18/05/2025
Eid milad unnabi | 12 Rabiul Awwal ki fazilat

ईद मिलाद-उन-नबी |12 रबीउल-अव्वल की फज़िलत।Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

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Eid milad unnabi | 12 Rabiul Awwal ki fazilat

रबीउल अव्वल इस्लामी साल का तीसरा (3rd) महीना है। यह महीना फ़ज़ीलतों और सआदतों का मज्मूआ है क्योंकि वोह जाते पाक जिन को अल्लाह करीम ने तमाम जहानों के लिये रहमत बना कर भेजा वोह अज़मतों वाले नबी, खातमुन्नबिय्यीन सल्लालाहु अलैहि वसल्लम इसी माहे मुबारक में दुनिया में तशरीफ़ लाए और यूं इस महीने को सब फ़ज़ीलतें और सआदतें हुजूर सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की विलादत (Birth) के सदक़े नसीब हुई ।

हज़रते सय्यिदुना इमाम जकरिय्या बिन मुहम्मद बिन महमूद कुज़वैनी रहमतुल्लाह अलेह फरमाते हैं : येह वोह मुबारक महीना है जिस में अल्लाह पाक ने अपने आखिरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वुजूदे मस्ऊद (यानी बा बरकत ज़ात) के सदके दुनिया वालों पर भलाइयों और सआदतों के दरवाज़े खोल दिये हैं इसी महीने की बारह तारीख को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत (Birth) हुई।

रबीउल अव्वल कहने की वजह।

प्यारे इस्लामी भाइयो ! “रबीअ” मौसमे बहार यानी सर्दी और गर्मी के दरमियान के मौसम को कहते हैं। अहले अरब मौसमे बहार के शुरू के ज़माने को “रबीउल अव्वल” कहते थे इस में खुम्बी (Mushroom) और फूल पैदा होते थे और जिस वक़्त फलों की पैदावार होती तो उन दिनों को रबीउल आखिर कहते थे। जब महीनों के नाम रखे गए तो सफ़र के बाद वाले दो महीनों को इन्ही दो मौसमों के नामों पर रबीउल अव्वल और रबीउल आखिर का नाम दिया गया। Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

रबीउल अव्वल की अज़मतों की वजह। 

रबीउल अव्वल की अज़मतों के क्या कहने ! यकीनन हुजूरे अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुनिया में तशरीफ़ न लाते तो कोई ईद, ईद होती, न कोई शब, शबे बराअत । बल्कि कौनो मकां की तमाम तर रौनक और शान इस जाने जहान, महबूबे रहमान सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दमों की धूल का सदक़ा है। इस मुबारक महीने की बारहवीं तारीख बहुत ही सआदतों और अज़मतों वाली है येह तारीख आशिकाने रसूल के लिये ईदों की भी ईद है। जुमे के दिन की अहमियत व फज़िलत।

पीर के दिन के बारे में दिलचस्प मालूमात।

प्यारे इस्लामी भाइयो ! हम सब के प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत का दिन पीर शरीफ (Monday) होने के साथ साथ येह दिन और भी कई वुजूहात की वजह से अहम है।

चुनान्चे सहाबी इब्ने सहाबी हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजिअल्लाह अन्हु बयान फ़रमाते हैं कि नबिये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पीर के दिन पैदा हुए और पीर के दिन ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एलाने नुबुव्वत फ़रमाया, मक्कए पाक से हिजरत करते हुए पीर के दिन रवाना हुए और मदीनए मुनव्वरह में पीर के दिन ही दाखिल हुए, पीर के दिन इन्तिकाल शरीफ हुवा और आप ने हजरे अस्वद को पीर के दिन ही नस्ब फ़रमाया, एक रिवायत के मुताबिक ग़ज्वए बद्र में फ़त्ह भी पीर के दिन मिली।

वक़्ते विलादत:-

मशहूर मुहद्दिस हाफ़िज़ मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह अल मारूफ इब्ने नासिरुद्दीन दिमश्की रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: सहीह येह है कि नबिय्ये करीम सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की विलादत तुलूए फज्र (सुब्हे सादिक) के वक़्त हुई और इसी को मुहद्दिसीन ने सही करार दिया है। Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

