
हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिसने दस मर्तबा यूँ कहाः ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क लहू लहुलु मुल्कु व लहुल् हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन कदीर।
तर्जुमाः कोई माबूद नहीं अल्लाह के सिवा, वह तन्हा है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये मुल्क है और उसी के लिये तारीफ है और वह हर चीज़ पर कादिर है। दो उसको ऐसे चार गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा जो हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की औलाद से हों। (मुस्लिम शरीफ पेज 344 जिल्द 2)
तशरीह :- जब मुसलमान शरई जिहाद करते थे तो उनके पास बाँदी और गुलाम भी होते थे। अमीरुल् मोमिनीन जिहाद में शरीक होने वाले मुसलमानों पर उन काफिर कैदियों को बाँट देते थे जिनको कैद कर लिया जाता था। ये जिहाद करने वालों की मिल्कियत हो जाते थे। फिर उनमें से बहुत-से इस्लामी अख़लाक़ और मुसलमानों के अच्छे आमाल से मुतास्सिर होकर इस्लाम कबूल कर लेते थे। गुलाम आज़ाद करने की बड़ी फज़ीलत हदीस शरीफ में आई है।
एक हदीस में इरशाद है कि जब किसी ने मुसलमान गुलाम आज़ाद कर दिया अल्लाह तआला उसके हर-हर अंग को यानी आज़ाद करने वाले के जिस्म के हर-हर हिस्से को दोज़ख से आज़ाद फरमा देंगे।(बुख़ारी व मुस्लिम)
बयान की गयी हदीस में फरमाया कि जिसने ऊपर ज़िक्र हुए कलिमे को जिसे हम कलिमा-ए-तौहीद कहते हैं दस बार पढ़ लिया तो उसको ऐसे चार गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा जो हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की औलाद से हों। एक आम गुलाम आज़ाद करने का सवाब ही इतना ज़्यादा है फिर हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की औलाद से गुलाम आज़ाद करने का सवाब और ज़्यादा बढ़ जाता है।
इस कलिमे को दस बार पढ़ना चाहें तो दो-तीन मिनट में पढ़ सकते हैं। जरा-सी देर के अमल पर इतना बड़ा सवाब इनायत फरमाना अल्लाह तआला का कितना बड़ा एहसान है।
हज़रत उबादा बिन सामित रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो शख़्स रात को किसी वक़्त इस हालत में जागे कि उसके मुँह से ज़िक्र के अलफाज़ निकल रहे हों और उसनेः ला इला-ह इल्लल्लाहु वहूदहू ला शरी-क लहू लहुल् मुल्यु व लहुलु हम्दु व हु-य अला कुल्लि शैइन् कदीर। अल्हम्दु लिल्लाहि व सुब्हानल्लाहि व ला इला-ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबरु वला हवला वला कुव्वाता इल्ला बिल्लाहि रब्बिग़फिर् ली कहा, फिर रब्बिगफिर् ली कहा या फरमाया कि दुआ की तो उसकी दुआ कबूल हो गयी। फिर अगर वुजू किया और तहज्जुद की नमाज़ पढ़ ली तो उसकी नमाज़ कबूल कर ली जायेगी। (बुख़ारी)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बयान फरमाया कि मैंने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जो शख़्स ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क लहू लहुलु मुल्कु व लहुलू हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर कहे जिससे उसका मकसद सिर्फ अल्लाह पाक की रिज़ा हो तो अल्लाह तआला उसको जन्नातुन्नईम में दाखिल फरमायेगा। (तिबरानी)
इस कलिमे को कलिमा-ए-तौहीद और कलिमा-ए-चहारुम कहते हैं जैसा किः सुब्हानल्लाहि वल्हम्दु लिल्लाहि व ला इला-ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर, को कलिमा-ए-तमजीद और कलिमा-ए-सोम कहते हैं। हदीसों में इनके पढ़ने की फ्ज़ीलतें बयान हुई हैं, और इनके नाम या नम्बर अवाम में मशहूर हो गये हैं और पहचान करने के लिये इस तरह नाम रखने में कोई हर्ज भी नहीं है।
कलिमा-ए-तौहीद को बहुत-से मौकों में पढ़ने की तरगीब दी गयी है। हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज के मौके पर जब सफा-मरवा (पहाड़ियों) की सई (यह हज और उमरे का एक रुक्न है) फरमाई तो सफा पर इस कलिमे को पढ़ा और इन लफ़्ज़ों का इज़ाफ़ा फरमायाः ला इला-ह इल्लल्लाहु वदहू अन्ज-ज़ वञ्दहू व नसर अब्दहू व ह-ज़मल अहज़ा-ब वहदहू , फिर सफा से चलकर मरवा पर पहुँचे तो वहाँ भी वही अमल किया जो सफा पर किया था। (मुस्लिम शरीफ)
