23/12/2025
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हज़रत जक़रिया अलैहिस्सलाम का वाक़िआ | Hazrat jakaria alaihissalam ka vakya.

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Hazrat jakaria alaihissalam ka vakya.
Hazrat jakaria alaihissalam ka vakya.

कुरआन शरीफ और हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम

कुरआन में हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम का ज़िक्र चार सूरतों, आले इमरान, अनआम, मरयम और अंबिया में आया है, उनमें से सूरः अनआम में सिर्फ़ अंबिया की फेहरिस्त में नाम ज़िक्र किया गया है और बाक़ी तीन सूरतों में मुख़्तसर तजकिरा नक़ल किया गया है। लेकिन कुरआन शरीफ में जिस जकरिया का ज़िक्र हुआ है, यह वह नहीं हैं जिनका ज़िक्र मज्मूआए-तौरेत के सहीफ़ा ज़करिया (ZECHA RIAH) में आया है।

ज़िंदगी के हालात

हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम के हालात तफ़्सील से मालूम नहीं हैं, लेकिन जिस क़दर भी कुरआन और सीरत और तारीख़ की भरोसे की रिवायतों से मालूम हो सके हैं, वे यह हैं-

हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम बनी इसराईल में इज़्ज़तदार काहिन [इस्लाम के पहले दौर में अरब में जो काहिन मुस्तकबिल (भविष्य) के हालात बतलाते थे, वे इस मंसब से अलग हैं। भी थे और ऊंचे रुत्बे वाले पैग़म्बर भी। चुनांचे कुरआन शरीफ ने उनको नबियों की फेहरिस्त में गिनते हुए इरशाद फ़रमया है- तर्जुमा – ‘और जकरिया और यहया और ईसा और इलयास, ये सब नेक लोगों में से हैं।'(6:85)

पिछले तज़्किरों में बयान किया गया है कि तमाम नबी अलैहिमुस्सलाम, चाहे वे बादशाह हों और हुकूमत वाले ही क्यों न हों, अपनी रोज़ी हाथ की मेहनत से पैदा करते और किसी के कंधे पर बोझ नहीं होते थे। इसीलिए हर नबी ने जब अपनी उम्मत को रुश्द व हिदायत की तब्लीग की है, तो साथ ही यह भी एलान कर दिया है- तर्जुमा- ‘मैं तुमसे इस तब्लीग़ पर कोई उजरत नहीं मांगता। मेरा अज्र तो अल्लाह के सिवा और किसी के पास नहीं है।’

चुनांचे हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम भी अपनी रोज़ी के लिए नज्जारी (बढ़ई का काम) का पेशा करते थे, जैसा कि हदीसों में ज़िक्र हुआ है।

हज़रत ज़करिया के ख़ानदान में इमरान बिन नाशी और उसकी बीवी हन्ना, दो नेक नफ़्स इंसान थे, मगर औलाद न थी। हन्ना की दुआ से उनके यहां एक लड़की पैदा हुई जिनका नाम उन्होंने मरयम रखा। समझदार हो गईं तो ज़करिया ने उनके लिए हैकल के क़रीब एक हुजरा मख़्सूस कर दिया, जहां वह अल्लाह की इबादत में लगी रहतीं और रात अपनी ख़ाला हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम की मोहतरमा बीवी के पास गुज़ारतीं।

उस जमाने में- तर्जुमा- ‘जब ज़करिया अलैहिस्सलाम मरयम के पास मेहराब (खलवत) में दाखिल होता, तो उसके पास खाने-पीने का सामान रखा देता। ज़करिया अलैहिस्सलाम ने मालूम किया, मरयम! यह तेरे पास कहाँ से आता है? मरयम ने कहा, यह अल्लाह के पास से है। वह बिला शुबहा जिसको चाहता है, बेगुमान रोज़ी अता कर देता है।(3:37)

हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम के यहां औलाद

जकरिया अलैहिस्सलाम के यहां कोई औलाद न थी और उनको ज़्यादा फ़िक्र इस बात की थी कि उनके भाई-बंद बनी इसराईल की खिदमत के अहल न थे। इसलिए उनके दिल में यह तमन्ना पैदा हुई कि अगर अल्लाह उनके यहाँ कोई नेक और भली तबियत का लड़का पैदा कर दे, तो यह उनके लिए इत्मीनान की वजह हो जाए, लेकिन वह बड़ी उम्र वाले हो चके थे और उनकी बीवी भी बांझ थीं।

