हुज़ूर ए अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अपने बेटे हज़रत इब्राहीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की जान निकलने के वक़्त तशरीफ लाये, उस वक़्त आपकी आँखों से आँसू जारी हो गये। हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज कियाः या रसूलल्लाह !
आम लोग तो बच्चों की मौत पर रोते ही हैं, भला आप भी रोने लगे? आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमायाः यह तबई रहमत है जो अल्लाह पाक ने दिल में रखी है। फिर फरमाया कि बेशक आँख रो रही है और दिल ग़मगीन है, और ज़बान से हम वही कहते हैं जिससे हमारा रब राज़ी हो। फिर फरमाया ऐ इब्राहीम ! तुम्हारी जुदाई से हमको रंज है। (बुख़ारी व मुस्लिम) किसी की मौत पर बयान करके रोना-पीटना लानत का सबब है
हदीस :- हज़रत अबू सईद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नौहा यानी मय्यित पर बयान करके रोना-पीटना करने वाली पर और जो ध्यान देकर नौहा सुनने वाली हो उसपर यानी दोनों पर लानत भेजी है। (मिश्कात शरीफ पेज 151)
तशरीह :- जैसा कि पहली हदीस की तशरीह से मालूम हुआ कि किसी की मौत पर बेइख़्तियार आँखों में आँसू आ जाना और दिल का रंजीदा होना पकड़ और गिरफ़्त की बात नहीं है। लेकिन ज़बान से जाहिलीयत की बातें निकालना और खुदा तआला पर एतिराज़ करना और अपने इख़्तियार से बुलन्द आवाजें निकालना, चीखना, चिल्लाना, शोर मचाना, कपड़े फाड़ना, इस्लाम में इन चीज़ों की बिल्कुल गुंजाइश नहीं हैं।
इस हदीस में इरशाद फरमाया है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नौहा करने (यानी मय्यित पर बयान करके रोने-पीटने) वाली औरत पर लानत फरमायी है। और उस औरत पर भी लानत फरमायी जो नौहा सुनने का इरादा करे और इसको पसन्द करे।
नौहा करने का यह मतलब है कि किसी मरने वाले पर रोये और उसकी ख़ूबियों को शुमार कराये। और बाज़ आलिमों ने फरमाया है कि बयान करने की भी कैद नहीं बल्कि सिर्फ आवाज़ के साथ रोने को नौहा कहा जाता है। औरतों को आदत होती है कि रिश्तेदार और करीबी, शौहर और औलाद की मौत पर नौहा करती हैं।
चीख़ना, चिल्लाना, शोर मचाना, मय्यित को ख़िताब करना और यह कहना कि हाय मेरे प्यारे ! ऐ मेरे जवान ! ऐ बेटा! तू कहाँ गया, मुझे किसपर छोड़ा ? तू ऐसा था, तू वैसा था। और इस तरह की बहुत-सी बातें पुकार-पुकारकर बयान करना और रोना-पीटना, महीनों तक के लिए मशगला बन जाता है। और बाज़ इलाकों में सालों साल तक यह सिलसिला चलता है।
खूबसूरत वाक़िआ:-सुनहरी ज़िन्दगी से तौबा तक|
ये बातें सख्त मना हैं। हुज़ूर ए अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नौहा करने वाली पर लानत फरमायी और साथ ही नौहा सुनने वाली पर भी। क्योंकि नौहा करने वाली का नौहा सुनने के लिए जो औरतें जमा हों वे नौहा करने का सबब बनती हैं। आम तौर पर नौहा करने वाली औरत तन्हाई में नौहा नहीं करती है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