शबे क़द्र से अफ़ज़ल रात।

उलमाए किराम ने इस बात को वाज़ेह अल्फ़ाज़ में तहरीर फ़रमाया है कि जिस रात, हमारे प्यारे आका, मक्की मदनी मुस्तफ़ा सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की विलादते बा सआदत हुई वोह शबे क़द्र से भी अफ्ज़ल है। जैसा कि हज़रते सय्यिदुना शैख अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं : बेशक सरवरे आलम सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की विलादत की रात शबे कुद्र से भी अफज़ल है।

हज़रते सय्यिदुना अल्लामा अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन अहमद मरजूक तिल्मसानी रहमतुल्लाह अलैह ने शबे विलादते मुस्तफ़ा के शबे क़द्र से अफ्ज़ल होने पर “जना अलजन्नातैन फ़ी शराफ़ अल्लैलातायनी”के नाम से एक किताब लिखी है जिस में दोनों रातों के फ़ज़ाइल और शबे विलादत के अफ्ज़ल होने पर दलाइल बयान फरमाए हैं।

रबीउल अव्वल कैसे गुज़ारें ?

प्यारे इस्लामी भाइयो ! नबिय्ये पाक सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत ईमान की बुन्याद है और मोहब्बत की एक अलामत येह है कि महबूब का कसरत से ज़िक्र किया जाए । रिवायत में है : ” यानी जो किसी से मोहब्बत करता है उस का कसरत से ज़िक्र करता है। यूं तो सारा साल ही हमें नबिय्ये पाक सल्लालाहु अलैहि वसल्लम का ज़िक्रे खैर करना और अपने कौलो फेल के ज़रीए आप सल्लालाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत का इज़्हार करना चाहिये लेकिन बिल खुसूस रबीउल अव्वल में अल्लाह करीम की इस अज़ीम नेमत के शुक्राने के तौर पर ज़िक्रे हबीब की कसरत करनी चाहिये और इस ज़िक्र के कई तरीके हैं। बच्चे की तअलीम व तरबीयत ।

मसलन नबिय्ये पाक सल्लालाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूदे पाक पढ़ना, नात शरीफ पढ़ना, आप सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की शानो अज़मत बयान करना, महल्ले दारों, राह चलने वालों वगैरा और हुकूके आम्मा का ख़याल रखते हुए शरीअत के मुताबिक महफिले मीलाद करना और इस में शरीक होना वगैरा ज़िक्रे रसूल हैं, लिहाज़ा रबीउल अव्वल में येह तमाम चीजें हमारे मामूलात में शामिल होनी चाहिएं।Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

एलान करवाइये।

चांदरात को इन अल्फ़ाज़ में तीन बार मसाजिद में एलान करवाइये :तमाम इस्लामी भाइयों और इस्लामी बहनों को मुबारक हो कि रबीउल अव्वल शरीफ का चांद नज़र आ गया है।”

जशने विलादत की खुशी में मस्जिदों, घरों, दुकानों और सुवारियों पर नीज़ अपने महल्ले में भी सब्ज़ सब्ज़ परचम लहराइये, खूब चरागां कीजिये अपने घर पर कम अज़ कम बारह बल्ब तो ज़रूर रोशन कीजिये। जश्ने विलादत की खुशी में बाज़ जगह गाने बाजे बजाए जाते हैं ऐसा करना शरअन गुनाह है।

नाते पाक बेशक चलाइये मगर धीमी आवाज़ में और इस एहतियात के साथ कि किसी इबादत करने वाले, सोते हुए या मरीज़ वगैरा को तकलीफ़ न हो नीज़ अज़ान व अवकाते नमाज़ की भी रिआयत कीजिये। औरत की आवाज़ में नात की केसिट मत चलाइये, गली या सड़क वगैरा पर इस तरह सजावट करना, परचम गाड़ना जिस से रास्ता चलने और गाड़ी चलाने वाले मुसल्मानों को तक्लीफ़ हो, ना जाइज़ है।

चराग़ां देखने के लिये औरतों का अजनबी मर्दों में बे पर्दा निकलना हराम व शर्मनाक नीज़ बा पर्दा औरतों का भी मुरव्वजा अन्दाज़ में मर्दों में इख़्तिलात (यानी खल्त मल्त होना) इन्तिहाई अफ्सोस नाक है। अपने रब से हम गुनहगारों को बख़्शवाने वाले प्यारे आका सल्लालाहु अलैहि वसल्लम पीर शरीफ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाते रहे।

