बच्चा पैदा होने के बाद अल्लाह के शुक्र में जो जानवर ज़बह
किया जाता है उसे अकीका कहते हैं । अकीका करना सुन्नत है ।
सुन्नत तरीका यह है कि बच्चे की पैदाईश के सातवें (7)
रोज़ अकीका हो और अगर न हो सके तो पन्द्रवें (15) दिन या एक्कीसवें(21) रोज़ या जब भी हैसीयत हो करे, सुन्नत अदा हो जाएगी ।(कानूने शरीअत, जिल्द 1 सफा में 160 इस्लामी जिन्दगी 17 )
लड़के के लिए दो बकरे और लड़की के लिए एक बकरी ज़बह करे । लड़के के लिए बकरा और लड़की के लिए बकरी जबह करना बेहतर है । अगर लड़का लड़की दोनों के लिए बकरा या बकरी भी जबह करे तो हर्ज नहीं ।
लड़के के लिए दो बकरे न हो सके तो एक बकरे में
भी अकीका कर सकते है। इसी तरह अगर गाये, भैस ज़बह करे तो लड़के के लिए दो हिस्से और लड़की के लिए एक हिस्सा हो । अकीके के जानवर के लिए भी वही शर्ते है जो कुरबानी के जानवर के लिए जरूरी है ।(कानूने शरीअत, जिल्द 1, सफा नं. 160)Aqika Khatna Kala tika lagana.
अकीके के जानवर के तीन हिस्से किये जाए । एक हिस्सा गरीबों को ख़ैरात कर दे दूसरा हिस्सा दोस्त व रिश्तेदारों में तकसीम करे और तीसरा हिस्सा खुद रखें ।
(इस्लामी जिन्दगी सफा नं 17 )
अकीके का गोश्त गरीबों फकीरों, दोस्त व रिश्तेदारों को कच्चा तकसीम करे या पका कर दे या फिर दावत कर के खिलायें सब सूरते जाइज़ है ।(कानूने शरीअत, जिल्द 1 सफा नं. 160)
अकीके का गोश्त माँ, बाप, दादा, दादी, नाना, नानी, वगैरा सब खा सकते हैं ।अकीके के जानवर की खाल अपने काम में लाए, गरीबों को दे या मदरसा या मस्जिद में दें। यानी इस खाल का भी वही हुक्म है जो क़ुरबानी की खाल का हुक्म है।(कानूने शरीअत, जिल्द 1, सफा नं. 160)
बेहतर है कि अकीके के जानवर की हड्डीयाँ तोड़ी न जाए बल्कि जोड़ों से अलग कर दी जाए और गोश्त वगैरा खा कर ज़मीन में दफन कर दी जाए ।(किम्या-ए-सआदत, सफा नं. 267, इस्लामी जिन्दगी, सफा नं. 17)
नेक फाल के लिए हड्डी न तोड़ना बेहतर है और तोड़ना
भी ना जाइज नहीं । अकीके में बच्चे के सर के बाल मुंड़वाए और उस के बालों के वजन के बराबर चांदी या (हसीयत हो तो) सोना सदका करे । (कीम्या-ए-सआदत, सफा नं 267)Aqika Khatna Kala tika lagana.
हदीस :- इमाम मुहम्मद बाकर रजिअल्लाहो अन्हो से रिवायत है की – रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम की साहबजादी हज़रत फातिमा (र.अ)ने इमाम हसन, इमाम हुसैन, हज़रत ज़ैनब और हजरत उम्मे कुलसूम के बाल उतरवा कर उन के वजन के बराबर चांदी ख़ैरात फ़रमाई ।
अकीका फर्ज़ या वाजिब नहीं है सिर्फ सुन्नते मुस्तहेबा है गरीब आदमी को हरगिज़ जाइज नहीं कि सूद पर कर्ज़ ले कर अकीका करे कर्ज ले कर तो ज़कात भी देना जाइज़ नहीं अकीका जकात से बड़ कर नहीं । (इस्लामी जिन्दगी, सफा नं. 18)
अकीके के जानवर को ज़बह करते वक्त की दुआएँ बहुत से मसाईल की किताबों में आई है लिहाजा वोह दुआएँ वही देखे ।
ख़तना :- लड़कों का ख़तना करना सुन्नत हैं और येह इस्लाम की अलामत हैं मुस्लिम व गैर मुस्लिम में इससे फर्क होता हैं। रसूले खुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने फरमाया- – “हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी खतना किया तो उस वक्त उन की उम्र शरीफ अस्सी (80) बरस की थी”।
ख़तना का सुन्नत तरीका यह है कि बच्चा जब सात (7) साल का हो जाए उस वक़्त खतना करा दिया जाए ख़तना कराने की उम्र सात (7) साल से ले कर बारह (12) बरस तक है। यानी बारह (12) बरस से ज्यादा देर लगाना मना है और अगर सात साल से पहले ख़तना कर दिया तब भी हर्ज नहीं । ख़तना कराना बाप का काम है, वोह न हो तो फिर दादा, मामू, चचा, कराए ।
ख़तना करने से पहले नाई की उजरत तय होना जरूरी है जो कि उसको ख़तना के बाद दी जाए इलाज में ख़ास निगरानी रखी जाए तजरूबेकार नाई से ख़तना कराया जाए ।Aqika Khatna Kala tika lagana.
