21/08/2025
जिसे तलाक़ मिला उसने दुआ दी। 20250611 011155 0000

जिसे तलाक़ मिला, उसने दुआ दी। Jise talaq Mila usne Dua Di.

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Jise talaq Mila usne Dua Di.
Jise talaq Mila usne Dua Di.

 

 

 

 

दो सौकनों का तक़वा :-

बगदाद में एक बड़ा सौदागर रहता था। यह बड़ा ही दियानतदार और होशियार था। खुदा ने उसका कारोबार खूब ही चमकाया था। दूर-दराज़ से ख़रीदार उसके यहाँ पहुँचते और अपनी ज़रूरत का सामान ख़रीदते। इसी के साथ-साथ खुदा ने उसको घरेलू सुख भी दे रखा था। उसकी बीवी निहायत खूबसूरत, नेक, होशियार और सलीक़ामन्द थी। सौदागर भी दिल व जान से उसको चाहता था और बीवी भी सौदागर पर जान छिड़कती थी और निहायत ऐश व सुकून और मेल-मुहब्बत के साथ उनकी ज़िन्दगी बसर हो रही थी।

सौदागर कारोबारी ज़रूरत से कभी-कभी बाहर भी जाता और कई-कई दिन घर से बाहर सफर में गुज़ारता। बीवी यह समझकर कि यह घर से गाइब रहना कारोबारी ज़रूरत से होता है, मुत्मइन रहती। लेकिन जब सौदागर जल्दी-जल्दी सफर पर जाने लगा और ज़्यादा-ज़्यादा दिना तक घर से गाइब रहने लगा तो बीवी ज़रा खटकी। और उसने सोचा ज़रूर कोई राज़ है।

घर में एक बूढ़ी मुलाज़िमा थी। सौदागर की बीवी को उस पर बड़ा भरोसा था और अक्सर बातों में वह उस मुलाज़िमा को अपना राज़दार बना लेती। एक दिन उसने बुढ़िया पर अपना शुब्ह ज़ाहिर किया और बताया कि मुझे बहुत बैचेनी है। बुढ़िया बोली : ऐ बीबी ! आप क्यों परेशान होती हैं? परेशान हों आपके दुश्मन, आपने अब कहा है देखिए, मैं चुटकी बजाने में सब राज़ मालूम किए लेती हूँ। और बुढ़िया टोह में लग गई। अब जब सौदागर घर से चले तो यह भी पीछे लग गई और आखिरकार उसने पता पा लिया कि सौदागर साहब ने दूसरी शादी कर ली है और यह घर से गाइब होकर उस नई बीवी के पास ऐश करते हैं।

बुढ़िया यह राज़ मालूम करके आई और बीबी को सारा क़िस्सा सुनाया। सुनते ही बीबी की हालत गैर हो गई। सौकन की जलन मशहूर ही है लेकिन जल्द ही उस बीबी ने अपने आप को संभाल लिया और सोचा कि जो कुछ होना था हो ही चुका है अब मैं परेशान होकर अपनी ज़िन्दगी क्यों अजीरन बनाऊं।

और उसने मियाँ पर बिल्कुल ज़ाहिर न होने दिया कि वह उस राज़ को जानती है। वह हमेशा की तरह सौदागर की ख़िदमत करती रही और अपने बर्ताव और खुलूस व मुहब्बत में ज़रा फर्क न आने दिया। दूसरी तरफ शरीफ सौदागर ने भी अपनी बीवी के हकूक़ में कोई कमी न की। अपने रवैये में कोई तब्दीली न आने दी और हमेशा की तरह इसी खूलूस से बीवी से मुहब्बत के साथ सुलूक करता रहा।

शौहर के इस नेक बर्ताव ने बीवी को सोचने पर मजबूर कर दिया और उसने यह तै कर लिया कि वह शौहर के इस जाइज़ हक़ में हरगिज़ रोड़ा न बनेगी। उसने सोचा कि आख़िर मियाँ मुझसे ज़ाहिर करके भी तो दूसरा निकाह कर सकता था। मियाँ ने इस तरह छुपाकर यह निकाह क्यों किया। इसलिए कि मेरे दिल को तकलीफ होगी। मैं सौकन के जलापे को बर्दाश्त न कर सकूंगी।

