तौबा करने की फज़िलत।Tauba karne ki Fazilat.

Tauba karne ki Fazilat.

हदीस :-
हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि जुमा के दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने खुत्बा में हम से इरशाद फरमाया कि ऐ लोगों! मरने से पहले तौबा करो और कब्ल इस के कि ज़ोअफ या बीमारी की वजह से आजिज़ हो जाओ नेक आमाल में उजलत करो, अल्लाह से अपना ताल्लुक जोड़ लो कामयाब हो जाओगे।

खैरात ज़्यादा करो तुम्हारे रिज़्क में अफजूनी होगी, दूसरों को भलाई का हुक्म दो महफूज़ रहोगे, बुरी बातों से लोगों को रोको तुम्हारी मदद की जायेगी। हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अकसर यह दुआ फरमाया करते थेः इलाही मुझे बख़्श दे और मेरी तौबा कबूल फरमा बेशक तू ही तौबा करने वाला और मेहरबानी करने वाला है।

हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है किः इब्लीस को जब ज़मीन पर उतारा गया तो कहने लगा इलाही! तेरी इज़्ज़त और जलाल की कसम ! आदमी के बदन में जब तक जान रहेगी मैं बराबर उसको बहकाता रहूंगा, परवर दिगार ने फरमाया मुझे अपने इज़्ज़त व जलाल की कसम !

जब तक मौत की आखिरी हिचकी उसे न आ जाये मैं उसकी तौबा क़ुबूल फरमाऊंगा। हज़रत मोहम्मद बिन मतरफ रज़िअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि अल्लाह तआला फरमाता है कि आदमी पर रहमत हो कि वह गुनाह करता है और मुझसे माफी मांगता है और मैं उसको बख़्श देता हूं, उस पर रहमत हो कि वह दोबारा गुनाह करता है और मुझ से मग़‌फिरत तलब करता है उस माफ कर देता हूं रहमत हो उस पर कि न तो वह गुनाह के इरतेकाब से बाज़ आता है और न मेरी रहमत से मायूस होता है मैं तुम को गवाह बनाता हूं कि मैंने तुम को बख़्श दिया !Tauba karne ki Fazilat.

हज़रत अनस रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि आयते करीमा : वअनिस तग़फुरु रब्बकुम सुम्मा तुबू अलैहे के नूजूल के बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और सहाबा कराम सौ मरतबा इस्तिग़फार करते और कहते थे : हम अल्लाह से मग़फिरत चाहते हैं और तौबा करते है।

हज़रत अनस रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि एक शख़्स हुज़ूर की मजलिस में हाज़िर हुआ और अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ! मुझसे एक बड़ा गुनाह सरज़द हो गया है, आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला से इस्तिग़फार करो उसने अर्ज किया मैं इस्तिगफार कर लेता हूं फिर दोबारा वैसा करता हूं आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब भी गुनाह का इरतेकाब किया करे तौबा किया कर यहां तक कि शैतान जलील व ख़्वार हो जाये उसने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह अगर मेरे गुनाह ज़्यादा हो जायें तो? हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला की माफी तेरे गुनाहों से बहुत ज़्यादा है। हुस्ने अख़लाक की फज़िलत।

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया, बन्दा जब तौबा करता है और अल्लाह तआला उसकी तौबा क़बूल कर लेता है तो बारी तआला करामन कातेबीन को उस बन्दे के लिये गुनाह फ़रामोश करा देता है और बन्दा के वह आज़ा जिनसे गुनाह किये और वह ज़मीन जहां उसने गुनाह किये, वह आसमान जिसके नीचे उसने गुनाह किये सब फ़रामोश करा दी जाती हैं यानी आज़ा ज़मीन और आसमान सब फरमोश कर देते हैं इसी तरह क़यामत के दिन जब वह बन्दा आएगा तो उसके गुनाहों पर कोई गवाही देने वाला न होगा और न उस पर गुनाह का बोझ होगा।

तौबा की शिनाख्त :

तौबा करने वाले की तौबा की शिनाख्त चार बातों से होती है पहला ज़बान को बेहूदा बातों, गीबत, चुगलखोरी और झूट से रोक ले, दुसरा अपने दिल मे किसी के तरफ से हसद और दुश्मनी न रखे, तीसरा-बुरे लोगों से दूर रहे क्योंकि यह लोग बुराई की तरफ उसको रागिब करेंगे इस तरह तौबा की पुख़्तगी में फुतूर डालेंगे और उसकी तौबा टूट जायेगी। उन बातों को अपनाते रहे जिनसे तौबा में पुख़्तगी आती है और उन बातों से परहेज़ करे जिनसे तौबा में लचक पैदा होती है।

