
इस्लाम जिस ऊँची तहजीब और रहन-सहन की दावत देता है, वह उसी वक़्त वजूद में आ सकता है जब हम एक साफ़-सुथरा समाज कायम करने में कामयाब हों और साफ-सुथरे समाज की तामीर के लिए जरूरी है कि आप ख़ानदानी इन्तेज़ाम को ज़्यादा से ज़्यादा मज़बूत और कामयाब बनाएँ।
ख़ानदानी ज़िन्दगी की शुरूआत शौहर और बीवी के पाक-साफ़ ताल्लुक़ से होती है और इस ताल्लुक़ की खुशगवारी और मज़बूती उसी वक़्त मुमकिन है जब शौहर और बीवी दोनों ही साथ मिलकर गुज़ारनेवाली ज़िन्दगी के आदाब और फ़र्जों को खूब अच्छी तरह जानते हों और उन आदाब और फ़र्जों को पूरा करने के लिए पूरा दिल लगाकर खुलूस और यकसूई के साथ मुस्तैद और सरगर्म हों ।
नीचे हम पहले उन आदाब और फ़र्जों को बयान करते हैं जिनका ताल्लुक़ शौहर से है और फिर उन आदाब और फ़र्जों का जिक्र करना है जिनका ताल्लुक़ बीवी से है।
शौहर की ज़िम्मेदारियाँ :-
बीवी के साथ अच्छे सुलूक की ज़िन्दगी गुज़ारिए । उसके हक़ों को दिल खोलकर अदा कीजिए और हर मामले में एहसान और ईसार का रवैया अपनाइए । खुदा का इरशाद है- तर्जुमा “और उनके साथ भले तरीके से ज़िन्दगी गुज़ारो।” (कुरआन, 4:19)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने विदाई हज के मौके पर एक बड़े इज्तिमा को ख़िताब करते हुए हिदायत फ़रमाई – “लोगो सुनो ! औरतों से अच्छे सुलूक के साथ पेश आओ क्योंकि वे तुम्हारे पास कैदियों की तरह हैं। तुम्हें उनके साथ सख़्ती का बरताव करने का कोई हक़ नहीं, सिवाए उस हालत में कि जब उनकी तरफ़ से कोई खुली हुई नाफ़रमानी सामने आए।
अगर वे ऐसा कर बैठें तो फिर खाबगाहों में उनसे अलग रहो और उन्हें मारो तो ऐसा न मारना कि कोई भारी चोट आए और फिर जब वे तुम्हारे कहने पर चलने लगें तो उनको खाहमखाह सताने के बहाने न ढूँढो । देखो, सुनो ! तुम्हारे कुछ हक़ तुम्हारी बीवियों पर हैं और तुम्हारी बीवियों के कुछ हक़ तुम्हारे ऊपर हैं। उनपर तुम्हारा हक़ यह है कि वे तुम्हारे बिस्तरों को उन लोगों से न रौंदवाएँ जिनको तुम नापसन्द करते हो और तुम्हारे घरों में ऐसे लोगों को हरगिज़ न घुसने दें जिनका आना तुम्हें नागवार हो । और सुनो, उनका तुमपर यह हक़ है कि तुम उन्हें अच्छा खिलाओ और अच्छा पहनाओ ।”(रियाज़ुस्सालिहीन)
यानी उनके खिलाने-पिलाने का ऐसा इन्तिज़ाम कीजिए जो मियाँ-बीवी के बेमिसाल करीबी, दिली ताल्लुक़ात और साथ रहने के जज्बे की शान के मुताबिक़ हो ।
जहाँ तक हो सके बीवी से खुशगुमान रहिए और उसी के साथ निबाह करने में बरदाश्त करने और ऊँचा हौसला दिखानेवाले रवैए को अपनाइए। अगर उसमें शक्ल व सूरत या आदत व अख़लाक़ या सलीक़ा और हुनर के एतिबार से कोई कमज़ोरी भी हो तो सब्र के साथ उसे पी जाइए और उसकी खूबियों पर निगाह रखते हुए खुले दिल और ऊँचे हौसले के साथ त्याग और सुलह से काम लीजिए । खुदा का इरशाद है-“और सुलह भलाई ही है।”
और ईमानवालों को हिदायत की गई है- “फिर अगर वे तुम्हें (किसी वजह से) नापसन्द हों तो हो सकता है कि एक चीज तुम्हें पसन्द न हो, पर खुदा ने उसमें (तुम्हारे लिए) बहुत कुछ भलाई रख दी हो।” (कुरआन, 4:19)
इसी बात को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में यूँ कहा है-“कोई ईमानवाला मर्द अपनी ईमान वाली बीवी से नफरत न करे । अगर बीवी की कोई आदत उसको नापसन्द है तो हो सकता है दूसरी आदत उसको पसन्द आ जाए।”