कितना प्यारा है मेरा शौहर। उसने मेरे नाजुक जज़्बात का कैसा ख़्याल रखा। फिर उसने उस नई दुल्हन की मुहब्बत में. मस्त होकर मेरा कोई हक़ भी तो नहीं मारा। उसके सुलूक और मुहब्बत में भी तो कोई फर्क नहीं आया। आख़िर मुझे क्या हक़ है कि मैं उसको उस हक़ से रोकूं जो खुदा ने उसको दे रखा है, मुझसे ज़्यादा नाशुक्र और नालाइक कौन होगा जो ऐसे मेहरबान शौहर के जज़्बात का लिहाज़ न करे… और उसके दिल को तकलीफ पहुंचाये… बीवी यह सोचकर बिल्कुल ही मुत्मइन हो गई।

सौदागर बीवी का खुशगवार सुलूक और मुहब्बत का बर्ताव देखकर यह समझता रहा कि शायद खुदा की बन्दी को यह राज़ मालूम नहीं है और पूरी एहतियात करते रहे कि किसी तरह मालूम न होने पाये। और दोनों हंसी-खुशी प्यार व मुहब्बत की ज़िन्दगी गुज़ारते रहे। आख़िर कुछ सालों के बाद सौदागर की ज़िन्दगी के दिन पूरे हो गये और उसका इन्तिक़ाल हो गया। सौदागर ने चूंकि दूसरी शादी दूसरे शहर से दूर बहुत ख़ामोशी से की थी इसलिए उसके रिश्तेदारों में भी किसी को भी यह राज़ मालूम न था।

सब यही समझते रहे कि सौदागर की बस यही एक बीवी थी। चुनांचे जब तर्के की तक़्सीम का वक़्त आया तो लोगों ने यही समझकर तर्का तक़्सीम किया और उस नेक बीवी को उसका हिस्सा दे दिया। सौदागर की बीबी ने भी अपना हिस्सा ले लिया और यह पसन्द न किया कि अपने मरे हुए शौहर के इस राज़ को बताये जो ज़िन्दगी भर सौदागर ने लोगों से छिपाया। लेकिन उस नेक बीवी ने यह भी गवारा न किया कि वह सौदागर की दूसरी बीवी का हक़ मार बैठे।

बेशक किसी को यह ख़बर न थी और न उसकी तरफ से कोई दावा करने वाला था, लेकिन उस खुदा को तो सबकुछ मालूम था जिसके हुजूर हर इंसान को खड़े होकर अपने अच्छे-बुरे आमाल का जवाब देना है। सौदागर की बेवा यह सोचकर काँप गई और उसने यह तै कर लिया कि जिस तरह भी होगा वह अपने हिस्से में से आधी रकम ज़रूर अपनी सौकन बहन को भिजावाएगी।

और उसने एक निहायत मोअंतबर आदमी को यह सारी बात बताकर अपने हिस्से में की आधी रकम उसके हवाले की और अपनी सौकन के पास रवाना किया। और उसके यहाँ कहलवाया कि अफ़सोस ! आपके शौहर इस दुनिया से रुख़्सत हो गये, अल्लाह तआला उनकी मग्फिरत फरमाये, मुझे उनकी जायदाद और तर्के में से जो कुछ मिला है इस्लामी क़ानून की रू से आप उसमें बराबर की शरीक हैं। मैं अपने हिस्से की आधी रकम आपको भेज रही हूँ, उम्मीद है कि आप कुबूल फरमाएंगी।

यह पैग़ाम और रकम भेजकर नेक बीबी बहुत मुत्मइन थीं, उनको एक रूहानी सुकून था। कुछ ही दिनों में वह शख़्स वापस आ गया और उसने वह सारी रकम वापस लाकर सौदागर की बेवा को दी सौदागर की बेवा फिक्रमन्द हुई और वजह पूछी। क़ासिद ने जेब से एक ख़त निकाला और कहा इसको पढ़ लीजिए इसमें सबकुछ लिखा है।बीमारी नहीं, अल्लाह का तोहफा है ये!

प्यारी बहन !