ख़तना सिर्फ इस काम का ही नाम है बाकी येह धूमधाम से बारात निकालना, रिश्तेदारों को फ़ुज़ूल में कपड़ों के जोड़ें देना, गाने बाजे और लाईटींग वगैरा सब फ़ुज़ूल काम हैं और फ़ुज़ूल ख़र्ची इस्लाम में हराम है
येह सब मुसलमानों की कमज़ोर नाक ने पैदा कर दिये है जिसे बचाने के लिए कर्ज तक लेते है और कर्ज दार बन कर बाद को परेशानी मोल लेते हैं। लिहाज़ा इन सब चीजों को बंद किया जाए ।
आयत :अल्लाह व इरशाद फरमाता है- तर्जमा :- और फुज़ूल ना उड़ा,बेशक उड़ाने वाले शैतानों के भाई है(तर्जुमा :- कन्जुल इमाम, पारा 15, सूरए इस्राईल, आयत 26 )
कान नाक छेदना :- लड़कियों के कान नाक छीदवाने में कोई हर्ज नहीं इसलिए की हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम के ज़माने जाहिरी में भी औरतें कान छीदवाती थी और हुज़ूर (स.व)ने इससे मना नहीं फरमाया ।(फतावा-ए-रजवीया, जिल्द 9, निस्फ अव्वल, सफा 57, कानूनेशरीअत, जिल्द 1, सफा 213 )
एक रिवायत में है कि “सब से पहले नाक कान हज़रत सारा रजिअल्लाहो तआला अन्हा ने हज़रत हाजरा रजिअल्लाहो तआला अन्हा के छेदे थे हज़रत सारा व हज़रत हाज़रा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की बीवीयाँ थीं। जब से ही औरतों में कान नाक छीदवाने का रिवाज चला आ रहा है ।Aqika Khatna Kala tika lagana.
कुछ लोग किसी मन्नत के लिए या फिर फिरंगी फैशन के लिए लड़कों के कान छेद देते हैं । येह सख्त ना जाइज़ व हराम व सख़्त गुनाह है और ऐसी मन्नत की शरीअत में कोई हैसियत नहीं, यकीनन अल्लाह व रसूल इस से नाराज़ होते हैं । इसलिए मुसलमानों को इस से बचना चाहिये ।
काला टीका लगाना :- हमारा और आप का येह मुशाहेदा है कि घर की औरतें अपने छोटे बच्चों को किसी कालक, काजल, या सुरमें वग़ैरा से उनके गाल पर काला टीका (छोटा सा नुक्ता) लगाती हैं ताकि किसी की बुरी नज़र न लगे । येह बेअस्ल बात नहीं है, नज़र का लगना हदीस से साबित है यानी बुरी नज़र लगती है । चुनानचे हदीसे पाक में है-
हदीस :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं- “नज़र का लगना ठीक है अगर कोई चीज़ तकदीर पर गालिब होती है तो नज़र ग़ालिब होती है”।
(मोता शरीफ, जिल्द 1 बाब किताबुल एैन, हदीस 3, सफा 782, कौलुलजमील, सफा 150)
हदीस :- एक रिवायत में है कि हज़रत ऊसमाने गनी रजिअल्लाहो तआला अन्हो ने एक खूबसूरत बच्चे को देखा तो फ़रमाया- “इस की थुड्डी में काला टीका लगा दो कि इसको नज़र न लगे” । (कौलुल जमील, सफा नं. 153)
“तिर्मिज़ी शरीफ” की एक रिवायत से साबित है कि काला टीका लगाना बच्चों को बुरी नज़र से बचाता है । (वल्लाहो आलम)
इन हदीसो को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…