12 / रबीउल अव्वल 1 हि० को जुमुआ का दिन था, नबी सल्ल0 कुबा से सवार होकर बनी सालिम के घरों तक पहुंचे कि जुमुआ का वक़्त हो गया,
यहां सौ आदमियों के साथ जुमुआ पढ़ा, यह इस्लाम में पहला जुम्आ था, आप सल्ल0 ने खुत्बा में फरमायाः
“हम्द व सताइश खुदा के लिये है, मैं उसकी की हम्द करता हूं, मदद व बख्शिश और हिदायत उसी से चाहता हूं, मेरा ईमान उसी पर है,
मैं उसकी नाफरमानी नहीं करता और नाफरमानी करने वालों से अदावत रखता हूं, मेरी शहादत यह है कि खुदा के सिवा इबादत के लाइक कोई भी नहीं, वह यकता है, उसका कोई शरीक नहीं, मुहम्मद (सल्ल०) उसका बंदा और रसूल है,
उसी ने मुहम्मद को हिदायत, नूर और नसीहत के साथ ऐसे ज़माने में भेजा जबकि मुद्दतों से कोई रसूल दुन्या पर न आया, इल्म घट गया और गुमराही बढ़ गई थी, उसे आखिरी ज़माना में क्यामत के करीब और मौत की नज़दीकी के वक़्त भेजा गया है,.
और जिसने उनका हुक्म माना वह भटक गया, दर्जा से गिर गया और सख्त गुमराही में फंस गया है, मुसलमानो! मैं तुम्हें अल्लाह से तकवा की वसीयत करता हूं, बेहतरीन वसीयत जो मुसलमान, मुसलमान को कर सकता है यह है कि उसे आखिरत के लिये आमादा करे और अल्लाह से तक्वा के लिये कहे,
लोगो ! जिन बातों से खुदा ने तुम्हें परहेज़ करने को कहा है उनसे बचते रहो, इससे बढ़ कर न कोई नसीहत है और न इससे बढ़कर कोई ज़िक्र है, याद रखो ! कि उमूरे आख़िरत के बारे में उस शख़्स के लिये जो खुदा से डर कर काम कर रहा है,
तक्वा बेहतरीन मददगार साबित होगा और जब कोई शख़्स अपने और खुदा के दर्मियान का मुआमला बातिन व ज़ाहिर में दुरुस्त कर लेगा और ऐसा करने में उसकी नीयत ख़ालिस हुई तो ऐसा करना उसके लिये दुन्या में ज़िक्र और मौत के बाद यानी जब इंसान को अमाल की ज़रूरत व क़दर मअलूम होगी जखीरा बन जाएगा,
लेकिन अगर कोई ऐसा नहीं करता यानी उसका ज़िक्र इस आयत में है कि इंसान पसंद करेगा कि उसके अमाल उससे दूर ही रखे जाएं, खुदा तुम को अपनी ज़ात से डराता है और खुदा तो अपने बंदों पर निहायत मेहरबान है, और जिस शख्स ने खुदा के हुक्म को सच जाना और उसके वादों को पूरा किया तो इसकी बाबत इर्शदे इलाही मौजूद है,
“हमारे यहां बात नहीं बदलती और हम अपने नाचीज़ बंदों पर जुल्म नहीं करते, ” मुसलमानो! अपने मौजूदा और आइंदा, ज़ाहिर और खुफिया कामों में अल्लाह से तक्वा को पेश नज़र रखो क्योंकि तक्वा वालों की बदियां छोड़ दी जाती हैं और अज्र बढ़ा दिया जाता है,
तक्वा वाले वह हैं जो बहुत बड़ी मुराद को पहुंच जाएंगे, यह तक्वा ही है जो अल्लाह की बेज़ारी, अज़ाब और गुस्सा को दूर कर देता है, यह तकवा ही है जो चेहरा को दरख़्शां परवदरिगार की खुशनूद और दर्जा को बुलंद करता है,
मुसलमानो! हज़्ज़ उठाओ, मगर हुकूके इलाही में फरो गुज़ाश्त न करो, खुदा ने इसी लिये तुमको अपनी किताब सिखाई और अपना रस्ता दिखाया है कि रास्त बाज़ों और काज़िबों को अलग अलग कर दिया जाए, लोगो ! खुदा ने तुम्हारे साथ उम्दा बरताव किया है,
तुम भी लोगों के साथ ऐसा ही करो, और जो खुदा के दुशमन हैं उन्हें दुशमन समझो, और अल्लाह के रास्ते में पूरी हिम्मत और तवज्जोह से कोशिश करो, उसी ने तुमको बरगुज़ीदा बनाया और तुम्हारा नाम मुसलमान रखा, ताकि हलाक होने वाला भी रौशन दलाइल पर हलाक हो और जिंदगी पाने वाला भी रौशन दलाइल पर जिंदगी पाए, मुसलमान से बात-चीत छोड़ देना और ताल्लुक़ात ख़त्म कर लेना।
और सब नेकियां अल्लाह की मदद से हैं, लोगो ! अल्लाह का ज़िक्र करो और आइंदा जिंदगी के लिये अमल करो, क्योंकि जो शख्स अपने और खुदा के दर्मियान मुआमला को दुरुस्त कर लेता है, अल्लाह तआला उसके और लोगों के दर्मियान मुआमला को दुरुस्त कर देता है,
हां! खुदा बंदों पर हुक्म चलाता है और उस पर किसी का हुक्म नहीं चलता, खुदा बंदों का मालिक है और बंदों को उस पर कुछ इख़्तियार नहीं, खुदा सब से बड़ा है और हमको नेकी करने की ताकत उसी अज़मत वाले से मिलती है ।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…