ज़िना करने की सज़ा।Zina karne ki saza.

Zina karne ki saza.
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अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया-यानी ऐ लोगों तुम जिना के पास भी न भटकना, बेशक वह बड़ी बेहयाई की बात है। फ़ायदा- पास भी न भटकना, इस का मतलब यह है कि जिन बातों से जिना का तक़ाज़ा पैदा होता है उनसे भी बचो।

जैसा कि अल्लाह के रसूल (स०) ने फ़रमाया है कि ग़ैर औरत को बद-नज़र से देखना या औरत का ग़ैर मर्द को देखना आँखों का ज़िना है। बातें करना और सुनना ज़ुबान और कानों का ज़िना है। हाथ लगाना या उसकी तरफ़ चलना यह हाथ और पाँव का ज़िना है।

दिल में उसका ख़याल करना यह दिल का ज़िना है तो इन बातों से बचना भी जरूरी है और जो शख्स मर्द हो या औरत, ग़ैर मेहरम को बदनज़री से देखेगा तो क़यामत के दिन उसकी आँखों में सिक्का पिघला कर डाला जायेगा।Zina karne ki saza.

मसला-अगर अचानक ग़ैर औरत पर नज़र पड़ जाये या औरत की ग़ैर मर्द पर नजर पड़ जाये तो फिर दूसरी नज़र डालना गुनाह है और जो पहली नज़र के बाद फिर न देखे, उसको शहीद के बराबर सवाब मिलेगा।

जिना करने वाले मर्द और औरत पर अल्लाह व रसूल ने लानत फ़रमायी है। दुनिया में भी शरीयत की तरफ़ से जिना करने की सज़ा यह है कि जिसका निकाह न हुआ हो मर्द हो या औरत, अगर वह इस बदकाम को करे तो उन दोनों को सौ-सौ दुर्रे मारे जायेंगे और निकाह किया हुआ जो मर्द या औरत जिना करे तो उनको संगसार किया जायेगा यानी पत्थरों से मार दिये जायेंगे।

हुज़ूर (स०) ने फ़रमाया है कि- जमीन दो जगह रोती है, एक नाहक़ खून होने पर, जब खून का पहला क़तरा ज़मीन पर गिरता है तो रो कर कहती है, ऐ रब! मुझे इजाज़त दे कि मैं इस क़ातिल को निगल जाऊँ। हुक्म होता है कि ज़रा सब्र कर, यह तेरे ही अन्दर आने वाला है, फिर समझ लेना।Zina karne ki saza.

और जब कोई जिना करता है तो ज़मीन रोकर कहती है-ऐ रब! मुझे अख्तियार दे कि मैं इस जानी और ज़ानिया को निगल जाऊँ। हुक्म होता है कि ज़रा सब्र कर, यह दोनों तेरे ही अन्दर आने वाले है। और उस वक़्त समझ लेना ।

हुज़ूर (स० ) ने -फ़रमाया कि- ज़िना करने वालों के लिए मरने के बाद उनकी क़ब्रों में दोज़ख़ के सातों दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और उन दरवाज़ों से उनको साँप और बिच्छू आकर डसते रहेंगे। हज़रत गौसे पाक का अक़ीदा

या अल्लाह तेरी पनाह! इस बेहयाई के काम से दुनिया में भी ऐसे आदमी बेइज़्ज़त और ज़लील हो जाते हैं और बड़ी-बड़ी तकलीफ़ों में फँस जाते हैं, जैसे किसी दुश्मन का सताना, रिज़्क़ की तंगी, जान व माल की बर्बादी, सेहत की कमी, बीमारियों की ज़्यादती, जल्दी बूढ़ा होना, मुँह पर फटकार का बरसना, चेहरे का बे-नूर और बेरौनक़ होना, बदसूरती पैदा होना, अल्लाह व रसूल की लानत में दाख़िल होना, नमाज़ रोज़ा और सब अच्छे कामों से नफ़रत हो जाना और मरने के बाद अज़ाबे क़ब्र में फँसना और आख़िरत में दोज़ख के अन्दर जलना।Zina karne ki saza.

