
हमारा ख्याल यह है कि इसमें सिर्फ हमें दो रकअत नमाज़ अदा करने के बाद घूम फिर के और फुजूल कामों में उसे गुज़ार देना है, हत्ता कि बाज़ नौजवान दोगाना अदा करने के फौरन बाद घूमने फिरने की जगहों, सिनेमा हालों और पिकनिक की जगहों की तरफ रवाना हो जाते हैं और माहे रमज़ान जो हमें गुनाहों से रोकने के लिए आया था और हमें तक़वा का दर्स देने आया था उसके गुज़र जाने के बाद तक्वा का तसव्वुर ही हमारे दिल से खत्म हो जाता है।
याद रखें! इस्लाम खुशी मनाने का हुक्म देता है मगर वह खुशी जिसमें शरीअते मुतहहरा के एहकाम के खिलाफ वरज़ी की जाए इस्लाम इसकी हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। हमें ईद का दिन कैसे गुज़ारना चाहिए मंदरजा जैल सुतूर को पढ़ें और अमल करने की कोशिश करें। ईद मनाना कब से शुरू हुआ।
अबू दाऊद हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मदीना तशरीफ लाए उस ज़माने में एहले मदीना साल में दो दिन खुशी मनाते थे (महरगान दीरोज) फरमाया, यह क्या दिन हैं? लोगों ने अर्ज़ किया, जाहिलियत में हम इन दिनों में खुशी मनाते थे। फरमाया, अल्लाह तआला ने उनके बदले में उनसे बेहतर दो दिन तुम्हें दिए, ईदुल अज़्हा और इंदुल फित्र।
ईद का दिन कैसे गुज़ारें :-
इस्लाम दीने फितरत है इसने अपने मानने वालों को हयात के हर लम्हा के लिए उसूल और जाब्ता मुहय्या फरमाया है, ईद मनाने के उसूल अता फरमाए हैं। अस्लाफे किराम की तारीख के मुताला से पता चलता है कि वह इस मुबारक दिन बाकसरत अल्लाह की इबादत करते थे, गरीबों की ग़मख्वारी करते, यतीमों, बेवाओं का सहारा बनते वगैरा वगैरा। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हमें भी उन पाक बाज़ नुफूसे कुदसिया के नक्शे कदम पर चलने की तौफीक़ अता फरमाए। आमीन
गरीबों का ख्याल रखें :-
यूँ तो दीने इस्लाम ने हर लम्हा गरीब परवरी, मुफलिसों की मदद और यतीमों और मिस्कीनों की फ़रियाद रसी का दर्स दिया है, खुसूसन ईद के दिन इन्हें नहीं भूलना चाहिए। इसी लिए बानी-ए- इस्लाम ने ईद की नमाज़ अदा करने से पहले सदक्-ए-फित्र अदा करने का हुक्म फरमाया ताकि मुसलमान इस खुशी के मोके पर अपने गरीब भाइयों को भी याद रखें और अपनी खुशी में उन्हें भी शरीक कर लें।
अब सदक-ए- फित्र के हवाले से चंद मसाइल मुलाहिजा करेंः-
☆ सदका-ए-फित्र हर मुसलमान आज़ाद मालिके निसाब पर जिसकी निसाब हाजते असलिया से फारिग हो, वाजिब है। इसमें आकिल बालिग होने की शर्त नहीं। नाबालेगीन का सदका उनके वलियों पर वाजिब है।
☆ सदका-ए-फित्र शख्स पर वाजिब है, माल पर नहीं, लिहाजा अगर कोई शख्स मर गया तो उसके माल से सदका-ए-फित्र वाजिब नहीं। इफ़तार का बयान ।
☆ ईद के दिन सुबहे सादिक तुलू होते ही सदका-ए-फित्र वाजिब हो जाता है। लिहाजा जो सुबह सादिक के बाद पैदा हो या काफिर था मुसलमान हुआ या फकीर था मालिके निसाब हुआ तो उस पर भी सदका-ए-फित्र वाजिब है।
