नमाज़ के वक़्तों की फज़िलत।Namaz ke waqton ki Fazilat.

Namaz ke wanton ki fazilat

अल्लाह तआला का फरमान हैः- तर्जुमाः- मुसलमानों पर नमाज़ मुकर्रर वक़्तों पर फर्ज़ की गई है। (सूरः निसा 4, आयत 103)

हदीस :- हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से नमाज़ पढ़ने, ज़कात देने और हर मुसलमान के साथ खैरख़्वाही (भलाई) करने पर बैअत की थी।

हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पूछा कि कौन सा अमल अल्लाह तआला की बारगाह में सबसे ज़्यादा पसन्दीदा है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- वक़्त पर नमाज़ पढ़ना। मैंने पूछा फिर कौन सा ? फरमाया माँ-बाप से अच्छा सुलूक करना। मैंने पूछा फिर कौन सा ? फरमाया अल्लाह की राह में जिहाद करना। हज़रत इब्ने मसऊद फरमाते हैं कि आपने ये तीन बातें बताईं अगर मैं और कुछ पूछता तो आप और ज़्यादा बयान फ़रमा देते।Namaz ke waqton ki Fazilat.

हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- अगर तुम में से किसी के दरवाज़े पर पानी की नहर बहती हो और वह रोज़ाना पाँच बार उसमें गुस्ल करता हो क्या उसके जिस्म पर मैल-कुचैल बाकी रहेगी? सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज किया “नहीं ज़रा भी मैल नहीं रहेगा” आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- “पस यही पाँच नमाज़ों की मिसाल है, अल्लाह तआला उनकी वजह से गुनाह मिटा देते हैं।” ईद मिलाद-उन-नबी |12 रबीउल-अव्वल की फज़िलत।

हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जिस शख़्स की असर की (यानी बीच वाली) नमाज़ छूट गई वह ऐसा है जैसे उसका घर-बार और तमाम माल असबाब सब लुट गया हो।

वज़ाहत :- हर नमाज़ वक़्त पर जमाअत के साथ अदा करें खास तौर पर असर की। नमाज़े असर की ताकीद इसलिये है कि यह दुनियावी धंधों और कामों के लिहाज़ से बहुत अहम वक़्त है, या कुछ लोग इस वक़्त सोते रहते हैं और सूरज गुरूब होने लगता है। कोई भी नमाज़ (मर्द को) बगैर शरई उज्र के घर या दफ्तर में नहीं अदा करनी चाहिये, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक नाबीना सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्मे मक्तूम रज़ियल्लाहु अन्हु तक को जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया था। Namaz ke waqton ki Fazilat.

हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया रात और दिन में फरिश्ते तुम्हारे पास आगे पीछे आते जाते हैं, और रात और दिन वाले रिश्ते फ़ज्र और असर की नमाज़ में इकट्ठे हो जाते हैं, फिर तुम में रात गुज़ारने वाले फरिश्ते आसमान पर चढ़ जाते हैं, परवर्दिगार उनसे पूछता है, हालाँकि वह खूब जानता है- तुमने मेरे बन्दों को किस हाल में छोड़ा? वे कहते हैं- हमने उनको नमाज़ पढ़ते हुए छोड़ा और जब हम उनके पास गये थे उस वक़्त भी वे नमाज़ ही पढ़ रहे थे।

वज़ाहत :- लिहाज़ा हर नमाज़ पाबन्दी से जमाअत के साथ पढ़ें, खास तौर पर फजर और असर की नमाज़ ।

हदीस :- हज़रत राफेअ बिन खदीज रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि हम मग़रिब की नमाज़ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ पढ़ते, फिर हम में से कोई मस्जिद से लौट जाता और तीर-अन्दाज़ी करता, वह तीर गिरने के मकाम (जगह) को देख लेता। जुमे के दिन की अहमियत व फज़िलत।

हदीस :- हज़रत मुहम्मद बिन अमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि हमने हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ों का वक़्त पूछा तो हज़रत जाबिर ने कहा आप ज़ोहर की नमाज़ दोपहर की गर्मी में यानी जब सूरज ढल जाता और असर की नमाज़ जब सूरज तेज़ चमक रहा होता तो पढ़ते यानी सूरज में ज़र्दी की मिलावट न होती मग़रिब की नमाज़ सूरज गुरूब होने पर और अगर लोग जल्दी जमा हो जाते तो इशा की नमाज़ जल्दी पढ़ लेते, अगर लोग देर से जमा होते जो देर करके अदा फरमाते और फजर फजर की नमाज़ अन्धेरे में पढ़ते ।Namaz ke waqton ki Fazilat.