सच तो यह है कि हर औरत में किसी न किसी पहलू से कोई न कोई कमज़ोरी जरूर होगी और अगर शौहर किसी ऐब को देखते ही उसकी ओर से निगाहें फेर ले और दिल बुरा कर ले तो फिर किसी खानदान में घरेलू खुशगवारी मिल ही न सकेगी । हिकमत का तक़ाज़ा तो यही है कि आदमी दरगुज़र से काम ले और खुदा पर भरोसा रखते हुए औरत के साथ खुशदिली से निबाह करने की कोशिश करे ।
हो सकता है कि ख़ुदा उस औरत के वास्ते से मर्द को कुछ ऐसी भलाइयाँ दे दे, जिन तक मर्द की कोताह नज़र न पहुँच रही हो, जैसे औरत में दीन व ईमान और अमल की कुछ ऐसी खुली खूबियाँ हों जिनकी वजह से वह पूरे खानदान के लिए रहमत साबित हो या उसकी ज़ात से कोई ऐसी नेक रूह वुजूद में आए जो एक बड़ी आबादी को फ़ायदा पहुँचाए और रहती ज़िन्दगी के लिए बाप के हक़ में सदक़-ए-जारिया (जारी रहनेवाली नेकी) बने या औरत मर्द में सुधार लाने का जरिया बने और उसको जन्नत से क़रीब करने में मददगार साबित हो या फिर उसकी क़िस्मत से दुनिया में ख़ुदा उस मर्द को बहुत-सी रोजी और खुशहाली दे ।
बहरहाल औरत के किसी ज़ाहिरी ऐब को देखकर बेसब्री के साथ मियाँ-बीवी के ताल्लुक़ को बरबाद न कीजिए, बल्कि हिकमत के साथ-साथ धीरे-धीरे घर के माहौल को ज्यादा से ज्यादा खुशगवार बनाने की कोशिश कीजिए ।
माफ़ करने और मेहरबानी करने का रवैया अपनाइए और बीवी की कोताहियों, नादानियों और सरकशियों से आँखें चुरा जाइए। औरत सूझ-बूझ और अक़्ल के एतिबार से कमज़ोर और बहुत ही जज़्बाती होती है। इसलिए सब्र व सुकून, रहमत व मुहब्बत और दिल के खुलूस के साथ उसको सुधारने की कोशिश कीजिए और सब्र व ज़ब्त से काम लेते हुए निबाह कीजिए ।
अल्लाह पाक का इरशाद है-“ईमानवालो ! तुम्हारी कुछ बीवियाँ और कुछ औलादें तुम्हारी दुश्मन हैं, सो उनसे बचते रहो । अगर तुम माफ़ी, मेहरबानी, खुलूस और दिल की गहराई से काम लो तो यक़ीन रखो कि ख़ुदा बहुत ही ज़्यादा रहम करनेवाला है।”(कुरआन, 64:14)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “आरतों के साथ अच्छा व्यवहार करो। औरत पसली से पैदा की गई है और पसलियों में सबसे ज्यादा ऊपर का हिस्सा टेढ़ा है, उसको सीधा करोगे तो टूट जाएगी और अगर उसको छोड़े रहो तो टेढ़ी ही रहेगी, इसलिए औरतों के साथ अच्छा व्यवहार करो ।”(मुस्लिम, बुखारी)
बीवी के साथ अच्छे अख़लाक़ का बरताव कीजिए और प्यार व मुहब्बत से पेश आइए । नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “पूरे ईमान वाले मोमिन वही हैं जो अपने अख़लाक़ में सबसे अच्छे हों और तुममें सबसे अच्छे लोग वे हैं जो अपनी बीवियों के हक़ में सबसे अच्छे हों ।”
(तिरमिजी)
अपने अच्छे अख़लाक़ और नर्म मिजाज को जाँचने का असल मैदान घरेलू जिन्दगी है। घरवालों से ही हर वक़्त का वास्ता रहता है और घर की बेतकल्लुफ़ ज़िन्दगी में ही मिज़ाज व अख़लाक़ का हर रुख सामने आता है और यह हक़ीक़त है कि वही मोमिन अपने ईमान में पूरा है जो घरवालों के साथ अच्छे अख़लाक़, खुले दिल और मेहरबानी का बरताव करे, घरवालों का दिल रखे और प्यार व मुहब्बत से पेश आए ।