☆ सदका-ए-फित्र वाजिब होने के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं है, अगर किसी उज़्र, सफर, बीमारी, बुढ़ापे की वजह से या (मआज़ल्लाह) विला उज़र रोज़ा न रखा तब भी उस पर वाजिब है।
☆ सदका-ए-फित्र उन्हीं को देना जाइज़ है जिनको ज़कात देना जाइज़ है, जिनको ज़कात नहीं दे सकते उन्हें फितरा भी नहीं दे सकते। (बहारे शरीअत)
☆ सदका-ए-फित्र की मिक्दार यह है कि गेंहूं वा उसका आटा या सत्तू आधा साअ, खजूर या मुनक्का वा जव या उसका आटा या सत्तू एक साअ, गेंहू या जो देने से उनका आटा देना अफज़ल है और उससे अफज़ल यह है कि उनकी कीमत दे।
आला दरजे की तहकीक और एहतियात यह है कि साअ का वज़न तीन सौ इकयावन रुपया भर है और आधा साअ का वजन एक सौ पछत्तर रुपया अठन्नी भर ऊपर है। यानी अस्सी भर के नम्बरी सेर से जो आज कल हिन्दुस्तान के अक्सर बड़े शहरों में राइज़ है, एक साअ चार सेर सवा छः छटाक का होता है और आधा साअ दो सैर सवा तीन छटाक का होता है। आसानी और ज़्यादा एहतियात इसमें है कि गैहूं सवा दो सेर नम्बरी या जो साढ़े चार सेर नम्बरी एक एक शख्स की तरफ से दें। (कानूने शरीअत)
ईद के दिन यह बातें मुस्तहब हैं :-
हजामत बनवाना, नाखून काटना, गुस्ल करना, मिस्वाक करना, अच्छे कपड़े पहनना, (नया हो तो नया वरना साफ सुथरा धुला हुआ) अमामा बांधना, अंगूठी पहनना, खुश्बू लगाना, सुबह की नमाज़ मुहल्ला की मस्जिद में पढ़ना, ईदगाह जल्द जाना, नमाज़ से पहले सदका-ए-फित्र अदा करना, ईदगाह को पैदल जाना, दूसरे रास्ते से वापिस आना, नमाज़ को जाने से पहले चंद खजूरें खा लेना, तीन पांच वा सात या कम व वेश मगर ताक अदद में हों। खजूरें न हों तो कुछ मीठी चीज़ खा लें।
खुशी जाहिर करना, कसरत से सदका देना, ईदगाह को इत्मिनान व वक़ार से और नीची निगाह किए जाना, आपस में मुबारक बाद देना यह सब बातें ईद के दिन मुस्तहब हैं।
इन बातों से परहेज़ करें :-
अब हम चंद ऐसी चीज़ों का जिक्र करने जा रहे हैं जो हमारे मुआशरे में राइज हैं मगर शरीअत की रू से इसको करना किसी तोर पर दुरुस्त नहीं बल्कि दुनिया व आखिरत में तबाही का सबब हैः-
☆ ईद का दिन आने पर आम तौर पर मुसलमान सिनेमा, ड्रामा, सर्कस वगैरा देखने जाते हैं।
☆ बाज़ मुसलमान ईद के दिन शराब नोशी, जुआ वगैरा खेलते हैं। बाज़ जगहों पर गाने वगैरा लगा कर लड़कों के साथ साथ लड़कियाँ भी नाचती हैं। बाज़ जगहों पर पटाखे वगैरा फोड़े जाते हैं।
☆ बाज जगहों पर बाकायदा टी.वी. लगा कर लोगों को जमा करके लोग फिल्में देखते हैं। (मआजल्लाह)
मजकूरा उमूर का इरतिकाब सरासर अल्लाह व रसूल की नाराजगी का सबब बनते हैं, मजकूरा अफ्आले मजमूमा व कबीहा के इरतिकाब से हम हरगिज़ फ्लाहे दारैन की अबदी सआदतों को हासिल नहीं कर सकेंगे। फ्लाह व कामयाबी तो अल्लाह अज़वजल और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत व फरमांबरदारी में है।
रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है कि हम सब को अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की प्यारी सुन्नतों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…