लिहाज़ा उम्मीद, कुव्वत और कुलबी इरादे को मजबूत करे क्योंकि इस तरह इसमें कुव्वत और वलवला पैदा होगा और यह इरादा तौबा को बरकरार रखने का मुहर्रिक होगा पस ममनूआते शरइया से दूर रहे और नफ़्से अम्मारा को ख़्वाहिशों की तकमील से बाज़ रखे और उसको रोके रहे ताकि वह दोबारा गुनाह का इरतेकाब न करे।

चौथा -बन्दा तौबा करने वाला खुद को उन कामों से अलग रखे जिनका ज़िम्मा खुद हक तआला ने लिया है मसलन रिज़्क वगैरा और उन कामों में यानी इताअत व बन्दगी में मसरुफ हो जाये जिसकी अदाएगी का हुक्म अल्लाह तआला ने दिया है। जब तुम किसी तौबा करने वाले में यह अलामते मौजूद पाओ तो जान लो कि वह उन लोगों में से है जिन के बारे में हक़ तआला ने इरशाद फरमाया है तौबा करने वालों को अल्लाह दोस्त रखता है।Tauba karne ki Fazilat.

लोगों पर भी चार बातें आएद होती हैं इसी तरह तौबा कबूल करने वाले (हक तआला) की तरफ अदबी दुनिया से चार बातें दूसरे लोगों के ज़िम्मा है पहला यह कि लोगों को चाहिए कि ऐसे शख़्स से मोहब्बत करे क्योंकि उस बन्दे ने अल्लाह से मोहब्बत करनी शुरू कर दी है दुसरा -लोग अपनी दुआओं के ज़रिये उसकी तौबा की हिफाज़त करें और कहें कि अल्लाह तआला उसे तौबा पर कायम रखे। तीसरा -लोग उसको उसके गुज़िश्ता (साबिका) गुनाहों पर मलामत न करे, ताना न दें।

नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि जिसने किसी मोमिन यानी तौबा करने वाले को उसकी बुराई (गुनाह) के साथ मलामत की तो वह बुराई उस मोमिन के लिए कफ़्फ़ारा बन जायेगी और अल्लाह तआला अगर चाहेगा तो बुराई करने वालों को उस बुराई में मुबतला कर देगा।

और जो शख़्स किसी मुसलमान के किसी गुज़रे हुए गुनाह से उस पर ताना ज़न हो तो वह दुनिया से उस वक़्त तक नहीं जायेगा जब जक वह खुद उस जुर्म पर इरतेकाब न कर ले और उसके बाइस रूसवा न हो इस लिए कि कोई मोमिन इरतेकाबे गुनाह का इरादा नहीं करता न अपने दिल से क्सदे गुनाह करता है न गुनाह को दीन का जुज़्व समझता है कि उसे दीनदारी के तौर पर करता हो सिर्फ शैतान के फरेब दही, जोशे शहवत और नफ़्सानी शौक की फावानी गफलत व फ्रेब खुरदगी की वजह से उससे गुनाह वाकेअ होता है।

अल्लाह तआला का इरशाद है और अल्लाह ने कुफ्र, फिस्क और नाफरमानी को तुम्हारे लिए ना पसन्दीदा बना दिया है। इस आयत में अल्लाह तआला ने वज़ाहत फरमा दी है कि अहले ईमान के नज़दीक मआसीयत इन्तेहाई नागवार चीज़ है इस लिए मोमिन जब तौबा करे और अल्लाह की तरफ रुजूअ हो जाये तो उसको तौबा करदा गुनाह याद दिला कर शर्मिन्दा करना जाएज़ नहीं बल्कि उसके लिए दुआ करना चाहिए कि अल्लाह तआला उस तौबा पर उसको कायम रखे और उसको तौफीक दे और उसकी हिफाज़त फरमाये। गौस पाक और जिन्नात का वाक़िआ।

चौथा – लोगों पर वाजिब है कि उसके साथ बैठें उठें, उससे बात चीत करें, उसके मआविन व मददगार हों और उसकी इज़्ज़त करें।

तौबा करने वाले को भी अल्लाह तआला चार बातों से सरबलन्द व मोअज़्ज़ज़ फरमाता है ।

1- गुनाहों से उसको इस तरह निकाल लेता है जैसे उसने गुनाह ही नहीं किया ।
2-अल्लाह तआला को अपना दोस्त बना लेता है । 3-शैतान उस पर ग़ालिब नहीं होता ।
4-दुनियां से रुख़्सत होने से कब्ल उसको ख़ौफ़ से अम्न व अमान बख़्शता है।

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैः उन पर रिश्तों का नुजूल होता है और वह कहते हैं कि तुम ख़ौफ़ न करो और न हिज़्न व मलाल। तुम को उस जन्नत की खुशख़बरी हो जिसका तुम से वादा किया गया है।Tauba karne ki Fazilat.