एक बार हज के मौके पर हज़रत सफ़िया रजियल्लाहु तआला अन्हा का ऊँट बैठ गया और वह सबसे पीछे रह गईं । नबी अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देखा कि वह फूट-फूटकर रो रही हैं। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रुक गए और अपने मुबारक हाथों से चादर का पल्लू लेकर उनके आँसू पोंछे । आप आँसू पोंछते जाते और वह बे इखतियार रोती जाती थीं ।
पूरे खुले दिल से अपनी ज़िन्दगी की साथी की जरूरतें पूरी कीजिए और ख़र्च में कभी तंगी न कीजिए, अपनी मेहनत की कमाई घरवालों पर खर्च करके सुकून और खुशी महसूस कीजिए। खाना-कपड़ा बीवी का हक़ है और इस हक़ को हाथ खोलकर और दिल की गहराइयों के साथ अदा करने के लिए दौड़-धूप करना शौहर की बड़ी खुशगवार जिम्मेदारी है।
इस ज़िम्मेदारी को खुले दिल से अंजाम देने से न सिर्फ दुनिया में मियाँ-बीवी को भली ज़िन्दगी वाली नेमत मिलती है, बल्कि ईमान वाला आख़िरत में भी अज्र और इनाम का हक़दार बनता है।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “एक दीनार तो वह है जो तुमने खुदा की राह में ख़र्च किया । एक दीनार वह है जो तुमने किसी गुलाम को आज़ाद करने में लगाया। एक दीनार वह है जो तुमने किसी फ़क़ीर को सदके में दिया और एक दीनार वह है जो तुमने अपने घरवालों पर लगाया। इनमें सबसे ज्यादा अज्र व सवाब उस दीनार के ख़र्च करने का है जो तुमने अपने घरवालों पर लगाया है।” (मुस्लिम)
बीवी को दीनी हुक्म और तहजीब सिखाइए, दीन की तालीम दीजिए, इस्लामी अख़लाक़ से सजाइए और उसकी तरबियत और सुधार के लिए हर मुमकिन कोशिश कीजिए ताकि वह एक अच्छी बीवी, अच्छी माँ और खुदा की नेक बन्दी बन सके और अपनी घरेलू ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह अदा कर सके।
खुदा का इरशाद है- “ईमान वालो ! अपने आपको और अपने घरवालों को जहन्नम की आग से बचाओ ।”(कुरआन, 66:6)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जिस तरह तबलीग़ व तालीम में लगे रहते थे, उसी तरह घर में भी इस ज़िम्मेदारी को अदा करते रहते। इसी की तरफ इशारा करते हुए कुरआन ने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की बीबियों को ख़िताब किया है-“और तुम्हारे घरों में जो खुदा की आयतें पढ़ी जाती हैं और हिक्मत की बातें सुनाई जाती हैं, उनको याद रखो ।”
कुरआन में नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के वास्ते से ईमानवालों को हिदायत की गई है-“और अपने घरवालों को नमाज़ की ताकीद कीजिए और ख़ुद भी उसके पूरे पाबन्द रहिए।” (कुरआन, 20:132)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“जब कोई मर्द रात में अपनी बीवी को जगाता है और वे दोनों मिलकर दो रकाअत नमाज़ पढ़ते हैं तो शौहर का नाम जिक्र करने वालों में और बीवी का नाम जिक्र करने वालियों में लिखा जाता है।”(अबू दाऊद)
दूसरे खलीफ़ा हजरत उमर फारूक रजियल्लाहु तआला अन्हु रात में ख़ुदा के हुज़ूर खड़े इबादत करते रहते, फिर सहर का वक़्त आता तो अपनी बीवी को जगाते और कहते, उठो-उठो नमाज पढ़ो और फिर यह आयत भी पढ़ते- वअ-मुर अह-ल-क बिस्सलाति वस-तबिर अलैहा । (कुरआन, 20:132) “और अपने घरवालों को नमाज़ की ताकीद करो और उस पर जमे रहो।”
