हज़रत उमर फारूक (र.अ)का दौरे खिलाफत।Hazrat Umar Farooq r.a. ka Daure Khilafat.

कुर्बानी का सुन्नत तरीका: Qurbani ka sunnat tariqa.एक शेर और लोमड़ी का वाक्या।Ek Sher aur lomdi ka waqia.औलाद की तरबियत कैसे करें?Aulaad ki Tarbiyat Kaise kare?

Hazrat Umar Farooq r.a. ka Daure Khilafat.

एक दिन ज़मान-ए-खिलाफ़ते उमर में हज़रत हफसा रज़ि अल्लाहु अन्हा ने अपने वालिद हज़रत उमर रजिअल्लाहु अन्हु से कहा कि आप ख़लीफ़-ए-वक्त हैं कुछ अच्छे और नर्म व नाजुक कपड़े पहना कीजिए।

हज़रत उमर ने फरमाया। बेटी! बीवी अपने शौहर के हाल से खूब वाकिफ होती है। सच बता । कभी तुम्हारे शौहर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पुर तकल्लुफ् कपड़े पहने? कभी दो वक़्त पेट भर कर खाना तनावल फरमाया ?

हज़रत हफ़सा रोने लगीं और अर्ज़ किया वाकई हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी पुर-तकल्लुफ लिबास नहीं पहना और कभी पेट भर खाना तनावल नहीं फरमाया । (नुज़हतुल मजालिस बाब फ़िल-कनाअत स० २१० जि. १) हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ि० का वज़ीफ़ा ।

हमारे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का लिबासे मुबारक सादा लेकिन इंतिहाई पाकीज़ा। लतीफ व नूरानी होता था। मालिके कौनेन होते हुए फाका भी फरमाते थे।Hazrat Umar Farooq r.a. ka Daure Khilafat.

और इस बात का ख़्याल तक भी न कीजिए कि ( मआज़ल्लाह) हुज़ूर को लिबास व ग़िज़ा मयस्सर न थी। अस्तगफिरुल्लाहिल-अज़ीम।आप (स.व)का यह फक्र फक्रे इख़्तियारी था।

इज्तिरारी न था जिसने इज्तिरारी समझा उसका ईमान गया हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हर अदा में सैंकड़ों हिकमतें मुज़मर होती थीं। आपने अमीर व गरीब में मसावात (बराबरी) पैदा करने के लिए यह अदा मुबारक अपनाई।

इसलिए की अमीर तो पुर-तकल्लुफ लिबास और किस्म-किस्म की गिजायें खा सकते हैं। लेकिन ग़रीब ऐसा नहीं कर सकता। उन दोनों में मसावात पैदा करने के लिए यह सूरत तो हो नहीं सकती कि सारे गरीब भी पुर-तकल्लुफ पहनना और पुर-तकल्लुफ खाने खाना शुरू कर दें।

हाँ यह सूरत मुम्किन है कि सारे अमीर तकल्लुफ़ को छोड़ कर सादा लिबास पहनना और सादा गिज़ा खाना शुरू कर दें गोया दोनों में मसावात पैदा करने का तरीका आपने यह तजवीज़ फरमाया कि उमरा अपनी सतह से नीचे उतर कर ग़रीबों की सतह पर ज़िन्दगी बसर करें। चुनांचे खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो सारे जहान से बड़े और दोनों जहानों के मालिक हैं।Hazrat Umar Farooq r.a. ka Daure Khilafat.

आपने अपने आपको मसाकीन की सतह पर रख कर अपनी उम्मत को यह दर्स दिया कि इस फानी जहान में तकल्लुफ़ को छोड़ कर सादगी इख़्तियार करो और अगला जहान आबाद करो। हज़रत उमर फारूक रज़ि० की हालत ।

आपको इल्म था कि कई मेरे ग़रीब उम्मती ऐसे भी होंगे जिन पर फाके भी आएंगे। उनकी तसल्ली के लिए आपने इख़्तियारी तौर पर फ़ाक़ा भी इख़्तियार फरमाया कि मेरे फाकाकश उम्मती मेरे फ़ाक़ा को याद करके खुश हो जाएं कि फ़ाक़ा करने की सुन्नते नबवी अदा हो गई हुज़ूर की सादगी महज़ तालीमे उम्मत के लिए थी। वरना हुज़ूर खुद फरमाते हैं।(मिश्कात)

अगर मैं चाहूं तो सारे पहाड़ मेरे लिए सोना बन जाएं और मेरे साथ-साथ रहें। यह भी मालूम हुआ कि हज़रत उमर फारूक रजिअल्लाहु अन्हु भी अपने आका की इस सुन्नत सादगी पर आमिल थे। बावजूद इस सादगी के आपका नाम सुनकर शैतान और कैसर व किसरा भी काँप उठते थे।Hazrat Umar Farooq r.a. ka Daure Khilafat.

आपका नाम सुनकर शैतान तो आज भी काँप उठता है। और तो कुछ कर नहीं सकता। हाँ गालियाँ देने लगता है। यह भी मालूम हुआ कि आजकल के माडर्न दौर में तकल्लुफ़ात बहुत हैं जिनकी बदौलत सब तकलीफ में हैं। दिन का लिबास और रात का और फिर महीने-महीने के बाद लिबास के फैशनों में तब्दीली ।

पिछले लिबास मतरूक ( छोड़ देना) और नए लिबास शुरू। फिर वह भी मतरूक और दूसरे शुरू ज़्यादा तर औरतें इन तकल्लुफ़ात में मुब्तला हैं। यह कपड़ा ज़रूरत की बिना पर खरीदती हैं। टरंकों के टरंक कपड़ों से भरे पड़े हों लेकिन उनकी शॉपिंग ख़त्म नहीं होती। ऐ मुसलमान औरत ।
सादगी हर वक़्त रख पेशे नज़र!
हज़रत हफसा का रोना याद कर!

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

Sharing Is Caring:

Leave a Comment