तौबा के दर्जे

शैखे तरीकत अबू अली दक़्क़ाक ने फरमाया है कि तौबा के तीन दर्जे हैं ।
(1) तौबा ।
(2) एनाबत ।
(3) अदबत ।
तौबा इब्तेदाई दर्जा है, दूसरा दर्ज़ा एनाबत है और तीसरा दर्जा अदबत है। जिसने अज़ाबे इलाही के ख़ौफ़ से तौबा की वह साहिबे तौबा है, जिसने सवाब की ख़ातिर या अज़ाब से बचने लिये तौबा की वह साहिबे एनाबत है और जिसने महज़ अल्लाह तआला के हुक्म की तामिल में तौबा की, सवाब की उम्मीद और अज़ाब के अंदेशा से नहीं वह साहिबे अदबत है।

मशाइखे कराम ने यह भी फरमाया है कि तौबा आम अहले ईमान की सुन्नत है, अल्लाह तआला का इरशाद है: ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से तौबा किया करो ताकि तुम फ्लाह पाओ।

एनाबत औलियाए मुर्काबीन की सिफ़त है। अल्लाह तआला फरमाता हैः अल्लाह की तरफ मुतवज्जह होने वाले दिल के साथ आया है। अदबत अंबिया मुर्सलीन अलैहिमुस्सलाम की सिफ़त है इरशादे बारी हैः कितना अच्छा बन्दा है क्योंकि वह अल्लाह की तरफ रूजू होने वाला है।

हज़रत जुनैद ने फरमाया कि तौबा तीन मानी पर हावी है (1) गुनाह पर पशेमानी ।
(2) जिस चीज़ को अल्लाह ने मना फरमाया है उसको दोबारा न करने का पुख्ता इरादा ।
(3) हुकूके इन्सानी को अदा करने की कोशिश।

हज़रत सहल बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि तौबा नाम है आइन्दा गुनाह को तर्क कर देने का यानी आइन्दा गुनाह न करने का, हज़रत जुनैद रज़िअल्लाहु अन्हु से मरवी है कि मैंने हारिस रज़िअल्लाहु अन्हु को यह कहते हुए सुना कि मैं कभी अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोकत्तौबा नहीं कहता हूं बल्कि कहता हूं अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका शवतत्तौबा यानी ऐ अल्लाह मैं तुझ से तौबा की आरजू तलब करता हूं।Tauba karne ki Fazilat.

हज़रत जुनैद रज़िअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक रोज़ मैं हज़रत सिर्री सिक्ती रज़िअल्लाहु अन्हु के पास पहुंचा। तो मैंने उनका रंग परीदा पाया मैंने वजह दरयाफ्त की तो आपने फरमाया कि एक जवान ने मुझसे तौबा के बारे में दरयाफ्त किया, मैंने उसको बताया कि तौबा यह है कि तू अपने गुनाहों को न भूले, वह नौजवान मुझसे झगड़ने लगा और कहा तौबा यह है कि तू अपने गुनाहों को भुला दे, मैंने कहा कि मेरे नज़दीक तो तौबा के यही मानी हैं जो उस जवान ने बताए हैं।हज़रत गौसे पाक का अक़ीदा ।

हज़रत सिर्री सिक़्ती रज़िअल्लाहु अन्हु ने पूछा क्यों यह मानी क्योंकर हैं? मैंने जवाब दिया कि मैं इस लिये कहता हूं कि जब मैं रंज व अलम के आलम में होता हूं तो वह मुझे आराम व राहत की हालत में ले जाता है और आराम व राहत की हालत में रंज व अलम को याद करना जुल्म है यह सून कर वह ख़ामोश हो गए।

तौबा के मजीद मानी

हज़रत सहल बिन अब्दुल्लाह रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि तौबा यह है कि तू अपने गुनाहों को न भूले। हज़रत जुनैद बगदादी ने किसी शख़्स के सवाल के जवाब में फरमाया कि तौबा यह है कि अपने गुनाहों को भूल जाओ, हजरत अबू नसर सर्राज ने मजकूरा बाला (दोनों मुतज़ाद) कौलों की तशरीह की है वह फरमाते हैं कि हज़रत सहल के कौल में मुरीदों और उन दूसरे लोगों के अहवाल की तरफ इशारा है कि वह कभी तो अपने नफा के सिलसिले में सोचते हैं और कभी नुकसान पर अफसोस करते हैं ,