अगर कई बीवियाँ हों तो सबके साथ बराबरी का व्यवहार कीजिए । नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बीवियों के साथ बरताव में बराबरी का बड़ा एहतिमाम करते । सफ़र पर आते तो कुरआ (पर्ची) डालते और कुरआ में जिस बीवी का नाम आता उसी को साथ ले जाते ।
हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“अगर किसी आदमी की दो बीवियाँ हों और उसने उनके साथ इनसाफ़ और बराबरी का व्यवहार न किया तो क़यामत के दिन वह आदमी इस हाल में आएगा कि उसका आधा धड़ गिर गया होगा।” (तिमिरजी)
इनसाफ़ और बराबरी से मतलब मामलों और बरतावों में बराबरी करनी है। रही यह बात कि किसी एक बीवी की ओर दिल का झुकाव और मुहब्बत के जज़्बे ज्यादा हों तो यह इनसान के बस में नहीं है और उसपर खुदा के यहाँ कोई पकड़ न होगी ।

बीवी की जिम्मेदारियाँ :-
बड़ी खुशी-खुशी अपने शौहर की इताअत कीजिए और इस इताअत में खुशी और सुकून महसूस कीजिए, इसलिए कि यह ख़ुदा का हुक्म है और जो बन्दी खुदा के हुक्म को पूरा करती है, वह अपने खुदा को खुश करती है। कुरआन में है- “नेक बीवियाँ (शौहर की) इताअत करने वाली होती हैं।”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“कोई औरत शौहर की इजाज़त के बिना रोज़ा न रखे।” (अबू दाऊद)
शौहर की इताअत और फ़रमाँबरदारी की अहमियत बताते हुए नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने औरत को तंबीह की है-“दो क़िस्म के आदमी हैं जिनकी नमाजें उनके सिरों से ऊँची नहीं उठतीं- उस गुलाम की नमाज जो अपने आक़ा से फरार हो जाए, जब तक वह लौट न आए और उस औरत की नमाज़ जो शौहर की नाफ़रमानी करे, जब तक कि शौहर की नाफ़रमानी से बाज़ न आ जाए।” (अत-तार्गीब वत-तहींब)
अपनी आबरू और पाकदामनी की हिफाज़त का एहतिमाम कीजिए और उन तमाम बातों और कामों से भी दूर रहिए जिनसे इज़्ज़त के दामन पर धब्बे का डर भी हो। खुदा की हिदायत का तक़ाज़ा भी यही है और मियाँ-बीवी वाली जिन्दगी को बेहतर बनाए रखने के लिए भी यह इंतिहाई जरूरी है, इसलिए कि अगर शौहर के दिल में इस तरह का कोई शक पैदा हो जाए तो फिर औरत की कोई ख़िदमत व इताअत और कोई भलाई शौहर को अपनी ओर मायल नहीं कर सकती और इस मामले में मामूली-सी कोताही से भी शौहर के दिल में शैतान शक डालने में कामयाब हो जाता है। इसलिए इनसानी कमज़ोरी को निगाह में रखते हुए इंतिहाई एहतियात कीजिए ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि का इरशाद है- “औरत जब पाँचों वक़्त की नमाज़ पढ़े, अपनी आबरू की हिफ़ाज़त करे, अपने शौहर की फ़रमाँबरदार रहे तो वह जन्नत में जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो जाए ।”(अत-तर्गीब वत-तींब)
शौहर की इजाज़त और मरज़ी के बगैर घर से बाहर न जाइए और न ऐसे घरों में जाइए जहाँ शौहर आपका जाना पसन्द न करे और न ऐसे लोगों को अपने घरों में आने की इजाजत दीजिए जिनका आना शौहर को नागवार हो ।
हज़रत मुआज बिन जबल रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“खुदा पर ईमान रखनेवाली औरत के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह अपने शौहर के घर में किसी ऐसे आदमी को आने की इजाज़त दे जिसका आना शौहर को नागवार हो और वह घर से ऐसी हालत में निकले जबकि उसका निकलना शौहर को नागवार हो और औरत शौहर के मामले में किसी दूसरे का कहा न माने ।”(अत-तर्गीब वत-तहींब)
