायज़ हैं। मैय्यत को कब्र में रखते वक़्त दुआ पढ़े “बिस्मिल्लाहे व बिल्लाहे अला मिल्लते रसूलिल्लाह।

मुस्तहब यह हैं की दफ़्न के बाद अलिफ़ लाम मीम से मुफलेहुन तक और आमनर्रसूल से अललकौमिल काफेरिन तक पढ़े।

दफ़्न के बाद तकरीबन आधा घंटा कब्र के पास बैठकर तिलावत करे। उसके मगफिरत की दुआ करे और दुआ करे की मुन्कर नकीर के सवालों के जवाब आसानी से दे।

मिटटी देने की दुआ :-

पहली बार मिट्टी डाले तो यह दुआ पढ़े = मिन्हा खलकनाकुम
दूसरी बार मिट्टी डाले तो यह दुआ पढ़े =व फ़ीहा नुईदुकुम
तीसरी बार मिट्टी डाले तो यह दुआ पढ़े = व मिन्हा नुखरिजुकुम तारतन उखरा पढ़े।

इसका मतलब यह हैं की हमने तुम्हे इसी मिट्टी से पैदा किया और फिर मरने के बाद इसी मिट्टी के हवाले करके और क़यामत में तुम्हे फिर इसी मिट्टी से दोबारा निकालेंगे।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।

खुदा हाफिज…

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