वजाहत :- आप फजर की नमाज़ जल्दी यानी सुबह सादिक के तक़रीबन 15 मिनट बाद पढ़ लेते थे। आज भी बैतुल्लाह और मस्जिदे नबवी में नमाज़ें अव्वल वक़्त में पढ़ी जाती हैं, जब फजर की नमाज़ खत्म होती है तो अंधेरा होता है। मग़रिब की नमाज़ का आखिरी वक़्त सूरज की सुर्खी गायब होने तक यानी सूरज गुरुब से तकरीबन चालीस मिनट बाद तक है।

हदीस :- हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़े इशा से पहले सोने और उसके बाद बातचीत करने को नापसन्द फ़रमाते थे।

वज़ाहत :- इशा के बाद बातें करते रहने से तहज्जुद के लिये आँखें नहीं खुलतीं, कभी सुबह की नमाज़ में भी देर हो जाती है। इशा की नमाज़ के बाद जल्दी सो जाया करें यही आपका अमल था।

हदीस :- हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ सुबह की नमाज़ में मुसलमान औरतें अपनी चादरों में लिपटी हुई आती थीं, फिर नमाज़ पढ़कर अपने घरों को लौट जातीं तो अंधेरे की वजह से कोई उन्हें पहचान नही सकता था।

हदीस :- हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फजर की नमाज़ के बाद सूरज ऊँचा होने तक और असर की नमाज़ के बाद सूरज गुरूब होने तक नमाज़ पढ़ने से मना फरमाया है।Namaz ke waqton ki Fazilat.

वज़ाहत :- क्योंकि ये वक़्त आग को पूजने वाले मुश्रिकों की इबादत के होते हैं। नमाज़े कुसूफ, नमाज़े जनाज़ा, सज्दा-ए-तिलावत, सज्दा-ए-शुक्र इस हुक्म से अलग हैं। याद रहे कि बैतुल्लाह शरीफ में तवाफ और नमाज़ मना किये गये वक़्तों में भी जायज़ हैं। आयतुल कुर्सी की फ़ज़ीलत और तफ़्सीर। 

मना किये गये वक़्त तीन हैं:-

1. सूरज निकलने के वक़्त,

2. सूरज के ज़वाल के वक़्त,

3. सूरज के गुरूब होने के वक़्त ।

हदीस :- हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जो शख़्स कोई नमाज़ पढ़ना भूल जाये तो याद आते ही उसको पढ़ ले, बस यही उसका कफ़्फारा है, और कुछ नहीं।

वज़ाहत :- जान-बूझकर दुनियावी कामों में लगा रहना और नमाज़ क़ज़ा करना बहुत बड़ा गुनाह है। नमाज़ से न कहे कि मुझे काम है बल्कि काम से कहें कि मुझे नमाज़ पढ़नी है।

हदीस :- हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि एक रात हम इशा की नमाज़ के लिये नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आने का इन्तिज़ार करते रहे, जब आधी रात हो गई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बाहर तशरीफ लाये, नमाज़ पढ़ाई फिर खुतबा दिया और फरमाया- सुनो ! लोग तो नमाज़ पढ़ चुके और सो गये और तुम नमाज़ के इन्तिज़ार में रहे, जितनी देर तुमने इन्तिज़ार किया तुम नमाज़ ही की हालत में रहे।Namaz ke waqton ki Fazilat.

वज़ाहत :- नमाज़ के इन्तिज़ार में बैठना गोया कि नमाज़ पढ़ना है। आप भी नमाज़ का इन्तिज़ार किया करें और इन्तिज़ार के दौरान फारिग बैठने के बजाय ज़िक्र व अज़कार में मसरूफ रहें।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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