यानी शौहर के मामले में शौहर की मरजी और इशारे पर ही अमल कीजिए और उसके ख़िलाफ़ हरगिज दूसरों के मशविरे को न अपनाइए ।
हमेशा अपनी बातों, कामों और तौर-तरीक़ों से शौहर को खुश रखने की कोशिश कीजिए । मियाँ-बीवी की कामयाब जिन्दगी का राज भी यही है और खुदा की रिज़ा और जन्नत के हासिल करने का रास्ता भी यही है ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“जिस औरत ने भी इस हाल में इन्तिकाल किया कि उसका शौहर उससे राजी और खुश था तो वह जन्नत में दाखिल होगी ।”(तिरमिज़ी)
और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने यह भी फ़रमाया-“जब कोई आदमी अपनी बीवी को वासना पूर्ति के लिए बुलाए और वह न आए और इस कारण शौहर रात भर उससे ख़फ़ा रहे तो ऐसी औरत पर सुबह तक फ़रिश्ते लानत करते रहते हैं।” (बुखारी, मुस्लिम)
अपने शौहर से मुहब्बत कीजिए और उसका साथ पाने की क़द्र कीजिए । यह जिन्दगी की जीनत का सहारा और बड़ा मददगार है। ख़ुदा की इस बड़ी नेमत पर खुदा का भी शुक्र अदा कीजिए और इस नेमत की भी दिल व जान से क़द्र कीजिए ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक मौके पर फ़रमाया-“निकाह से बेहतर कोई चीज़ दो मुहब्बत करनेवालों के लिए नहीं पाई गई।”
हजरत सफ़िया रजियल्लाहु तआला अन्हा को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से बेइंतिहा मुहब्बत थी । चुनाँचे जब आप बीमार हुए तो बड़ी खुशी के साथ बोलीं, “काश ! आपके बजाए मैं बीमार होती ।”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दूसरी बीवियों ने मुहब्बत के इस तरह जाहिर करने पर ताज्जुब से उनकी ओर देखा तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“दिखावा नहीं है, बल्कि सच कह रही हैं।”
शौहर का एहसान मानिए। उसकी शुक्र गुज़ार रहिए। आपका सबसे बड़ा हमदर्द आपका शौहर ही तो है जो हर तरह आपको खुश करने में लगा रहता है। आपकी हर ज़रूरत को पूरा करता है और आप को हर तरह का आराम पहुँचाकर आराम महसूस करता है।
हजरत अस्मा रजियल्लाहु तआला अन्हा कहती हैं कि एक बार नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मेरे पास से गुज़रे । मैं अपनी पड़ोसी सहेलियों के साथ थी। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हमें सलाम किया और इरशाद फ़रमाया-“तुम पर जिसका एहसान है उनकी नाशुक्री से बचो । तुममें की एक अपने माँ-बाप के यहाँ काफी दिनों तक बिन ब्याही बैठी रहती है, फिर खुदा उसको शौहर अता फरमाता है, फिर खुदा उसको औलाद देता है।
इन तमाम एहसानों के बावजूद अगर कभी किसी बात पर शौहर से ख़फ़ा होती है तो कह उठती है: मैंने तो कभी तुम्हारी तरफ़ से भलाई देखी ही नहीं ।”(अल-अदबुल मुफ़रद)
नाशुक्रगुजार और एहसान भूल जानेवाली बीवी को तंबीह करते हुए नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “खुदा क़यामत के दिन उस औरत की ओर नज़र उठाकर भी न देखेगा जो शौहर की ना शुक्रगुज़ार होगी, हालाँकि औरत किसी वक़्त भी शौहर से बेनियाज़ नहीं हो सकती ।”(नसई)
शौहर की ख़िदमत करके ख़ुशी महसूस कीजिए और जहाँ तक हो सके ख़ुद तकलीफ़ उठाकर शौहर को आराम पहुँचाइए और हर तरह उसकी खिदमत करके उसका दिल अपने हाथ में ले लेने को कोशिश कीजिए ।