इस हालत के बावजूद अब उन्होंने मरयम पर अल्लाह का लुत्फ़ व करम देखा, तो उम्मीद बंधी और उन्होंने अल्लाह के दरबार में दुआ की- तर्जुमा- ‘जब ऐसा हुआ था कि जकरिया ने चुपके-चुपके अपने पालनहार को पुकारा, उसने अर्ज़ किया, पालनहार! मेरा जिस्म कमज़ोर पड़ गया है, मेरे सर के बाल बिल्कुल सफ़ेद पड़ गए हैं। ऐ अल्लाह ! कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने तेरी जनाब में दुआ की हो और महरूम रहा हूं।

मुझे अपने मरने के बाद अपने भाई-बंदों से अंदेशा है (कि न जाने वे क्या ख़राबी फैलाएं) और मेरी बीवी बांझ है, पस तू अपने ख़ास फ़ज़्ल से मुझे एक वारिस बख़्श दे, ऐसा वारिस जो मेरा भी वारिस हो और याकूब के ख़ानदान (की बरकतो) का भी, और पालनहार ! उसे ऐसा कर दीजियो, जिससे कि (तेरे और तेरे बंदों की नज़र में) पसंदीदा हो। (इस पर हुक्म हुआ) ऐ ज़करिया ! हम तुझे एक लड़के की पैदाइश की खुशखबरी देते हैं। उसका नाम यह्या रखा जाए, इससे पहले हमने किसी के लिए यह नाम नहीं ठहराया है।

जकरिया ने ताज्जुब से कहा परवरदिगार! मेरे यहां लड़का कहां से होगा, मेरी बीवी बांझ हो चुकी और मेरा बुढ़ापा दूर तक पहुंच चुका, इरशाद हुआ, ऐसा ही होगा, तेरा पालनहार फ़रमाता है कि ऐसा करना मेरे लिए मुश्किल नहीं है, मैंने इससे पहले खुद तुझे पैदा किया, हालांकि तेरी हस्ती का नाम व निशान न था। इस पर ज़करिया ने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह! मेरे लिए (इस बारे में) एक निशानी ठहरा दे। फ़रमाया तेरी निशानी यह है कि सही व तंदुरुस्त होने के बावजूद तू तीन रातं लोगों से बात न करेगा। फिर वह हुजरे से निकला और अपने लोगों में आया और उसने उनमे इशारे से कहा, ‘सुबह-शाम अल्लाह की पाकी और जलाल की सदाएं बुलद करते रहो’

और सूरः अंबिया में इर्शाद है- (19:3-11)

तर्जुमा – ‘और इसी तरह जकरिया का मामला याद करो जब उसने अपने परवरदिगार को पुकारा था, ऐ खुदा! मुझे इस दुनिया में अकेला न छोड़ यानी बगैर वारिस के न छोड़ और वैसे तो तू ही हम सबका बेहतर वारिस है, तो देखो हमने उसकी पुकार सून ली। उसे (एक फ़रज़ंद) यह्या अता फ़रमाया और उसकी बीवी को उसके लिए तरन्दुतस्त कर दिया। ये तमाम लोग नेकी की राहों में सरगर्म थे (और हमारे फ़ज्ल से) उम्मीद लगाए हुए और (हमारे जलाल से) डरते हुए दुआएं मांगते थे और हमारे आगे इज्ज़ व नियाज़ से झुके हुए थे।
(21: 89-90)

और सूरः आले इमरान में इर्शाद है- तर्जुमा-उसी वक़्त जकरिया ने अपने पालनहार से दुआ की, कहा, ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझको अपने फ़ज़्ल से पाकीज़ा औलाद अता कर। बेशक तू दुआ का सुननेवाला है, फिर जब जकरिया हुजरे के अंदर नमाज़ में मश्शूल था तो फ़रिश्तों ने उसको आवाज़ दी कि अल्लाह तुझको यहया की (पैदाइश की) खुशखबरी देता है, जो गवाही देगा अल्लाह के एक कलिमा (ईसा) की और सत्बे वाला होगा और औरत के पास तक न जाएगा (या हर क़िस्म की छोटी-बड़ी तलवीस से पाक होगा और नेकों से (होते हुए) नबी होगा।

