19/05/2025
रमज़ानुल मुबारक की आख़री शब कैसे गुज़ारें 20250308 230224 0000

रमज़ानुल मुबारक की आख़री शब कैसे गुज़ारें?How to spend the last night of Ramzanul Mubarak?

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How to spend the last night of Ramzanul Mubarak?
How to spend the last night of Ramzanul Mubarak?

माहे रमजानुल मुबारक में हम रोज़ा रखते हैं, नवाफिल पढ़ते हैं, तरावीह का एहतेमाम करते हैं, कुरआन मुकद्दस की तिलावत करते हैं, गरीबों की मदद करते हैं, रोजादारों को इफ्तारी कराते हैं, अपने एहल व अवाल पर खूब दिल खोल कर खर्च करते हैं।

यकीनन! इन आमाल में बेहद सवाब और बेशुमार फवाइद हैं लेकिन जैसे ही हम ईद का चाँद देखते हैं यह तसव्वुर करते हैं कि सारे आमाले खैर से हमें छुटकारा मिला, ईद का चांद देखते ही हम बाज़ार में निकल जाते हैं और किस्म किस्म का सामान खरीदने में मशगूल हो जाते हैं और अकसर लोगों का हाल यह होता है कि माहे रमजानुल मुबारक का चांद देखते ही गोया वह अल्लाह को भूल गए हों, पूरा महीना इबादत और नेकी में गुज़ारने के बाद ईद का चांद देखते ही नमाज़ों को तर्क करके दीगर आमल में मशगूल हो जाते हैं।

हमें कभी यह ख्याल नहीं आता कि क्या हमने माहे रमजानुल मुबारक की इस तरह क्द्र की है जिस तरह उसकी कद्र करने का हक़ बनता है, क्या हमने इसमें इस तरह इबादत की है जिस तरह इबादत करनी चाहिए। शबे ईद माहे रमजानुल मुबारक में की जाने वाली नेकियों का बदला लेने की शब है अगर हम उसी शब में अल्लाह से गाफिल हो जाऐंगे तो यह कितनी कम नसीबी की बात होगी। लिहाजा इस हदीस को पढ़ो और शबे ईद में माहे रमज़ानुल मुबारक में अपने सारे आमाल का तजजिया और एहतिसाब करो।

अल्लाह के प्यारे हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया जब ईदुल फित्र की रात आती है तो मलाइका खुशी मनाते हैं और अल्लाह तआला अपने नूर की खास तजल्ली फरमाता है, फरिश्तों से फरमाता है, ऐ गिरोहे मलाइका। उस मज़दूर का क्या बदला है जिसने अपना काम पूरा कर लिया? फरिश्ते अर्ज़ करते हैं, उसको पूरा अज्र दिया जाए। अल्लाह फरमाता है, मैं तुम्हें गवाह करता हूँ कि मैंने इसको बख्श दिया।

इस हदीस को पढ़ने के बाद रमजान की आखरी शब हमें अपना एहतिसाब करना चाहिए कि हमने पूरे माह में कितनी नेकी की है और आज जो नेकियों का सिला मिलने की शब है उसमें हम कितनी अज्र के हकदार हैं।

अगर हम ने माहे रमजानुल मुबारक में भरपूर इबादत की है तो ठीक है और अगर हम से इबादत में कोताही हो गई है तो फिर अब कौन सी खुशी हमें है जिसकी इतनी धूम धाम से तैयारी करने जा रहे हैं, हमें तो अपनी कोताहियों पर अफसोस व नदामत करना चाहिए था कि अफसोस सद अफसोस ! हम से माहे मोहतरम रमज़ानुल मुबारक का हक़ अदा नहीं हो सका।

सहाबा-ए-किराम और बुजुर्गाने दीन की हयाते तैयबा का अगर हम मुताला करें तो हम पर यह बात वाज़ेह हो जाएगी कि वह हज़रात रमजानुल मुबारक के महीने में वे शुमार नेकियाँ करने के बावजूद ईद के दिन कितना अफसोस किया करते थे और उनको वह फिक्र सताया करती थी कि क्या हमने रमज़ानुल मुबारक का हक अदा कर दिया है!