हज़रत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा अपने हाथ से नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कपड़े धोतीं, सिर में तेल लगातीं, कंघा करतीं, खुश्बू लगातीं और यही हाल अपने शौहरों के साथ दूसरी सहाबिया औरतों का भी था ।
एक बार नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“किसी इनसान के लिए यह जायज़ नहीं कि वह किसी दूसरे इनसान को सज्दा करे । अगर इसकी इजाज़त होती तो बीवी को हुक्म दिया जाता कि वह अपने शौहर को सज्दा करे। शौहर का अपनी बीवी पर भारी हक़ है, इतना भारी हक़ कि अगर शौहर का सारा जिस्म घायल हो और बीवी शौहर के घायल जिस्म को ज़बान से चाटे, तब भी शौहर का हक़ अदा नहीं हो सकता ।”(मुस्नद अहमद)
शौहर के घर-बार और माल व अस्बाब की हिफ़ाज़त कीजिए। शादी के बाद शौहर के घर को ही अपना घर समझिए और शौहर के माल को शौहर के घर की रौनक बढ़ाने, शौहर की इज्जत बनाने और उसके बच्चों का भविष्य सँवारने में हिकमत, किफ़ायत और सलीके से खर्च कीजिए। शौहर की तरक़्क़ी और खुशहाली को अपनी तरक़्क़ी और खुशहाली समझिए ।
कुरैश की औरतों की तारीफ़ करते हुए नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “कुरैश की औरतें क्या ही खूब औरतें हैं. बच्चों पर निहायत मेहरबान हैं और शौहर के घरबार की इंतिहाई हिफ़ाज़त करनेवाली हैं।” (बुखारी)
और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नेक बीवियों की खूबियाँ बयान करते हुए फ़रमाया-“मोमिन के लिए अल्लाह के डर के बाद सबसे ज्यादा फ़ायदेमंद और भलाई से भरी नेमत नेक बीवी है कि जब वह उससे किसी काम को कहे तो वह खुशदिली से अंजाम दे और जब वह उसपर निगाह डाले तो वह उसको अपनी अदा से ख़ुश कर दे और जब वह उसके भरोसे पर क़सम खा बैठे तो वह उसकी क़सम पूरी कर दे और जब वह कहीं चला जाए तो वह उसके पीछे अपनी इज़्ज़त व आबरू की हिफ़ाज़त करे और शौहर के माल और सामान की निगरानी में शौहर की भलाई चाहने वाली और वफ़ादार रहे ।”(इब्ने माजा)
सफ़ाई, सलीक़ा और साज-सज्जा का भी पूरा-पूरा एहतिमाम कीजिए । घर को भी साफ़-सुथरा रखिए और हर चीज़ को सलीक़े से सजाइए और सलीक़े से इस्तेमाल कीजिए । साफ़-सुथरा घर, करीने से सजे हुए साफ़-सुथरे कमरे, घरेलू कामों में सलीक़ा और सुघड़पन, बनाव-सिंगार की हुई बीवी की पाकीज़ा मुस्कुराहट से न सिर्फ़ घरेलू ज़िन्दगी प्यार व मुहब्बत और खैर व बरकत से मालामाल होती है, बल्कि एक बीवी के लिए अपनी आख़िरत बनाने और खुदा को खुश करने का भी यही ज़रिया है।
एक बार बेगम उसमान बिन मज़ऊन रजियल्लाहु तआला अन्हा से हज़रत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा की मुलाक़ात हुई तो उन्होंने देखा कि बेगम उसमान बड़े सादा कपड़ों में हैं और कोई बनाव-सिंगार भी नहीं किया है तो हज़रत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा को बहुत ताज्जुब हुआ और उनसे पूछा-“बहन ! क्या उसमान कहीं बाहर सफ़र पर गए हुए हैं ?”
इस ताज्जबु से अंदाज़ा कीजिए कि सुहागनों का अपने शौहरों के लिए बनाव-सिंगार करना कैसा पसंदीदा काम है ।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..