लेकिन हज़रत जुनैद बग़दादी रज़िअल्लाहु अन्हु ने मुहक्ककीन की तौबा की तरफ इशारा किया है क्योंकि जब मुहक्ककीन के दिलों पर अज़मते इलाही का गलबा होता है और वह हमेशा ज़िक्रे इलाही में मशगूल रहते हैं इस लिए वह अपने गुनाहों को याद ही नहीं कर पाते। हज़रत जुनैद बग़दादी रज़िअल्लाहु का यह कौल हज़रत रोयम के कौल के मानिन्द है जब उनसे तौबा के बारे में दरयाफ्त किया तो उन्होंने फरमाया कि तौबा की याद से तौबा करना चाहिए।

हज़रत जुन्नून मिसरी

हज़रत जुन्नून मिसरी रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि अवाम की तौबा गुनाहों से होती है और ख़्वास की अदबी दुनिया गफलत से। हज़रत अबुल हसन नूरी रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि तौबा यह है कि मा सिवा अल्लाह से तौबा की जाये।Tauba karne ki Fazilat.

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद बिन अली रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि एक तौबा करने वाला तो अपनी लगज़िशों से तौबा करता है और एक ताएब गफलत से तौबा करता है और एक तौबा करने वाला नेकियों के देखने से तौबा करता है ज़ाहिर है कि इन तीनों में कितना अज़ीम फर्क है।

हज़रत अबू बकर वासती तौबा किसे कहते हैं:

हज़रत अबू बकर वासती रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि ख़ालिस तौबा यह है कि ताएब के ज़ाहिर व बातिन में मआसीयत का शाएबा भी बाकी न रहे जिसकी तौबा ख़ालिस होती है वह परवाह नहीं करता कि तौबा के बाद उसकी शाम कैसी गुज़री और सुबह कैसी हुई।

हज़रत यहया बिन मआज़ राजी ने मुनाजात में कहा इलाही! मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैंने तौबा की है न यह कहता हूं कि अब ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि मैं अपनी सरिश्त को पहचानता हूं और न मैं इसकी जमानत दे सकता हूं कि आइन्दा गुनाह नहीं करूंगा क्योंकि मैं अपनी कमजोरियों को जानता हूं फिर भी मैं यह कहता हूं कि आइन्दा ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि शायद मैं दोबारा ऐसा करने से पहले मर जाऊं।

हज़रत जुन्नून मिसरी रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि गुनाहों को छोड़े बगैर तौबा करना झूटों की तौबा है।

आपने यह भी फरमाया कि तौबा की हक़ीक़त यह है कि ज़मीन अपनी वुसअत व फुसहत के बावजूद तुझ पर तंग हो जाये यहां तक कि तेरे लिए फार की राह बाकी न रहे इसके बाद तेरी जान तुझ पर तंग हो जाये जैसा कि अल्लाह तआला कुरआन करीम में इरशाद फरमाता है। फ़ारख़ होने के बावजूद ज़मीन उन पर तंग हो गईं और उनकी जानें उन पर तंग हो गई और उन्होंने जान लिया कि अल्लाह के सिवा और कोई ज़रिया अल्लाह से बचाव का नहीं है फिर अल्लाह ने उनकी तरफ तवज्जोह फरमाई ताकि वह उसी की तरफ लौट आयें।

इब्ने अता का इरशाद

इब्ने अता ने फरमाया कि तौबा दो तरह की है तौबा एनाबत और तौबा इस्तजाबत, तौबा एनाबत यह है कि बन्दा अल्लाह तआला के अज़ाब से तौबा करे। तौबा इस्तजाबत यह है कि बन्दा खुदावन्द तआला के लुत्फ व करम से हया करते हुए तौबा करे।Tauba karne ki Fazilat.

हज़रत यहया बिन मआज राज़ी ने फरमाया कि तौबा के बाद का एक गुनाह तौबा, तौबा के पहले सत्तर (70) गुनाहों से बदतर है।

हज़रत अबू उमर अन्ताई रज़िअल्लाहु अन्हु ने फरमाया कि अली बिन ईसा वज़ीर एक अज़ीम लश्कर के साथ जा रहा था अवाम पूछने लगे कि यह कौन शख़्स है? सरे राह खड़ी हुई एक ज़ईफा ने कहा कि क्या तुम यह पूछते हो कि यह कौन है? यह एक बन्दा है जो खुदा की नज़रों से गिर गया है और खुदा ने इसको दुनिया में मुबतला कर दिया है जिसमें तुम इसे देख रहे हो, ज़ईफा की यह बात अली बिन ईसा ने सुन ली घर वापस जाकर उन्होनें वज़ारत से इस्तीफा दे दिया और मक्का मुकर्रमा में पहुंच कर मुकीम हो गये।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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