जैसा कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो के हवाले से मंकूल है कि आप ईद के दिन गोश-ए-तंहाई में बैठ कर इतना रोए कि रेशे मुबारक तर हो गई, लोगों ने दरियाफ़्त किया तो फरमाया, जिसको यह मालूम न हुआ कि उसके रोजे कुबूल हुए या नहीं वह ईद कैसे मनाए। (मवाइजे हुसना)

इसी तरह हज़रत सालेह रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि के हवाले से मंकूल है कि वह ईद के दिन अपने एहल व अयाल को इकट्ठा करते और सब मिल कर रोते, लोगों ने मालूम किया कि आप क्यों ऐसा करते हैं? फरमाने लगे, मैं गुलाम हूँ, अल्लाह तआला ने हमें नेकी करने और बुराई से बचने का हुक्म फ़रमाया है, हमें मालूम नहीं कि वह हम से पूरा हुआ या नहीं,? ईद की खुशी मनाना उसे मुनासिब है जो अजाबे इलाही से अम्न में हो।

वह हजरत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो जिनके हवाले से सैय्यदे कौनेन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि उनकी नेकियाँ आसमान के सितारों के बराबर हैं और हज़रत सालेह रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि जो अल्लाह के बरगुज़ीदा बंदे हैं, इन हज़रात का यह हाल है कि इस तसव्वुर से रो रहे हैं कि क्या खबर माहे रमज़ानुल मुबारक के रोजे कुबूल हुए हैं या नहीं, दुआ-ए-मासूरा पढ़ने की फज़िलत।

अल्लाह के हुक्म की तकमील हुई या नहीं, अल्लाह हम से राजी हुआ या नहीं। लेकिन हमारा हाल यह है कि हमारे दिल में कभी वह ख्याल भी पैदा नहीं होता और हम रमज़ान के रुखसत होते ही रक्स व सुरूर में मदहोश होकर अल्लाह को भूल जाते हैं।

मेरे अर्ज़ करने का मक्सद यह नहीं कि ईद न मनाई जाए। यकीनन । ईद मनानी चाहिए मगर साथ ही साथ अल्लाह तबारक व तआला के ज़िक्र से गाफिल नहीं होना चाहिए। चाहे खुशी का मोका हो या गम का। जैसा कि हुज़ूर ताजदारे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया ” क्यामत के दिन सबसे पहले जन्नत की तरफ बुलाया जाएगा, वह होंगे जो खुशी व ग़म में अल्लाह की हम्द करते हैं।

अल्लाह तबारक व तआला को इस शब में याद करने की फज़ीलत हदीसे पाक में इस तरह मरवी है कि हज़रत अबू अमामा रजियल्लाहु अन्हु ने ताजदारे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत की है कि जो ईदेन की रातों में क्याम करे उसका दिल उस दिन न मरेगा जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे।

दूसरी रिवायत में इस तरह मंकूल है कि अस्बहानी मआज बिन जब्ल रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैं कि जो पांच रातों में शब बेदारी करे उसके लिए जन्नत वाजिब है। जिल हिज्जा की आठवीं, नववीं और दसवीं शब, ईदुल फित्र की रात और शाबान की पंद्रहवीं रात यानी शबे बरात ।

प्यारे दीवानो! नबी-ए-सादिक व मस्दूक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मजकूरा बाला अहादीसे करीमा में शबे ईद में क्याम यानी रात में जाग कर इबादत करने की फज़ीलत बयान फरमा दी, पहली हदीस में यह इर्शाद फरमाया कि जब सारे लोगों के दिल मुरदा होंगे उस वक़्त उस शख़्स का दिल जिंदा रहेगा जो शख़्स इस रात में जाग कर इबादत करता है, और दूसरी रिवायत में यह फ़रमाया कि जो इस रात में इबादत करेगा उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाएगी। अब मुझे बताइए कि कौन शख़्स जिंदा दिली नहीं चाहता यकीनन हम में का हर शख़्स यह चाहेगा कि उसका दिल जिंदा हो।

जिंदगी जिंदा दिली का नाम है मुरदा दिल क्या खाक जिया करते हैं.

इसी तरह हर शख़्स जन्नत भी चाहता है मगर जन्नत हासिल करने के लिए गुनाह नहीं बल्कि नेकियाँ काम आती हैं, हमारा तो यह हाल है कि गुनाह पे गुनाह करते जाते हैं और तसव्वुर करते हैं कि जन्नत हमारे नाम से ही बनाई गई है। याद रखें कि जहन्नम अल्लाह तआला ने तैयार कर रखा है उन लोगों के लिए जो उसकी इताअत नहीं करते हैं।

यानी तुम गुनाह पे गुनाह किए जा रहे हो और इससे जन्नत और इबादत करने वाले की तरह कामयाबी की उम्मीद रखते हो। क्या तुम यह भूल गए कि अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को फ्कत एक खताए इजतिहादी की वजह से जन्नत से निकाल दिया था।

लिहाज़ा हमें शबे ईद भी अल्लाह की याद में और गुनाहों से अपने आपको बचाते हुए गुज़ारना चाहिए। अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है कि हमें इसकी तौफीक़ अता फरमाए।

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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