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जकरिया ने कहा, परवरदिगार! मेरे लड़का किस तरह होगा, जबकि मैं बहुत बूढ़ा हो गया और मेरी बीवी बांझ है। फ़रमाया, अल्लाह जो चाहे, इसी तरह करता है। जकरिया ने कहा, परवरदिगार! मेरे लिए कोई निशानी मुक़र्रर कीजिए, फ़रमाया, यह निशानी है कि तू तीन दिन लोगों से इशारे के सिवा (जुबान से) बात न करेगा और अपने रब की याद में (शुक्र के जाहिर करने के लिए) बहुत ज़्यादा रह और सुबह-शाम तस्बीह कर।’
(3:38-41).

तफ्सीरी नुक्ते

हज़रत ज़करिया के वाक़िए से मुताल्लिक़ सबसे अहम नुक्ता ऊपर की आयत में ‘यह निशानी है कि तू तीन दिन लोगों से इशारे के सिवा जुबान से बात न करेगा’ से मुताल्लिक़ है। (हजरत मौलाना हिफ़्ज़ुर्रहमान स्योहारवी रहमतुल्लाह तआला के मुताबिक़ बात न करने से मतलब यह है कि जुबान में बोलने की ताक़त के पूरी तरह रहने के बावजूद निशानी के तौर पर तीन दिन के लिए अल्लाह की ओर से जुबान में रुकावट पैदा हो गई थी और चूंकि पुराने बुजुर्ग उन दिनों में रोज़ा रखने से भी इत्तिफ़ाक़ नहीं करते, इसलिए यह सूरत भी कुबूल करने के क़ाबिल नहीं है। रहा इस अर्से के लिए ‘गूंगा हो जाना’ तो यह किसी की भी राय नहीं’

ज़करिया अलैहिस्सलाम की वफात

यह्या के वाक़िए की गवाही के तौर पर सीरत व तारीख के उलेमा के दर्मियान यह मामला इख़्तिलाफ़ी रहा है कि जकरिया की वफ़ात तबई मौत से हुई या वह शहीद किए गए और लुत्फ़ यह है कि दोनों की सनद वत्व बिन मुनब्बः ही पर जाकर पहुंचती है। चुनांचे तब की एक रिवायत में है कि यहूदियों ने जब यह्या को शहीद कर दिया तो फिर जकरिया की तरफ़ मुतवज्जह हुए कि उनको भी क़त्ल करें, जकरिया ने जब यह देखा तो वह भागे, ताकि उनके हाथ न लग सकें।

सामने एक पेड़ आ गया और वह उसके शिगाफ़ में घुस गए, यहूदी पीछा कर रहे थे, तो उन्होंने जब यह देखा तो उनको निकलने पर मजबूर करने के बजाए पेड़ पर आरा चला दिया। जब आरा ज़करिया पर पहुंचा तो अल्लाह की वह्य आई और जकरिया को कहा गया कि अगर तुमने कुछ भी आह व जारी की, तो हम यह सब ज़मीन तह व बाला कर देंगे और अगर तुमने सब्र से काम लिया तो हम भी इन यहूदियों पर फ़ौरन अपना ग़ज़ब नाज़िल नहीं करेंगे, चुनांचे जकरिया ने सब्र से काम लिया और उफ़ तक नहीं की और यहूदियों ने पेड़ के साथ उनके भी दो टुकड़े कर दिए और उन्हीं वहब से दूसरी रिवायत यह है कि पेड़ पर आरा चलाने का जो मामला पेश आया, वह शाया से मुताल्लिक़ है और जकरिया शहीद नहीं हुए, बल्कि उन्होंने तबई मौत से वफ़ात पाई।

बहरहाल मशहूर क़ौल यही है कि उनको भी यहूदियों ने शहीद कर दिया था। रहा यह मामला कि किस तरह और किस जगह शहीद किया, तो इसके बारे में सिर्फ़ यही कहा जा सकता है कि ‘वल्लाहु आलमु बिहक़ीक़तिलहाल हक़ीक़ते हाल को अल्लाह ही बेहतर जानता है

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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