हदीस :- हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः
तर्जुमाः मेरे सामने जन्नत पेश की गयी तो मैं उससे एक गुच्छा तोड़ने गया ताकि तुम्हें दिखाऊँ लेकिन मेरे और उसके बीच रुकावट आड़ कर दी गयी। एक सहाबी ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! आप हमें मिसाल से स्पष्ट करें कि (जन्नत का) अंगूर कितना बड़ा होगा? आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया उस डोल से बड़ा होगा जिसको तेरी माँ ने यानी बकरी वगैरह की खाल से कभी काटकर तैयार किया हो। (तरगीब व तरहीब जिल्द 4 पेज 522)
हज़रत इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु शाम मुल्क में तशरीफ फरमा थे तो आपके साथियों ने जन्नत का आपस में तज़किरा किया। आपने फरमाया जन्नत के गुच्छों में से एक गुच्छा यहाँ मुल्क शाम से लेकर खीफा यानी मदीने के करीब एक जगह या सन्आ (जैसा कि इब्ने अबी दुनिया और तरगीब में है) जितना लम्बा है। (तरगीब व तरहीब जिल्द 4 पेज 522)
हदीस :- कुसूफ की नमाज़ वाली हदीस में हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु रिवायत करते हैं कि सहाबा किराम ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! हमने आपको यहाँ इसी जगह पर किसी चीज़ को उठाते हुए देखा है, मगर फिर हमने देखा कि आप पीछे हो गये हैं।
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः तर्जमाः मैंने जन्नत को देखा है और उसके एक गुच्छे को पकड़ा है। अगर मैं उसको तोड़ लेता तो जब तक दुनिया कायम रहती तुम उससे खाते रहते। (मुस्लिम शरीफ हदीस 907)
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जन्नत के फलों में से तक़रीबन हर फल की लम्बाई बारह हाथ है। उनमें गुठली नहीं होगी। (बुदूरे साफिरह हदीस 1889)
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि जन्नत के अनारों में से एक अनार के चारों तरफ बहुत से हज़रात बैठकर उससे खाया करेंगे। जब उनमें से किसी के सामने किसी चीज़ का ज़िक्र छिड़ेगा जिसकी उसको चाहत होगी तो वह उसको अपने हाथ में मौजूद पाएगा। जहाँ से वह खा रहा होगा। (तरगीब तरहीब जिल्द 4 पेज 528)
खूबसूरत वाक़िआ:-मां की गोद बच्चे का पहला मदरसा
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….