अल्लाह के रसूल (स० )ने फ़रमाया कि जब मुझको मेराज हुई तो मैंने दोजख में एक तनूर देखा । मुँह उसका तंग और पेट उसका बहुत चौड़ा। उसमें बहुत से नंगे मर्द और औरतें क़ैद थे और उनसे साँप और बिच्छू लिपट रहे थे और उनकी पेशाबगाहों से खून और पीप बह रहा था। सब दोज़खी उस खून और पीप की बदबू से रोते थे। मैंने जिबराईल से पूछा, यह कौन लोग है ? कहा, या रसूल अल्लाह ! यह जिना करने वाले मर्द और ज़िना करने वाली औरतें हैं। फ़ायदा- दुनिया में देखा गया है कि बाज़ जानी और जानिया, सूजाक आतशक वग़ैरा की बीमारी में फँस जाते हैं।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता है तर्जुमा :- और मोमिन वोह जो अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करते हैं ।
(तर्जुमा कन्जुल ईमान, पारा 21 सूरए मआरिज, आयत 29)

एक मर्द एक ऐसी औरत से सोहबत करे जिस का वो मालिक नहीं यानी उस से निकाह नहीं हुआ उसे जिना (बलत्कार) कहते है। चाहे मर्द, औरत दोनों राजी हो तब भी येह जिना ही कहलाएगा। इसी तरह पेशावर बाज़ारी औरतों और तवाएफ़ों के साथ सोहबत करने को भी जिना कहा जाएगा ।

आज कल अक्सर नवजवान काफिरों की लड़कियों के साथ नाजाइज तअल्लुकात को, कोई गुनाह नहीं समझते येह सख़्त जहालत है काफिर लड़की से सोहबत भी जिना ही कहलाएगी ।

इसी तरह कट्टर , देवबन्दी, मौदूदी, नेचरी, शिया, वगैरा जितने भी दीन से फिरे हुए फिरके है उन की लड़की से निकाह किया तो निकाह ही नहीं होगा बल्कि जिना कहलाएगा जब तक कि वोह सच्ची तौबा कर के सुन्नी न हो जाए और वहाबियों को काफिर, मुरतद न समझे जिना यक़ीनन बहुत ही बड़ा गुनाह और बहुत ही बड़ी बला है येह इन्सान को कही का नहीं रख़्ती ।

हदीस :- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया- “शिर्क के बाद अल्लाह के नज़दीक इस गुनाह से बड़ा कोई गुनाह नहीं कि एक शख़्स किसी ऐसी औरत से सोहबत करे जो उस की बीबी नहीं” ।Zina karne ki saza.

हदीस :- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम और फरमाते हैं “जब कोई मर्द और औरत जिना करते है तो ईमान उन के सीने से निकल कर सर पर साए की तरह ठहर जाता है” । (मुकाशेफ्तुल कुलूब, बाब नं. 22, सफा नं 168)

हदीस :- हज़रत इकरेमा ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजिअल्लाहो तआला अन्हो से पुछा “ईमान किस तरह निकल जाता है ? हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजिअल्लाहो तआला अन्हो ने फरमाया “इस तरह और अपने हाथ की उंगलियां दूसरे हाथ की उंगलियों में डाली और फिर निकाल ली और फरमाया- देखो इस तरह”।(बुखारी शरीफ, जिल्द 3. बाब नं. 968, हदीस नं. 1713, सफा नं. 614, अशअतुल लम्आत, जिल्द 1, सफा नं. 287)

हदीस :- हज़रत अबू हुरैरा व इब्ने अब्बास रजिअल्लाहो तआला अन्हुमा से रिवायत है कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया- “मोमिन होते हुए तो कोई जिना कर ही नहीं सकता” । ( बुखारी शरीफ, जिल्द 3. बाब नं. 968, हदीस नं. 1714. सफा नं. 614)

मुसीबतें :-

हज़रत इमाम गज़ाली रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं “जिना में छे (6) मुसीबतें है। बाज़ सहाबा-ए-किराम से मरवी है कि जिना से बचो इस में “छे” मुसीबतें है जिन में से तीन का तअल्लुक दुनिया से और तीन का आख़िरत से है।

