
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि :-
(1) एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। न उस भाई पर जुल्म करे और न किसी मुसीबत में उस का साथ छोड़े।
(2) जो शख्स अपने मुसलमान भाई की हाजत पूरी करता है अल्लाह तआला उसकी हाजत पूरी करता है।
(3) और जो शख्स अपने मुसलमान भाई की मुसीबत दूर करेगा, अल्लाह तआला उसको क़यामत की मुसीबतों से बचायेगा।
(4) और जो मुसलमान अपने भाई मुसलमान का ऐब छुपायेगा अल्लाह तआला दुनिया और आख़िरत में उसका ऐब छुपायेगा। (बुखारी शरीफ़)
(5) और तुम में पूरा मुसलमान वह है कि जिसकी ज़बान और हाथ से किसी मुसलमान को तकलीफ़ न पहुँचे ।
फायदा – कुरआन व हदीस से मुसलमान भाई के यह हुकूक़ साबित होते हैं :-
(1) जो बात अपने लिए पसन्द न हो वह किसी मुसलमान के लिए पसन्द न करे।
(2) किसी मुसलमान को हक़ीर न जाने ।
(3) उसकी चुग़ली न करें ।
(4) उस की ग़ीबत न करे।
(5) उस पर बोहतान न लगाये।
(6) उस का ऐब तलाश न करे ।
(7) हाकिम को तलाश करना जायज़ है।
(8) उस के ऐब को छुपाये
(9) तीन रोज़ से ज्यादा उससे बोलना न छोड़े, अगर किसी शरह की बात पर नाराज़गी हो तो जब वह तौबा कर ले फिर बोलने लगे।
(10) उसको नफ़ा पहुँचाये नुक़सान न पहुँचाये।
(11) बूढ़े मुसलमान को ताज़ीम करे और छोटे के साथ प्यार से पेश आये।
(12) मुसलमान से खुश होकर मिले।
(13) बिला सख्त उज्र उससे वादा खिलाफी न करे।
(14) उसके रुतबे के मुताबिक़ उससे बर्ताव करे।
(15) अगर दो मुसलमान भाइयों में रंजिश हो जाये तो उनमें सुलह करा दे। सुलह करा देने वाले को दस हज़ार नफ़िल नमाज़ों का सवाब मिलता है।
(16) अगर खुदा ने दुनिया की कोई इज़्ज़त दी है तो अपने मुसलमान भाई मज़लूम ग़रीब की हाकिमों से सिफ़ारिश कर दे और उसको नाहक़ की तकलीफ़ से बचाने पर तो सत्तर हज नफ़ली का सवाब मिलेगा।
(17) अगर किसी मुसलमान को कोई उसके आगे या पीछे तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उस तकलीफ़ से उसको बचाये और तकलीफ़ देने वाले को रोक दे ।
(18) अगर कोई मुसलमान बुरी सोहबत में फँस जाये तो प्यार या मुहब्बत से या जिस तरह की कुदरत हो उसको बुरी
सोहबत से बचाये।
(19) ग़रीब मुसलमान से मिलने जुलने में ज़िल्लत न समझे ।
(20) मुसलमान भाई जब मिले तो उसको इस तरह सलाम करे “अस्सलामु अलैकुम” वह जवाब दे “वाअलैकुम अस्सलाम ।” जब मुसलमान आपस में सलाम करते हैं तो अल्लाह तआला सौ रहमतें नाज़िल करता है। सलाम करने वाले पर नब्बे और जवाब देने वाले पर दस और मुसाफ़ा करने पर सत्तर रहमतें ज़्यादा नाज़िल होती हैं और दोनों के सग़ीरा गुनाह माफ़ होते हैं।
(21) जब मुसलमान छींक कर अलहम्दो लिल्लाह कहे तो सुनने वाला या रहमकुल्ला कहे।
(22) जब मुसलमान बीमार हो या किसी और बला में मुबतला हो, उसकी मदद करें।शौहर की मोहब्बत में जन्नत की राह।
(23) अगर वह तंगदस्त हो या क़र्जदार हो अपने अन्दर कुदरत हो तो माल से उसकी मदद करे। रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि जब मुसलमान बीमार होता है तो उसके गुनाह दरख्तों के पत्तों की तरह झड़ कर उससे दूर हो जाते हैं। और जब कोई मुसलमान अपने मुसलमान भाई की बीमारी या किसी और तकलीफ़ में उसकी ख़बर लेने जाता है तो वह जन्नत खरीद लेता है और जब ख़बर लेकर लौटता है तो सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उसकी मग़फिरत की दुआ करते हैं।
(24) जब मुसलमान इन्तिकाल कर जाये तो उसके जनाज़े का नमाज़ पढ़े और उसको क़ब्रिस्तान में पहुँचाये और दफ़न करके उसकी मग़फ़िरत की दुआ करके वापस हो तो गुनाहों से पाक साफ़ हो जाता है।
(25) मुसलमान भाइयों की क़ब्रों पर जाया करें और उनकी मग़फ़िरत की दुआ किया करे । खैरात या फातेहा का सवाब पहुँचाया करे और सोचा करे कि जिस तरह यह ख़ाक में मिल कर खाक हो गये इसी तरह एक दिन मैं भी ख़ाक में मिल जाऊँगा।
अलहासिल, मुसलमान भाइयों को नफ़ा पहुँचाने में कोई कमी न करे, इस कारे खैर में बड़े-बड़े सवाब मिलते हैं और मुसलमान भाइयों को नुक़सान पहुँचाने में बड़े-बड़े अज़ाब होते हैं।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..