19/05/2025
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मस्जिदे अक्सा के बारे कुछ खास बातें।Masjide aqsa ke bare me kuch khas baten.

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इस मस्जिद के वैसे तो कई नाम हैं लेकिन उन में सब से मशहूर वो नाम हैं जो क़ुरान और हदीस में आये हैं यानि मस्जिदे अक्सा और दूसरा नाम बैतूल मुक़द्दस है।

इस्लाम में सिर्फ तीन मस्जिदें ऐसी हैं जिनकी ज़ियारत और उस में नमाज़ अदा करने की नियत से आप सफ़र कर सकते हैं और मस्जिदे अक्सा उन तीनों मस्जिदों में से एक है

हज़रत अबू सईद ख़ुदरी (र.अ)रिवायत करते हैं कि नबी करीम (स.व) ने इरशाद फ़रमाया :- तुम सफ़र नहीं कर सकते किसी भी मस्जिद का उसको देखने की नियत से या उसमें नमाज़ पढने की नियत से, सिवाए तीन मस्जिदों के पहली मस्जिदे हराम यानी काबा दूसरी मस्जिदे नबवी तीसरी मस्जिदे अक्सा (बुखारी शरीफ़ )

इन्ही तीनों मस्जिदों की तरफ नमाज़ और ज़ियारत की नियत से सफ़र जाएज़ किया गया इस से पता चलता है कि तीनों मस्जिदों की इस्लाम में क्या अहमियत है।

ज़मीन पर दुनिया की दूसरी सब से पुरानी मस्जिद है।

हज़रत अबू ज़र गिफ़ारी (र.अ)फ़रमाते हैं कि मैंने रसूलुल लाह (स.व) से पुछा, या अल्लाह के रसूल(स.व)!ज़मीन पर सब से पहले कौन सी मस्जिद तामीर हुई, फ़रमाया, मस्जिदे हराम, मैंने पुछा फिर कौन सी, आप ने फ़रमाया मस्जिदे अक्सा, मैंने पुछा दोनों की तामीर में फासला कितना है आपने फ़रमाया, 40 साल (बुख़ारी)

पता चला सब से पहले मस्जिदे हराम की तामीर हुई और उसको सब से पहले हज़रत आदम अ.स. ने बनाया और दोबारा हज़रत इबराहीम अ.स. ने बनाया, और उसके बाद मस्जिदे अक्सा की तामीर हुई तो इसकी नई तामीर हज़रत दाऊद अ.स. और उनके बेटे हज़रत सुलैमान अ.स. ने की ।

मस्जिदे अक्सा मुसलमानों का पहला क़िबला है मुसलमानों ने मक्का में और फिर हिजरत कर जाने के बाद मदीना में भी 16 या 17 महीने तक इसी मस्जिद की तरफ़ मुंह करके नमाज़ अदा करते रहे उस वक़्त तक नमाज़ के लिए काबे की तरफ रुख का हुक्म नहीं हुआ था बाद में मुसलमानों का क़िबला काबा हो गया था

हदीस:- हज़रत बर्रा बिन आज़िब (र.अ) फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल लाह (स.व) के साथ बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ मुँह कर के 16 या 17 महीने नमाज़ अदा की, फिर हम को क़िबला बदलने का हुक्म हुआ लेकिन क़िबला बदल जाने से इस मस्जिद का मक़ाम व मर्तबा ख़त्म नहीं हुआ (बुखारी)

ये मस्जिद ऐसी जगह है जिसमें अल्लाह तआला ने बरकतें रखी हैं कुरान में सूरह बनी इस्राईल में अल्लाह तआला फरमाते हैं कि बड़ी मुक़द्दस है वो ज़ात जो अपने बन्दे को रातों रात मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा ले गयी जिस के माहौल को हम ने बरकतों से मामूर कर रखा है,

मक़सद ये था कि उन को हम अपनी निशानियाँ दिखा दें, बेशक अल्लाह खूब सुनने वाला और देखने वाला है हज़रत मुहम्मद (स.अ) का मेराज का सफ़र यहीं से शुरू हुआ था

अल्लाह तआला को जब अपने नबी करीम (स.अ) से मुलाक़ात करनी थी और आसमानों का सफ़र कराना था तो हज़रत जिबराईल (अ.स)को भेजा, वो हमारे नबी स.अ. को पहले मस्जिदे हराम तक लाये फिर मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा ले गए और फिर यहाँ से आसमानों की तरफ और रब की मुलाक़ात के लिए ले गए।

मस्जिदे अक्सा में सारे नबी (अ.स)इकठ्ठा हुए ये मस्जिदे अक्सा एक अकेली ऐसी जगह है जहाँ पर हज़रत आदम से लेकर हज़रत मुहम्मद (स.व) तक खुदा के भेजे गए तमाम नबी और रसूल जमा हुए और फिर वहीँ तमाम नबियों को हमारे नबी स.अ. ने नमाज़ पढाई, ये मेराज के सफ़र का ही वाक़िया है।

ये बैतूल मुक़द्दस नबियों का शहर रहा है,हज़रत लूत (अ.स) हज़रत दाऊद (अ.स) हज़रत सुलैमान (अ.स) जैसे तमाम नबिये किराम का शहर रहा है और बैतुल मुक़द्दस ही सब का मसकन रहा है।

इस में नमाज़ का सवाब बढ़ा दिया जाता है यानि मस्जिदे हराम और मस्जिदे नबवी में कई हज़ार नमाज़ों का सवाब मिलता है और उसके बाद सब से ज़्यादा जिस मस्जिद में नमाज़ पढने का सवाब है वो इसी मस्जिद यानि मस्जिदे अक्सा में है।

मस्जिदे अक्सा की फ़तह की बशारत ख़ुद नबी ने दी है

नुबुव्वत की निशानियों में से है कि नबी-ए-करीम (स.व)ने इस की फ़तह की खुशखबरी दी है।

सलीबियों ने 492 हि. में तक़रीबन 70 हज़ार मुसलमानों को क़त्ल करके यहाँ पर क़ब्ज़ा कर लिया था, उन शहीद होने वालों में उलमा और उनके शागिर्द, और इबादत गुज़ारों की एक बड़ी तादाद थी जो अपने वतनों को छोड़ कर मस्जिदे अक्सा में अपना कयाम किये हुए थे ।

मस्जिदे अक्सा पर 91 साल सलीबियों का क़ब्ज़ा रहा इस मस्जिद पर क़ब्ज़े के दौरान सलीबियों ने मस्जिद की इज्ज़त को पामाल किया और मस्जिद को चर्च में बदल दिया और गुम्बद पर एक बड़ी सलीब नसब कर दी ।

फिर इसके बाद सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने सलीबियों से जंग कर के इसे वापस लिया और मस्जिद को अपनी पहचान वापस की उस में फिर से सुधार का हुक्म जारी किया और उसको फिर एक मस्जिद की शक्ल में वापस लाये ।

अल्लाह हमारे सभी दीनी भाईयों की और मस्जिदे अक्सा की हिफाज़त फरमाए आमीन।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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