नबी सल्ल. ने फ़रमाया कि अल्लाह कियामत के दिन फ़रमाएगा कि ऐ बनी आदम मैं बीमार हुआ और तू मेरी इयादत को न आया। मैंने तुझसे खाना और पानी मांगा मगर तूने मुझे कुछ भी नहीं दिया।
बन्दा कहेगा ‘ऐ अल्लाह ! तू बीमारियों से पाक और मोहताजी से परे है मैं तेरी तीमारदारी कैसे करता । अल्लाह फ़रमाएगा कि मेरा फलां बन्दा बीमार पड़ा था तू उसका हाल चाल के लिए नहीं गया मेरे फलां बन्दे ने खाना-पानी मांगा तूने उसे खाना पानी नहीं दिया क्या तुझे मालूम न था कि यदि तू मेरे बन्दे की इयादत करता तो मुझे उसके पास पाता। यदि उसे खिलाता-पिलाता तो मेरी जानिब से बहुत बड़ा दर्जा पाता।
नबी सल्ल. ने यह भी फ़रमाया कि जो बीमार को पूछने जाता है आसमान से एक फ़रिश्ता आवाज़ देता है कि तुझे दुनिया व आखिरत में खुशी हो।Bimaar ka Hal Chal Puchna.
तेरा चलना अच्छा हो और तूने जन्नत में बड़ा दर्जा हासिल किया। यह भी फ़रमाता है कि जो आदमी किसी बीमार की इयादत को सुबह जाता है उसके लिए सत्तर हज़ार फ़रिश्ते शाम तक बख्शिश की दुआ मांगते हैं जो आखिर दिन में जाता है तो सुबह तक दुआ मांगते रहते हैं। ( तिर्मिज़ी, अबूदाऊद, मुस्लिम मिश्कात 125 ) नेक और बुरे लोगों की रूहें और उनका अंजाम।
यह भी फ़रमाया कि जो आदमी वुज़ू करके रोगी की इयादत करता है वह साठ बरस की दूरी तक जहन्नुम से दूर रखा जाएगा और जब तक बीमार के पास रहता है अल्लाह की रहमत में डूबा रहता है। काफ़िर की भी .. इयादत करना सही है।
नबी सल्ल० ने अपने काफिर चचा अबू तालिब और दूसरे काफिरों की इयादत की है। आप ग़रीब और कमज़ोर लोगों की इयादत को भी जाते थे और फ़रमाते थे कि जब तक आदमी बीमार के पास रहता है जन्नत की हवा खाने में व्यस्त रहता है। ( मुस्लिम मिश्कात -125)
नबी सल्ल० के पास जब कोई बीमार लाया जाता तो आप उसके शरीर पर हाथ फेरते और शिफा के लिए दुआ मांगते और जब आप (स.व)खुद बीमार होते तो सूरः फलक और सूरः नास पढ़कर अपने हाथों पर दम करते और उन्हें बदन मुबारक पर फेरते।Bimaar ka Hal Chal Puchna.
आप दर्द वाले को फ़रमाया करते । दर्द की जगह हाथ रखकर तीन बार बिस्मिल्लाह पढ़कर यह दुआ सात बार पढ़ते : अऊजु बिइज्जतिल्लाहि व कुदरतिहि मिन शर्रिमा अजिदू व उहाज़िरु० ( मुस्लिम मिश्कात 126 – सहीहीन मिश्कात 126 )
1- मौत और बीमारियां I
नबी सल्ल. ने फरमाया कि मुसलमान तौहीद परस्त को जो तकलीफ व मुसीबत और दुख दर्द या चिंता पहुंचती है या किसी तरह का कोई कांटा लगता है तो इसकी वजह से अल्लाह उसके गुनाह दूर कर देता है और जो सब्र करता है और शुक्र अदा करता है बीमारी में गुनाहों से ऐसे पाक साफ हो जाता है जैसा कि मां के पेट से बेगुनाह पैदा हुआ था। (मुसनद अहमद मिश्कात 130) ग़ीबत और घमंड करने की सज़ा।
जो रोगी मरने के करीब हो वह खाने की कोई चीज मांगे तो उसे दे दी जाए। सालेह (नेक) मुसलमान बीमार पड़कर इबरत हासिल करता है और बाद के गुनाहों से बचता है और कपटाचारी बीमारी से इबरत पकड़ता है न गुनाहों से बचता है। (इब्ने माजा-130)
अल्लाह फ़रमाता है मुझे जिस बन्दे को नजात देनी मन्जूर होती है उसके माल व औलाद पर मुसीबत डाल देता हूं दुनिया में तंग रोजी करके बीमारी का शिकार करके गुनाहों से पाक साफ करके उठाता हूं।Bimaar ka Hal Chal Puchna.