1:- मुस्तफा सल्लालाहु अलैहि वसल्लम में 12 रबीउल अव्वल शरीफ को रोज़ा रख लीजिये ।

2 :- ग्यारह की शाम को वरना बारहवीं शरीफ की रात को गुस्ल कीजिये ।

3 :- हो सके तो इस ईदों की ईद की ताज़ीम की निय्यत से ज़रूरत की तमाम चीजें नई खरीद लीजिये ।

4:- जशने विलादत की खुशी में कोई भी ऐसा काम मत कीजिये जिस से हुकूकुल इबाद ज़ाए हों ।

5:- तमाम इस्लामी भाई और इस्लामी बहनें जशने विलादत की खुशी में सुन्नतों के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारने की निय्यत कर लीजिये ।Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

6:- जशने विलावत की खुशी में लाइटिंग कीजिये लेकिन बिजली फ़राहम करने वाले इदारे से राबिता कर के जाइज़ ज़राएअ से लाइटिंग कीजिये ।

7:- जुलूस में हत्तल इम्कान बा वुजू रहिये और नमाज़े बा जमाअत की पाबन्दी का खयाल रखिये ।

8:- खाने की चीजें फल वगैरा तक्सीम करने में फेंकने के बजाए लोगों के हाथों में दीजिये, ज़मीन पर गिरने बिखरने और क़दमों तले कुचलने से इन की बे हुर्मती होती है। आयतुल कुर्सी की फ़ज़ीलत और तफ़्सीर।

रबीउल अव्वल के नवाफ़िल,

प्यारे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह करीम का कुर्ब पाने और उस की रिज़ा हासिल करने का एक बेहतरीन ज़रीआ नवाफिल भी हैं, बुजुर्गाने दीन रहमतुल्लाह अलैह फ़राइज़ो वाजिबात के साथ साथ नवाफिल की कसरत फ़रमाया करते थे ।

जन्नत में आका (स.व)का पड़ोस।

बारहवीं तारीख को नबिय्ये पाक सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की रूहे पाक को तोहफा पहुंचाने की निय्यत से 20 रकअत नफ़्ल पढ़िये और हर रक्अत में सूरए फातिहा के बाद 21 मरतबा सूरए इख़्लास पढ़िये । एक शख्स हमेशा येह नमाज़ पढ़ता था उसे ख़्वाब में नबिय्ये पाक सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की जियारत हुई आप सल्लालाहु अलैहि वसल्लम फरमा रहे थे कि हम तुम्हें अपने साथ जन्नत में ले कर जाएंगे।

बारह रबीउल अव्वल का रोज़ा,

12 रबीउल अव्वल के दिन रोज़ा रखिये कि हुज़ूर सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की विलादत के दिन रोज़ा रखना अल्लाह पाक की नेमत का शुक्र है और इस में बहुत ज़ियादा अज्रो सवाब भी है। खुद नबिय्ये करीम सल्लालाहु अलैहि वसल्लम हर पीर शरीफ (Monday) को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाते थे जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अबू कतादा रजिअल्लाह अनहु फ़रमाते हैं : बारगाहे रिसालत में पीर के रोज़े के बारे में पूछा गया तो इर्शाद फ़रमाया : “इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझ पर वही नाज़िल हुई।”Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.

नेमत के शुक्राने में रोज़ा।

बिला शुबा रहमते आलम सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी की नेमत से दुनिया व आखिरत के फ़वाइद व मनाफेअ पूरे हो गए और इसी नेमत के तुफैल अल्लाह पाक का दीन मुकम्मल हुवा जिसे उस ने अपने बन्दों के लिये पसन्द फ़रमाया और इस दीन को क़बूल करना दुनिया व आखिरत में लोगों की सआदत मन्दी का सबब है। और ऐसे दिन का रोज़ा रखना बहुत अच्छा है जिस में अल्लाह पाक के बन्दों पर उस की नेमतें नाज़िल होती हैं। दीने इस्लाम की कुछ खास नसीहत । 

