गुनाह बख़्श दिये जायेंगे। Gunah baksh diye jayege.

Gunah baksh diye jayege

हज़रत उसमान (र.अ)से रिवायत है कि नबी करीम(स.व)फ़रमाते हैं कि जिसने कामिल वुजू किया फिर नमाज़े फ़र्ज़ के लिये चला और इमाम के साथ बाजमाअत नमाज़ अदा की उसके गुनाह बख़्श दिये जायेंगे।

नबी करीम(स.व)ने इरशाद फ़रमाया, रात में मेरे रब की तरफ से एक आने वाला आया । और एक रिवायत में है रब को निहायत ही जमाल के साथ तजल्ली करते हुए देखा। उसने फ़रमाया, ऐ मुहम्मद ! मैंने कहा, लब्बेक ! उसने कहा, तुम्हें मालूम है मलाइका किस अम्र में बहस करते हैं ?

मैंने अर्ज किया नहीं जानता। उसने अपना दस्ते कुदरत मेरे शानों के दर्मियान रखा यहां तक कि उसकी ठंडक मैंने अपने सीने में पायी तो जो कुछ आसमानों और ज़मीनों में है और जो कुछ मश्रिक व मग्रिब के दर्मियान है मैंने जान लिया। फिर फरमाया, ऐ मुहम्मद ! जानते हो मलाइका किस चीज़ में बहस कर रहे हैं? मैंने अर्ज किया,

हां! दर्जात व कफ़्फ़ारात और जमाअतों के चलने और सर्दी और पूरा वुजू करने और एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ के इंतज़ार में, और जिसने इसकी मुहाफ़ज़त की, खैर के साथ जिन्दा रहेगा और खैर के साथ मरेगा और अपने गुनाहों से ऐसा पाक होगा जैसे अपनी मां के पेट से पैदा हुआ था। (तिर्मिज़ी शरीफ)

बाज़ सहाइफ में है: रब का फ़रमान है कि मेरी ज़मीन पर मेरे घर मस्जिदें हैं। और जो मस्जिदों में नमाज़ अदा करने वाले और इन्हें आबद रखने वाले हैं वह मेरी ज़ियारत करने वाले हैं। तो बशारत हो ऐसे शख्स को जो अपने घर से पाक व साफ होकर मेरी जियारत को आये और बा जमाअत नमाज़ अदा करे । (नुजहतुल मजालिस)

मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो ! नमाज़ बा जमाअत की वजह से गुनाह तो माफ होते ही हैं मगर करम बालाए करम यह है कि अगर कोई शख़्स नमाज़ बा जमाअत अदा करने के लिये मस्जिद जाता है तो गोया वह अल्लाह की जियारत को जाता है! कहां हम और कहां वह खालिक कायनात !

लेकिन उसका करम तो देखिये कि वह अपना मेहमान भी बना रहा है और अपनी ज़ियारत का सवाब भी अता फरमा रहा है। और एक बार नहीं, बल्कि दिन में पांच बार ! काश ! हम अल्लाह की दावत पर लब्बैक कहते हुए दिन में पांच बार नमाज़ बा जमाअत की अदायगी के लिये कोशिश करें ।

अल्लाह तआला हम सबको इसकी तौफीक अता फ़रमाये।

अहयाउल उलूम में है कि जो शख्स बा जमाअत नमाज़ अदा करता है उसका सीना इबादत से मुनव्वर हो जाता है। तबरानी में है कि अगर जमाअत को छोड़ने वाला जानता है कि बा जमाअत नमाज अदा करने वाले के लिये क्या अज्र है तो घसीटता हुआ जाता।

हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (र.अ)फरमाती हैं कि दाहिनी जानिब जमाअत में शामिल होने वाले पर अल्लाह और फरिश्ते सलात पढते हैं।

हज़रत अबू हुरैरा (र.अ)से मरवी है कि रसूलुल्लाह(स.व)फरमाते हैं कि जो अच्छी तरह वुजू करके मस्जिद जाये और लोगों को इस हालत में पाये कि नमाज़ पढ़ चुके हैं तो अल्लाह उसे भी जमाअत से पढ़ने वालों के मिस्ल सवाब देगा। और इनके सवाब से कुछ कम न करेगा। (अबू दाउद)

मेरे प्यारे आका के प्यारे दीवानो! आज अगर दुनिया का कोई बड़ा ओहदेदार, सरमायादार, हम को सलाम करे तो हम खुशियों से मचल जाते हैं लेकिन मेरे आका इरशाद फ़रमाते हैं कि जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाला अगर इमाम के साथ दायें जानिब हो तो इस पर अल्लाह और इसके फरिश्ते सलात पढ़ते हैं।

अगर इस नियत से बंदा घर से निकला कि जमाअत में शरीक हो जाये, लेकिन जमाअत न पा सका तो अल्लाह उसे भी जमाअत का सवाब अता फ़रमाएगा। अल्लाह हम सबको नमाज़ बा जमाअत अदा करने की तौफीक अता फ्रमाये । आमीन

पसंदीदा : रसूलल्लाह (स.व)ने इरशाद फ़रमाया, मर्द की नमाज़ मर्दे के साथ अकेले पढ़ने से बेहतर है और जो ज़्यादा हों यानी जिस कदर जमाअत में नमाज़ी ज़्यादा हों वह अल्लाह को ज़्यादा पसंद है।

हज़रत कबाष बिन अशीम लैषी (र.अ)से रिवायत है कि सरकार (स.व)ने इरशाद फ़रमाया : दो आदमियों की एक साथ नमाज़, कि उनमें से एक अपने साथी की इमामत करे, अल्लाह के नज़दीक उन चार आदमियों की नमाज़ से बेहतर है जो बारी बारी पढ़ें। और चार आदमियों की नमाज़ जमाअत से अल्लाह के नज़दीक उन आठ आदमियों की नमाज़ से बेहतर है जो एक के बाद दीगर पढ़ें।

और आठ आदमियों की नमाज़ इस तरह कि इनमें एक इमाम हो ये अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा पसंदीदा है उन सौ आदमियों की नमाज़ से जो कि अलाहेदा अलाहेदा पढ़ें। (तिब्रानी)

मेरे प्यारे आका(स.व)के प्यारे दीवानो! मजकूरा हदीस शरीफ से यह बात समझ में आती है कि जितनी बड़ी जमाअत मिले इसमें शरीक होने की कोशिश करें ताकि ज़्यादा सवाब भी हासिल हो और ताजदारे कायनात के फ़रमान की रौशनी में बेहतरी की सनद भी मिले।

अलबत्ता इसका ख़्याल रखना चाहिये कि वह जमाअत गुलामाने रसूल की हो। अगर इमाम गुस्ताखे रसूल हो और जमाअत कितनी ही बड़ी हो हमें इसकी इक़्तेदा नहीं करनी है। गुस्ताखे रसूल के पीछे नमाज़ पढ़ने से बेहतर है कि हम अकेले ही पढ़ लें।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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