नबी सल्ल. ने फ़रमाया जो तौहीद परस्त मुसलमान बीमार होकर वफात पा जाता है वह कब्र के अज़ाब से बचता और शहीदों के दर्जे में मरता है। महामारी से भागने में इतना ही गुनाह है जितना जिहाद से भागने में। जहां महामारी फैले उस जगह सब्र करने से शहीदों जैसा सवाब मिलता है जो तौहीद परस्त मुसलमान मिरगी पर सब्र करे उसकी निसबत नबी सल्ल. ने जन्नत की खुशखबरी दी है । (इब्ने माजा 126 )
मुसलमान तौहीद परस्त का सफ़र में मरना शहादत है इसी तरह महामारी और दस्तों और जलन्धरों के रोग या अचानक पानी में डूबकर या ऊंची दीवार से गिरकर या दर्द पसली का शिकार होकर या जिहाद में शरीक होकर या आग में जलकर और गर्भवती गर्भ की हालत में या बच्चा जनते समय या बच्चे को दूध पिलाने की उम्र में मर जाए या कोई आदमी टीबी से मर जाए या माल की हिफाजत में जान दे दे,
या घर पर ही हत्यारों द्वारा शहीद हो जाए या जिसे शेर फाड़ दे या सांप डस ले या कोई खतरनाक कीड़ा काट ले इन सब किस्म के लोगों का यदि तौहीद पर खात्मा हो तो शहीद के हुक्म में है मतलब शहीदों जैसा सवाब पाएंगे।
खासकर इस अशान्ति व खराब दौर में हदीसों पर चलने वालों को सौ शहीदों का सवाब मिलेगा जैसा कि नबी सल्ल. ने फरमाया है- जो लोग हदीस के इन्कारी हैं वे हमेशा इस महान सवाब से महरूम हैं।(इब्ने माजा सहीहीन मिश्कात 12 )
जो लोग सही तौर पर शहीद हैं उन्हें मरने के बाद गुस्ल देना, कलाना और उनके जनाजे की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है जैसा कि हज़रत उमर रज़ि. शहीद होने के बावजूद गुस्ल दिए गए, कफनाए गए और सहाबा ने उनके जनाजे की नमाज भी पढ़ी। बिस्मिल्लाह की बरकतें
2- वसीयत I
नबी सल्ल. ने फ़रमाया कि जिस मुसलमान के पास कुछ वसीयत के काबिल माल हो उसे शोभा नहीं देता कि बिना वसीयत के उस पर दो या तीन रातें गुज़ारे। सख्त बीमारी की हालत में एक तिहाई माल से ज्यादा वसीयत व खैरात करना जायज नहीं।
ऐसी हालत में वसीयत का माल गरीबों को सवाब की नीयत से सदक़ा देना सही है। चाहे रिश्तेदार हों या गैर लेकिन वारिस के लिए किसी तरह के माल की वसीयत जायज नहीं उनका हक़ अल्लाह ने पहले ही मुकर्रर कर दिया है जब आदमी बिल्कुल स्वस्थ और अच्छा भला हो उसे अख्तियार है चाहे अपना सारा माल एक आदमी को दे दे लेकिन बीमारी की हालत में ऐसा नहीं कर सकता ।Bimaar ka Hal Chal Puchna.
3- मरने वालों को नसीहत I
जिस समय कोई मुसलमान मरने के करीब हो उसे किब्ले रुख लिटा दें और सूरः यासीन सुनाएं और पास बैठ कर ऊंची आवाज़ से कलिमा पढ़ें लेकिन मरने वाले को मजबूर न करें कि वह भी कलिमा पढ़े ।
नबी सल्ल. ने फ़रमाया कि जिसका खात्मा ला इलाहा इल्लल्लाह पर होता है वह जन्नती है। जब यह आदमी मर जाए तो पास बैठने वाले उसकी आंखे बन्द कर दें और लाश को कपड़े से ढांक दे।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…