तिर्मिज़ी शरीफ में है कि हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि सबसे बेहतरीन दुआ अरफा के दिन (यानी हज के मौके पर अरफात) की दुआ है और सबसे बेहतरीन कलिमा जो मैंने और मुझसे पहले नबियों ने इस मौके पर कहा यह हैः ला इलाह इल्लल्लाहु वदहू ला शरी-क लहू लहुलु मुल्कु व लहुल् हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर। कलिमा-ए-तौहीद के ज़िक्र हुए अलफाज़ के साथ दूसरी रिवायतों बियदिहिल् खैरु और युयी व युमीतु और वहु-व हय्युल् ला यमूतु का इज़ाफा भी फरमाया है।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जिस शख्स ने बाज़ार में यह कहाः ला इला-ह इल्लल्लाहु वदहू ला शरी-क लहू लहुल् मुल्कु व लहुलु हम्दु युह्यी व युमीतु व हु-व हय्युल् ला यमूतु बियंदिहिल् खैरु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर,
तर्जुमाः कोई माबूद नहीं अल्लाह के सिवा वह तन्हा है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये मुल्क है और उसी के लिये सब तारीफ है, वही ज़िन्दा फरमाता है और वही मौत देता है और वह हमेशा ज़िन्दा है उसको मौत नहीं आयेगी, और वह हर चीज़ पर कादिर है।
तो उसके लिये अल्लाह तआला दस लाख नेकियाँ लिख देंगे, और उसके दस लाख गुनाह माफ फरमा देंगे और उसके दस लाख दरजे बुलन्द फरमा देंगे और उसके लिये जन्नत में एक घर बना देंगे।(तिर्मिज़ी व इब्ने माजा)
खूबसूरत वाक़िआ :-ज़िक्र करो इतना कि लोग दीवाना कहें।
हज़रत अबदुर्रहमान बिन गनम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हुज़ूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि जो शख़्स मग़रिब और फजर की नमाज़ से फारिग होकर अपनी जगह से हटे बगैर उसी तरह टाँगें मोड़े हुए (जिस तरह अत्तहिय्यात पढ़ने के लिये बैठा है दस बारः ला इला- ह इल्लल्लाहु वहूदहू ला शरी-क लहू लहुलु मुल्कु व लहुल् हम्दु युह्यी व युमीतु व हु-व हय्युल् ला यमूतु बियदिहिल् खैरु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर” पढ़ ले तो हर बार के बदले उसके लिये दस नेकियाँ लिख दी जायेंगी और ये कलिमात हर तकलीफ से और शैतान मरदूद से उसके लिये हिफाज़त की चीज़ बन जायेंगे और सिवाय शिर्क के कोई गुनाह उसको हलाक न कर सकेगा। और यह शख़्स सबसे अफज़ल होगा, अलावा उसके कि कोई शख़्स इससे बढ़ जाये यानी इससे ज़्यादा कह ले जो इसने कहा। (मिश्कात)
बाज़ रिवायतों में है कि इन कलिामात को किसी से बात करने से पहले-पहले पढ़ ले और बाज़ रिवायतों में इन कलिमात को अस्र की नमाज़ से फारिग होकर पढ़ना भी आया है। (तरगीब)
हज़रत मुगीरा बिन शुअबा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रिवायत फरमाते हैं कि हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हर फर्ज़ नमाज़ के बाद यह पढ़ते थेः “ला इला-ह इल्लल्लाहु वहूदहू ला शरी-क लहू लहुल् मुल्कु व लहुल् हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर। अल्लाहुम्-म ला मानि-अ लिमा अञ्तैत वला मुञ्ति-य लिमा मनञ्-त व ला यन्फ्अ ज़जद्दि मिन्कल् जद्ददु ।
तर्जुमाः कोई माबूद नहीं अल्लाह के सिवा, वह तन्हा है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये मुल्क और उसी के लिये तारीफ है, और वह हर चीज़ पर कादिर है। ऐ अल्लाह! तू जो कुछ अता फरमाये उसका कोई रोकने वाला नहीं और जो कुछ तू रोक ले उसका कोई देने वाला नहीं। और किसी माल वाले को उसका माल तेरे फैसले के मुकाबले में कोई नफा नहीं दे सकता।
फर्ज़ नमाज़ों के बाद जो तसबीहात पढ़ने को बतायी हैं उनके पढ़ने के कई तरीके बयान किए गये हैं, उनमें से एक यह है कि 33 बार सुब्हानल्लाहि 33 बार अल्हम्दु लिल्लाहि 33 बार अल्लाहु अकबर कहे, इस तरह निन्नानवे (99) अदद हो जाते हैं और सौ (100) का अदद पूरा करने के लिए ला इला-ह इल्लल्लाहु वहूदहू लाशरी-क लहू लहुलु मुल्कु व लहुल् हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन् कदीर एक बार पढ़ ले। (मिश्कात शरीफ)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….