नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक बार एक काफिले को देखा। एक माँ परेशान थी उसको अपने सर पर दुपट्टे का होश भी नहीं था। उसका बेटा गुम हो गया था। वह भागी फिर रही थी। लोगों से पूछती थीः किसी ने मेरे बेटे को देखा हो तो मुझे बताओ।
यह मन्ज़र भी अजीब होता है कि माँ का जिगर का टुक्ड़ा उससे जुदा हो, उस पर क्या गुज़रती है। उसका दिल मछली की तरह तड़प रहा होता है। शब्दों में बयान नहीं कर सकती कि उस पर क्या मुसीबत गुज़रती है। उसकी आँखें तलाश कर रही होती हैं कि मेरा बेटा मुझे नज़र आ जाये।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से पूछाः यह माँ अपने बेटे की वजह से परेशान है, अगर इसे इसका बेटा मिल जाये तो क्या यह उसको आग में डाल देगी। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने कहा ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम !
कभी नहीं डालेगी। इतनी मुहब्बत है इसको बच्चे से, यह तो गवारा नहीं करेगी। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिस तरह माँ अपने बच्चे को आग में डालना गवारा नहीं करती इसी तरह अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त भी मोमिन बन्दे को आग में डालना गवारा नहीं करते। तो अल्लाह तआला से माफी माँगनी तो बहुत आसान है। इसलिए कि उनकी मुहब्बत तो सारी दुनिया की माँओं से सत्तर गुना ज्यादा है।
हदीस पाक में आता है कि एक नौजवान सहाबी थे, उन्होंने अपनी माँ को नाराज़ कर रखा था। कोई तकलीफ पहुँचाई थी, नाराज़ होकर धक्का दिया और माँ को चोट आ गयी। तो वह दिल से नाराज़ थीं। अब इन सहाबी की मौत का वक़्त आ गया। आख़िरी वक़्त की कैफियात तारी हैं मगर मौत नहीं आती, नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में अर्ज़ किया गया। इरशाद फरमायाः मैं खुद चलता हूँ।
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये, सूरतेहाल मालूम की, आपने उनकी वालिदा से सिफारिश फ़रमायी कि अपने बेटे को माफ कर दे। वह कहने लगी मैं हरगिज़ माफ नहीं करूँगी। उसने मुझे इतना दुख दिया इतना सताया कि मैं उसे माफ कर ही नहीं सकती।
जब आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देखा कि यह अपनी बात पर अड़ी हुई है तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया लाओ आग के लिए लकड़ियाँ, इकट्ठी करो। जब उसने यह सुना तो वह पूछने लगी कि लकड़ियाँ क्यों मंगवा रहे हैं?
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया आग जलायेंगे और तुम्हारे बेटे को उस आग में डालेंगे। तू उससे राज़ी जो नहीं हो रही। उसने जैसे ही यह सुना दिल मोम हो गया। कहने लगी ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! मेरे बेटे को आग में न डालिये मैंने अपने बेटे की ग़लतियों को माफ कर दिया।
खूबसूरत वाक़िआ: वो मोहब्बत जो दर्द में भी सुकून देती है |
तो जब माँ नहीं चाहती कि बेटा आग में जाये तो अल्लाह रब्बुल्-इज़्ज़त कैसे चाहेंगे कि उसके मोमिन बन्दे जहन्नम में जायें। माँ ने जितनी भी तकलीफें उठायी हों आख़िरकार माँ, माँ होती है। मुहब्बत के हाथों मजबूर होती है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