दुनिया की मुसीबतें येह है कि-

(1) ज़िन्दगी मुख्तसर यानी कम हो जाती है।
(2) दुनिया में रिज़्क कम हो जाता है।
(3) चेहरे से रौनक ख़त्म हो जाती है।

आखिरत की मुसीबतें येह है कि-  इस्लाम में औरत और पर्दे का हुक्म।

(4) आखिरत में ख़ुदा की नाराज़गी ।
(5) आखिरत में सख्त पूछ ताछ होगी ।
(6) जहन्नम में जाएगा और सख्त अज़ाब !
(मुकाशेफ़्तुत कुलूब, बाब नं. 22, सफा नं. 168)

हदीस :- रिवायत है कि अल्लाह के नबी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम, ने अल्लाह जल्ला जलालहु से जिना करने वाले की सज़ा के बारे में पूछा तो रब तआला ने इरशाद फरमाया “उसे आग की ज़र्रह पहनाऊँगा यानी लोहे का लिबास जो आग से बना होगा वोह ऐसी वज़नी है कि अगर बहुत बड़े पहाड़ पर रख दी जाए तो वोह भी रेज़ा रेजा हो जाए । (मुकाशेफतुल कुलूब, बाब नं. 22, सफा नं. 168)Zina karne ki saza.

आयत : अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- तर्जुमा :- जो शख्स जिना करता है उसे असाम में डाला जाएगा ।(कुरआने करीम, पारा 19 सूरए फुरकान, आयत 68) असाम के बारे में ओलमा-ए-किराम ने कहा है कि वोह जहन्नम का एक ग़ार है जब उस का मुँह खोला जाएगा तो उस की बदबू से तमाम जहन्नमी चीख उठेंगे । (मुकाशेफतुल कुलूब, बाब नं. 22, सफा नं. 167)

हदीस:- सातों आसमान सातों ज़मीनें और पहाड़ जिना कार पर लअनत भेजते है और कियामत के दिन जिना कार मर्द व औरत की शर्मगाह से इस कदर बदबू आती होगी की जहन्नम में जलने वालों को भी इस बदबू से तकलीफ़ पहुँचेगी । (बहारे शरीअत, जिल्द 1, हिस्सा नं. 9, सफा नं. 43)

येह सज़ा तो आख़िरत में मिलेगी लेकिन ज़िना करने वाले पर शरीअत ने दुनिया में भी सज़ा मुकर्रर कि है। इस्लामी हुक़ूमत हो तो बादशाहे वक्त या फिर काज़ी पर ज़रूरी है कि ज़िना करने वाले पर जुर्म साबित हो जाने पर शरीअत का हुक्म लगाए ।

हदीसे पाक में है कि अगर कोई दुनिया में सज़ा से बच गया तो आख़िरत में उस को सख़्त अज़ाब दिया जाएगा और अगर दूनिया में सजा मिल गई तो फिर अल्लाह चाहे तो उसे मुआफ फरमा दे।

दुनिया में सज़ा :-

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने ज़िना करने वाले मर्द और औरत को सज़ा का हुक्म दिया और उस पर अमल भी करवाया ।

चुनानचे हदीसे पाक में है कि ज़िना करने वाले के लिए येह सजा रखी गई है-
हदीस :- ज़िना करने वाले शादी शुदा हो तो खुले मैदान में पत्थरों से मार डाला जाए और गैर शादी शुदा हो तो सौ (100) दुर्रे यानी चाबूक जिस के सिरे पर नोकिला किला हो उस से मरे जाए ।(बुखारी शरीफ, जिल्द 3, बाब नं. 968, 980, हदीस नं. 1715, सफा नं 615,625) ज़्यादा तफ्सील के लिए क़ुरआने करीम में सूरए “नूर” की दूसरी आयत का मुताला करे ।Zina karne ki saza.

हिन्दुस्तान में चूँकि इस्लामी हुकूमत नहीं है इसलिए यहाँ इस्लामी सजा भी नहीं दी जा सकती। लिहाज़ा जो इस गूनाह में पड़े हुए हैं वोह आज ही से सच्ची तौबा कर लें और अल्लाह से गिड़‌गिड़ा कर मुआफी माँगे । अगर अल्लाह राज़ी हो गया तो उन के सारे गुनाह मुआफ कर देगा ।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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