आपके ख़त से यह मालूम करके बड़ा रंज हुआ कि आपके अच्छे शौहर का इन्तिक़ाल हो गया और आप उनकी सरपरस्ती से महरूम हो गईं। खुदा उनकी मग्फिरत फरमाये और उन पर अपनी रहमतों और इनायतों की बारिश फरमाये। मैं किस दिल से आपके खुलूस व ईसार का शुक्र अदा करूं कि आपने उनके तर्क में से अपने हिस्से की आधी रकम मुझको भेजी।

मैं आपकी इस नेक रविश से बहुत ही मुतास्सिर हुई। हक़ीक़त यह है कि सौदागर के इस राज़ से कोई वाक़िफ न था। मेरा निकाह बहुत ही पोशीदा तरीके पर हुआ था। मुझे तो यह यक़ीन था कि आपको भी इसकी ख़बर नहीं है। और मैं क्या, खुद सौदागर मरहूम भी यही समझते रहे कि आपको इस दूसरी शादी की इत्तिला नहीं है। अब आप के इस ख़त से यह राज़ खुला कि आप हमारे राज़ से वाक़िफ थीं।

सौकन की जलन फितरी बात है, आपको ज़रूर इस वाक़िए से तकलीफ पहुंची होगी। लेकिन अल्लाहु अकबर आपका सब्र व ज़ब्त । हक़ीक़त यह है कि आपने जिस सब्र व ज़ब्त से काम लिया उसकी नज़ीर नहीं मिल सकती। कभी इशारे, किनाए से भी तो आपने यह ज़ाहिर नहीं होने दिया कि आप हमारी इस खुफिया शादी से वाक़िफ हैं। आपका यह ईसार और सब्र व तहम्मुल वाक़ई हैरतअंगेज़ है, मैं तो आपके इस कमाल से इन्तिहाई मुतास्सिर हूँ।

दौलत किसको काटती है, दौलत के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते, लेकिन आफरीन आपकी ईमानदारी को, यह जानते हुए कि मेरा निकाह राज़ में है और वहाँ कोई एक भी ऐसा नहीं जिसको इसकी ख़बर हो और जो मेरी तरफ से वकालत करे,
मगर आपने सिर्फ खुदा के ख़ौफ से मेरे हक़ का ख़याल रखा और अपने हिस्से में से आधी रकम मुझे भेज दी। खुदा के हाज़िर व नाज़िर होने का यक़ीन हो तो ऐसा हो, और खुदा के बन्दों के हुकूक़ अदा करने का जज़्बा हो तो ऐसा हो।

अच्छी बहन ! मैं आपकी इस दियानतदारी, खुलूस औरं
हक़-शनासी से बहुत मुतास्सिर हूँ, खुदा आपको खुश रखे और दुनिया व आख़िरत में सुर्ख़-रू फरमाए। लेकिन बहन ! मैं अब इस हिस्से की मुस्तहिक़ नहीं रही हूँ, ख़ुदा आपका यह हिस्सा आप ही को मुबारक करे। यह सही है कि सौदागर मरहूम ने मुझसे निकाह किया था और यह भी सही है कि वह मेरे पास आकर कई-कई दिन रहते थे।

बेशक हमने बहुत दिन ऐश व मुसर्रत में ज़िन्दगी बसर की। लेकिन इधर कुछ दिनों से यह सिलसिला ख़त्म हो गया था। सौदागर मरहूम ने मुझे तलाक़ दे दी थी। इस राज़ की आपको भी ख़बर नहीं है। मैं इस ख़त के साथ आपकी इत्तिला और यक़ीन के लिए तलाक़ नामे की नक़्ल भी भेज रही हूँ, आख़िर में आपकी बे-मिसाल मुहब्बत, इनायत, ईसार, खुलूस और हमदर्दी का फिर शुक्रिया अदा करती हूँ।

वस्सलाम आपकी बहन….

सौदागर की बेवा ने उस ख़ातून का यह ख़त पढ़ा तो बहुत मुतास्सिर हुई और उसकी सच्चाई, दियानत और नेकी ने उसके दिल में घर कर लिया और फिर दोनों में हमेशा के लिए खुलूस व मुहब्बत और रिफाक़त का रिश्ता क़ाइम हो गया।
(सुफ़्फतुल सफ्वात, इस्लामी मुआशिरा, पेज 152)

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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