1000 साल की इबादत का सवाब।

अल्लाह पाक की अज़ीम नेमत का शुक्र अदा करने के लिये इस माहे मुबारक में ज़ियादा से ज़ियादा नफ़्ली इबादात कीजिये । जवाहिरे गैबी में है कि 12 रबीउल अव्वल के दिन रोज़ा रखने वाले को 1000 साल की इबादत का सवाब मिलता है नीज़ पांच, सोलह और छब्बीस रबीउल अव्वल को रोज़ा रखने का भी बहुत सवाब है।

1:- रबीउल अव्वल शरीफ में दुरूद शरीफ कसरत से पढ़िये । पहली तारीख से 12 तारीख तक रोज़ाना एक हज़ार मरतबा दुरूदे पाक पढ़ना।

2:- जो शख़्स येह दुरूद शरीफ पढ़ कर बा वुजू सोए इन्शाअल्लाह जियारते रसूल सल्लालाहु अलैहि वसल्लम नसीब होगी।

3:- जो कोई इस महीने की तमाम तारीखों में इशा की नमाज़ के बाद 1125 मरतबा दुरूद शरीफ पढ़े तो इन्शाअल्लाह ख़्वाब में ज़रूर नबिय्ये करीम सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की जियारत करेगा।

4:- अगर कोई इस मुबारक महीने में मुहिब्बे आला हज़रत अल्लामा शाह मुहम्मद रुक्नुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं: जब रबीउल अव्वल का चांद नज़र आए तो इस रात 2-2 रक्अत कर के 16 रक्अत नफ़्ल पढ़े। हर रक्अत में अल हम्द शरीफ के बाद “कुल्हुवल्लाह अहद ” तीन तीन मरतबा पढ़े। जब 16 रक्अत पढ़ ले तो येह दुरूद शरीफ एक हजार मरतबा पढ़े अल्लाहुम्म सल्ली अला मुहम्मदन अलन्नबी अलति रहमतुल्लाही वबरकातुह” और 12 रोज़ तक येह पढ़ता रहे तो हुजूर सरापा नूर सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की ख़्वाब में जियारत होगी। मगर इशा की नमाज़ के बाद इस को पढ़ा करे और फिर बा वुजू सोया करे।Eid Milad-un-Nabi 12 Rabiul Awwal ki fazilat.
जशने विलादत मनाने की 7 निय्यतें।

1:- तरजमए कन्जुल ईमान : और अपने रब की नेमत का खूब चरचा करो पर अमल करते हुए अल्लाह पाक की सब से बड़ी नेमत का चरचा करूंगा ।

2:- रिज़ाए इलाही पाने के लिये जशने विलादत की खुशी में लाइटिंग करूंगा।

3:- जिब्रईले अमीन अलैहिस्सलाम ने शबे विलादत जो तीन झन्डे गाड़े थे इस की पैरवी में झन्डे लहराऊंगा ।

4:- धूमधाम से जशने विलादत मना कर कुफ्फार पर अज़मते मुस्तफा सल्लालाहु अलैहि वसल्लम का सिक्का बिठाऊंगा घर घर चरागां और सब्ज़ झन्डे देख कर कुफ्फार यकीनन हैरान होते होंगे कि मुसल्मानों को अपने नबी की विलादत से वालिहाना प्यार है।

5:- जाहिरी सजावट के साथ साथ तौबा व इस्तिफ़ार के ज़रीए अपना बातिन भी सजाऊंगा ।

6:- बारहवीं रात को इज्तिमाए मीलाद और ईदे मीलादुन्नबी सल्लालाहु अलैहि वसल्लम के दिन निकलने वाले जुलूसे मीलाद में शिर्कत कर के ज़िक्रे खुदा व मुस्तफ़ा सल्लालाहु अलैहि वसल्लम की सआदतें और उलमा और नेक लोगों की ज़ियारतें और आशिकाने रसूल के कुर्ब की बरकतें हासिल करूंगा।

7:- जुलूसे मीलाद में हत्तल इम्कान बा वुज़ू रहूंगा, मस्जिद की नमाज़े बा जमाअत तर्क नहीं करूंगा हस्बे तौफीक “तक्सीमे रसाइल” करूंगा। सलाम करने की अहमियत।

या रब्बे मुस्तफ़ा ! हमें खुशदिली और अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ जशने विलादत मनाने की तौफीक मर्हमत फरमा और जशने विलादत के सदके हमें जन्नतुल फिरदौस में बे हिसाब दाखिला इनायत कर ।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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